एनआरसीएच: आखिर पैरामेडिकल स्टाफ का उत्पीड़न करके क्या हासिल करना चाहता है अस्पताल प्रशासन?
क्या कमीशनखोरी की संभावनाएं तलाशने के लिए की गई है एनआरसीएच में “डायरेक्टर” की पदस्थापना? पूछता है स्टाफ!
उत्तर रेलवे केंद्रीय चिकित्सालय (एनआरसीएच) अप्रैल से ही कोविड मरीजों का इलाज करने के लिए 24 घंटे ओपीडी, कोविड आईसीयू एवं कोविड वार्ड में रेलवे मरीजों की देखभाल कर रहा है। यहां चार प्राइवेट लैब्स मरीजों के कोविड टेस्ट कर रही हैं। इन चार लैब में लाल, डोडा, ओंक्विस्ट एवं मेट्रोपोलिस लैब मरीजों के सैंपल ले रही हैं। दूसरी ओर आधा हॉस्पिटल कोविड में बदलने से नॉन-कोविड में आउटडोर मरीज भी कम आ रहे हैं।
अस्पताल स्टाफ से मिली जानकारी के अनुसार उत्तर रेलवे केंद्रीय चिकित्सालय में रेलवे के लैब टेक्नीशियन सिर्फ नाममात्र का काम करके अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। पिछले दिनों “रेल समाचार” में खबर प्रकाशित होने के बाद बाहर से ज्यादा दर पर कराए जा रहे टेस्ट बंद करके यहां कोविड टेस्ट शुरू किए गए थे। तभी कुछ कामचोर यूनियन पदाधिकारियों को भी यथासंभव काम करने पर लगाया गया था। लेकिन अब फिर सारे टेस्ट बाहर से करवाए जा रहे हैं और कुछ एंटी रैपिड एंटीजन टेस्ट यहां यदा-कदा कर लिए जाते हैं। परंतु यूनियन पदाधिकारियों की कामचोरी बदस्तूर जारी है।
रेलवे अस्पताल कोविड साइड में मरीजों की बढ़ती हुई संख्या और कोविड आईसीयू में मरीजों की सीरियस कंडीशन के मद्देनजर इस प्रमुख रेलवे अस्पताल की नर्सों और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ का हाल भी बहुत अच्छा नहीं है। पूरे 24 घंटे में 36 नर्सें तीन शिफ्टों में काम कर रही हैं। इतनी ही अपनी शिफ्ट करने के बाद क्वारंटाइन में रहती हैं। कुल 70 नर्सें कोविड में और बाकी नर्सें दूसरे नॉन-कोविड वार्ड में अपनी शिफ्ट ड्यूटी कर रही हैं।
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वार्ड में भर्ती मरीजों का काम भी बहुत ज्यादा बढ़ रहा है, क्योंकि यहां सीरियस मरीजों को भर्ती किया जा रहा है। इसके अलावा कुछ नर्सें मैटरनिटी, कुछ सीसीएल, कुछ सीएल, और अन्य छुट्टी पर रहती हैं। इसके अलावा कुछ नर्सें यूनियन की कथित पदाधिकारी होने के नाम पर अपने आपको सबसे ऊपर मानकर निर्धारित ड्यूटी करना अपनी शान के खिलाफ समझती हैं।
इन सबके बीच एनआरसीएच प्रशासन हमेशा नर्सों के पीछे हाथ धोकर पड़ा रहता है। डॉक्टरों को रेल प्रशासन से शाबाशी मिलती है, जबकि नर्सों को अतिरिक्त कार्य सौंप दिया जाता है, जो उनकी निर्धारित ड्यूटी में भी नहीं आता। ऐसा ही एक नए ऑर्डर के तहत नर्सों को ट्रेनिंग के लिए भेजा जा रहा है जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल में एंटी रैपिड एंटीजन टेस्ट करने के काम में लगाया जाएगा।
जबकि यह काम लैब टेक्नीशियनों का है, मगर उन्हें इससे बाहर रखकर अपने लैब में मौज करने अथवा डॉक्टरों के आगे-पीछे घूमने के लिए छोड़ दिया गया है, क्योंकि लैब टेक्नीशियन का इंचार्ज एक डॉक्टर है, जो सीधे मेडिकल डायरेक्टर के खास चहेतों में शामिल है। यहां लैब टेक्नीशियन की कोविड साइड में ड्यूटी नहीं लगाई जाती है, और अब उनके आकाओं की कृपा से यहां एंटी रैपिड एंटीजन टेस्ट भी नर्सों पर डालने की कोशिश की जा रही है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इसके लिए नर्सों को दो दिन का प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है। नर्सेस का कहना है कि “मात्र दो दिन की ट्रेनिंग से यह कैसे संभव हो पाएगा और मेडिकल मैनुअल और नियम विरुद्ध कार्य करवाने का अधिकार अस्पताल प्रशासन को किसने दिया?”
