मध्य रेलवे-सबर्बन लॉबी विवाद: काने को काना मत कहो काना जाएगा रूठ, हौले-हौले पूछ लो तेरी कैसे गई फूट!
रेल प्रशासन की स्थिति कुछ इस कहावत जैसी है। पिछले दो दिनों से मध्य रेलवे, मुंबई मंडल की सबर्बन लॉबी में गंदगी और सड़ांध के चलते मोटरमैन/गार्ड बाहर खुले कॉंकोर्स में बैठकर ड्यूटी करने को विवश हुए हैं। इसका कारण यह बताया गया कि सबर्बन लॉबी में मरे हुए चूहों की सड़ांध/बदबू से वहाँ उनका बैठना मुहाल हो गया था। सफाई ठीक से नहीं हो रही है। मंडल प्रशासन ने कैंटीन कर्मियों एवं सदस्यों पर चूहे मारने की दवा डालने का आरोप लगाया है। तथापि हंगामा बढ़ने और मामला मीडिया में उछलने पर मंडल प्रशासन ने सफाई एजेंसी पर पाँच लाख का जुर्माना लगाया है, जबकि मोटरमैनों/गार्डों का मानना है कि संबंधित बदनाम एजेंसी को तुरंत टर्मिनेट करके प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, क्योंकि अक्सर यह देखा गया है कि मामला ठंडा पड़ने के बाद एजेंसी का जुर्माना माफ कर दिया जाता है।
हाल ही में नेता प्रतिपक्ष ने एनसीआर-दिल्ली की लॉबी में जाकर वहाँ के लोको पायलट्स/गार्ड्स की समस्याओं को सुना। इस पर रेलवे के दोनों मान्यता प्राप्त लेबर फेडरेशनों को मीडिया में रेल प्रशासन के बचाव में बयान जारी करना पड़ा। रेलमंत्री ने तो रेलकर्मियों/अधिकारियों – जो कि स्वयं उनकी ही अनीतियों से प्रताड़ित हैं और जिनका कोई भविष्य नहीं रह गया है – की दुहाई देकर/आड़ लेकर नेता प्रतिपक्ष पर गहरा रोष प्रकट किया। कहने का तात्पर्य यह है कि जब भी विपक्ष से ऐसी कोई आलोचना होती है, तब उस मुद्दे पर रेल प्रशासन सतर्क होकर चीजों को दुरुस्त करता है, मगर प्रस्तुत मामले में मुंबई मंडल प्रशासन ने ऐसा कुछ भी करने की सतर्कता नहीं दिखाई। जबकि एक दिन पहले तक रेलमंत्री स्वयं मुंबई में रहकर रेल कार्यों की समीक्षा कर रहे थे।
जबकि होना तो यह चाहिए था कि नेता प्रतिपक्ष (#LOP) #NCR लॉबी की घटना – जिस पर मंत्री ने बड़ा रोष प्रकट किया – के बाद पूरी भारतीय रेल की सभी रनिंग लॉबियों का बारीकी से निरीक्षण किया जाना चाहिए था और रनिंग स्टाफ की शिकायतों को दूर किया जाता। ऐसी किसी भी अनपेक्षित घटना के बाद यही होता भी रहा है अब तक! पर अब सब निरंकुश हैं! किसी को कोई परवाह नहीं! अर्थात्, रेल अधिकारियों में मंत्री का कोई भय नहीं रह गया है। और यह भय हो भी क्यों, जब छँटे हुए अयोग्य, अकर्मण्य और अक्षम लोगों को चुन-चुनकर डीआरएम/जीएम/बोर्ड मेंबर बनाए जाने के चलते लेवल-14-15 के अधिकारी पूरी तरह से हतोत्साहित हो चुके हों, उनका पूरा कैरियर अंधकारमय हो चुका हो।
डीआरएम/मुंबई मंडल, मध्य रेलवे भी इन्हीं में से एक हैं, जिन्हें फील्ड में काम करने का अनुभव लगभग नगण्य है। अपनी सुविधा के अनुसार और #सुधीरकुमार के रिश्तेदार होने के नाते उनकी मेहरबानी से पहले मुंबई में रेल एनर्जी मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड (#REMCL) में डेपुटेशन, फिर मध्य रेलवे मुंबई में ही #CEDE, फिर डीआरएम/मुंबई में ही पोस्टिंग, और क्या चाहिए आराम से यूट्यूब पर सेल्फ प्रमोशन करने के लिए! यह डीआरएम/मुंबई मंडल, मध्य रेलवे की सीधी जवाबदेही है। लेकिन मुंबईया बाबू, जो वसीयत में मुंबई की पोस्टिंग लिखाकर आए हैं, उन्हें भला कोई क्या कह सकता है? और जो फिलहाल डीआरएम बनकर पहली बार मुंबई से बाहर गए हैं, उन्हें फिर मुंबई वापस आना है। किंकर्तव्यविमूढ़ मंत्री, कमजोर बोर्ड, GM/PHOD-कुल मिलाकर भैंस अभी भी पानी में ही है।
खाते हैं रेल की, बजाते हैं ठेकेदारों की!
बहरहाल, कैसी विडंबना है कि रेल अधिकारी खाते रेलवे की हैं और ड्यूटी बजाते हैं ठेकेदारों की! आज भारतीय रेल में हर जगह यही विषम परिस्थिति मुंह बाए खड़ी है कि डीआरएम केवल कॉन्ट्रैक्ट वर्क की सोच रहे हैं, कहाँ दिया जाए, कैसे दिया जाए, किसको दिया जाए, इस पर ही उनकी एक्सरसाइज चलती रहती है, या फिर मुख्यालयों के लगभग हर चेंबर में शेयर मार्केट की ट्रेडिंग चालू है। रेलवे तो फोकट में इन्हें वेतन दे रही है। कमीशन पर पल रहे अधिकारियों का रेलवे से मिलने वाले वेतन पर तो कोई ध्यान भी नहीं है। वह तो ससुराल से मिले दहेज की तरह इनके अधिकार क्षेत्र में आता है। यह कहना है तमाम रेल कर्मचारियों का।
कर्मचारी कहते हैं कि रेल कर्मचारी या तो चुपचाप प्रताड़ित होते रहें, सिर झुकाए हुए गुलामों की तरह काम करते रहें, या फिर उन्होंने यदि कभी कोई आवाज उठाने की कोशिश की, तो रेल प्रशासन द्वारा उस समस्या का हल ढूंढ़ने के बजाय सीधे तौर पर कर्मचारियों और यूनियनों को अन्य बातों पर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया जाता है। किसी न किसी बहाने से अधिकारियों द्वारा अपने पाप का ठीकरा कर्मचारियों के सिर ही फोड़ा जाता है। अनेक वर्षों से यूनियनों द्वारा उठाए गए ऐसे ढ़ेरों मुद्दे हैं, जिन पर केवल वर्षों से मीटिंग होती रहती है, लेकिन आज तक उनका हल नहीं ढूंढ़ा गया। और ढूंढ़ना भी नहीं है, क्योंकि कर्मचारियों की बात न मानने की रेल प्रशासन ने कसम खाई हुई है।
