November 10, 2020

आखिर कब पूर्ववत परिचालित की जाएंगी सभी ट्रेनें? आखिर कब लौटेगी स्टेशनों पर रौनक?

Almost all Zones cancelled maximum trains' movement due to non available sufficient occupancy.

यात्रियों की भीड़ से हमेशा गुंजायमान रहने वाले रेलवे स्टेशनों पर अब पीक सीजन में भी पसरा हुआ है सन्नाटा

रेलवे स्टेशनों और उनके आसपास की चल-अचल संपत्ति भी बेचने की तैयारी तो नहीं की जा रही है? क्योंकि पता चला है कि स्टेशनों पर उपलब्ध संपत्तियों का गुपचुप असेसमेंट किया जा रहा है!

कोरोना महामारी के कारण अभी-भी पैसेंजर ट्रेनें बंद हैं। सिर्फ मेल/एक्सप्रेस ट्रेनें ही चलाई जा रही रही हैं। जहां छोटे स्टेशनों पर प्रतिदिन 15-16 हजार यात्री और बड़े जंक्शनों पर 50-60 हजार से अधिक यात्री आते-जाते थे, वहां पर अब हजार-दो हजार यात्रियों का ही आना जाना रह गया है।

स्टेशन या जंक्शन को देखकर ऐसा नहीं लगता कि यहां पर आज से 6 महीने पहले हर वक्त यात्रियों का हुजूम बना रहता था। कोरोना के चलते रेलवे को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि 23 मार्च से यात्री ट्रेनों का संचालन पूरी तरह से बंद कर दिया गया था।

इसके चलते जहां आम यात्रियों को भारी परेशानी उठानी पड़ी है, वहीं रेलवे की आय में भी काफी गिरावट आई है। हालांकि जून से कुछ मार्गों पर विशेष मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों का संचालन शुरू किया गया था। परंतु नियमित ट्रेनों का परिचालन अब तक नहीं शुरू किया गया है और न ही निकट भविष्य में ऐसे कोई आसार नजर आ रहे हैं।

हालांकि कुछ मार्गों पर कुछ और गाड़ियां बढ़ाई गई हैं, इसके बाद भी स्टेशनों/जंक्शनों पर अभी-भी कोई रौनक नहीं लौटी है। इसका प्रमुख कारण यह है कि पैसेंजर ट्रेनें अभी भी बंद हैं और जनरल टिकट की बिक्री भी इसलिए नहीं की जा रही है, क्योंकि अनारक्षित कोच किसी भी ट्रेन में नहीं लगाए जा रहे हैं।

सिर्फ आरक्षित टिकट वाले यात्रियों को ही यात्रा करने की अनुमति मिल रही है, जिसके कारण इस त्यौहारी सीजन में भी जंक्शनों पर सन्नाटा पसरा पड़ा हुआ है। विशेष मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के आने-जाने के समय पर तो कुछ यात्री स्टेशन पर नजर आते हैं। जबकि अन्य लंबी दूरी की ट्रेनों के समय भी गिने-चुने यात्री ही दिखाई देते हैं। बाकी समय वह भी वीरान पड़े रहते हैं। 

यही हाल जनरल टिकट, रिजर्वेशन काउंटरों का भी है, यहां पर भी अब न तो लंबी-लंबी लाइनें लगती हैं और न ही यात्रियों के बीच आपस में कोई तकरार होती दिखाई देती है।

रेलवे स्टेशनों के आसपास का सर्कुलेटिंग एरिया और प्लेटफार्मों से लेकर वेटिंग रुम, वेटिंग हॉल आदि सब भी सन्नाटे में डूबे पड़े हुए हैं, जहां साल के 365 दिन चौबीसों घंटे रौनक और भारी चहल-पहल रहा करती थी।

यात्रियों के कम होने से ज्यादातर खानपान स्टाल भी बंद हैं या तो नाम मात्र के खोले गए हैं, वह भी उन मार्गों और उन स्टेशनों/जंक्शनों पर जहां वर्तमान में चलाई जा रही विशेष मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव हो रहा है।

इसके अलावा यह विशेष मेल/एक्सप्रेस ट्रेनें अतिरिक्त किराए के साथ विशेष शुल्क पर चलाई जा रही हैं। इन ट्रेनों में वरिष्ठ नागरिकों सहित किसी को भी कोई भी रियायत नहीं दी जा रही है।

त्यौहारी सीजन के बावजूद सामान्य जनता/यात्रियों के लिए कोई एक भी जनसाधारण ट्रेन नहीं चलाई जा रही है। जनरल कोचों की संख्या जो पहले ही बहुत कम थी, अब तो कोई सामान्य कोच ही किसी ट्रेन में उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। यात्रियों को दीवाली और छठ पर्व पर टिकट की उपलब्धता नहीं हो पा रही है। प्लेटफार्म टिकट बंद होने से यात्रियों को अपने कोच तक पहुचने में भारी असुविधा हो रही है। ऐसे में उन्हें कुलियों को उनकी मुंहमांगी कीमत चुकानी पड़ रही है।

“ऐसे में आखिर परेशान कौन है?” यह सवाल है जोनल रेलवे उपभोगकर्ता परामर्शदात्री समिति, पश्चिम रेलवे के सदस्य योगेश मिश्रा का। उनका कहना है कि ऐसी स्थिति में सिवाय रेलयात्री के और कोई परेशान नहीं है।

उन्होंने कहा कि जब तक नियमित पैसेंजर ट्रेनों का संचालन शुरू नहीं किया जाएगा और जनरल टिकटों की बिक्री नहीं होगी, तब तक न तो रेलवे स्टेशनों/जंक्शनों पर रौनक लौटेगी, और न ही किसी का भला होगा।

उनका कहना है कि सरकार यदि रेल और सर्वसामान्य जनता का भला चाहती है, तो उसे सभी पैसेंजर और मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों का संचालन तुरंत पूर्ववत पुनर्स्थापित करने सहित उपरोक्त तथ्यों पर विचार करके यथाशीघ्र यथोचित निर्णय लिया जाना चाहिए।

प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी