तत्काल प्रभाव से लागू होना चाहिए था रेलवे की अग्रिम आरक्षण अवधि में बदलाव
अग्रिम आरक्षण की अवधि 120 दिन के स्थान पर अब 60 दिन, 31 अक्टूबर तक जारी रहने वाली पुरानी व्यवस्था से 28 फरवरी तक फुल हो जाएगा अग्रिम आरक्षण, 1 नवंबर को आरक्षण लेने जाने वाले लोगों को आरक्षण खिड़की पर मिलेगा झुनझुना
नई दिल्ली: रेल प्रशासन ने यात्रियों की सुविधा के दृष्टिगत अग्रिम आरक्षण (एडवांस रिजर्वेशन) की अवधि में बदलाव किया है। अब यह अवधि 120 दिनों से घटाकर 60 दिन कर दी गई है।
ज्ञात हो कि रेलवे की अग्रिम आरक्षण अवधि में समय-समय पर बदलाव होते रहे हैं। अग्रिम आरक्षण अवधि 30 दिन से लेकर 120 दिन तक की रही है। विभिन्न अवधियों के अनुभव के आधार पर, यात्रियों की दृष्टि से 60 दिन की अग्रिम आरक्षण अवधि सबसे उपयुक्त अवधि मानी गयी है।
विभिन्न समय अन्तराल पर अग्रिम आरक्षण की अवधि
- अप्रैल, 1981 से जनवरी, 1985 तक 120 दिन रही
- दिनांक 01.02.1985 से 31.08.1988 तक 90 दिन
- दिनांक 01.09.1988 से 30.09.1993 तक 60 दिन
- दिनांक 01.10.1993 से 30.06.1995 तक 45 दिन
- दिनांक 01.09.1995 से 31.01.1998 तक 30 दिन
- दिनांक 01.02.1998 से 28.02.2007 तक 60 दिन
- दिनांक 01.03.2007 से 14.07.2007 तक 90 दिन
- दिनांक 15.07.2007 से 31.01.2008 तक 60 दिन
- दिनांक 01.02.2008 से 09.03.2012 तक 90 दिन
- दिनांक 10.03.2012 से 30.04.2013 तक 120 दिन
- दिनांक 01.05.2013 से 31.03.2015 तक 60 दिन
- दिनांक 01.04.2015 से 31.10.2024 तक 120 दिन
रेल प्रशासन का मानना है कि 60 दिन की अग्रिम आरक्षण अवधि से यात्रियों को विभिन्न पहलुओं पर लाभ होंगे। जैसे 120 दिन योजना बनाने के लिए बहुत लंबे थे, जिसके परिणामस्वरूप यात्रियों के यात्रा पर न आने के कारण बहुत अधिक निरस्तीकरण और सीटों/बर्थों की बर्बादी होती थी। वर्तमान में, लगभग 21% निरस्तीकरण और 4-5% यात्री यात्रा पर नहीं आते हैं।
रेल प्रशासन का कहना है कि कई मामलों में, यह भी देखा गया है कि यात्री अपने टिकट निरस्त नहीं करते हैं और यात्रा पर भी नहीं आते हैं। इससे यात्री के स्थान पर दूसरे यात्री के यात्रा करने एवं भ्रष्ट आचरण की सम्भावना बनी रहती है। अब, इसे रोका जा सकता है।
रेल प्रशासन ने कहा है कि लंबी अवधि के साथ कुछ लोगों द्वारा टिकट ब्लोकिंग की संभावना अधिक हो जाती है। छोटी अवधि वास्तविक यात्रियों द्वारा अधिक टिकट खरीदने को प्रोत्साहित करेगी।
आरक्षण अवधि का सामान्य श्रेणी के टिकटों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि वे यात्रा से ठीक पहले खरीदे जाते हैं। कम निरस्तीकरण और नो-शो के कारण मांग की बेहतर दृश्यता के साथ, रेल प्रशासन पहले से ही अधिक विशेष ट्रेनों की योजना बना सकता है।
रेल प्रशासन द्वारा गिनाए गए उपरोक्त तमाम कथित लाभों के बावजूद सर्वसामान्य रेल यात्रियों और कुछ रेलकर्मियों का कहना है कि अब ये रेल प्रशासन का तुगलकी आदेश नहीं तो क्या है? उनका कहना है कि ये नियम 01.11.24 से लागू होगा और 01 नवंबर को जब ओपन होगा तो वह तारीख 60 दिन बाद यानि 31 दिसंबर की होगी। अब जो भी टिकट दलाल या पैसेंजर 31 अक्टूबर को रिजर्वेशन करवाएँगे, वह 120 दिन बाद अर्थात् 28 फरवरी तक का कराएँगे, मतलब 28 फरवरी तक का आरक्षण क्लोज हो जाएगा और जो पैसेंजर 1 नवंबर को आरक्षण कराने जाएगा, उसे तो सब फुल मिलेगा। उनका कहना था कि अगर रेल प्रशासन को अग्रिम आरक्षण अवधि में बदलाव करना ही था, तो उसे तत्काल प्रभाव से लागू करना चाहिए था।
कुछ यात्रियों का कहना था कि 120 दिन की अवधि यदि यात्रा की योजना बनाने के लिए बहुत लंबी थी, तो क्या यह बात तब योजनाकारों को पता नहीं थी? अब अचानक उन्हें यह ज्ञानोदय कैसे हो गया? जहाँ तक बात “बहुत अधिक निरस्तीकरण और सीटों/बर्थों की बर्बादी” की है, तो यह कोरी बकवास है, क्योंकि टिकटों के निरस्तीकरण से न तो एक भी सीट/बर्थ खाली जाती है, और न ही इनकी कोई बर्बादी होती है। उन्होंने यह भी कहा कि रेलवे के पास माँग के अनुरूप आपूर्ति नहीं है। डिमांड और सप्लाई के बीच के इस भारी अंतर का लाभ रेलवे द्वारा यात्रियों को हर संभव बहाने से लूटकर उठाया जा रहा है। यह भी एक तरह का पॉलिसी करप्शन ही है।