उनका कहना है कि प्राइवेट लैब टेक्नीशियन को हायर किया जा सकता है। इस टेस्ट के लिए उनकी ड्यूटी लगाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि मरीजों के सैंपल लेकर उनकी जांच करने का काम लैब टेकनिशियन का है। यह रेलवे के मेडिकल मैनुअल में भी साफ तौर पर लिखा हुआ है।
उनका यह भी कहना है कि “अस्पताल प्रशासन की गतिविधियों को देखकर ऐसा लगता है कि यहां केवल लूटने-खसोटने और कमीशनखोरी की जुगाड़ लगाने की योजनाएं बनाई जाती हैं। शायद यही कारण है कि गत दिनों ठेका मजदूरों की तरह नर्सों को भी ठेके पर हायर करने की कोशिश अस्पताल प्रशासन कर चुका है, क्योंकि तब ठेका नर्सों को 15-20 हजार रुपये महीने का भुगतान करके सीधे 50-55 हजार रुपये प्रति नर्स हजम करने का अवसर मिल जाएगा।”
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में एक सरकारी नर्स का वेतन औसतन 70 हजार रुपये प्रतिमाह है। अस्पताल स्टाफ का स्पष्ट कहना है कि “कमीशनखोरी के ऐसे अनेक जुगाड़ इस रेल अस्पताल में तब से ज्यादा होने शुरू हुए हैं जब से यहां “इंजीनियरिंग कैडर का डायरेक्टर” नियुक्त किया गया है।”
स्टाफ का यह भी कहना है कि “एंटीजन टेस्ट का यह काम रेलवे में तैनात रेलवे के अपने लैब टेक्नीशियंस से भी कराया जा सकता है, मगर लैब टेक्नीशियंस को उनके आका और एडमिन उनकी जी-हुजूरी के चलते हमेशा फेवर करते हैं और यह सब मेडिकल मैनुअल से बाहर के काम करने के लिए अंततः उन्हें नर्सें ही नजर आती हैं, क्योंकि यहां नर्सों का कोई माई-बाप नहीं है!”
उन्होंने बताया कि “एडमिनिस्ट्रेशन कहता है कि वह नर्सों को ट्रेनिंग प्रोवाइड करेगा।” जबकि उनका कहना है कि इससे बेहतर यह होगा कि उन्हें नर्सों के काम के अलावा सीधे डॉक्टरी की ट्रेनिंग करवा दी जाए, तब वे सीधे खुद मरीज को संभाल लेंगी, फिर डॉक्टरों की भी जरूरत नहीं रह जाएगी? और अगर ऐसा नहीं होता है, तो फिर उनसे उनके निर्धारित काम के अलावा कैडर से नीचे का काम क्यों करवाने का दबाव बनाया जा रहा है और उसकी ट्रेनिंग क्यों करवाई जा रही है?
उनका कहना है कि ऐसा माना जाता है कि मेडिकल डिपार्टमेंट में एक टीम वर्क होता है, तो लैब टेक्नीशियन अपनी ड्यूटी से क्यों भाग रहे हैं। जबकि एडमिनिस्ट्रेशन अपने हिस्से की जिम्मेदारी नर्सों पर डालकर सुकून की नींद सोना चाहता है। नर्सें दिन-रात अपना काम पूरी तन्मयता से कर रही हैं। जबकि डॉक्टर कोविड वार्ड में आते हैं और बाहर से ही जूनियर की मदद से अपना काम करके चले जाते हैं। कभी-कभार ही कोई सीनियर डॉक्टर पीपीई किट पहनकर अंदर जाता है, वरना सभी जूनियर डॉक्टरों और नर्सों के भरोसे पूरे हॉस्पिटल के कोविड वार्ड का काम चल रहा है।
इस एंटीजन ट्रेनिंग ऑर्डर के बाद नर्सों में भय व्याप्त है कि कैसे उस काम को करेंगी जो उन्होंने न कभी किया है और न ही अपनी ट्रेनिंग के दौरान पढ़ा है। और अब दो दिन की ट्रेनिंग में क्या सीखेंगे ओर मरीजों की जान कैसे बचाएंगे? यह न सिर्फ मरीजों के साथ अन्याय होगा, बल्कि उनकी गैरजानकारी का फायदा उठाकर उन्हें गुमराह करने जैसा होगा।
आजकल वैसे भी दिल्ली में कोरोना मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही हैं, जबकि यहां रेलवे अस्पताल प्रशासन मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ करने के लिए आतुर हो रहा है तथा अपने चहेते लैब टेक्नीशियंस को उनकी ड्यूटी से बचाने में लगा हुआ है। इसके साथ ही ऊपर मुख्यालय और रेलवे बोर्ड से वाहवाही भी लूट रहा है।
इस तरह से नर्सों को गैरनिर्धारित कार्यों में लगाकर मैन पॉवर का दुरुपयोग किया जा रहा है। कोविड में ड्यूटी करने से यहां नर्सों की कमी भी हो सकती है, क्योंकि वह भी बहुत तेजी से संक्रमण का शिकार हो रही हैं। पता चला है कि यहां करीब 20-25 नर्सें अब तक कोरोना पॉजिटिव हो चुकी हैं, जबकि अन्य कोई मेडिकल स्टाफ पॉजिटिव नहीं हुआ है।
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बताते हैं कि डॉक्टर्स में भी ज्यादातर जूनियर डॉक्टर ही कोरोना ड्यूटी करने पर पॉजिटिव हुए हैं। बाकी सीनियर डॉक्टर तो यहां सिर्फ कहने और दिखावे के लिए ही हैं। कोविड आईसीयू में भर्ती सीरियस पेशेंट्स तक को देखने के लिए सीनियर डॉक्टर अंदर नहीं जाते हैं।
स्टाफ ने कहा, “यही है इस अस्पताल का सच !”
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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