रेलवे बोर्ड अपनी भयावह गलतियों से भी कुछ सीखने को तैयार नहीं!
माना जा रहा था कि इस बार समय से डीआरएम की पोस्टिंग हो जाएगी। परंतु अब जब पैनल वापस आ गया है, तो इस पोस्टिंग में देरी की पुरानी परंपरा जारी रहने की आशंका पैदा हो गई है!
सुरेश त्रिपाठी
ऐसा प्रतीत होता है कि रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) अपनी गलतियों को सुधारने के लिए तैयार नहीं है! विगत कुछ वर्षों में की गई भयानक गलतियों से भी उसने कुछ नहीं सीखा। शायद यही कारण है कि जीएम पैनलों में किए गए फेवर और पक्षपात को अब डीआरएम पैनलों तक विस्तारित करने का प्रयास किया जा रहा है।
बोर्ड के हमारे भरोसेमंद सूत्रों से पता चला है कि डीओपीटी ने हाल ही में पॉलिसी में किए गए बदलावों के हवाले से कुछ निरर्थक कारण बताकर डीआरएम पैनल लौटा दिया। सूत्रों का तो यह भी कहना है कि यह पैनल लौटाया नहीं, बल्कि लौटवाया गया है। इसके चलते अब डीआरएम पोस्टिंग में निश्चित देरी होने की संभावना बन गई है।
सूत्रों का कहना है कि बोर्ड के एक अधिकारी को डीआरएम बनना है, जबकि वह 53 वसंत पार कर चुका है। जबकि पॉलिसी में डीआरएम बनने के लिए 52 साल का क्राइटेरिया (बैरियर) लगाया गया है। अब मात्र एक अधिकारी की डीआरएम बनने की महत्वाकांक्षा के चलते इस पॉलिसी में भी सेंध लगाने की तैयारी हो रही है।
सूत्रों का कहना है कि पॉलिसी में बदलाव या उसे बाइपास करने की स्थिति में इसका लाभ पॉवर (सत्ता) के करीबी केवल एक अधिकारी को मिलेगा। सूत्रों ने यह भी कहा कि “ऊपर से कहा गया है कि आखिर आप लोग (सीआरबी एवं बोर्ड मेंबर) 54 साल कर क्यों नहीं देते!” इस पर बोर्ड कसमसा रहा है, मगर मुँह में जीभ न होने के कारण वह कुछ बोल नहीं पा रहा है।
उल्लेखनीय है कि 7 अक्टूबर को आधे से अधिक वर्तमान डीआरएम का कार्यकाल पूरा हो चुका है, और यह माना जा रहा था कि इस बार समय से डीआरएम की पोस्टिंग हो जाएगी। परंतु अब जब पैनल वापस आ गया है, तो इस पोस्टिंग में देरी की पुरानी परंपरा जारी रहने की आशंका व्यक्त की जाने लगी है।
जानकारों का कहना है कि बोर्ड के इसी पक्षपात, मनमानी, जोड़तोड़ और फेवर अथवा मुँहदेखे नीति-नियम बनाने के कारण डीआरएम पोस्टिंग में हर बार देरी होती रही है। इसके चलते ही डीओपीटी पिछले कई सालों से रेल मंत्रालय के पीछे पड़ा हुआ था कि “बताओ तो सही कि आखिर डीआरएम पोस्टिंग आप लोग करते कैसे हो! इसकी पॉलिसी क्या है!”
प्राप्त जानकारी के अनुसार डीओपीटी-रेल मंत्रालय पर कई सालों से लगातार यह दबाव बना रहा था कि जीएम/डीआरएम पैनल कैलेंडर वर्ष के अनुसार एडवांस में तैयार कर लिए जाएँ। बताते हैं कि इसके अनुरूप जीएम पैनल बनाने का मामला तो हल हो गया है, परंतु डीआरएम पैनल रेलवे बोर्ड के पुराने बहानों के चलते अभी जुलाई से दिसंबर तक का ही बना है। उसमें भी खुरपेंच की जा रही है।
जानकारों का यह भी कहना है कि यह पहली बार है जब डीआरएम पैनल डीओपीटी को भेजा गया है। इससे पहले उपरोक्त कारणों से रेलवे बोर्ड स्वयं डीआरएम पोस्टिंग अपने स्तर पर अपने तरीके से स्वयं ही कर देता था, क्योंकि यह कोई प्रमोशन नहीं है। यही कारण रहा है कि डीआरएम पोस्टिंग की एज-क्राइटेरिया “अपने चहेतों” को फेवर करने के लिए 52 साल का बैरियर रहते हुए कभी 53, तो कभी 54 की जाती रही।
कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि यदि ‘ऊपर’ की बात मानकर 54 साल किया जाता है, तो डीओपीटी इस पर मान जाएगा, इसकी गारंटी क्या है, क्योंकि तब पैनल में शामिल होने के लिए अन्य अधिकारी भी तो एलिजिबल हो जाएँगे! उनका यह भी मानना है कि डीआरएम पोस्टिंग के लिए एज-बैरियर लगाने की आवश्यकता ही क्या है? अधिकारियों की योग्यता और कार्य क्षमता देखकर-पारदर्शी चयन करके डीआरएम बनाए जाएँ।
इस पर एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी का मत था कि एज-बैरियर हटाने पर हो सकता है कि डीआरएम भी जीएम से सीनियर पोस्ट हो जाएँ, जैसा कि गलत और अपारदर्शी नीति के तहत चयनित कुछ जीएम अपने कई प्रमुख विभाग प्रमुखों (पीएचओडी) से जूनियर हैं और इसीलिए वे हाथ-पैर जोड़कर उनसे काम करा रहे हैं। उसने इस पर बोर्ड का भी उदाहरण देते कहा कि हाल में रिटायर हुए मेंबर इंफ्रास्ट्रक्चर – जो कि गलत पॉलिसी और अपारदर्शी चयन नीति का परिणाम थे – से उसके मातहत तीन एडिशनल मेंबर उससे सीनियर थे।
बहरहाल, जानकारों का मानना है कि किसी एक व्यक्ति को लाभ पहुँचाने या फेवर करने के लिए सिस्टम-नीति को बिगाड़ने का यह कुत्सित खेल अब निश्चित रूप से बंद होना चाहिए। पिछले 10 सालों में लिए गए “सिरझटक” निर्णयों का दुष्परिणाम सरकार और मंत्री ने देख लिया है, जिन पर सरकार की बहुत बड़ी किरकिरी हो रही है! इस विषय पर शीघ्र ही विस्तार से सभी मुद्दों का विश्लेषण प्रकाशित किया जाएगा!