सुप्रीम कोर्ट और क्रीमी लेयर
राजनीतिज्ञ चाहे मौजूदा हों, या पुराने, उन्हें तो बंदर की तरह जनता को मूर्ख बनाना और आपस में लड़वाना है। इन अवसरवादियों के लिए कभी सुप्रीम कोर्ट पवित्र हो जाता है, तो कभी संसद! -#प्रेमपालशर्मा
कोर्ट के फैसले से आरक्षण की मलाई खाने वालों के पेट में दर्द हो रहा है! -#किरोड़ीलालमीणा👇
आरक्षण के मुद्दे पर डॉ किरोड़ी लाल मीणा की बात में दम है। बुधवार, 21 अगस्त को इस मुद्दे पर “भारत बंद” कर रहे लोगों की बुद्धि पर तरस आ रहा है, क्योंकि इसमें वही लोग शामिल हैं जिनके लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है, और जिनको डॉ किरोड़ी लाल मीणा अपना उदाहरण देकर समझा रहे हैं! मगर तरस उन पर भी आ रहा है जिनके होनहार बच्चे आरक्षण के चलते कुढ़ रहे हैं, पिछड़ रहे हैं, आत्महत्या करने पर मजबूर हैं, मगर वे सो रहे हैं!
इस मुद्दे पर प्रख्यात लेखक और साहित्यकार प्रेमपाल शर्मा, पूर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय, भारत सरकार ने भी काफी गहरे अर्थों में लिखा कि – “विश्व आदिवासी दिवस” पर मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा ने कहा (राजस्थान पत्रिका) कि “कोर्ट के फैसले से आरक्षण की मलाई खाने वालों के पेट में दर्द हो रहा है। मैं विधायक बन गया, मंत्री बन गया, लेकिन गाँव में मेरा पड़ोसी तो 35 साल से पत्थर तोड़ रहा है। उसे वह मलाई नहीं मिली। इसलिए मैं कोर्ट के निर्णय के साथ हूँ, चाहे कोई भी बलिदान देना पड़े।”
किरोड़ी लाल मीणा जी! आप जैसे लोग ही दुनिया और समाज बदलते हैं! शहरों में मलाई खाने वाले नहीं, जो अपनी ही जाति के लोगों तक कुछ नहीं पहुँचने देना चाहते! हां उनके सिर पर चढ़कर राजनीति में अपनी कुर्सी जरूर पक्की कर लेते हैं।
और, राजनीतिज्ञ चाहे मौजूदा हों या पुराने, उन्हें तो बंदर की तरह जनता को मूर्ख बनाना और आपस में लड़वाना है। इन अवसरवादियों के लिए कभी सुप्रीम कोर्ट पवित्र हो जाता है, तो कभी संसद!
लेकिन भविष्य की चिंता करने वालों को हार नहीं माननी है! पिछड़े समाज के अंतिम व्यक्ति तक आरक्षण का लाभ पहुँचाने के लिए लड़ाई लगातार जारी रहेगी !!!
केंद्र सरकार ने अगर इस बार भी सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को पलटने की मूर्खता की, तो उसका यह कदम उसके और भारतीय जनता पार्टी, दोनों के लिए राजनीतिक रूप से आत्मघाती साबित होगा!
सत्तर सालों अथवा चार-चार पीढ़ियों से आरक्षण की मलाई चाटने वालों को सोशल मीडिया पर बहुतायत में शेयर किए जा रहे इस प्रश्न पर विचार करना चाहिए कि “अपनी जाति के सफल और उच्च पदस्थ लोगों को ढ़ूंढ़कर बधाई देने वाले, अपनी ही जाति के पिछड़े और गरीब लोगों ढ़ूंढ़कर उनकी सहायता क्यों नहीं करते? बल्कि भेड़ बनकर राजनीतिक भेड़ियों का साथ दे रहे हैं?”
!! सुप्रीम कोर्ट जिंदाबाद !!