इंजीनियरिंग विभाग की भीषण लापरवाही
इंजन के ट्रांसफार्मर आयल टैंक में घुसी रेल पटरियों के बीच स्पेयर छोड़ी गई फिश प्लेट
यदि मंत्रियों अथवा राजनीतिज्ञों को इतनी सी बात समझ में आ जाती, तो इंजीनियर्स अथवा नौकरशाही के साथ करप्शन में हिस्सा बंटाने के बजाय उनकी पीठ पर डंडे बरसाते, तो अब तक भारत में हाई स्पीड ही नहीं, बुलेट ट्रेनें भी सरपट दौड़ रही होतीं
सुरेश त्रिपाठी
गुरुवार-शुक्रवार की दरमियानी रात को वाल्टेयर मंडल, पूर्व तट रेलवे के रायगड़ा-विजयनगरम सेक्शन में एक ऐसी अप्रत्याशित घटना हुई, जो भारतीय रेल के इतिहास में शायद इससे पहले कभी नहीं सुनी गई होगी।
Another Engineering blunder: Fuel tank damaged because of soare fishplate between Rayagada-Vijayanagaram section of Waltair Division, ECoRly
ट्रेन नं. 02844 रात को लगभग 03.35 बजे उपरोक्त ब्लॉक सेक्शन से निर्धारित गति से गुजर रही थी। तभी ट्रेन के लोको पायलट और सहायक लोको पायलट को अचानक इंजन के नीचे से आती तेज खरखराहट की आवाज सुनाई दी।
लोको पायलट ने इमरजेंसी ब्रेकिंग कर तुरंत गाड़ी रोकी और नीचे उतरकर लोको चेक किया, तो देखा कि एक फिश प्लेट लोको के ट्रांसफार्मर आयल टैंक की बॉडी को फाड़कर आधा अंदर घुस गया है जिससे सारा ट्रांसफार्मर आयल तीव्रता बहकर बाहर निकल रहा है और तभी उक्त लोको ब्लॉक सेक्शन में ही फेल हो गया।
पता चला है कि उक्त फिश प्लेट, ट्रैक से खुलकर टैंक में नहीं घुसा था, बल्कि पी-वे स्टाफ द्वारा इसे बदलने के बाद स्पेयर फिश प्लेटें दोनों पटरियों के बीच में रखकर ऐसे ही छोड़ दी जाती हैं। यह सर्वज्ञात तथ्य है।
इस मामले की फिलहाल जांच चल रही है, लेकिन प्रथमदृष्टया यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इंजन के ट्रांसफार्मर आयल टैंक घुसी उक्त फिश प्लेट शायद गिट्टी या पत्थर पर थोड़ी ऊपर उठी हुई पड़ी होगी, जो पहले कैटल गार्ड से टकराई होगी और फिर अंदर ही जंप करने की वजह से फोर्स में आकर ट्रांसफार्मर आयल टैंक के नीचे जाकर उसमें घुस गई होगी।
बहरहाल, जो भी हुआ होगा, वह जांच में सामने आएगा, परंतु जिस तरह फिश प्लेट इंजन के ट्रांसफार्मर आयल टैंक में घुसी और जिस तरह उससे आयल बहा, उससे पूरे इंजन में आग लग सकती थी, जिससे एक बड़ा और भीषण हादसा हो सकता था तथा दोनों लोको पायलट की जान जा सकती थी।
ऐसे में यह सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि इंजीनियरिंग विभाग और उसका फील्ड स्टाफ कब सुधरेगा? कब उनके नियंत्रक अधिकारीगण अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे? कब संबंधितों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय की जाएगी? और कब रेल संरक्षा तथा यात्री सुरक्षा को सुनिश्चित तथा व्यवस्थित किया जाएगा?
इंजीनियरिंग स्टाफ बिना ब्लाक लिए कहीं ट्रैक खोलकर बैठा है, तो कहीं फिश प्लेटें छोड़ दे रहा है, कहीं पैकिंग प्रॉपर न होने से मड पंपिंग हो रही है, तो कहीं घटिया बलास्ट पर अच्छी बलास्ट की परत बिछाकर, तो कहीं कथित प्लेटफार्म अप्रन बनाकर पब्लिक एक्सचेकर को चट किया जा रहा है, कहीं रेल की क्वालिटी से समझौता किया जा रहा है, तो कहीं अन्य एक्सेसरीज से!
इंजीनियरिंग अधिकारियों द्वारा अपने आवासों में बर्जर/एशियन पेंट्स कम्पनी का पेंट, कलर और वॉल पेपर लगाने के साथ ही कीमती पेंटिंग्स भी लगाई जाती हैं, जबकि अन्य विभागीय अधिकारियों के आवासों में साधारण डिस्टेम्पर और सस्ता लोकल मार्केट का कलर लगाने का भी बजट उनके पास नहीं होता।
हर डेढ़-दो साल में आवास बदलने वाले इंजीनियरिंग अधिकारी हर बार 50-60 लाख रुपए तो यों ही सिर्फ अपने आवास के रेनोवेशन में खर्च कर देते हैं। जिसे यकीन न हो रहा हो, वह किसी भी शहर की किसी भी ऑफीसर कॉलोनी में जाकर देख ले!
आज यदि पूरी भारतीय रेल में ट्रैक को कहीं भी चेक कर लिया जाए, तो कहीं भी प्रॉपर डीप स्क्रीनिंग हुई नहीं मिलेगी। जितनी गिट्टी (बलास्ट) स्लीपर के नीचे-ऊपर होनी चाहिए, वह पूरी भारतीय रेल के ट्रैक पर कहीं भी नहीं मिलेगी।
यही वजह है कि इंजीनियरिंग विभाग 130/160 किमी प्रति घंटे की गति से ट्रेनें चलाने के लिए कभी-भी राजी नहीं होता है। चीन-जापान आदि देशों की ट्रेनों की गति देखकर यही कहा जाएगा कि भारत की ट्रेनें आज भी बैलगाड़ी युग में चल रही हैं। ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा है, क्योंकि भारत में राजनीति एवं नौकरशाही का अवैध, अनैतिक, भ्रष्ट गठजोड़ है।
यदि मंत्रियों अथवा राजनीतिज्ञों को इतनी सी बात समझ में आ जाती, तो वह इंजीनियर्स अथवा नौकरशाही के साथ करप्शन में हिस्सा बंटाने के बजाय उनकी पीठ पर डंडे बरसाते, तो अब तक भारत में हाई स्पीड ही नहीं, बुलेट ट्रेनें भी सरपट दौड़ रही होतीं!