विजिलेंस के डर से अंततः सीएमएस/जोधपुर ने मेडिपल्स अस्पताल को एम्पैनल्ड सूची से निकाला

  • दो महीने पहले सीजीएचएस ने मेडिपल्स अस्पताल को पाँच साल के लिए कर दिया था प्रतिबंधित
  • नियमानुसार उत्तर पश्चिम रेलवे को भी रद्द करना था एमओयू, रेलवे बोर्ड विजिलेंस में हुई थी शिकायत

    जोधपुर: रेलवे के सेवारत और सेवानिवृत कर्मचारी अब रेलवे के खर्च पर मेडिपल्स अस्पताल में इलाज नहीं करा सकेंगे। सीजीएचएस द्वारा इस अस्पताल को पाँच साल के लिए प्रतिबंधित करने के बाद अब गुरुवार, 4 जुलाई को उत्तर पश्चिम रेलवे ने भी मेडिपल्स अस्पताल को अपनी अनुबंधित निजी अस्पतालों की सूची से बाहर कर दिया है। उत्तर पश्चिम रेलवे ने यह निर्णय ठीक उस दिन लिया, जिस दिन विजिलेंस की टीम मंडल रेलवे अस्पताल, जोधपुर इस मामले की जांच के लिए पहुँची।

    प्राप्त जानकारी के अनुसार सीजीएचएस द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के बाद रेलवे बोर्ड के निर्देश पर उत्तर पश्चिम रेलवे मुख्यालय से मेडिपल्स अस्पताल को अनुबंधित सूची से बाहर करने का आदेश दिया गया था। इस आदेश पर डीआरएम/जोधपुर ने भी साइन कर दिए थे, तथापि मेडिपल्स प्रबंधन के साथ मिलीभगत के चलते सीएमएस/जोधपुर ने इस निर्णय को दो महीने तक रोके रखा था।

    उल्लेखनीय है कि रेलवे द्वारा उन्हीं निजी अस्पतालों से एमओयू किया जाता है, जो सीजीएचएस के पैनल में होते हैं। बताते हैं कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस के पास इस बात की शिकायत पहुँची थी कि मेडिपल्स अस्पताल सीजीएचएस की सूची में नहीं है, फिर भी नियम विरुद्ध तरीके से उत्तर पश्चिम रेलवे द्वारा वहाँ मरीज भेजकर इस निजी अस्पताल को फायदा पहुँचाया जा रहा है और नियमानुसार उसे सूची से बाहर नहीं किया गया है।

    इस परिप्रेक्ष्य में रेलवे बोर्ड से उत्तर पश्चिम रेलवे को आदेशित किया गया। उत्तर पश्चिम रेलवे मुख्यालय ने डीआरएम/जोधपुर को इस संबंध में निर्देशित किया। डीआरएम ने बोर्ड के पत्र पर उसी समय मेडिपल्स को सूची से हटाने के आदेश दे दिए। तत्पश्चात् उक्त फाइल मंडल रेलवे अस्पताल, जोधपुर के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) के पास पहुँची। सीएमएस की तरफ से तत्काल यह आदेश मेडिपल्स अस्पताल को भेजा जाना था। लेकिन यह आदेश भेजा नहीं गया। बताया गया है कि इसी बात को लेकर विजिलेंस के पास शिकायत पहुँची, तो 4 जुलाई को रेलवे बोर्ड विजिलेंस की टीम मामले की जाँच के लिए मंडल रेलवे अस्पताल, जोधपुर पहुँची। इसकी भनक लगते ही मेडिपल्स को रेलवे की सूची से बाहर करने का आदेश सीएमएस द्वारा मेडिपल्स अस्पताल प्रबंधन तक फौरन पहुँचा दिया गया।

    शिकायतों पर सीजीएचएस ने सूची से हटाया था मेडिपल्स को

    सीजीएचएस लाभार्थियों को सरकार से मिलने वाली सुविधा न देकर उनसे अवैध वसूली करने वाले मेडिपल्स अस्पताल के खिलाफ पिछले लगभग तीन साल से सरकार को लगातार शिकायतें मिल रही थीं। इस अस्पताल को सीजीएचएस के पैनल से बाहर करने का आदेश जारी करने से पहले हुई जाँच में पाया गया कि सीजीएचएस पेंशनर्स को कैशलेस मेडिकल सुविधा देने के बजाय उनसे नकद पैसे वसूले जाते थे। कोरोना के दौरान भी मेडिपल्स अस्पताल ने ऐसा ही किया था जब गंभीर अवस्था में भर्ती हुए मरीजों को भी सीजीएचएस का लाभ नहीं दिया और न उन्हें क्रेडिट दी गई। बताते हैं कि इस अस्पताल के खिलाफ 2021 से लगातार शिकायतें आ रही थीं। अस्पताल प्रबंधन को 20 से ज्यादा नोटिस और स्मरण पत्र जारी किए गए। बार-बार नियमों के विपरीत काम करने पर ही मेडिपल्स को सीजीएचएस के पैनल से हटाया गया।

    कोर्ट से नहीं मिला स्थगनादेश

    सीजीएचएस की सूची से बाहर होने के बाद मेडिपल्स ने राजस्थान हाईकोर्ट में इस निर्णय के खिलाफ याचिका दायर कर सीजीएचएस के आदेश पर रोक लगाने की गुहार लगाई है। 1 जुलाई को मामला कोर्ट में सूचीबद्ध हुआ था, लेकिन फिलहाल स्थगनादेश (स्टे) नहीं मिला है।

    आरजीएचएस की भी चल रही है जाँच

    आरजीएचएस में कैंसर दवा घोटाले को लेकर भी मेडिपल्स अस्पताल और यहां के डॉक्टर विनय व्यास जाँच के दायरे में हैं। झंवर मेडिकल के संचालक और उसके पुत्र सहित कई अन्य के खिलाफ दर्ज इस मामले में मेडिपल्स कई पर्चियों एवं डॉक्टरों की भूमिका की जाँच चल रही है। पिछले दिनों हाईकोर्ट ने इस मामले में डॉक्टर्स की भूमिका की जाँच के लिए एसओजी को आदेश दिए थे तो वहीं ईडी ने भी अस्पताल एवं डॉक्टर्स सहित अन्य लोगों को नोटिस जारी कर जानकारी माँगी है।

    संपादकीय वर्जन:

    जोनल रेलों के मेडिकल विभागों में कार्यरत कुछ वरिष्ठ डॉक्टरों की निजी अस्पतालों के साथ मिलीभगत का यह रैकेट वर्षों से इसलिए चल रहा है, क्योंकि अन्य रेल अधिकारियों की ही तरह डॉक्टरों के पीरियोडिकल ट्रांसफर पर रेलवे बोर्ड सदैव उदासीन रहा है। कुछेक अपवादों को छोड़कर रेलवे के डॉक्टर रिटायरमेंट तक एक ही डिवीजन या जोन में पदस्थ रहते हैं। अन्यत्र ट्रांसफर उन्हीं डॉक्टरों का होता है जो नियम का मुद्दा उठाते हैं, अथवा डीआरएम/जीएम की घर-पहुँच सुविधा में जिनसे कोई कोताही हो जाती है। इसका कारण केवल एक ही है कि जीएम/डीआरएम से लेकर बोर्ड मेंबर्स सहित लगभग सभी वरिष्ठ अधिकारियों को इन डॉक्टरों द्वारा घर-पहुँच सबसे अच्छी मेडिकल सुविधा और महँगी ब्रांडेड दवाईयाँ उपलब्ध कराई जाती हैं। जबकि इस आड़ में इन रेलवे डॉक्टरों द्वारा फार्मा कंपनियों और उनके एजेंटों के साथ मिलकर फॉरेन टूर सहित विभिन्न प्रकार के महँगे उपहारों और सुविधाओं का उपभोग किया जाता है।

    रेल प्रशासन ने अपने अस्पतालों को उच्च स्तरीय आधुनिक मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर से सुसज्जित और उन्नत करने के बजाय इसका निजी अस्पतालों से सहयोग का अत्यंत महँगा रास्ता चुना है। इससे गतिशक्ति प्रकोष्ठ एवं स्टेशन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट आदि विभिन्न रेल योजनाओं की तरह ही यहाँ भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का मार्ग प्रशस्त हुआ है। अब रेल अस्पतालों के साथ एम्पैनल्ड निजी अस्पताल रेलवे डॉक्टरों को उनके अस्पतालों में मरीज रेफर करने का मोटा कमीशन दे रहे हैं। पीसीएमडी/सीएमएस से लेकर हर बीमारी के कथित विशेषज्ञ रेलवे डॉक्टरों को यह लुभावना कमीशन निजी अस्पतालों से मरीजों को रेफर करने के बदले मिल रहा है। हर छोटी-बड़ी बीमारी के लिए यह रेफरल रेलवे अस्पतालों से हो रहा है। इसे मॉनिटर करने वाला कोई नहीं है। यह कड़वी सच्चाई सीएमएस/जोधपुर के उपरोक्त कृत्य से प्रमाणित है।

    आज सबको पता है कि निजी अस्पतालों में डॉक्टरी एक बहुत महँगा धंधा बन चुका है। रेल के डॉक्टरों के इस कृत्य का नुकसान जनता की गाढ़ी कमाई से अर्जित रेलवे रेवेन्यू का हो रहा है और रेलकर्मियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। तथापि रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड इनके पीरियोडिकल ट्रांसफर को लेकर लगातार भ्रम की स्थिति में है। इसके अलावा, इन डॉक्टरों को साठ साल की आयुसीमा के बाद जो क्लीनिकल सर्विस का अवसर मोदी सरकार ने दिया है, उसने रेलवे मेडिकल सिस्टम का और भी बेड़ा गर्क कर दिया है, क्योंकि सीनियर होने के नाते यह कोई काम नहीं करते, न ही इनसे कोई काम करने के लिए कह पाता है, क्योंकि सब तो कल तक इनके ही मातहत इनके जूनियर ही थे। जबकि तिनके भर का भी कोई काम किए बिना न केवल नॉन-प्रैक्टिसिंग अलाउंस और मोटा वेतन लेने के साथ निजी प्रैक्टिस करते हैं, बल्कि आलीशान रेल आवास सहित सभी सरकारी सुविधाओं का उपभोग भी करते हैं। रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड को इस व्यवस्थागत नुकसान और इसमें हो रहे भारी भ्रष्टाचार पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए!