यूपीएससी में आवश्यकता है बदलाव की!
संघ लोक सेवा आयोग को यह विचार करने की आवश्यकता है कि यदि सामाजिक विज्ञान के विषयों के प्रति झुकाव है तो फिर स्कूल कॉलेजों में ही कानून और समाज विज्ञान के इन विषयों को शामिल करते हुए बीए प्रशासन या सिविल सेवा जैसे पाठ्यक्रम क्यों न शुरू किए जाएं?
नई शिक्षा नीति में व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने और दूसरी कई नई बातें तो की गई हैं, लेकिन जब तक शासन-प्रशासन और शिक्षा की नीतियों में कोई तालमेल न हो, तब तक ऐसा कोई भी सुधार लीपापोती से आगे परिणाम नहीं दे सकता!
संघ लोक सेवा आयोग (#यूपीएससी) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम देशभर में एक हिलोर पैदा कर देते हैं और करना भी चाहिए। आखिर यही नौजवान तो उस स्टील फ्रेम का हिस्सा बनते हैं जिस पर भारत जैसे महादेश का शासन-प्रशासन टिका है। 2022 की सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम कई शुभ संकेत दे रहे हैं। सबसे पहला, पिछले कई वर्षों की तरह महिलाओं द्वारा इस परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करना रहा। इस बार तो पहले 4 स्थान महिलाओं के ही रहे और 25 में से 14 पर महिलाये आगे है। कुल 933 सफल उम्मीदवारों में 320 महिलाएं हैं – लगभग 34%।
आजादी के बाद महिलाएं सबसे ज्यादा संसद के 33% को भी पार कर गईं चुपके से। पिछले 10 सालों में देश की इस सर्वोच्च परीक्षा में लगातार महिलाओं की संख्या बढ़ी है तो यह महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और सामाजिक बदलाव का भी संकेतक है। आप उन्हें लाख हिजाब घूंघट पर्दा और खाप की पहरेदारी में रखें, अपने संघर्ष और मेहनत के बूते उनमें बराबरी का जज्बा आ रहा है। पूरे देश के लिए ऐसे परिणाम महिलाओं के लिए सरकार द्वारा उठाए गए अनेक कदमों और योजनाओं से ज्यादा कारगर साबित होते हैं।
इतना ही महत्वपूर्ण पक्ष है एक दशक के बाद भारतीय भाषाओं के माध्यम से चुने जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या तीन प्रतिशत से बढ़कर इस बार लगभग 9% तक हो गई है। यानि 933 में लगभग 70 उम्मीदवार हिंदी और भारतीय भाषाओं के माध्यम से चुने गए हैं। पिछले दिनों एक और बदलाव हुआ है कि महाराष्ट्र राजस्थान गुजरात जैसे हिंदी प्रदेशों के बच्चे भी अपना साक्षात्कार हिंदी में देने की प्राथमिकता देते हैं।
इसका बहुत सीधा सा कारण है कि गांव में सरकारी स्कूलों में कम सुविधाओं में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे विदेशी भाषा पर वैसा अधिकार नहीं रखते जितना अपनी भाषाओं पर और विशेषकर हिंदी पर। यह सच्चे मायनों में प्रशासन के लोकतंत्रीकरण की तरफ बढ़ते कदम हैं जिसका स्वप्न महात्मा गांधी लोहिया और आगे चलकर कोठारी समिति ने देखा था। मौजूदा सरकार के कदम भी अब तक प्रशंसनीय रहे हैं।
वर्ष 1979 में जब सिविल सेवा परीक्षा में भारतीय भाषाओं की शुरुआत की गई थी तो उसके बहुत उत्साहजनक परिणाम निकले थे और पहले 20 वर्षों तक लगभग 15 से 20% उम्मीदवार चुने जाते रहे। उसके बाद का दौर अंधकार का दौर रहा है जिसे कुछ अंग्रेजीदां राजनेताओं ने भारतीय भाषाओं को लगातार दबाने का प्रयास किया। 2014 के बाद यह तस्वीर फिर धीरे-धीरे बदल रही है। इस बार अपेक्षाकृत रिक्तियां भी पिछले वर्षों की तुलना में अधिक रही।
रेलवे ने भी पिछले 2 वर्ष से जो प्रशासनिक सेवाओं में भर्ती बंद कर रखी थी उसे सुधार कर इसमें शामिल कर लिया है। राज्यों में आईएएस और आईपीएस कैडर में कमी चली हुई है और इसीलिए केंद्र और राज्यों के बीच प्रतिनियुक्ति के प्रश्न पर टकराव बढ़ रहा है। उम्मीद है आने वाले दिनों में यह कम हो जाएगा।
बहुत सारी अच्छी बातों के साथ-साथ सिविल सेवा परीक्षा की दरारें भी बहुत स्पष्ट होती जा रही हैं। इस बार की टॉपर इशिता किशोर पिछले दो बार से 3 चरणों में होने वाली इस परीक्षा के प्रथम चरण मे फेल होती रही थी। इस बार और पिछले वर्षों के ज्यादातर टॉपर्स की ऐसी ही कहानी है कि वह कई-कई बार प्रिलिम में फेल होते रहे और फिर अचानक उन्होंने यूपीएससी में टॉप किया है जो इस बात को दर्शाते हैं कि प्रारंभिक परीक्षा में जरूर कुछ खामियां हैं।
यहां तक कि मुख्य परीक्षा की लिखित परीक्षा में मुश्किल से ही 50% से ज्यादा अंक पिछले 10 वर्षों में देखे गए हैं। क्या सीबीएसई के 100% अंक लेने वाले और इस परीक्षा में अंक लेने में तालमेल बनता है? आखिर देश तो एक ही है फिर परीक्षा की पद्धतियां ऐसी क्यों हैं जो कभी युवाओं की हिम्मत तोड़ दें और कभी मानो लॉटरी निकल आई हो!
43 वर्ष पहले जब सिविल सेवा परीक्षा के मौजूदा स्वरूप की शुरुआत की गई थी तब ऐसा नहीं था। सतीश चंद्र कमेटी ने निबंध आदि को जोड़कर उसे और बेहतर बनाया तो प्रोफेसर वाईपी अलग के भी कुछ अच्छे सुझाव शामिल किए गए। लेकिन 2011 में पूरी परीक्षा में सी-सैट और अंग्रेजी का बोलबाला शामिल करने से बुनियादी रूप से कुछ खामियां आ गई हैं। अगर देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को आकर्षित करना है, तो यूपीएससी को तुरंत रिव्यू की आवश्यकता है।
इस परीक्षा के आंकड़े बताते हैं कि लगभग 80% उम्मीदवार इंजीनियर हैं, लेकिन मुश्किल से 10% भी वे वैकल्पिक विषय में इंजीनियरिंग का विषय नहीं लेते। ज्यादातर एंथ्रोपोलॉजी समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान, भूगोल आदि चुनते हैं। आखिर क्यों? कहीं न कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था और नौकरी की परीक्षा प्रणाली में कुछ गड़बड़ है। आईआईटी और एम्स जैसे संस्थानों से निकले नौजवानों की जिस प्रतिभा का उपयोग उनके अपने क्षेत्र में होना चाहिए था सिविल सेवा की मौजूदा प्रणाली में वैसा नहीं हो रहा।
संघ लोक सेवा आयोग को यह विचार करने की आवश्यकता है कि यदि सामाजिक विज्ञान के विषयों के प्रति झुकाव है तो फिर स्कूल कॉलेजों में ही कानून और समाज विज्ञान के इन विषयों को शामिल करते हुए बीए प्रशासन या सिविल सेवा जैसे पाठ्यक्रम क्यों न शुरू किए जाएं? नई शिक्षा नीति में व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने और दूसरी कई नई बातें तो की गई हैं, लेकिन जब तक शासन-प्रशासन और शिक्षा की नीतियों में कोई तालमेल न हो, तब तक ऐसा कोई भी सुधार लीपापोती से आगे परिणाम नहीं दे सकता!
इतना ही महत्वपूर्ण पक्ष इन सेवाओं में आने वालों की उम्र है। जब औसत उम्र 32 और उससे ज्यादा हो तो पूरी प्रशासनिक क्षमता पर प्रश्न पैदा होते हैं।
इस बार लगभग 11 लाख अभ्यर्थियों ने फार्म भरे थे और साढ़े पांच लाख ने परीक्षा दी। साक्षात्कार के लिए 2500 को बुलाया गया और उसमें से 933 अभ्यर्थी अंतिम रूप से चुने गए हैं। जिन 2500 उम्मीदवारों को बुलाया गया था, उनमें कई एक से अधिक बार साक्षात्कार तक आ चुके थे, यानि कि उनमें ऐसी प्रतिभा है कि जो इतनी बड़ी प्रतियोगिता में यहां तक पहुंचे हैं।
पिछले कई वर्षों से सुनने में आता है कि सरकार साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने वाले बच्चों के लिए भी रोजगार का कोई विकल्प देगी लेकिन अभी तक हम एक कदम भी नहीं बढ़े। लेटरल एंट्री से कहीं ज्यादा प्रभावी यह कदम होगा। मौजूदा समय में रोजगार केवल सरकारी नौकरियों में ही नहीं है। सैकड़ों ऐसे उपक्रम और निजी क्षेत्र हैं जिनमें इन मेधावी बच्चों की प्रतिभा का इस्तेमाल हो सकता है।
यूपीएससी की पारदर्शिता और ईमानदारी पर भी किसी को कोई संदेह नहीं है। पूरे देश की युवा पीढ़ी को वर्षों तक रटंत की आग में झोंकने से बचाने की भी आवश्यकता है। समय की मांग उन्हें दूसरे स्किल, कामों की तरफ तुरंत मोड़ने की है। साथ ही सुने हुए अधिकारियों को ऐसा प्रशिक्षित किया जाए कि वे निष्ठावान लोक सेवक के रूप में सक्षम सिद्ध हों।
#प्रेमपाल_शर्मा, शिक्षाविद एवं पूर्व संयुक्त सचिव/भारत सरकार। मोबाइल 99713 99046