वह कहते हैं कि अभी दोनों फेडरेशनों का जो संयुक्त बयान आया है कि “हमारे प्रयास से 1800 सहायक चालकों की नियुक्ति की जा रही है।” यह एकदम झूठ और कोरी बकवास है। लगातार हो रहे एक्सीडेंट में यह बात सामने आई है कि रेल में रनिंग स्टाफ की भारी शॉर्टेज है। रेल चालक पारिवारिक और मानसिक तौर पर बुरी तरह से प्रताड़ित होकर ओवर ऑवर्स काम कर रहा है। उस पर न चाहते हुए भी बेहद भारी मन से, और खासतौर से जब एक नेता विपक्ष दिल्ली के चालकों की लॉबी में घुसकर चालकों की समस्याएँ सुनता है, तो दूसरे दिन ही चालकों के बहुत सारे रिक्त पदों को भरने का आदेश निकलता है। आखिर ये इतने रिक्त पद एक दिन में तो खाली हुए नहीं होंगे? खैर, यह एक अलग मुद्दा है। इस पर फिर कभी चर्चा होगी।
पिछले दो दिनों से सीएसएमटी की सबर्बन लॉबी के मोटरमैनों और गार्डों द्वारा बाहर बैठकर काम किया जा रहा है, क्योंकि अंदर अनेकों चूहे मर गए और उनकी बदबू से वहां बैठना दूभर हो गया। इसीलिए मजबूरन स्टाफ लॉबी के बाहर बैठकर अपना कार्य कर रहा है। तब भी प्रशासन की बेशर्मी की हद यह है कि अपने फेलियर की नैतिक जिम्मेदारी न लेते हुए लॉबी की आंतरिक व्यवस्था पर ही दोष मढ़ने का कुत्सित प्रयास कर एक नैरेटिव गढ़ा जा रहा है कि कैंटीन कमेटी के एक सदस्य द्वारा चूहे मारने की दवा डाली गई, जिसके कारण चूहे मर गए। यह मंडल प्रशासन की एक दुष्ट प्रवृत्ति और पूर्वाग्रही मानसिकता को दर्शाता है।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि जो मोटरमैन/गार्ड बाहर बैठे थे, वह भी मास्क या रूमाल बांधे हुए थे, क्योंकि बदबू इतनी अधिक थी कि लॉबी के सामने से गुजरने पर अंदर की बदबू बाहर तक आ रही थी। मोटरमैनों का कहना है कि लॉबी में पेस्ट कंट्रोल किया गया है, मंडल प्रशासन द्वारा ऐसा बोलकर एजेंसी को बचाया जा रहा है। उनका कहना है कि जो एजेंसी नियुक्त है उसके साथ डीआरएम/जीएम सफाई का विधिवत निरीक्षण क्यों नहीं करते? बाकी सारे कार्यालयों में भी एजेंसी के सफाईकर्मी इक्का-दुक्का ही दिखाई देते हैं। ऑफिस के टॉयलेट गंदे रहने लगे हैं, उनमें हैंड वॉश, और फिनेल गोली या सुगंधित प्रसाधन सामग्री कभी नहीं रखी जाती है। सारे डस्टबिन कचरे से भरे रहते हैं। पहले प्लेटफार्म पर बैटरी चालित सफाई कार घूमती थी, वह भी अब कहीं दिखाई नहीं देती है। इस एजेंसी ने शायद सिस्टम में घुसकर सारे सिस्टम को ही हड़प कर लिया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सीएसएमटी सबर्बन लॉबी में जब चूहों का आतंक धीरे-धीरे बढ़ने लगा, तो मोटरमैनों ने प्रशासन को बार-बार अवगत कराया। लेकिन उनकी नहीं सुनना था, तो नहीं सुना। मोटरमैनों ने बताया कि इससे परेशान होकर सबर्बन कैंटीन कमेटी द्वारा चूहे पकड़ने की चार जालियां यानि रैट कैचर लगाए गए। इन जालियों में प्रतिदिन अनेकों चूहे फंसते हैं। उनको कहीं बाहर जाकर दूर छोड़ा जाता है। यदि कैंटीन कमेटी को जहर डालकर ही चूहों को मारना होता, तो सैकड़ो रुपये की रैट कैचर क्यों खरीदना पड़ा?
