डीआरएच कल्याण: फिजिशियन के अनावश्यक ट्रांसफर से उद्वेलित रेलकर्मी!
जिन्हें वास्तव में अन्यत्र भेजा जाना चाहिए, जो लोग ज्वाइनिंग से लेकर अब तक एक ही जगह, एक ही शहर में टिके हुए हैं, ऐसे जुगाड़ू अधिकारियों, डॉक्टरों को रेल प्रशासन अपना प्रश्रय देता है, जबकि काम करने वालों को असमय अनावश्यक रूप से इधर-उधर ट्रांसफर करके उत्पीड़ित किया जाता है! #RailSamachar लंबे समय से एक ही जगह टिके सुविधाभोगी अधिकारियों, और खासतौर पर डॉक्टरों के मुद्दे को हर मौके पर उठाता रहा है, परंतु नियमानुसार व्यवस्था को व्यवस्थित करने के बजाय रेल प्रशासन इसकी अनदेखी करता आ रहा है। रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार इसी का परिणाम है!
मध्य रेल प्रशासन को जो काम स्वयं करना चाहिए, उस काम के लिए रेल कर्मचारी कर रहे हैं। फिर भी लगता है मंडल रेल अस्पताल (डीआरएच) कल्याण को व्यवस्थित रखने में रेल प्रशासन की रुचि नहीं है। रेलकर्मी यहां के एक फिजिशियन, जिसकी पोस्टिंग हाल ही में यहां की गई थी, को सोलापुर ट्रांसफर कर दिए जाने का विरोध कर रहे हैं।
कल्याण के मंडल रेल चिकित्सालय से रेल प्रशासन की ऐसी क्या बेरुखी है, जो यहां के डॉक्टरों का अंयत्र ट्रांसफर कर दिया जाता है। रेलकर्मियों द्वारा काफी समय से बार-बार यहां स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को तैनात करने की मांग की जाती रही है, परंतु यह करने के बजाय उनकी यहां जो डॉक्टर उपलब्ध हैं, उनको भी यहां से ट्रांसफर कर दिया जाता है।
रेलकर्मी पूछते हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है? विगत में यहां से स्किन स्पेशलिस्ट, पैथालॉजिस्ट, दो ऑर्थोपेडिक तथा मनोचिकित्सक ट्रांसफर कर दिए गए। 120 बिस्तरों का यह अस्पताल, जो कोविड के चलते 200 बेड तक पहुंच गया था, जहां प्रतिदिन करीब 700 से 800 मरीज ओपीडी में आते हैं, ऐसे अस्पताल में योग्य एवं विशेषज्ञ डॉक्टरों का अकाल पड़ा हुआ है।
विगत दो वर्षों में इस अस्पताल के लिए करीब दो करोड़ रुपये रेल प्रशासन ने खर्च किए होंगे, कि अस्पताल की हालत में कुछ सुधार हो। क्योंकि कोविड काल में इस अस्पताल ने मुंबई मंडल में अपनी अहम भूमिका निभाई। रेलकर्मी कहते हैं कि जब यहां डॉक्टर ही उपलब्ध नहीं होंगे, और न ही सही दवाईयां मिलेंगी, तो इस अस्पताल के होने, न होने का अर्थ क्या है?
रेलकर्मियों की लगातार मांग रही है कि इस मंडल रेल चिकित्सालय में कम से कम चार फिजिशियन होना अति आवश्यक है, तभी इस अस्पताल के होने का कोई औचित्य है। इसके अलावा कार्यप्रणाली में सुधार होना आवश्यक है। लेकिन यहां मात्र दो जूनियर फिजिशियन से काम चल रहा है। परंतु रेल प्रशासन को यह भी रास नहीं आया और हमारे पोस्ट ग्रेजुएशन करके आए हुए एकमात्र मेल फिजिशियन का ट्रांसफर सोलापुर कर दिया गया।
इस बात को जानकर रेलकर्मियों में इस कदर रोष व्याप्त है कि वह किसी भी हद तक आंदोलित होने के लिए तैयार हैं। रेलकर्मी जानना चाहते हैं कि आखिर ऐसी बात हुई है कि पीसीएमडी यहां कार्यरत डॉक्टरों को अन्यत्र भेज रहे हैं?
उनका कहना है कि सेंट्रल रेलवे के किसी भी मंडल रेल चिकित्सालय में सामान्यतः 300 मरीज प्रतिदिन अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराने आते हैं, परंतु कल्याण के मंडल रेल चिकित्सालय में अन्य मंडल चिकित्सालयों की अपेक्षा दोगुने से भी ज्यादा 700 से 800 पेशेंट प्रतिदिन आते हैं। इसीलिए कल्याण का मंडल चिकित्सालय किसी मुख्यालय के चिकित्सालय की बराबरी का दर्जा रखता है।
उन्होंने कहा कि एक बार पीसीएमडी या जीएम महोदय कल्याण के मंडल चिकित्सालय में आएं और बिना धक्के खाए 20/30 कदम भी चलकर बता दें, तो हम मान जाएंगे। क्योंकि मुंबई मंडल में जहां 35,000 वर्कर कार्यरत हैं, उनमें से अधिकांश के परिवार कल्याण तथा उसके आसपास के एरिया में ही रहते हैं। इसीलिए कल्याण के मंडल चिकित्सालय का महत्व किसी मुख्यालय के चिकित्सालय से कम नहीं आंका जा सकता।
रेलकर्मियों का कहना है कि यहां वर्षों से जमे बेहद सनकी प्रवृत्ति के एक फिजीशियन, सीएमएस के पद से शीघ्र निवृत्त होने वाले हैं, को कहीं दूसरी जगह न जाना पड़े, इसलिए वे अपनी जगह यहीं सुनिश्चित करने के लिए इस तरह की जोड़-तोड़ कर रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि वैसे तो यहां 4-5 फिजीशियन की आवश्यकता है, अगर वह भी यहां रहना चाहते हैं, तो रहें, हम जैसे तैसे करके उनको भी झेलेंगे, लेकिन वर्तमान में कार्यरत फिजीशियन को कहीं अन्यत्र स्थानांतरित करना बेहद रोष का विषय है।
उन्होंने कहा कि आश्चर्य तब होता है जब यहां पर कुछ सनकी प्रकृति के डॉक्टर, जिनसे इस अस्पताल और मरीजों में हड़कंप मचा रहता है, यहां से उनके स्थानांतरण की बात रेल प्रशासन के दिमाग में क्यों नहीं आती? शांतिपूर्वक अच्छा काम कर रहे डॉक्टरों को यहां से क्यों भगाया जाता है? सनकी मिजाज के डॉक्टरों के अत्याचार के कारण यहां से एक बेहद योग्य फिजीशियन पहले ही नौकरी छोड़कर पहले ही जा चुका है।
जहां रेलवे में फिजीशियंस की सख्त आवश्यकता है, वहां एक मेहनती फिजीशियन अपनी नौकरी छोड़कर क्यों जा रहा है? न तो रेल प्रशासन ने उसकी समस्या को जानने की कोशिश की और न ही दोषी-सनकी डॉक्टर, जिन्होंने उसको इस स्थिति में आने को मजबूर किया, उन पर कभी कोई कार्रवाई किया? आखिर रेलकर्मियों तथा उनके परिवारों का दोष क्या है? यह समझ से परे है!
जोनल अस्पताल भायखला में हर फैकल्टी में कई-कई डॉक्टर उपलब्ध हैं, तो उनको क्यों नहीं स्थानांतरित किया जाता है? जबकि अधिकांश अधिकारी रेलवे के खर्च पर अपना इलाज बाहर करा रहे होते हैं।
जागरूक रेलकर्मियों का कहना है कि अगर रेल प्रशासन इस मंडल रेल अस्पताल को बंद ही करना चाहता है, तो रेलकर्मियों तथा उनके परिवारों को खुली छूट दे दे कि कहीं पर भी किसी भी प्राइवेट अस्पताल में जाकर वे अपने सिरदर्द, सर्दी-खांसी से लेकर गंभीर बीमारियों तक का इलाज बेफिक्र होकर कराएं, सबकी भरपाई रेलवे करेगी, तो उन्हें क्यों कोई आपत्ति होगी। लेकिन लगता है कि रेल कर्मियों और उनके परिवारों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना पीसीएमडी का शौक बन गया है।
उन्होंने कहा कि पीसीएमडी/म.रे. तत्काल स्पष्ट करें कि रेलकर्मी बाहर अपनी मर्जी से अनलिमिटेड खर्च कर अपना इलाज रेलवे के खर्च से करा सकते हैं या फिर तत्काल प्रभाव से वर्तमान में ट्रांसफर किए गए फिजिशियन के स्थानांतरण पर रोक लगाएं, अन्यथा बवाल होना तो निश्चित ही है।
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