प्रयागराज मंडल : “नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली” भाग-2
डीआरएम/प्रयागराज को गले में रेल का पट्टा डालकर फोटो खिंचवाने के अलावा न कोई खास काम होता है और न ही कोई खास जानकारी रहती है, ऐसी स्थिति में भ्रष्ट गतिविधियों पर अंकुश कौन लगाएगा?
उमेश शर्मा, ब्यूरो चीफ/एनसीआर/प्रयागराज
उपरोक्त शीर्षक “प्रयागराज मंडल – नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली!” की पहली कड़ी में प्रयागराज मंडल के वाणिज्य विभाग में की जा रही कुछ अनियमितताओं को “रेलसमाचार” ने उजागर किया था, उसी को विस्तार देते हुए कुछ अन्य अनियमितताओं से संबंधित जानकारी प्राप्त हुई है। इसकी जाँच की जानी चाहिए।
#रोटेशनल ट्रांसफर में की जा रही धांधली को प्रशासन कितना भी बचाव करे, लेकिन प्रश्न तो उठेगा ही। शिकायतों और आपत्तियों के बावजूद रोटेशनल ट्रांसफर में नियमों को ताक पर रखा जा रहा है।
एक उदाहरण – पीरियोडिकल ट्रांसफर पॉलिसी के तहत सुरेश सिंह, सीआईटी, प्रयागराज का स्थानांतरण कानपुर में किया गया, लेकिन जुगाड़ तंत्र के चलते उनको समय से पहले “स्वयं के अनुरोध पर” वापस प्रयागराज के सूबेदारगंज में सीआईटी के पद पर स्थानांतरण का आदेश कर दिया गया। आरोप है कि इसके बदले काफी मोटी डील हुई। तथापि यह आवश्यक नहीं है कि आरोप सत्य ही हो, क्योंकि आजकल कोई किसी पर कुछ भी आरोप लगा दे रहा है, लेकिन जब नियम को दरकिनार करके किसी का फेवर किया जाएगा तब संदेह की सुई डगमगाएगी ही!
स्थानांतरण में भेदभाव अथवा फेवर का दूसरा आरोप प्रयागराज मंडल के एसएजी स्तर के अधिकारी संजय सिंह पर लग रहा है, जो मंडल में एडीआरएम/जी के पद पर पदस्थ हैं। इनके विरुद्ध शिकायतों की काफी लंबी फेहरिस्त मिली है, जिसमें कर्मचारियों के ट्रांसफर से लेकर विभिन्न प्रकार के टेंडर्स तक में हस्तक्षेप करने का आरोप है। “रेलसमाचार” इन आरोपों के सत्यता के संबंध में अपने स्रोतों से जानकारी एकत्रित कर रहा है।
प्रयागराज मंडल में अव्यवस्था का हाल ये है कि नियमों पर चलने वाले अधिकारी यहाँ रहना ही नहीं चाहते। इसका ताजा उदाहरण सीनियर डीसीएम/गुड्स रहे शशिकांत त्रिपाठी का है, जिन्हें हाल ही में झाँसी मंडल से प्रयागराज मंडल में उक्त पद पर नियुक्त किया गया था, लेकिन सिस्टम को रसातल में देखकर उन्होंने स्वयं ही यहाँ से उत्तर मध्य रेलवे (#NCR) के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (#CPRO) के पद पर जाना पसंद किया।
प्रयागराज मंडल के डीआरएम को गले में रेल का पट्टा डालकर फोटो खिंचवाने के अलावा न कोई खास काम होता है और न ही कोई खास जानकारी रहती है। ऐसी स्थिति में भ्रष्ट गतिविधियों पर अंकुश कौन लगाएगा? प्रयागराज मंडल के अनेकों स्टाफ सीधा आरोप लगा रहे हैं कि वाणिज्य विभाग में “पैसा फेंक-तमाशा देख” की परिपाटी चल रही है।
उपरोक्त जानकारी रेल प्रशासन के लिए मामूली हो सकती है, लेकिन रेल मंत्रालय इसको संज्ञान में ले कि अब जो शिकायतें प्राप्त हो रही हैं उनमें #DRM और #ADRM स्तर के अधिकारियों की अवैध संलिप्तता के भी आरोप हैं, जो यदि वास्तव में कुछ प्रतिशत भी सही हैं, तो यह अत्यंत गंभीर स्थिति है। क्रमशः