आजकल चूहे मारने की जो दवाएँ आ रही हैं, यदि चूहा उन्हें खाता है, तो उसके शरीर में ऑक्सीजन की कमी होती है और वह खुले में भागता है। परंतु यह सारे मरे हुए चूहे सेंट्रलाइज्ड एसी के डक्ट में, सबर्बन के रूफ में लगी हुई सीलिंग के ऊपर ही मरे पाए गए। ऐसा क्यों हुआ? क्या प्रशासन इसका कोई जस्टिफाइड उत्तर दे पाएगा? जिस मंडल प्रशासन से सबर्बन के टॉयलेट तक साफ नहीं रखे जा पा रहे हों, आए दिन टॉयलेट ब्लॉक पड़े रहते हों, गंदगी बाहर निकल कर बहने लगती हो, अनेकों फ्लश खराब रहते हों, जहाँ मोटरमैनों को हाथ धोने के लिए लिक्विड सोप तक उपलब्ध न कराया जाता हो, लिक्विड सोप की बोतल में पानी भर के रखा जाता हो, पीने के लिए पानी की ऐसी व्यवस्था की गई कि लॉबी में जो भी वाटर डिस्पेंसर लगे, सब बिगड़े पड़े हैं।
आज स्थिति यह है कि रेलवे के लिए काम करने वाले मोटरमैन, गार्ड अपने पीने के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था हर लॉबी में खुद कर रहे हैं। बैठने के लिए सोफा/चेयर की व्यवस्था कर रहे हैं। चूहे पकड़ने के लिए रेट कैचर लगा रहे हैं। मच्छर मारने के लिए उसकी मशीन लगा रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपने कार्यक्षेत्र को ऐसा रखना है कि बीमार न हो जाएँ, वरना अस्पताल जाएँगे तो डॉक्टर सिक में नहीं रखेगा और सीनियर क्रू-कंट्रोलर से बोलेंगे तो वह इतना गोबर-गणेश और कम दिमाग का है कि छुट्टी भी नहीं दे पाएगा।
जो व्यक्ति लोको इंस्पेक्टर के रूप में पूरी तरह नकारा साबित हुआ हो, वह व्यक्ति सीएसएमटी सबर्बन का सीनियर क्रू-कंट्रोलर बनकर बैठा है। उससे स्टाफ कितनी मानवता की उम्मीद कर सकता है? यहाँ मोटरमैन अपने खाने, नाश्ते, चाय की व्यवस्था खुद करते हैं। सबर्बन में जो कैंटीन कार्यरत है, उसमें कहीं भी खाना नहीं बनता है। जब खाना ही नहीं बनता तो वहाँ खाद्य वस्तुओं का भंडारण होने का सवाल ही नहीं उठता। प्लेटफार्म नंबर 7-8 पर बनी बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर इस कैंटीन का बेस किचन है। वहीं सारा रॉ-मटीरियल रखा जाता है, और वहीं से खाना बनकर इस सबर्बन कैंटीन में आता है।
खाना गरम करने की मशीन का भी बंदोबस्त कैंटीन कमेटी के द्वारा ही किया गया है। जिसमें बर्तनों में खाना रख दिया जाता है और खाना मशीन के द्वारा गर्म बना रहता है। मंडल प्रशासन की बेशर्मी यह है कि अपने खाने के लिए प्लेट, गिलास, थालियों का बंदोबस्त भी खुद मोटरमैनों द्वारा ही किया जा रहा है। जबकि कैंटीन और रनिंग रूम में ये चीजें उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी मंडल प्रशासन की है। कैंटीन में चाय के अलावा कुछ नहीं बनाया जाता है। जब किसी तरह का खाना वहाँ नहीं बनता, भंडारण भी नहीं रहता, तो कैंटीन से आकर्षित होकर चूहे आने का प्रश्न ही नहीं उठता।
