ट्रेन में एटीएम

देख लीजिये, सरकार आपके लिए क्याक्या कर रही है, और एक आप हैं कि आपके मुंह से रेलवे के स्वनामधन्य अधिकारियों और रेलमंत्री की प्रशंसा में दो शब्द नहीं फूटते हैं। यहाँ तक कि उनको रेलमंत्री की जगह रीलमंत्री कहने लग पड़े हैं। अधिकारियों को निकम्मा कहते हैं। हद तो ये है कि एटीएम के ऐतहासिक कदम को भी रीलमंत्री की रील से ही जोड़ के देख रहे हैं!

व्यंग्य: डॉ रवीन्द्र कुमार

आपने अब तक ट्रेन में पैंट्री सुनी थी, लाइब्रेरी सुनी थी, डाक-सेवा सुनी थी, यहाँ तक कि चोरी-डकैती-छिनैती भी सुनी थी। अब लेटैस्ट है एटीएम। यह सरकारी सेवा है, आई मीन सरकार की तरफ से आपके, चोर के, डकैत के, बोले तो सबके आराम और सुविधा के लिए। देख लीजिये सरकार आपके लिए क्या-क्या कर रही है, और एक आप हैं कि आपके मुंह से रेलवे के स्वनामधन्य अधिकारियों और रेलमंत्री की प्रशंसा में दो शब्द नहीं फूटते हैं। यहाँ तक कि उनको रेलमंत्री की जगह रीलमंत्री कहने लग पड़े हैं। अधिकारियों को निकम्मा कहते हैं। हद तो ये है कि एटीएम के ऐतहासिक कदम को भी रीलमंत्री की रील से ही जोड़ के देख रहे हैं।

एटीएम की स्थापना के लिए जिस ट्रेन को चुना गया है, उसका नाम है – पंचवटी एक्सप्रेस। वही पंचवटी जहां राम रहते थे। अब राम ही इस एटीएम के भी रखवाले हैं। अब एटीएम के चोर एटीएम के आसपास ही मंडराया करेंगे। वो देखेंगे कि कौन यात्री ‘विदड्रा’ कर रहा है, किसने कितना कैश निकाला है। कुछ तो क्लोन कराये हुए कार्ड और पलक झपकते ही कार्ड बदलने वाले, आपके कैश को निकालने में आपकी मदद करने वाले सब वहीं उपलब्ध रहा करेंगे। वो भी अपना सीजन पास यानि एमएसटी बनवा लेंगे।

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यह इस बात का भी इशारा है कि अब इतनी महंगाई हो सकती है कि आपको रेल में कोई चीज खरीदने-खाने के लिए हो सकता है आपके पर्स का कैश कम पड़ जाये और आपको कैश निकालने की जरूरत आन पड़े। मसलन खाना-पीना, पानी की बोतल, आदि। मेरा सुझाव है कि चलती ट्रेन में निम्नलिखित भी इन्सटॉल किए जाएँ:

  1. बार-परमिट रूम जिसमें सभी तरह की व्हिस्की, बीयर, जिन-ब्रांडी मिले।
  2. एक चलता फिरता गैम्बलिंग डैन हो बोले तो कैसीनो।
  3. एक डांस-बार अलग से हो।
  4. एक डिस्को तो होना ही चाहिए।
  5. एक मसाज सेंटर भी चाहिए ही चाहिए।
  6. एक हेयर कटिंग सेलून और एक ब्यूटी पार्लर भी चाहिए, जिससे महिला यात्री दादर या सीएसएमटी पर उतरने से पहले सज-सँवरकर ऑफिस में पदार्पण कर सकेंगी, और उनकी देखादेखी पुरुष यात्री भी अपने को कुछ सँवार कर काम पर पहुँचेंगे।
  7. एक मोबाइल पुलिस स्टेशन भी इन सबके चलते होना चाहिए।
  8. एक डिस्पेन्सरी/कैमिस्ट और एक छोटा सा अस्पताल-यूनिट होनी चाहिए, न केवल इमरजेंसी, बल्कि कोई और प्रॉसीजर कराना चाहे तो उसे वो सुविधा मिलनी चाहिए जैसे कि आँख-कान-नाक का ऑपरेशन, प्लास्टिक सर्जरी, डेन्टिस्ट, बालों की ग्राफ्टिंग की सेवाएँ मिलें। साइकालॉजी वाले पकड़-पकड़ के काउन्सलिंग करें।
  9. एक मिनी-मॉल होना चाहिए जहां ड्रेस से लेकर अन्य फालतू का सामान—जिसे लेने लेडिज लोग हर हफ्ते अपने पति की कमाई को दियासलाई दिखाती हैं—वो भी होना ही है।
  10. एक मल्टी-परपज बुकिंग सेंटर होना है, जिससे यात्री अपने गंतव्य स्टेशन पर सुविधाएं बुक कर सकें, मसलन होटल, खाना, कैब, वापसी की रेल टिकट, एयरलाइंस की टिकट, सिनेमा-नाटक, क्रिकेट मैच की टिकट की एडवांस बुकिंग आदि इत्यादि।
  11. अब जब एटीएम आ गया है तो बैंक क्या दूर है? अतः एक अदद बैंक की ब्रांच-बोले तो एक्सटेंशन ब्रांच-होनी चाहिए। वहीं सब सम्पन्न हो जाये ड्राफ्ट, चैक और हाँ लोन की सुविधा भी मिले।
  12. इस सब में हमें अपने प्रॉपर्टी डीलर भाइयों को नहीं भूलना चाहिए। वे भी अपना काउंटर ट्रेन में खोलें और बताएं कि कैसे उन्होंने यात्रियों के लिए ही सन फेसिंग, पार्क फेसिंग और सामने 40 फीट रोड फेसिंग वाली कॉलोनी बसाई है, जिसकी बुकिंग केवल आज करने भर से 10% छूट मिलेगी। इस तरह चारों ओर विकास ही विकास की सुनामी बह चलेगी।
  13. इस सब में हमें बीमे वालों को नही भूलना है। आजकल जिस तरह रेल एक दूसरे से भिड़ जाती हैं, पलट जाती है, चलते-चलते ट्रैक छोड़ देती हैं, बीच से टूट जाती हैं, कोचों को छोड़कर इंजन आगे भाग जाता है, बीमा बिजनिस खूब चलेगा। अतः बीमा एजेंट हर सीट पर जाकर यात्रियों को न केवल आकर्षक रंग बिरंगे ब्रॉशर देंगे, बल्कि समझाएँगे कि कैसे एक हाथ कटने, एक आँख चले जाने, नाक कटने या एक टांग कटने-टूटने पर कितना पैसा मिलेगा।

तो भाईयों! यह है रूपरेखा आने वाली रेलों की। आप कहेंगे ये तो 13 सुविधाएँ हुईं, बाकी का क्या? तो भाईयों, 13 का अंक अशुभ होता है, अब आपसे क्या छुपाना रेल का आजकल कुछ ऐसा ही चल रहा है। बस, थोड़े लिखे को ज्यादा समझना।

डॉ रवीन्द्र कुमार, पीसीपीओ/..रे. रह चुके हैं। साहित्य में एक चुटीले व्यंग्यकार के तौर पर इन्होंने अपनी पहचान बनाई है। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।