June 23, 2024

मोदी-3.0 की परीक्षा की घड़ी

देश की नौकरशाही, रेगुलेटरी अथॉरिटी यदि ठीक से काम करें, तो ऐसा कोई कारण नहीं कि हर क्षेत्र में व्यवस्थागत सुधार नहीं हो सकते, लेकिन उससे पहले राजनीतिक सत्ता को भी अपने चाल-चलन और चरित्र को बदलना होगा!

प्रेमपाल शर्मा

काफी कश्मकश के बाद आखिर शिक्षा मंत्री को यह स्वीकार करना पड़ा है कि मेडिकल दाखिले की ‘नीट’ परीक्षा में गड़बड़ी हुई है। नेशनल टेस्ट एजेंसी (#एनटीए) के लिए यह शर्म की बात है। 2017 में इस एजेंसी का गठन इसीलिए हुआ था कि देश भर के लाखों-करोड़ों विद्यार्थी, जो नीट, आईआईटी, लॉ एंट्रेंस, विश्वविद्यालयों आदि में प्रवेश की परीक्षा देते हैं, उन सबको इस रूप में व्यवस्थागत रूप से किया जाए कि गड़बड़ी की आशंका न रहे और अपनी मेधा के बूते युवा आगे बढ़ें।

निश्चित रूप से दुनिया भर में सबसे बड़ी युवा जनसंख्या के नाते यह चुनौती कम नहीं है और विशेष कर उस देश में जिसके जर्रे-जर्रे में अनैतिकता बेईमानी घुस चुकी हो। आपको याद होगा 25 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश में एक सरकार तो नकल करने के घोषणा पत्र से ही सत्ता में आई थी। उत्तर भारत के ज्यादातर राज्य और उसके नागरिक ऐसी ही अनैतिकता में जीते हैं जहां स्कूली स्तर से लेकर विश्वविद्यालय के शोध पत्रों तक में नकल के मामले खुलेआम सामने आते हैं।

डॉक्टरी की प्रवेश परीक्षा में देश का लगभग पच्चीस लाख सबसे मेधावी युवा रात-दिन मेहनत करके तैयारी करता है, पढ़ाई के तनाव के दौर में डिप्रेशन से गुजरता है, और आए दिन आत्महत्या तक की खबरें आती रहती है। इस दुष्चक्र में उनके अभिभावक भी बहुत सारी समस्याओं से गुजरते हैं विशेष कर गरीब अभिभावक, लेकिन अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए एक यकीन के साथ वे बच्चों के साथ खड़े होते हैं।

लेकिन जब गड़बड़ियां ऐसी और इतनी हैं तो लगा जैसे देश की धरती कांप रही हो। कहीं केंद्र बदले गए, कहीं कॉपियां फटी हुई मिलीं, कहीं समय का ध्यान नहीं रखा गया, और अंत में यह भी सामने आया कि पेपर  भी लीक हुआ। वर्षों से पेपर लीक हो रहे हैं। पकड़े भी जाते हैं, लेकिन उसके बाद क्या होता है! क्या उनको ऐसी सजा मिलती है जो पूरे देश के लिए एक नजीर बन सके!

केवल उस एजेंसी का लाइसेंस रद्द करना या सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से सस्पेंड करना पर्याप्त नहीं है। वे तो इस गोरखधंधे में करोड़ों पहले ही कमा चुके होते हैं, और इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार भी रहते होंगे। उनके लिए जेल में अपराधियों की तरह व्यवहार होना चाहिए, भले ही हमारे लिबरल और उनके पोषक देश कुछ भी कहते रहें।

इस बात के प्रमाण हैं कि कुछ गिरोह दशकों से निडर होकर इसी धंधे में लगे हुए हैं विशेष कर उत्तर भारत के राज्यों में। वे कभी कांस्टेबल की भर्ती में सक्रिय होते हैं, कभी प्रांतीय परीक्षाओं में, कभी बैंक में, कभी कर्मचारी चयन आयोग से लेकर लॉ एंट्रेंस की परीक्षा में। यानि कि हर परीक्षा उनके लिए भ्रष्टाचार और बेईमानी का एक मौका है।

नकल आदि की ऐसी धांधली के खिलाफ बातें तो पिछले दिनों सरकार में लगातार हो रही हैं, संसद में एक बिल भी लाने की तैयारी चल रही है। लेकिन बार-बार ऐसी खबरों से पूरे देश का मनोबल टूट जाता है। हारकर मेधावी युवा पीढ़ी डॉक्टरी से लेकर इंजीनियरिंग और अन्य शिक्षा के लिए भी विदेश की तरफ देखने को मजबूर हो रही है। हर साल देश के 10-12 लाख बच्चों का विदेश में शिक्षा के लिए पलायन हमारे देश के लोकतंत्र और विश्व गुरु के लिए चेतावनी है। चंद्रयान और सूर्यग्रह तक जाने वाले देश के लिए इतनी छोटी परीक्षा को पास करना आसंभव नहीं होना चाहिए।

यूपीएससी भी 12 लाख परीक्षार्थियों की परीक्षा हर वर्ष लेता है; रेलवे ने भी एक-एक करोड़ परीक्षार्थियों की परीक्षा ली है, एनटीए को इन सबसे सबक सीखने की आवश्यकता है।

लेकिन एक और महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि क्या देश की हर समस्या का इलाज सुप्रीम कोर्ट या न्यायपालिका ही है? जब लोगों ने शिकायत की, तो कार्यपालिका उर्फ ऐसी संस्थाएं चुप्पी क्यों साथ लेती हैं? क्यों सुप्रीम कोर्ट में ही जाने की आवश्यकता पड़ती है? वह विपक्ष भी सुप्रीम कोर्ट से मॉनिटर करने की बात कर रहा है, जो बड़ी बेशर्मी से अपने घोषणा पत्र में नकल करने की गारंटी देता रहा है। गंगा-जमुना की सफाई हो, पॉल्यूशन का मामला हो, इलेक्शन के मसले हों.. आखिर उस न्यायपालिका से ही सारी उम्मीद क्यों, जिसकी ईमानदारी पर भी कुछ बड़बोले उंगली उठाने की जुर्रत करते रहते हैं।

मोदी 3.0 की सरकार को सख्ती से कार्यपालिका और नौकरशाही को दुरुस्त करना होगा। क्या स्टील फ्रेम उर्फ सफेद हाथी शोभा के लिए ही है? या सामाजिक न्याय जैसे जुमले की आड़ में मौज-मस्ती पेंशन सुविधाओं की हकदारी के लिए? प्रधान सेवक को चाहिए कि इन नकली सेवकों को भी कुछ सिखाएँ। देश की नौकरशाही, रेगुलेटरी अथॉरिटी यदि ठीक से काम करें, तो ऐसा कोई कारण नहीं कि हर क्षेत्र में व्यवस्थागत सुधार नहीं हो सकते। लेकिन उससे पहले राजनीतिक सत्ता को भी अपने चाल-चलन और चरित्र को बदलना होगा।

नीट परीक्षा का घोटाला मोदी सरकार के लिए एक खतरे की घंटी के रूप में लेने की महती आवश्यकता है। इस सरकार की प्रतिष्ठा ऐसे ही बड़े और ठोस शिक्षा सुधारों से वापस लौट सकती है!

#प्रेमपालशर्मा, शिक्षाविद एवं पूर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय, भारत सरकार। मोबाइल 9971399046