यह बात अलग है कि इस सबर्बन कैंटीन से 24 घंटे चलने वाली लोकल ट्रेनों के मोटरमैन/गार्ड अपने समय पर चाय नाश्ता खाना इत्यादि का बंदोबस्त स्वयं कर लेते हैं। इसके साथ ही तमाम रेलकर्मी जो कि सीएसएमटी में कार्यरत हैं, वह भी इस कैंटीन का लाभ उठाते हैं। मंडल प्रशासन को शायद यही बात अखरती है कि जिन कांट्रेक्टरों को सीएसएमटी की कैंटीन और कैफेटेरिया का कांट्रेक्ट दिया हुआ है, उनकी मोटी कमाई इसके कारण मारी जाती है। वस्तुतः यही कारण है कि यह सबर्बन कैंटीन मंडल प्रशासन की आंख की किरकिरी बनी हुई है। यह कहना है तमाम मोटरमैनों का।
उनका कहना है कि किसी न किसी रूप में आए दिन अधिकारियों के द्वारा इस लॉबी और कैंटीन का इंस्पेक्शन होता रहता है। कोई न कोई बहाना बनाकर – हेरिटेज बिल्डिंग के नाम पर या सेंसिटिव जगह है, आग लग गई तो गाड़ियां बंद हो जाएगी – अथवा किसी अन्य बहाने से मंडल प्रशासन द्वारा इस कैंटीन को बंद कराने का पिछले कई वर्षों से प्रयास जारी है। कभी इस कैंटीन को अवैध बताया जाता है। जबकि मंडल प्रशासन द्वारा बाकायदे नोटिस जारी करके इस कैंटीन की कार्य समिति के सदस्यों का प्रतिवर्ष चुनाव कराया जाता है। चुनाव की यह सारी प्रक्रिया सीनियर डीपीओ, मुंबई मंडल, मध्य रेलवे के द्वारा कराई जाती है। ऐसे में इस कैंटीन को अवैध भी नहीं कहा जा सकता।
स्टाफ को राउंड द क्लॉक चाय, नाश्ते, खाने की कम से कम समय में अच्छी क्वालिटी के भोजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है, यानि इसमें मंडल प्रशासन को इन कर्मचारियों द्वारा सहयोग ही प्रदान किया जा रहा है। इस कैंटीन का खाना मंडल अधिकारियों से लेकर सीआरबी तक ने टेस्ट किया है। पूर्व और वर्तमान रेलमंत्री भी इस कैंटीन की चाय का स्वाद ले चुके हैं। रेल प्रशासन द्वारा रनिंग रूम में जो खाना दिया जाता है, उससे प्रतिदिन लोग त्रस्त रहते हैं। कभी खाने में कॉक्रोच निकलता है, कभी बाल निकलता है, कभी बासी खाना होने के कारण सड़ांध आती है। इस बात की आए दिन स्टाफ द्वारा शिकायत होती रहती है, लेकिन चूंकि उसे कोई ठेकेदार चलाता है, इसीलिए प्रशासन के कान पर जूं भी नहीं रेंगती, और यदि कभी स्टाफ द्वारा कोई आक्रमक रुख अपनाया जाता है, तो सारा प्रशासन उस कांट्रेक्टर की ढ़ाल बनकर खड़ा हो जाता है।
समय बहुत तेजी से बदल रहा है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अब रेलवे में न के बराबर ही बचे हैं। अथवा केवल अनुकंपा के आधार पर नौकरी करने वाले और मेडिकली डिकैटैगराइज लोग ही रेलकर्मी के रूप में चतुर्थ श्रेणी में कार्यरत हैं। बाकी तो सब ठेकेदारों के हाथ में जा चुका है। तृतीय श्रेणी कर्मचारियों का भी अधिकांश कार्य ठेकेदारों के हाथ में है। अब नंबर अधिकारियों का ही लगने वाला है। इसके लिए वे भी तैयार रहें, या फिर सुधर जाएँ और रेल तथा राष्ट्र के बारे में सोचना चालू कर दें, यह सभी के हित में होगा। बहरहाल, कर्मचारी कहते हैं कि डीआरएम/मुंबई के बारे में कहने/बताने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन यदि वे अपनी कार्य प्रणाली सुधार लें, तो शायद रेल में उनका कुछ उल्लेखनीय योगदान हो सकता है।
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी