प्रयागराज मंडल – नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली!

॥ उमेश शर्मा, ब्यूरो चीफ, प्रयागराज ॥

ऐसा लगता है कि उक्त मुहावरे का प्रयोग इस समय उत्तर मध्य रेलवे, प्रयागराज मंडल के वाणिज्य विभाग पर बिल्कुल सटीक बैठ रहा है। अब आप कहेंगे उदाहरण के साथ बताएँ, तो पढ़ना शुरू करें-

अभी हाल ही में गाड़ी संख्या 12307 हावड़ा-जोधपुर एक्सप्रेस में दि. 27.05.2024 को एक हिंदी दैनिक के स्टिंग ऑपरेशन में उत्तर मध्य रेलवे, प्रयागराज मुख्यालय के ऑन ड्यूटी चेकिंग स्टाफ द्वारा बर्थ के बदले ₹900/- की घूस लेते हुए खबर के वायरल होने पर #SrDCMPrayagraj द्वारा आरोपी टीटीई को रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियम, 1968 के उप-नियम 14(ii) के अंतर्गत रेलसेवा से बर्खास्तगी का आदेश दिया गया है। इस असामान्य कारवाई को लेकर वाणिज्य विभाग में खासकर टिकट चेकिंग स्टाफ में जबरदस्त असंतोष है। सामान्यतः 14(ii) का इस्तेमाल गाड़ी संचालन में बरती गई गंभीर लापरवाही या अन्य कोई गंभीर कृत्य पर ही किया जाता है।

फिलहाल “रेलसमाचार” उक्त कारवाई का न तो समर्थन करता है, न ही इस पर कोई टिप्पणी करना चाहता है। बस, इस घटना को यहाँ कोट इसलिए किया जा रहा है कि जिस कथित नैतिकता-शुचिता के लिए जीरो टॉलरेंस का संदेश देते हुए प्रयागराज मंडल के सीनियर डीसीएम द्वारा उक्त कारवाई की गई है, क्या वास्तव में उनके मंडल में भ्रष्टाचार पर लगाम है? और क्या वह स्वयं इससे परे हैं?

उक्त कारवाई को कोट करते हुए प्रयागराज मंडल और मुख्यालय के कई स्टाफ – खासकर चेकिंग, गुड्स/पार्सल, मिनिस्ट्रियल, एकाउंट्स – ने रेल प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया है कि सजा देने में अलग-अलग मापदंड क्यों? सालों से रेल राजस्व को घुन की तरह खा रहे भ्रष्ट कर्मियों पर इस तरह की कारवाई क्यों नहीं की गई, जिनकी अनियमितता सबूतों के साथ पकड़ी गई?

शिकायत करने वाले कर्मियों ने नाम न उजागर करने का अनुरोध किया है, इसलिए नाम सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है और यही पत्रकारिता की शक्ति और भरोसा है, जिसे कोई अथॉरिटी चैलेंज नहीं कर सकती। आरोप है कि पिछले कुछ सालों से प्रयागराज मंडल का वाणिज्य विभाग भ्रष्टाचार का केंद्र बन चुका है और यह हर कदम पर खासकर प्रयागराज और कानपुर में फलीभूत होते हुए भी देखा जा सकता है। “रेलसमाचार” को पीरियोडिकल ट्रांसफर से लेकर, टेंडर, कोटेशन, एनएफआर आइटम्स में गड़बड़ियों के बारे में दस्तावेजों के साथ जानकारी दी गई है।

“रेलसमाचार” को भेजी गई शिकायतों और उनके साथ अटैच डॉक्यूमेंट्स की लिस्ट बहुत लंबी है, जिन्हें एक एपिसोड में प्रकाशित कर पाना संभव नहीं है, इसलिए पहला एपिसोड केवल दो आरोपों की पड़ताल पर केंद्रित है।

“रेलसमाचार” ने विभिन्न शिकायतों की जमीनी हकीकत पता करने की कोशिश की, तो बहुत ही चौंकाने वाली जानकारी मिली। अब आइए क्रम से शुरू करते हैं-

  1. पहला आरोप रोटेशनल ट्रांसफर में की जा रही अनियमितता को लेकर है। सबसे ज्यादा शिकायत प्रयागराज और कानपुर की मिली है। चाहे प्रयागराज एरिया हो या कानपुर एरिया, दोनों जगहों पर रोटेशन में भेदभाव का आरोप लगा है। रोटेशनल ट्रांसफर में जिसकी जैसी पहुंच है, और जिसकी जैसी पेइंग कैपेसिटी है, उसी के हिसाब से ऑर्डर निकाले जा रहे हैं। और कई बार तो एक दिन कुछ ऑर्डर निकलता है और दूसरे दिन पहला आदेश बदलकर दूसरा ऑर्डर निकाल दिया जाता है। रोटेशन को लेकर “रेलसमाचार” लगातार रेल मंत्रालय को आगाह करता रहा है, लेकिन अंधेर नगरी चौपट राजा के युग में कहाँ कोई इस पर ध्यान देगा? प्रयागराज और कानपुर जैसे बड़े एरिया में वर्षों से जमे लोग यदि पूरी ईमानदारी से अन्य जगह ट्रांसफर कर दिए गए होते तो शायद भ्रष्ट गतिविधियों पर कुछ हद तक अंकुश लगा होता, क्योंकि वर्षों से एक ही स्थान पर एक ही नेचर का कार्य करने पर अवैध कमाई करने का लोभ संवरण करना संभव नहीं होता और लोकल नेटवर्क-नेक्सस के चलते आसान अवसर और संरक्षण मिल जाता है। केवल पिछले एक साल का रोटेशनल ट्रांसफर देखने पर प्रशासन की मंशा पर संदेह पैदा हो रहा है।
  2. दूसरा सबसे बड़ा गंभीर आरोप कानपुर स्थित सीपीसी मालगोदाम में रेल राजस्व की लगातार बढ़ती चोरी का है। आरोप है कि इस मालगोदाम में भ्रष्टाचार साल-दर-साल फलता-फूलता रहा। कुछ अवैध कमाई की खातिर रेल राजस्व को जमकर क्षति पहुंचाई जाती रही और जिन गुड्स कर्मियों ने यहां पर भ्रष्ट गतिविधियों को रोकने की कोशिश की, उनको षड्यंत्र करके किसी न किसी केस में फंसाकर उनका स्थानांतरण कानपुर से बाहर कर दिया गया।

एक आरोप ये भी है कि फ्रेट के क्षेत्र में अच्छी जानकारी रखने वाले कुछ अनुभवी सुपरवाइजरों को एक सुनियोजित प्लान के तहत उन्हें कानपुर से बाहर कर दिया गया। इस साजिश में मंडल के अधिकारी की भूमिका सहित एनसीआर के एक पूर्व पीसीसीएम का भी नाम पुख्ता तौर पर आया है। इस पर अलग से विस्तृत लेख की प्रतीक्षा करें। आरोप है कि माल गोदाम कानपुर में गुड्स कर्मियों द्वारा रेल राजस्व में की जा रही चोरी की जानकारी स्थानीय अधिकारी से लेकर मंडल और मुख्यालय के जिम्मेदार अधिकारियों को भी है, यह जानकारी उनको भी है, जो आज विजिलेंस में बैठे हैं, क्योंकि कभी कानपुर में पदस्थ रहकर वह भी इसका हिस्सा थे। लेकिन इस तरफ से आँख मूंदने के बदले होने वाली मोटी अवैध कमाई की खातिर इन सभी ने अपना ईमान बेंच दिया! ऐसे अधिकारी दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं, जबकि खुद अनैतिक कार्य कर रहे हैं।

कर्मचारी खुलकर और नाम लेकर अधिकारियों की निष्ठा पर संदेह जता रहे हैं। उनका सारा कच्चा चिट्ठा खोल रहे हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस का संदेश देना केवल आंखों में धूल झोंकना है। हकीकत में ये अधिकारी ही भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रहे हैं-अर्थात रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं, और जब कार्रवाई की बात आती है तो केवल अधीनस्थ स्टाफ को दंडित किया जाता है।

अब सीपीसी मालगोदाम कानपुर में गुड्स कर्मियों द्वारा की जा रही राजस्व चोरी से संबंधित आरोपों को भी जान लें-

इस मालगोदाम में प्रतिमाह लगभग 90 रेक इनवर्ड ट्रैफिक के रूप में प्लेस होते हैं। जिन व्यापारियों का माल होता है, उन्हें अपना माल वैगन से उतारने के लिए, और गोदाम से बाहर ले जाने के लिए शेड की श्रेणी के अनुसार कुछ घंटे का फ्री टाइम दिया जाता है। यदि फ्री टाइम के अंदर वैगन से माल अनलोड नहीं होता है, तो टाइम पूरा होने के बाद प्रति घंटा पूरे रेक पर विलंब शुल्क (#Demurrage) लगाया जाता है।

