स्टेशन परिसरों/चलती ट्रेनों में खानपान की गुणवत्ता और कीमत पर प्रश्न चिन्ह
यात्रियों का शोषण रोकने के लिए त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित करे रेल प्रशासन
पैंट्रीकार में गैस सिलेंडर रखना और गैस चूल्हा जलाना प्रतिबंधित है। तथापि लगभग सभी पैंट्रीकारों में इस प्रतिबंध की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। रेल प्रशासन शायद कोई बहुत बड़ा हादसा होने की प्रतीक्षा में इस वस्तुस्थिति की अनदेखी कर रहा है!
अहमदाबाद: पश्चिम रेलवे जोन के सभी मंडलों के लगभग सभी स्टेशनों पर खानपान का स्तर निम्न से निम्नतर है। चलती ट्रेन में पैंट्रीकारों के खाने का भी यही हाल है। रेलवे द्वारा निर्धारित किए गए कैटरिंग नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं। अनधिकृत वेंडरों की भरमार है, अवैध वेंडर्स अनियंत्रित हो चुके हैं। शिकायतों पर खानापूरी करके एकाध अनधिकृत वेंडर को पकड़कर कार्यवाही करके महीनों तक वाहवाही लूटी जाती है। जबकि शिकायतों पर एक ही रटा-रटाया उत्तर दिया जाता है, मगर कुछ कारगर कार्रवाई सुनिश्चित नहीं की जाती है, जिससे यात्रियों में भारी खीझ पैदा होती है।
उपरोक्त तथ्य 2 जून 2022 को पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक को लिखे गए पत्र में दिए गए हैं। यह पत्र जोनल रेलवे उपभोगकर्ता परामर्शदात्री समिति (जेडआरयूसीसी) पश्चिम रेलवे के पूर्व एवं वर्तमान सदस्य क्रमशः योगेश मिश्रा और किंजन पटेल द्वारा लिखा गया है। उन्होंने यह पत्र मंडल रेल प्रबंधक – मुंबई सेंट्रल, रतलाम, राजकोट, भावनगर, वड़ोदरा, अहमदाबाद – को भी भेजा है।
पत्र में कहा गया है कि रेलवे वाणिज्य नियमावली 60/2019 अनुसार रेलयात्रियों को गुणवत्तापूर्ण खानपान की उपलब्धता नहीं हो रही है। यात्रियों को रेलवे द्वारा सस्ती दर पर “जनता खाना” उपलब्ध कराने की योजना खटाई में पड़ती जा रही है। यह कारनामा कोई और नहीं बल्कि रेलवे की स्टेशनों पर स्थित खानपान इकाईयों और चलती ट्रेनों में पैंट्रीकारों में ही किया जा रहा है।
इस भीषण गर्मी और भारी भीड़ में यात्रियों की सेहत से खुलेआम खिलवाड़ हो रहा है। जनता खाना की उपलब्धता नहीं है। अगर कोई यात्री जानकारी होने पर बहुत आग्रह करता है तो सस्ते दर पर 15 रुपये में “जनता खाना” के नाम पर सुबह की बनाई हुई पूड़ी और आलू की सब्जी रात 10 बजे की ट्रेनों के समय तक परोसी जा रही है।
हैरानी की बात यह है कि यात्रियों के खानपान की गुणवत्ता (क्वालिटी) परखने के लिए जिन अफसरों की तैनाती की गई है, वे ही जनता खाना के बेस किचन से बेखबर हैं। खाद्य निरीक्षक और वाणिज्य निरीक्षक आजतक शायद ही कभी एक बार भी जनता खाना को देखने किसी खानपान स्टाल अथवा पैंट्रीकार तक नहीं गए होंगे।
उन्होंने मांग की है कि गरीब और कमजोर आय वर्ग के रेलयात्रियों की सुविधा के लिए रेलवे के अंतर्गत सभी स्टेशनों की सभी स्थाई खानपान इकाईयों और चलती ट्रेनों की पैंट्रीकारों में जनता मील की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इससे स्टेशनों पर ट्रेनों के लिए प्रतीक्षारत और चलती ट्रेनों में यात्रा करने वाले यात्रियों को सस्ती दर पर जनता खाना मिल सकेगा।
“जनता मिल का मेनू” जिसके लिए यात्रियों को 15 रुपये देने होंगे। मेनू अनुसार सात पुड़ी (175 ग्राम), आलू की सब्जी (150 ग्राम) और आचार तथा एक हरी मिर्च होगी। मोबाइल यूनिट (पैंट्रीकार) में यात्रियों को 5 रुपये अतिरिक्त देने होंगे, जो यात्रियों को इसकी सुविधा उपलब्ध कराएगी। यानि चलती ट्रेनों में यात्री को जनता खाना के लिए 20 रुपये मूल्य देना होगा। यह नियम पहले से ही है कि जनता मील की सुविधा प्रत्येक स्टॉल पर होगी, लेकिन कई स्टॉल इसका पालन नहीं करते हैं।
इसकी लगातार निगरानी होनी चाहिए। इसमें कोताही करने वाले खाद्य एवं वाणिज्य निरीक्षकों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए। रेलवे को जनता खाना की व्यवस्था को यात्रियों के हित में सुनिश्चित करने के लिए इसका सख्ती से पालन करने का आदेश जारी करना चाहिए।
जेडआरयूसीसी सदस्यों ने महाप्रबंधक को लिखा है कि अगर उन्होंने ट्रेन की जर्नी की है तो पैंट्रीकार से परिचित होंगे ही। पैंट्रीकार वैसी ट्रेनों में लगाई जाती है, जिसकी यात्रा लंबी हो। इसमें आपको तुरंत बना हुआ ताजा भोजन मिलता है। पैंट्रीकार में आपके लिए सुस्वादु व्यंजन तो तैयार किया ही जाता है, उन्हें कुछ चीजें अनिवार्य रूप से बनाने का निर्देश है। इसमें स्टैंडर्ड केसरोल मील और पूड़ी-सब्जी भी शामिल है। आइए जानते हैं इन खाद्य पदार्थों में क्या-क्या शामिल है और उसका मूल्य क्या है?
पैंट्रीकार में खाद्य सामग्री बनाना अनिवार्य?
1. रेल मंत्रालय से मिली सूचना के अनुसार पैंट्रीकार में स्टेंडर्ड केसरोल मील, बिरयानी और जनता खाना बनाना अनिवार्य है।
2. स्टैंडर्ड केसरोल मील में वेज कैसरोल मील, एग कैसरोल मील और चिकन कैसरोल मील का विकल्प होता है।
3. बिरयानी में वेज बिरयानी, अंडा बिरयानी और चिकन बिरयानी का विकल्प होता है।
4. जनता खाना के पैकेट में पूड़ी, सब्जी और अचार दिया जाता है। इसके लिए रेडीमेड चाय भी बनाना अनिवार्य है।
क्या होता है स्टैंडर्ड वेज मील!
स्टैंडर्ड वेज मील में 150 ग्राम प्लेन राइस होता है। यह एक अल्यूमिनियम के केसरोल में पैक होना चाहिए। इसके साथ ही दो पराठा या चार रोटी रैपर में पैक होनी चाहिए। इसका वजन 100 ग्राम से कम नहीं हो। साथ ही 150 ग्राम गाढ़ी पीली दाल भी केसरोल में पैक होनी चाहिए और 100 ग्राम मौसमी सब्जी जरूरी है। इसके अलावा 80 ग्राम दही और 12 ग्राम अचार का एक शैसे भी दिया जाएगा।
यह खाना जिस ट्रे में दिया जाएगा, उसमें एक नैपकिन और एक डिस्पोजेबल स्पून भी शामिल होगा। अगर यह मील स्टेशन में लेंगे तो उसका दाम 70 रुपये लिया जाएगा और यदि इसे चलती ट्रेन में लेंगे तो इसका दाम 80 रुपये होगा।
15 के बजाय 70 रुपये वसूलने का फंडा
रेलवे स्टेशन परिसर में जनता खाना हर समय उपलब्ध हो, तो “जन आहार थाली” कम ही लोग खरीदेंगे। यात्रियों की जेब ढ़ीली करने के लिए कैंटीन संचालकों द्वारा 70-80 रुपये के “जन आहार” के नाम पर पांच या छह पूड़ी-सब्जी बेचा जाता है। स्टेशन परिसर/प्लेटफॉर्म पर स्थित स्टाल पर जनता खाना लेने गए यात्रियों ने बताया कि जनता खाना कहीं दिखता ही नही है। जब उन्होंने जनता खाना की मांग की, तो उन्हें जन आहार की थाली थमा दी गई। किसी से 70 रुपये वसूले गए, तो किसी ने स्पेशल थाली के नाम पर 250 रुपये तक चुकाए।
आईआरसीटीसी के नियम के अनुसार रेलवे स्टेशन परिसर में 15 रुपये में जनता खाना उपलब्ध कराया जाना चाहिए। रेलवे स्टेशन परिसर में कैंटीन, स्टाल, कैफेटेरिया, भोजनालय इत्यादि में यात्रियों को जनता खाना उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है।
नहीं होती सप्लाई की निगरानी
यात्रियों के खानपान की गुणवत्ता की स्थिति यह है कि ठेकेदार द्वारा सप्लाई किए जा रहे जनता खाना बनाने के समय की कोई मॉनिटरिंग ही नहीं की जा रही है। इसका सीधा असर यात्रियों के स्वास्थ्य और उनकी जेब पर पड़ रहा है। सुबह बनी हुई आलू की सब्जी शाम को यात्री कैसे खाएंगे, इसकी कोई परवाह नहीं है। केवल कागजों में ही सुबह और शाम के समय जनता खाना सप्लाई कराने के दावे किए जा रहे हैं।
रेलवे स्टेशनों पर उपलब्ध खानपान सामग्री की शुद्धता और गुणवत्ता मानक जांच पर भी प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। जानकारों के मुताबिक यहां बेचे जा रहे खाद्य पदार्थ, उनको तैयार की जाने वाली जगह, गुणवत्ता, एक्सपायरी आदि की विविध स्तरों पर जांच की जानी चाहिए। रेल प्रशासन द्वारा इसके लिए किसी प्रकार की स्थायी जांच व्यवस्था नहीं की गई है।
दिखावे के लिए रखे गए खाली पैकेट
एक कैंटिन के भीतर जनता खाना के डिब्बों को रखा देखकर कैंटीन संचालक से पूछताछ की गई, तो उसने बताया कि “यह सभी डिब्बे खाली हैं। आईआरसीटीसी के अधिकारियों की जांच से बचने के लिए यह डिब्बे रखे गए हैं।” कैंटिन संचालक के अनुसार जनता खाना सुबह 9 बजे से 11 बजे तक उपलब्ध रहता है। 11 बजे के बाद जनता खाना मांगने वालों को जन आहार के नाम से उपलब्ध थाली परोसी जाती है।
ऐसे में अगर रेलवे स्टेशन परिसर में जनता खाना हर समय उपलब्ध हो, तो जन आहार थाली कम ही लोग खरीदेंगे। यात्रियों की जेब ढ़ीली करने और अपने अधिकाधिक मुनाफे के लिए स्टाल धारकों द्वारा 70-80 रुपये का जन आहार 120 से 180 रुपये में बेचा जाता है। स्टेशन परिसर में जनता खाना लेने आने वाले यात्रियों को जनता खाना की जगह जन आहार की थाली थमा दी जाती है।
आपत्ति/शिकायत दर्ज कराएं रेलयात्री
अगर चलती ट्रेनों में यात्रियों को जन आहार नहीं मिलता है, तो यात्रीगण इसकी ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराएं। अधिकतर यात्रियों की शिकायत होती है कि चलती ट्रेनों में पैंट्रीकार ठेकेदार द्वारा स्टैंडर्ड केसरोल मील, एक अतिरिक्त सब्जी रखकर दिया जाता है। इसकी कीमत 130 से 180 रुपये वसूल की जाती है। जब यात्रियों को स्टैंडर्ड मील का विकल्प नहीं मिलेगा तो मजबूरी में वे महंगा खाना खरीद कर खाएंगे। ऐसी स्थिति में तो जनता खाना मिलने का कोई सवाल ही नहीं उठता। यात्रियों को इस बारे में अपनी शिकायत दर्ज करानी चाहिए।
अनधिकृत वेंडरों की मनमानी पर रेल प्रशासन कोई लगाम नहीं लगा पा रहा है। अखिल भारतीय रेल उपभोक्ता संघ के अध्यक्ष योगेश मिश्रा ने कहा, “अगर किसी यात्री को ट्रेन में ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े, तो तुरंत 139 नंबर डायल कर शिकायत दर्ज कराए। यह शिकायत ‘रेल मदद’ ऐप पर ऑनलाइन भी दर्ज करा सकते हैं। चाहें तो ट्विटर या रेल मंत्रालय के किसी अन्य सोशल मीडिया हैंडल पर शिकायत कर सकते हैं।”
अंत में उन्होंने महाप्रबंधक से अनुरोध किया है कि कृपया उपरोक्त मुद्दों पर सर्वसामान्य रेलयात्रियों हित में त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित कराएं।
इसके अलावा, पैंट्रीकार में गैस सिलेंडर रखना और गैस चूल्हा जलाना प्रतिबंधित है। तथापि लगभग सभी पैंट्रीकारों और कुछ स्टेशनों विशेष पर स्थित खानपान स्टालों में लाइसेंसियों द्वारा इस प्रतिबंध की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। रेल प्रशासन शायद कोई बहुत बड़ा हादसा होने की प्रतीक्षा में इस वस्तुस्थिति की लगातार अनदेखी कर रहा है। जबकि इस बारे में कई सांसदों और जन प्रतिनिधियों द्वारा रेलमंत्री सहित रेलवे बोर्ड को ढ़ेरों पत्र लिखे गए हैं।
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