October 15, 2020

बिज्लंस एकांकी: महफिल उनकी, साकी उनका, आंखें मेरी, बाकी उनका!

Mera Bharat Mahan

व्यंग्य: डॉ रवीन्द्र कुमार

दृश्य एक :

सतर्कता विभागवाला टी.टी. को घुड़का रहा है  “क्यों बे तू जानता नहीं मैं कौन हूँ?”

टी.टी. घिघिया रहा था “हुजूर चार्ट देख लें, एक भी बर्थ खाली नहीं है। मेरा कैश गिन लें ! न शॉर्ट है, न एक्सेस।”

सतर्कता निरीक्षक उसकी एक न मान रहा था। वह सतर्क था और टी.टी. के सभी तर्क ताक पर रख रहा था। “बेटा तू अभी जानता नहीं है, तेरा ‘बिज्लंस’ से कभी पाला नहीं पड़ा है।”

हमें आती है बर्थ लेने की आर्ट,तू अपने पास रख अपना ये चार्ट!

“बर्थ तो यूँ निकलती है”, उसने हाथ झटक कर चुटकी बजाते हुए कहा। “जानता नहीं हम बिज्लं से हैं। ऐसा फंसाएंगे कि नौकरी, पिंसन और ग्रैचुइटी सबसे हाथ धो बैठेगा। कहे तो एग्रीड लिस्ट में डाल दें।”

“साब, ये एग्रीड लिस्ट क्या होती है ?”

“अरे इतना भी नहीं जानता, जो पार्टी एग्री न करे उसे  एग्री कराने को हम एग्रीड लिस्ट में डालने को एग्री हो जाएं।”

“चल तू नहीं समझेगा। हमें क्या पता नहीं है कि तुम लोग हमें “मक्खी-मच्छर” कहकर आपस में संबोधित करते हो।”

“अभी उस दिन की बात है एक टी.टी. अपने साथ दूर के, पास के, रिश्तेदारों के साथ ट्रेन में चढ़ा और टी.टी. से पूछने लगा कि ट्रेन में “मक्खी-मच्छर” तो नहीं हैं। बच्चू मच्छर जानता है न? काट ले तो मलेरिया.. फिलेरिया.. क्या नहीं हो सकता। फाल्सिपोरम का तो तूने नाम भी न सुना होगा।”

“चल-चल, अब जल्दी से एक केबिन खाली करा और चिकन.. चल चिकन छोड़… आजकल बर्ड फ़्लू चल रहा है.. मटन और फिश फ्राई भिजवा दे। सोडा और ग्लास भी। ज्यादा ना-नुकुर की, तो तेरा ये चार्ट जब्त… कचहरी बंद… मुकदमा खारिज…”

दूसरे दृश्य में:

सतर्कता निरीक्षक, निरीह रक्षक (चौकीदार) से उलझा हुआ था।

“क्या कहा? हमसे हमारा डेजिंग्नेशन पूछ रहा है। इतना काफी नहीं है कि हम यम हैं। ‘बिज्लंस’ से हैं भाई ! बात समझ में आई कि नहीं। नहीं आई, तो चल अपने चादरें, तकिये, तौलिये गिनवा!

आज न छोड़ेंगे.. हरीप्पा…

दृश्य तीन :

विजिलेंस निरीक्षक उत्तर पुस्तिका के पृष्ठ उलट फेरता उछल पड़ा और अपने अफसर से बोला-

“देखिये सर, दस में से दस ! ये क्या धांधलेबाजी है? सरासर अंधेरगर्दी है ! भला कभी दस में से दस भी किसी के आते सुने हैं? वाह जी वाह ! आपने तो लूट मचा रखी है ! वो भी हमारे रहते..!!

छापित अधिकारी: “मुझे लगा प्रश्न का बहुत ही अच्छा उत्तर दिया है, इसलिये दस में से दस दिये।”

वीआई: “भई वाह, तुम्हें लगा हा..हा..हा.. और तुम्हें क्या क्या लगता है? ये तुम्हें ऐसा लगे इसके लिए कितने लगे?” 

अधिकारी: “आप क्या बात कर रहे हैं?”

वीआई: “वाह जी वाह, अब हमारी बात ही समझ नहीं लग रही है। हम पूछ रहे हैं कि दस में से दस देने के तुमने कितने लिए, दस हजार, दस लाख?”

अधिकारी: “ये क्या बकवास है!” 

वीआई: “यही तो जानना हमारी ड्यूटी है कि ये क्या बकवास है। भला, कभी किसी के दस में से दस नंबर सुने हैं! जपत करो जी सब कॉपी.. किताबें, फाइलें। सीजर मीमो दो और इसे जूलियस सीजर बना दो।”

दृश्य चार:

भई ये टेंडर कमेटी में चौथा मेंबर कौन है? 

ये विजिलेन्स से हैं, ताकि बाद में हमारा ‘चौथा’ न करें। आदेश आया है कि सभी टेंडर कमेटी, सलेक्शन कमेटी, डीपीसी, वर्क्स कमेटी, हाउसिंग कमेटी, प्रेम, जेसीएम, पर्चेज कमेटी, महिला समिति, पीएनएम, नॉन-पेमेंट मीटिंग में विजिलेंस का एक मेंबर कंपल्सरी रहेगा। इसके कई फायदे हैं, बाद में कोई झंझट ही नहीं। चलो जिसे ‘एल-वन’ करना है सब यहीं भ्रातृ-भाव से निपटा लिया जाएगा। बाद की सिरदर्दी, पूछताछ से एक झटके में ही मुक्ति मिल जाएगी।

चलो अब हम शपथ ले लें..

हे मैंने कसम ली..

हे तूने कसम ली..

नहीं होंगे जुदा..

हम… तुम… कभी..

विज्लंस इंसपैक्टर बता रहा था, “भई आप लोग हमारे ‘कष्टमर’ हैं। कष्ट हम देंगे, बाकी आपका!” 

मुझे मशहूर शेर याद हो आया-

“महफिल उनकी,

साकी उनका,

आंखें मेरी, बाकी उनका..!!”

डॉ रवीन्द्र कुमार, पूर्व आईआरपीएस, सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार और साहित्यकार हैं। उनकी कई व्यंग्य एवं साहित्यिक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं।