चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता के लिए पूर्व/वर्तमान अधिकारियों को दूर रखकर, यह जिम्मेदारी स्वयं निभाएं रेलमंत्री!
चयन प्रक्रिया में अगर शामिल होंगे पूर्व/वर्तमान अधिकारी, तब सारी निष्पक्षता, पारदर्शिता और किए-धरे पर फिर जाएगा पानी!
रेलमंत्री और सीआरबी की ‘चुके हुए लोगों’ पर जितनी निर्भरता होगी, चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता उतनी ही संदिग्ध, अविश्वसनीय और खराब होगी!
‘फीडबैक सेलेक्टिव’ नहीं होना चाहिए। एचएजी और एचएजी+ के लिए कम से कम 20-20, एसएजी के लिए कम से कम 10-10, सीधी भर्ती सीनियर और जूनियर अधिकारियों से अलग-अलग पदों पर अलग-अलग कालखंड में फीडबैक लेकर जब होगी उसकी गहन समीक्षा, तभी हो पाएगा कुछ ठीक-ठीक आकलन!
सुरेश त्रिपाठी
Ministry of Railways (Railway Board) RESOLUTION (The Gazette of India, {EXTRAORDINARY [PART I—SEC.1]} Notification No. CG-DL-E-27052022 –236064, No. 137, New Delhi, Friday, May, 27, 2022).
इस पूरे गजट नोटिफिकेशन में “विशेषज्ञ पैनल के गठन” का प्रावधान, एक ऐसा प्रावधान है, जो पूरे प्रयास को ही न केवल विषाक्त कर देता है, बल्कि रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव और चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड विनय कुमार त्रिपाठी के अब तक के सारे अथक परिश्रम पर पानी फेर देने वाला है।
उनका यह प्रावधान भूखे भेड़ियों को जाने-अनजाने शिकार करने का पूरा अवसर प्रदान करता है, जिसमें वे जिसका चाहेंगे, उसका भक्षण करेंगे, जिसका चाहेंगे उसका रक्षण/उपकार करेंगे, और जो उपकृत होगा, वह अपने ‘प्राप्त जीवन’ के लिए इन्हीं भेड़ियों का मरते दम तक अहसानमंद रहेगा।
#RailSamachar ने पहले भी लिखा था, बार-बार लिखा है, और फिर लिख रहा है कि, “किसी भी चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए रेल के वर्तमान और सेवानिवृत्त अधिकारियों को इससे कोसों दूर रखा जाए!” क्योंकि जो लोग वास्तव में रेल की बर्बादी का प्रमुख कारण रहे हैं, उन लोगों को रेलवे का भविष्य संवारने वाले अधिकारियों का महत्वपूर्ण चयन करने की प्रक्रिया में शामिल करना हास्यास्पद है। यह “पैर पर कुल्हाड़ी मारने” जैसा नहीं, बल्कि “कुल्हाड़ी पर पैर मारने” जैसा है।
रेलवे में आजतक के इतिहास में शायद ही कोई – कुछेक को छोड़कर – ऐसा अपवाद मिलेगा, जो नितांत निष्पक्षता से राष्ट्र और रेल के हित में अंतिम निर्णय लिया हो। सेवानिवृत्त और सेवारत जितने भी लोग ऊपर पहुंचे हैं – एकाध को छोड़कर – सब भ्रष्ट तिकड़मी, विभागवाद से लबरेज बुद्धि-पिशाच और ऐयाश लोग रहे हैं।
जॉइंट सेक्रेटरी इम्पैनलमेंट में तथाकथित 360 डिग्री में इनका खेल देखा जा सकता है। जो इनके गुट का, सिंडिकेट का, रहा या जिसके लिए इनके गुट और सिंडिकेट के लोगों से फीडबैक जैसा रहा, वैसा ही फीडबैक ये देते हैं, फील्ड से भी फीडबैक ये लोग अपने ही गुट और सिंडिकेट के द्वारा बताए गए लोगों से लेते हैं। यह एक सच्चाई है, और इसके लिए ऐसे सभी लोगों की खुफिया जांच कराई जा सकती है।
[हमारा मानना है कि फीडबैक ‘सेलेक्टिव’ नहीं होना चाहिए। एचएजी और एचएजी+ के लिए कम से कम 20 सीधी भर्ती सीनियर और 20 सीधी भर्ती जूनियर – एसएजी के लिए कम से कम 10-10 – अधिकारियों से अलग-अलग पदों पर अलग-अलग कालखंड में फीडबैक लेकर और उसकी गहन समीक्षा करके ही कुछ ठीक-ठीक आकलन किया जा सकता है।]
इन आदमखोर भेड़ियों – क्षमा करें, इस शब्द के मजबूरन प्रयोग के अतिरिक्त हमारे पास इनके संपूर्ण चरित्र को परिभाषित करने के लिए कोई उपयुक्त वैकल्पिक शब्द नहीं है – पर रेलमंत्री और सीआरबी की जितनी निर्भरता होगी, चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता उतनी ही संदिग्ध, अविश्वसनीय और खराब होगी।
ये लोग वे पुराने शिकारी हैं, जो अपने गोल और स्वार्थ सिद्धि के लिए विजिलेंस तथा फर्जी शिकायत तंत्र (इसके सटीक प्रमाण जल्दी ही प्रस्तुत किए जाएंगे) का प्रयोग करते रहें हैं। इसीलिए रेलमंत्री और सीआरबी अगर निष्ठावान, कर्तव्यदक्ष अधिकारियों के चयन में, और व्यवस्था में भी, आमूलचूल सुधार एवं परिवर्तन करना चाहते हैं, तो रेलवे के लोगों – पूर्व/वर्तमान दोनों – को चयन प्रक्रिया से बाहर रखें और स्वयं यह भूमिका निभाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वाह करें!
इसके साथ ही एसीआर/एपीएआर को भी 100 में से मात्र 5 अंक का ही वेटेज दिया जाए। जिस अधिकारी ने सबसे ज्यादा जोनों/डिवीजनों में और ज्यादा पदों पर काम किया है, उसको ज्यादा वेटेज मिलना चाहिए, वरना इस सारे किए-धरे पर पानी फिरना निश्चित है। क्रमशः
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