जिसकी मेहरबानी से आए थे लखनऊ, उसी की मेहरबानी से पहुंचे दिल्ली
रॉयल तरीके से हुई रॉयल कैफे में सीनियर डीपीओ/लखनऊ की विदाई
सोशल डिस्टेंसिंग की हुई ऐसी-तैसी, गले में लटका मास्क बना फैशन!
सरकारी दिशा-निर्देशों का सरकारी अधिकारियों द्वारा ही नहीं किया जाता पालन!
सुरेश त्रिपाठी
उत्तर रेलवे, लखनऊ मंडल के सीनियर डीपीओ मुकेश बहादुर सिंह उर्फ एम. बी. सिंह का विदाई समारोह रॉयल तरीके से लखनऊ के रॉयल कैफे में संपन्न हुआ। जहां उनके द्वारा उपकृत हुए उनके खासमखास तमाम पिछलग्गू न सिर्फ उपस्थित हुए, बल्कि उन्होंने अपने साहब को मालाओं से लादकर गदगद कर दिया। साहब ने भी बड़प्पन के साथ सबकी पीठ कुछ इस तरह थपथपाई जैसे अभयदान दे रहे हों, “कोई भी परेशानी हो, हमें याद करना, चिंता नहीं करना, हम हैं न !”
संचालक ने पहले ही खास चापलूसी करते हुए साहब से अनुनय कर दिया कि “सर, आप मालाएं उतार देते हैं, इसलिए हमारी पहली शर्त है कि आप अंत तक मालाएं नहीं उतारेंगे।” अब संचालक का यह आदेश था, निर्देश था, या निवेदन, यह तो वही दोनों बेहतर बता सकते हैं। देखें- वीडियो में इसकी एक बानगी –
Farewell: #SrDPO/LKO #MBSingh
#Venue: #Royel_Cafe, #Lucknow, there were no social distancing.
बहरहाल, लखनऊ मंडल के उनके लगभग सभी मातहत वेलफेयर इंस्पेक्टर इस खास विदाई समारोह में विशेष रूप से मालाएं, गुलदस्ते और महंगे गिफ्ट लेकर उपस्थित थे और जैसी कि संचालक ने चापलूसी भरी अनुनय की थी, सब ने साहब को मालाओं से लाद दिया और साहब ने भी अपना वादा निभाते हुए तब तक मालाएं अपनी गर्दन से नहीं उतारी, जब तक कि सिर तक सब पहन नहीं लीं।
ऐसा लगता है कि अधिकारियों को सिर के ऊपर तक मालाएं पहनने का यह शौक कर्मचारी यूनियनों और लेबर फेडरेशनों के कुछ बड़े पदाधिकारियों को देखकर ही चर्राया है। हालांकि ‘सुशासन बाबू” ने यह चलन बंद करने का लिखित आदेश जारी किया था, परंतु उनके इस आदेश का पालन उनके पद पर भी सुनिश्चित नहीं हुआ, तो अब कैसे होगा, इसलिए यह उनके जाते ही डिब्बे में बंद कर दिया गया।
इस विदाई समारोह में उपस्थित सिर्फ कुछ लोग ही अपना मास्क व्यवस्थित तरीके से लगाए हुए देखे जा सकते हैं, जबकि ज्यादातर लोगों ने उसे नाक या ठुड्डी के नीचे सरकाकर फैशन बना रखा है। इसके अलावा डायस पर बैठे पूर्व, वर्तमान और निवर्तमान अधिकारियों में से सिर्फ एक महिला अधिकारी को छोड़कर अन्य किसी ने भी मास्क पहनना जरूरी नहीं समझा।
उस रिटायर्ड सीनियर डीपीओ ने भी नहीं, जिसने तीन साल पूर्व अपने रिटायरमेंट से मात्र कुछ दिन पहले लखनऊ में अपनी पोस्टिंग मैनेज की थी और जिसे विशेष ज्ञान देने के लिए विशेष रूप से इस मौके पर आमंत्रित किया गया था। उसने कहा कि उसी ने एम. बी. सिंह को यहां का चार्ज दिया था और इशारों में उनसे यह भी स्वीकार कराया कि लखनऊ मंडल में बतौर सीनियर डीपीओ काम करने का “मजा” ही कुछ और है!
