रेलवे के पीआरओ कैडर को कब मिलेगा मोदी जी के “सबका साथ, सबका विकास” संकल्प का लाभ
- 52 पोस्ट #पीआरओ की !
- 3 पोस्ट #सीनियर-पीआरओ की !
- 9 पोस्ट #सीपीआरओ की !
अर्थात् पहले 52 फीट की चौडी सड़क, फिर 3 फीट की संकरी सड़क और फिर संकरी सड़क को थोड़ा सा बढ़ाकर 9 फीट की बनाई गई, और सबसे चौंकाने वाली बात यहां यह है कि 52 फीट की सड़क पर चलने वाले लोगों में से एक को भी 9 फीट वाली सड़क पर नहीं चलने दिया जा रहा है, और ऐसी व्यवस्था बना दी गई है कि ये कभी इस 9 फीट वाली सड़क पर शायद ही चल सकेंगे।
जी हाँ, चौंकिए मत, उपरोक्त तथ्य बिल्कुल सही है, और आपने इसे सही पढ़ा है। #मोदीजी के संकल्प “सबका साथ, सबका विकास” की धज्जियां उड़ाते हुए रेल प्रबंधन ने अपने ही जनसंपर्क विभाग के लिए ऐसी जटिल व्यवस्था बना दी है कि जनसंपर्क विभाग का कोई भी अधिकारी 9 फीट वाली सड़क अर्थात जो 9 पोस्टें मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (#CPRO) की हैं, उन तक कभी पहुंच ही नहीं सकता।
रेल प्रशासन अपने ही बनाए नियमों की धज्जियां कई सालों से उड़ाता आ रहा है और बड़ी बेशर्मी के साथ जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों का प्रमोशन अत्यंत छलपूर्वक तरीके से कभी भी पूरी तरह नहीं किया।
भारत सरकार के #गजट-नोटिफिकेशन के अनुसार सीनियर पीआरओ की 8 नियमित पोस्ट पर रेगुलर प्रमोशन किया जाना चाहिए था, पर रेल प्रबंधन ने छलपूर्वक और कपटपूर्ण तरीके से इन पोस्टों को दूसरे विभागों में ट्रांसफर कर दिया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूरी तरह से गैर-कानूनी ठहराया गया है और इन पदों को जनसंपर्क विभाग में वापस करने का निर्देश दिया गया था। परंतु रेल प्रबंधन ने केवल तीन पोस्टें वापस कीं और बाकी पोस्टों पर दूसरे विभागों के अधिकारियों को नियमित प्रमोशन देता आ रहा है, रेल प्रबंधन की क्या मजबूरी या चालबाजी थी, अब यह तो रामलला ही जानें!
आश्चर्यजनक बात यह थी कि यह सिलसिला चालीस सालों तक चलता रहा, पर भारत सरकार के गजट नोटिफिकेशन में इसका संशोधन भी नहीं किया गया, जो कि यह दर्शाता है कि रेल प्रशासन का यह कारनामा पूरी तरह से गैर-कानूनी था। अगर उन 8 पोस्टों, जो कि गजट नोटिफिकेशन में थीं, उन पर हर साल #डीपीसी करके रेगुलर प्रमोशन किया जाता, तो जनसंपर्क विभाग में रुकावट (#stagnation) की कोई समस्या ही नहीं आती। आज तो स्थिति यहां यह है कि 20-25 साल से अधिकांश जनसंपर्क अधिकारी एक ही पद पर काम कर रहे हैं, जबकि दूसरे विभागों में उनसे कई-कई साल बाद प्रमोट हुए लोग विभाग प्रमुख बन चुके हैं।
अब 2024 में तो रेल प्रबंधन ने हद ही कर दी है। जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों के कैरियर की बेहतरी के लिए दो साल पहले सारे अधिकारियों से सुझाव मंगाए गए थे, सबको लगा कि देरी से ही सही, पर मोदीजी के “सबका साथ, सबका विकास” के संकल्प में जनसंपर्क विभाग के लिए भी रेलवे के अन्य विभागों के बाकी अधिकारियों की तरह ही उनका भी कैरियर प्रोग्रेशन अब हो पाएगा।
परंतु रेलवे के विचित्र प्रबंधन ने उनकी सारी आशाओं पर कुठाराघात करते हुए, बिना कोई चर्चा किए ही पदों की संख्या बढ़ाना तो दूर, जो 8 पद सीनियर पीआरओ के थे, उनको भी घटाते हुए मात्र 3 कर दिया। साथ ही पदोन्नति परीक्षा के लिए जो समय अर्हता थी, उसको भी बढ़ाकर 3 साल से 6 साल कर दिया। यानि कुछ अच्छा होने के बजाय इतने नकारात्मक तरीके से इसे किया गया है कि मैनेजमेंट का इससे घटिया उदाहरण शायद ही पूरे भारत में किसी भी संगठन में देखने को मिलेगा।
आज तकनीकी उन्नति के इस दौर में जब सकारात्मक प्रचार के बिना संगठनों की कल्पना भी नहीं की जा सकती, तब इस तरह से हतोत्साहित करने वाले निर्णय कैसे लिए गए, वह भी एक ऐसे विभाग के लिए, जो हमेशा रेलवे की सकारात्मक और सार्थक छवि बनाने में लगा रहता है, यह समझ से परे है।
क्या ये गलतियां ठीक हो पाएंगी? क्या कभी रेलवे के पीआरओ कैडर का भी विकास हो पाएगा? क्या कभी उन्हें भी उचित प्रमोशन मिल पाएंगे? क्या कभी उनके साथ भी न्याय हो पाएगा? क्या #रेलमंत्री को पीआरओ कैडर पर हो रहे इन तमाम घोर अन्यायों के बारे में पता है? फिलहाल मोदी जी के दस साल के सफल कार्यकाल में ये तमाम प्रश्न अनुत्तरित हैं!
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी