पूर्व प्रिंसिपल की आस्तीन का साँप अब एसडीजीएम/मध्य रेल का बना पालतू स्वान
एक आदमी के पास एक पालतू #साँप था जिससे वह बहुत लाड़-प्यार करता था। यह साँप करीब साढ़े पाँच फुटिया नाटा था। एक दिन उसने खाना-पीना बंद कर दिया। कई हफ्तों तक साँप को खिलाने-पिलाने की हरसंभव कोशिश करने के बाद, वह आदमी उसे पशु चिकित्सक के पास लेकर गया।
#पशुचिकित्सक ने साँप की अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल की और नैदानिक परीक्षण किए, लेकिन कुछ भी असामान्य नहीं पाया। पशु चिकित्सक ने केवल भूख-वृद्धि के लिए कुछ टॉनिक दिए। वह आदमी साँप को लेकर घर आ गया। उसने पशु चिकित्सक द्वारा दिए गए टॉनिक उसे पिलाने की कोशिश की, लेकिन उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि साँप ने पशु चिकित्सक द्वारा दिए गए टॉनिक को सूंघा भी नहीं।
कई दिनों की जद्दोजहद के बाद आदमी ने सोचा कि अगर साँप इसी तरह भूखा रहेगा तो मर सकता है, आदमी को उस पर दया आ गई और वह उसे दोबारा पशु चिकित्सक के पास ले गया।
आदमी ने पशु चिकित्सक को फिर से सारी स्थिति समझाई, तब पशु चिकित्सक ने पहले उसे साँप को अपने चेंबर से बाहर बैठाकर आने को कहा और फिर उससे पूछा, “क्या आपका ये साँप रात में आपके साथ ही आपके बिस्तर पर सोता है, और वास्तव में हमेशा आपके आस-पास ही रहता है, तथा खुद को बार-बार फुफकार कर फैलाता है?”
#आदमी ने विस्मित होकर जवाब दिया, “हां डॉक्टर साहब, यह ऐसा ही हर रोज करता है और मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि इसे क्या हो गया है, परंतु इससे मुझे बहुत दुख हो रहा है कि मैं इसे अच्छा फील कराने में इसकी कोई सहायता नहीं कर पा रहा हूँ।”
तब पशु चिकित्सक ने उस भले-आदमी से कहा, “भाई, तेरा ये #पालतू-साँप बिल्कुल #बीमार नहीं है, यह तुझे निगलने की तैयारी कर रहा है। यह हर रोज तेरा आकार माप रहा है, ताकि यह जान सके कि इसे कितना बड़ा होना है, कितना फैलाव लेना है कि तुझे निगल सके, और यह कुछ भी इसलिए नहीं खा रहा है, ताकि इसके पास तुझे पचाने-हजम करने के लिए पर्याप्त पाचन शक्ति संरक्षित हो जाए।”
#कामकाजी रिश्तों और मित्रता की यह वास्तविक कहानी मनुष्य की आँखें खोल देने के लिए पर्याप्त है। सचमुच ऐसे कई आस्तीन के साँप कामकाजी #पुरुषों और #महिलाओं के सार्वजनिक और निजी जीवन में रहते हैं।
ऐसा ही एक आस्तीन का साँप रेलवे स्कूल कल्याण के पूर्व प्रिंसिपल ने भी 2020 तक पाला था, क्योंकि वह एक पालतू-पशु प्रेमी हैं। कुछ समय बाद साँप ने प्रिंसिपल साहब के साथ ही स्कूल को भी निगलने के लक्षण दिखाने शुरू कर दिए, लेकिन प्रिंसिपल साहब इतने दयालु रहे कि उन्होंने पशु चिकित्सक – डीआरएम/मुंबई – को अनुरोध किया कि वे साँप पर कोई बड़ा दंड अथवा बड़ा दोष-पत्र जारी न करें, न ही फिलहाल उसका इंटर-डिवीजन ट्रांसफर करें।
इसके बजाय उन्होंने डिस्प्लेजर नोट, कारण बताओ नोटिस जैसे टॉनिक से साँप का इलाज करने की सलाह #डीआरएम महोदय को दी, क्योंकि बड़ी शास्ती (मेजर पेनल्टी/एसएफ-5) के साथ इंटर-डिवीजन ट्रांसफर का प्रस्ताव कार्मिक विभाग ने तैयार कर लिया था। लेकिन साँप ने #मालिक को ही डँसने-निगलने का मन बना लिया था और #कोरोना के चलते 2020 के पूरे साल घर बैठकर मुफ्त में मिला सरकारी खाना (वेतन) खाकर पर्याप्त कसरत कर ली थी। #मुफ्तखोरी ने इसे इतना मोटा बना दिया था कि आखिरकार कार्मिक मुख्यालय प्रशासन को 2021 में बड़ी शास्ती (एसएफ-5) देकर इस अहंमन्य साँप को काबू करना पड़ा था।
एसएफ-5 ने आखिर साबित कर दिया कि साँप का इरादा प्रिंसिपल को निगलने का था, क्योंकि इस साँप ने #कार्मिक मुख्यालय प्रशासन द्वारा एसएफ-5 जारी करने के तुरंत बाद अपनी पत्नी के नाम से #प्रिंसिपल के खिलाफ #विजिलेंस में झूठी शिकायत दर्ज करवाई थी। अर्थात् ऊपर से सामान्य दिखने वाले ये #आस्तीन के साँप भीतर से इतने जहरीले (नीच) होते हैं कि अपने झूठे #अहंकार की तुष्टि के लिए न केवल निम्नतम स्तर पर चले जाते हैं, बल्कि उसमें सहायक के तौर पर अपनी पत्नी को भी दाँव पर लगाने से नहीं चूकते हैं!
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर प्रिंसिपल ने वर्ष 2020 में ही मंडल प्रशासन और अपने शुभचिंतकों की बात मान ली होती, तो कार्मिक मुख्यालय और रेल प्रशासन की किरकिरी नहीं हुई होती और इस आस्तीन के साँप का फन तभी कुचल दिया गया होता, इसका सही समय पर सही इलाज तभी हो जाता। हालाँकि, पालतू जानवरों से लगाव रखने वाले प्रिंसिपल साहब यहाँ इसलिए असफल रहे, क्योंकि उनका हमेशा यह मानना रहा कि अच्छाई का सिला अच्छाई से मिलता है। जबकि वास्तविकता में दुष्ट लोगों से इसकी आशा करना निरी-मूर्खता है!
पता चला है कि यह साँप आजकल एसडीजीएम/सेंट्रल रेलवे का पालतू-स्वान बना हुआ है और वह इसे बेहतर स्वास्थ्य के लिए टॉनिक दे रहे हैं। इस आस्तीन के साँप से “रेलसमाचार” का भी वर्ष 2008 में पाला पड़ा था, जब जीएम सेंट्रल रेलवे ने डब्ल्यूएसएससी की अध्यक्षा के सामने अभद्र व्यवहार के लिए इस साँप को मुंबई डिवीजन से बाहर कर दिया था, तब हमारे ही हस्तक्षेप से इस साँप को मुंबई डिवीजन में बने रहने दिया गया था – डीटेल में जाएँगे तो पूर्व लबाड़ी पीसीपीओ सहित कइयों की पोल खुल जाएगी – संक्षेप में कहना यह है कि साँप अपना स्वभाव कदापि नहीं छोड़ता, उसको जितना दूध पिलाया जाएगा वह उतना ही पिलाने वाले को निगलने की प्रैक्टिस में रहता है। यह अभी भी खिंच रहा है और चिपक रहा है, अंतर केवल इतना है कि अब यह एसडीजीएम का #पालतू-स्वान बन गया है, जबकि सेवानिवृत्त प्रिंसिपल साहब का ये तो क्या, इसका नया मालिक एसडीजीएम भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
एसडीजीएम और आस्तीन के इस साँप के बीच क्या रिश्ता है? इस आस्तीन के साँप और इसके वर्तमान अभिभावक की कहानी का विस्तार जल्द ही और अधिक जानकारी के साथ प्रस्तुत किया जाएगा, कृपया थोड़ी प्रतीक्षा करें!