#Farewell: #SrDPO/LKO #MukeshBahadurSingh, now posted as SrDPO/Co/NDLS
Even in high #Covid19 period, mask has become a fashion, except one, no one has bearing mask sitting at Dias
किसी अधिकारी के विदाई समारोह से किसी को कोई ऐतराज नहीं हो सकता। परंतु जब अधिकारी ही ऐसे मौकों पर सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित नहीं करेंगे, तब वह अपने मातहतों और जनसाधारण को कोई सीख कैसे दे सकते हैं? यह सवाल तो निश्चित रूप से उठेगा और उठना भी चाहिए, क्योंकि ऐसे ही अधिकारी, जिनकी खुद की गरिमा यूनियन और फेडरेशन के कुछ खास पदाधिकारियों अथवा पत्नियों के चरणों में गिरवी रखी होती है, वह दूसरों को नैतिकता का पाठ ज्यादा पढ़ाते दिखाई देते हैं।
अब जहां तक एमबी महाशय की बात है, तो उपरोक्त तथ्य उन पर एकदम सटीक बैठता है। लखनऊ में उनकी पोस्टिंग विशेष रूप से एक फेडरेशन के एक बड़े नेताजी ने ही करवाई थी, जहां रहते हुए उन्होंने नेताजी की सुपुत्री पर विशेष कृपादृष्टि बनाए रखी और पिछले करीब तीन सालों से नेताजी की सुपुत्री को एक दिन में कार्यालय आने और काम करने का कष्ट नहीं दिया, बल्कि उसकी हाजिरी भी वह दूसरे से लगवाते रहे।
इसके अलावा भी उन्होंने नेताजी के कुछ और खास चमचों-चापलूसों पर अपनी मेहरबानी दर्शाई तथा विशेष कमाऊ पदों पर पदस्थ करके उन्हें पद-प्रतिष्ठा तथा अवैध कमाई के कई सुअवसर मुहैया करवाए। इस मौज-मस्ती का पर्याप्त लाभ उनको भी हुआ, अय्याशी भी खूब हुई, और नेताजी की मेहरबानी से अब वह पूरी धन-संपन्नता के साथ दिल्ली मंडल के ज्यादा संपन्न इंचार्ज (सीनियर डीपीओ/को-ऑर्डिनेशन) का पद संभालने के लायक होकर दिल्ली में पदस्थ हो गए हैं। इसका आदेश उत्तर रेलवे मुख्यालय से 21 अगस्त को जारी हुआ था।
बताते हैं कि एमबी साहब की सबसे ज्यादा मेहरबानी राजेश महाजन नामक प्राणी (सीपीआई) पर रही है, जिसे पहले उन्होंने सीपीआई/रिक्रूटमेंट जैसा कमाऊ पद देकर अवैध कमाई का पूरा अवसर दिया और अब जाते-जाते उसे न सिर्फ सीएसडब्ल्यूएलआई/एमपीपी बना गए, बल्कि रिक्रूटमेंट का भी कुछ हिस्सा उसके साथ अटैच कर गए। साथ में एक महिला जूनियर क्लर्क को भी उसके मातहत पदस्थापित कर गए।
त्वरित प्रभाव से लागू यह आदेश एमबी साहब ने 20 जुलाई को जारी किया था। इस खास मेहरबानी के लिए उन्हें जो मोबदला प्राप्त हुआ होगा, उसकी जानकारी तो सार्वजनिक नहीं हुई, परंतु प्रत्यक्ष तौर पर महाजन ने विदाई समारोह में एमबी साब को उनकी शक्लो-सूरत वाला एक फोटो फ्रेम जरूर भेंट किया।
जुलाई में जब उपरोक्त आदेश जारी किया गया था, तब लखनऊ मंडल कार्यालय में जोरदार हंगामा हुआ था और तमाम रेलकर्मियों ने सीनियर डीपीओ (एमबी) के विरुद्ध पक्षपात, भेदभाव एवं भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि सीनियर डीपीओ का खास चहेता राजेश महाजन खुलेआम धन उगाही करके अब तक करोड़ों की संपत्ति बना चुका है।
यह भी कहा गया कि रेलकर्मियों को ईमानदारी एवं कर्मठता का पाठ पढ़ाने वाली नेताजी की यूनियन का वह पदाधिकारी भी है। इस बारे में तब स्थानीय अखबारों में भी बहुत कुछ प्रकाशित हुआ था।
मंडल के अन्य अधिकारियों के अलावा कार्मिक कैडर के भी कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि “वह बहुत ही अनैतिक अधिकारी है।” उन्होंने बताया, “यह सही बात है कि लखनऊ में उसकी पोस्टिंग एक फेडरेशन के एक बड़े पदाधिकारी ने ही करवाई थी, जिससे कि पहले की ही तरह सीनियर डीपीओ/लखनऊ के पद पर उनके पीछे दुम हिलाने वाला प्राणी बैठा रहे और उनके चमचों-चापलूसों-दलालों को उपकृत करता रहे।”
उनका कहना था कि “नेताजी के 90% जोनल/मंडल पदाधिकारी रत्ती भर भी रेल का कोई काम नहीं करते, सिर्फ दलाली-वसूली में व्यस्त रहते हैं।” उनका यह भी कहना था कि “ये महाजन-वहाजन सब नेताजी के दलाल हैं, जो लाशें बेचकर सीजी (दयाधार) भर्तियों की दलाली लाते हैं और नेताजी तथा एमबी जैसे अधिकारियों की खास जरूरतों की पूर्ति करते हैं!”
उन्होंने यह भी बताया कि “इस तमाम गंदगी को ऊपर तक पहुंचाने वाला दिल्ली मंडल का एक पूर्व सीनियर डीपीओ रहा है, जिसने हर जगह गोबर में मुंह डालकर न सिर्फ चवन्नियां उठाईं, बल्कि अपने वरिष्ठों को “शबाब की आपूर्ति” करके खूब चांदी भी काटी और ऐश किया। उसकी यह सफलता देखकर अब एमबी जैसे छुटभैये भी उसके नक्शे-कदम पर चलकर उन्हीं ऊंचाईयों को पाना चाहते हैं। ऐसे में व्यवस्था का भ्रष्टाचार, कदाचार और अकर्मण्यता का शिकार होना तो तय है।”
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