इसी तरह यदि निर्धारित फ्री टाइम के अंदर माल परिसर से बाहर नहीं जाता है, तो टाइम पूरा होने के बाद रेलवे की जगह घेरने की एवज में व्यापारी से शेड की श्रेणी अनुसार प्रति वैगन प्रति घंटे का स्थान शुल्क (#Wharfage) लगाया जाता है। अब सारा भ्रष्ट खेल इसी की आड़ में खेला जाता है। एकाउंट्स विभाग से जुड़े तथा सीपीसी माल गोदाम में कार्य कर चुके कई अन्य स्टाफ द्वारा बताया गया कि सीपीसी को पार्टियों ने एक तरह से अपना वेयरहाउस बना रखा है और जब दूसरे व्यापारी को डिलीवरी देनी होती है तभी माल का रिमूवल गुड्स शेड से किया जाता है। लेकिन सिस्टम में इसका रिमूवल एक निश्चित समय में दिखा दिया जाता है, जिससे पार्टी को ज्यादा चार्ज न भरना पड़े।

जबकि कुछ व्यापारियों का माल कई-कई दिनों तक पड़ा रहता है, परंतु सिस्टम (#TMS/#FOIS) में माल का रिमूवल बहुत पहले ही दिखा दिया जाता है, जिससे व्यापारी को स्थान शुल्क का भुगतान अधिक न करना पड़े। इसके बदले रेलकर्मी व्यापारी से माल रिमूवल के समय वास्तव में जितना स्थान शुल्क रेलवे को देय होता है, उसका आधा हिस्सा अवैध कमीशन के रुप में लेते हैं और उसका बंटवारा स्थानीय अधिकारी से लेकर मंडल और मुख्यालय तक किया जाता है। आरोप है कि इस प्रकार के अवैध कृत्य से सीपीसी माल गोदाम में लगभग 20 से 30 लाख रुपये प्रतिमाह रेल राजस्व (स्थान शुल्क) की चोरी हो रही है और यह चोरी पिछले कई सालों से होती चली आ रही है।

एकाउंट्स विभाग में कार्यरत एक ऑडिटर ने बताया कि सीसीपी माल गोदाम में इस प्रकार की चोरी कोई नई बात नहीं है, यह पहले भी होती थी, बस जो पैटर्न बदला है, वह ये है कि पहले जो हल्की-फुल्की राजस्व में चोरी की जाती थी, लेकिन जल्द अवैध महल खड़ा करने की ख्वाहिश रखने वाले कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों के कारण पिछले 3-4 सालों से वह बड़ी चोरी अब डकैती में बदल गई है।

अर्थात् उसका कहना का तात्पर्य यह था कि अब डंके की चोट पर रेल राजस्व को लूटा जा रहा है, और जो रास्ते में बाधक बनता है, उसे ट्रांसफर करके कानपुर से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। उसका कहना है कि जिन अधिकारियों और कर्मचारियों पर रेल राजस्व को बढ़ाने का जिम्मा था, उन्होंने ही चंद रुपयों के लालच में अपना ईमान बेच दिया!

असल में इन सारी भ्रष्ट गतिविधियों का मुख्य कारण भी रोटेशनल ट्रांसफर का ईमानदारी से पालन न किया जाना ही है, जिसके बारे में “रेलसमाचार” लगातार आगाह करता रहा है। जब 10-20 सालों से उसी क्षेत्र में उसी नेचर का काम बाबू करेगा, तो स्वाभाविक है कि धूर्त और भ्रष्ट स्वभाव के लोग फले-फूलेंगे ही।

एक ही व्यक्ति बार-बार लोकेशन बदलकर उसी जगह कार्यरत है, कागजों में रोटेशन चलता रहता है, जिससे भ्रष्ट स्वभाव वाले अपने उद्देश्यों में सफल हो जाते हैं। “रेलसमाचार” के पास प्रमाण स्वरूप इसके सारे दस्तावेज उपलब्ध हैं।

सीपीसी मालगोदाम, कानपुर के बारे में जो आरोप लगाए गए हैं, वह काफी हद तक सही लग रहे है, उसके कारण भी हैं। जैसे कि-

  1. सीपीसी माल गोदाम बीट के एकाउंट्स विभाग के इंस्पेक्टर द्वारा जब 18.11.2021 को निरीक्षण किया गया, तो पाया गया कि नवंबर माह में उस तिथि तक स्थान शुल्क की वसूली शून्य थी, जबकि निरीक्षण के दौरान डिलीवरी बुक और अन्य रजिस्टर क्लोज करने पर करीब 22 लाख रुपये का स्थान शुल्क जमा कराया गया। अर्थात यदि बीट इंस्पेक्टर द्वारा निरीक्षण न किया गया होता, तो शायद तीसरे पीरियड का स्थान शुल्क भी शून्य होता!
  2. #NCR के #DyFA&CAO/#Traffic तथा उनकी टीम द्वारा सीपीसी माल गोदाम में अक्टूबर, 2022 को औचक निरीक्षण के दौरान मौके पर 25 वैगन का माल पड़ा हुआ मिला, जबकि सिस्टम में उनका रिमूवल पहले ही किया जा चुका था। उस हिसाब से जो स्थान शुल्क की चोरी पकड़ी गई, उसका मूल्य करीब 11.50 लाख रुपये था। प्रशासन को धोखे में रखने लिए टीएमएस के साथ-साथ मैनुअल रजिस्टर भी रखा गया था। निरीक्षण के दौरान दोनों में अंतर पाया गया। निरीक्षण के दौरान कई अनियमितताओं का भी उल्लेख निरीक्षण रिपोर्ट में किया गया है, लेकिन इतनी सारी अनियमितताएँ मिलने के बाद भी वाणिज्य विभाग के किसी भी उच्चाधिकारी के कान पर जूं नहीं रेंगी! इससे इस आरोप को पूरा बल मिलता है कि उक्त रेल राजस्व की चोरी में सभी संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत या मौन सहमति है?
  3. एकाउंट्स विभाग की कारवाई के बाद सतर्कता विभाग नींद से जागा और उसे भी नवंबर, 2022 में निरीक्षण के दौरान कई अनियमितताएँ मिलीं, जिस पर कारवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति की गई थी।
    इसके बाद सर्तकता विभाग द्वारा फिर 30.06.2023 को ग्राउंड इन्वेंट्री को चेक किया गया। इस बार भी वही अनियमितता अर्थात रेल राजस्व की चोरी मिली। मौके पर कई वैगनों का माल पड़ा हुआ पाया गया, जिनको सिस्टम (#TMS/#FOIS) में रिमूवल पहले ही दिखाया जा चुका था। एक अनुमान के अनुसार करीब 5 लाख रुपये की राजस्व चोरी का अंदेशा है।

जब बात नैतिकता, शुचिता और जीरो टॉलरेंस की हो रही है तो आखिर सीनियर डीसीएम और पीसीसीएम को इतना बड़ा भ्रष्टाचार और उसमें शामिल कर्मचारियों की करतूतें क्यों नहीं दिखीं? जब छोटी-छोटी घटनाओं में उसी माल गोदाम से अन्य कर्मचारियों को कानपुर से बाहर ट्रांसफर कर दिया गया, तो फिर इतना बड़ा घोटाला, वह भी सबूतों के साथ, पाए जाने पर भी घोटाले में शामिल कर्मचारियों पर क्या एक्शन लिया गया? आखिर इन लोगों को कौन बचा रहा है? जीएम, पीसीसीएम, डीआरएम जैसे उच्चाधिकारियों को इसकी जानकारी है या नहीं?

फिलहाल जीएम और डीआरएम तो वैसे भी अमृत भारत स्टेशन योजना के निर्माण की प्रगति को मॉनिटर करने तक ही सीमित हैं, तब उन्हें ग्राउंड पोजिशन का पता कैसे लगेगा? क्या ये लोग निरीक्षण और मॉनिटरिंग के नाम पर केवल खानापूर्ति करते रहते हैं? इन्हें लंबे समय से एक जगह टिके कर्मचारी नहीं दिखाई देते? मीटिंग पर मीटिंग का खेल खेल खेलने वाले इन जिम्मेदार अधिकारियों की आखिर रोटेशन को लेकर इतनी उदासीनता क्यों है? इनकी नाक के नीचे काम करने वाले कामर्शियल बाबू, गुड्स/पार्सल सुपरवाइजर जैसे पदों पर कार्यरत लोग रेल राजस्व को करोड़ों का चूना लगाते रहते हैं, और यह कथित जिम्मेदार अधिकारी जानबूझकर आंखें मूंद लेते हैं!

“रेलसमाचार” उक्त आरोपों और इनसे संबंधित दस्तावेजों के संबंध में रेल मंत्रालय से अनुरोध करता है कि उक्त जो भी आरोप लगाए गए हैं, यदि सत्य हैं, तो इस कृत्य के दोषी केवल कर्मचारी ही नहीं हैं, बल्कि संबंधित विभाग के मंडल से लेकर मुख्यालय के वाणिज्य अधिकारी भी इसके लिए उतने ही दोषी हैं। इन लोगों पर भी उचित कारवाई की जानी चाहिए, तभी जीरो टॉलरेंस का लक्ष्य पूरा होगा। प्रतीक्षा करें, शिकायतों की यह लिस्ट काफी लंबी है! क्रमशः…