September 28, 2020

“कृषि विधेयक-2020” पर सपने में शास्त्री जी से हुआ साक्षात्कार

Kisan Andolan against "#Kisan_Bill_2020" in Punjab.

भारत के सबसे लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी कल रात मेरे सपने में आए। अरे वही शास्त्री जी, जिन्होंने संकटकाल में इस देश को “जय जवान – जय किसान” का नारा दिया था, उन्होंने आते ही मुझसे सवाल पर सवाल दाग दिया। वह बहुत विचलित दिखाई दे रहे थे।

प्रस्तुत है सपने में हुए शास्त्री जी से मेरे साक्षात्कार के कुछ अंश..

पहला सवाल: क्या इस कृषि विधेयक के पहले किसान को अपनी उपज देश में कहीं भी लाने-ले जाने और निःशुल्क बेचने की आजादी नहीं थी?

दूसरा सवाल: क्या इस कृषि विधेयक के पहले किसान को अपनी उपज को स्टॉक करने की आजादी नहीं थी?

तीसरा सवाल: क्या इस कृषि विधेयक के पहले किसान को अपनी खेती किसी और को ठेका/बटाई/सिकमी/अधिया पर देने की आजादी नहीं थी?

एकदम साधारण वेशभूषा में सामने शास्त्री जी थे, उनके सामने मेरे मुंह से शब्द नहीं फूट रहे थे, इसलिए मैंने तीनों सवालों की स्वीकारोक्ति में “हां” में सिर हिला दिया।

शास्त्री जी ने गंभीर मुद्रा में फिर पूछा – हां! तो साबित करो!

साबित करने की कवायद में मैं बोलता गया, शास्त्री जी के सामने बोलता गया कि..

1. हां, भारत का हर किसान पहले भी अपनी उपज को देश भर में कहीं भी ले जाकर बेचने के लिए स्वतंत्र था।

2. हां, भारत के हर किसान को पहले भी अपनी उपज का असीमित भंडारण करने का अधिकार प्राप्त था।

3. हां, भारत के हर किसान को पहले भी अपनी खेती करने के लिए किसी से भी अनुबंध करने का अधिकार प्राप्त था, मगर तब एक किसान की खेती दूसरा किसान ही कर सकता था।

इतना सुनकर शास्त्री जी ने मुस्कराते हुए पूछा, तो फिर सरकार यह “भ्रम” क्यों फैला रही है?

क्योंकि पहले व्यापारियों के पास इस सबका अधिकार नहीं था, मैंने झिझकते हुए कहा।

इतना उत्तर देते ही अचानक मेरी आंखें खुल गईं। मेरा सपना टूट गया और शास्त्री जी अंतर्ध्यान हो गए!

“जमाखोरी पर सरकारी मुहर लगाकर कारपोरेट के हवाले खेती” -पुण्य प्रसून बाजपेई

आंखें मलते हुए मैंने उस सपने को पुनः एक सिरे से सोचा, कड़ी से कड़ी जोड़ी और अपने अंतिम उत्तर को बुदबुदाते हुए पूरा किया.. मतलब!!

1. जी हां, इस कृषि विधेयक के पहले व्यापारियों को यह अधिकार नहीं था कि वे किसी भी किसान के घर-घर और खेत-खेत जाकर मनमाने दाम पर उसकी पैदावार को खरीद सकें।

2. जी हां, इस कृषि विधेयक के पहले व्यापारियों को यह अधिकार नहीं प्राप्त था कि खरीदी गई उपज का मनमाने असीमित स्टॉक करके रख सकें।

3. जी हां, इस कृषि विधेयक के पहले व्यापारियों को यह अधिकार नहीं था कि वे किसान से मनचाही शर्तों पर अनुबंधित खेती करवा सकें।

ओह! फिर तो ये किसानों की नहीं, बल्कि व्यापारियों (बड़े पूंजीपतियों) की निरंकुश आजादी हो गई!

जी, बिल्कुल.. वास्तविकता में यह किसानों के नाम पर व्यापारियों (पूंजीपतियों) को दी गई खुली छूट है कि “जाओ, लूट सको तो लूट लो, जितना लूट सकते हो!”

अच्छा! अब एक आखिरी सवाल, जो मैं इस देश की जनता से पूछना चाहता हूं ! 

क्या इस कृषि विधेयक के पहले पूरे भारत में किसान को अपनी उपज की विक्री करने पर किसी भी प्रकार का कोई भी शुल्क या टैक्स देना पड़ता था?

बोलो, लगता था क्या??

नहीं लगता था न!

जनता: नहीं लगता था साब, एक नया पैसा भी किसान से नहीं लिया जाता था शुल्क या टैक्स के नाम पर, बल्कि मंडी आने पर किसान को न्यूनतम दर (₹5) में भोजन थाली, किसान रेस्ट हाउस, किसान पुरस्कार योजना, आयकर में छूट इत्यादि अनेकानेक लाभ प्राप्त होते थे।

तो क्या सरकार ने यह भी भ्रम और झूठ फैलाया!!

जनता: और नहीं तो क्या!

पहले क्रय करने पर व्यापारियों को किसान को तुरंत उसी दिन भुगतान करना और मंडी शुल्क चुकाना अनिवार्य होता था। अब व्यापारी इन दोनों से ही आजाद हो गया।

इस अर्जित मंडी शुल्क का उपयोग मंडी संचालन, कृषि अनुसंधान, ग्रामीण सड़क निर्माण, गौ-शाला, निराश्रित अशक्त जन सहायता इत्यादि जनोपयोगी कार्यों में किया जाता रहा है। अब मंडियां बंद होने से ये सारे कार्य भी स्वतः बन्द हो जाएंगे।

तो क्या सरकार ने किसान की आय बढ़ाने के नाम पर मंडी शुल्क “शून्य” करके व्यापारियों की आय बढ़ा दी!

जनता: सीधी सी बात है साब! किसान को तो कोई लाभ हुआ नहीं, बल्कि घाटा ही हुआ। मंडी सुविधाओं से किसान तो वंचित होगा ही होगा, अन्य योजनाओं से भी गया।

हां, व्यापारी को तो तुरंत मंडी शुल्क नहीं देने का लाभ तो अवश्य हो ही गया।

अच्छा, माफ करना, कहो तो बस एक बचा-खुचा सवाल और पूछ लूं!

एकदम अंतिम सवाल: भई, जब सरकार और सरकार के सारे नुमाइंदे इस कृषि विधेयक की इतनी तारीफ कर रहे हैं, तो कुछ तो फायदा होगा ही न इससे किसान को?

जनता: हां, होगा न फायदा! अब वो घर बैठे खटिया पर पसरा रहेगा, आने वाले व्यापारी को औने-पौने दाम पर अपनी उपज बेच सकेगा। फिर कर्जे में आएगा। व्यापारी से व्यापारी की मनमानी शर्त पर खेती करेगा। फिर और कर्ज में डूबेगा। ये होगा फायदा किसान को!

इस तरह अंततः कर्जे में आ-आकर कोई और रास्ता या विकल्प न बचा देखकर किसी पेड़ पर रस्सी डालकर लटक जाएगा।

बाकी और कोई फायदा इस कृषि विधेयक का किसी को दिखता हो, तो बताना जरूर!

“ये सरकार किसी के बाप की नहीं, सुप्रीम कोर्ट के वकील की दहाड़ से मचा हड़कंप!”

कृपया अपने मित्रों और किसान बंधुओं को किसान-हित में इस साक्षात्कार को शेयर अवश्य करें।

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