प्रधानमंत्री जी, डीआरएम पोस्टिंग में तुरंत ‘यूसीसी’ लागू की जाए!

DRM की पोस्टिंग में अवैधानिक और अमानवीय एज-क्राइटेरिया को लेकर बदनामी का सारा दाग रेलमंत्री एवं सरकार पर लग रहा है, लेकिन असली खेल कोई और ही खेल रहा है!

माननीय प्रधानमंत्री जी,

समान नागरिक संहिता – कॉमन सिविल कोड (#UCC) से आप मनसा वाचा कर्मणा से अगर सहमत हैं, तो यह देश पर अवश्य लागू होना चाहिए मगर उससे सबसे पहले और तुरंत अगली ही डीआरएम पोस्टिंग से इसे भारतीय रेल् में लागू कीजिए और #DRM की नियुक्ति में 52 साल के अवैधानिक अमानवीय Age-Criteria-Code (#ACC) को समाप्त कीजिए, क्योंकि यह भी समानता के आधार पर नहीं, उम्र के क्राइटेरिया के आधार पर रेल में एक विशिष्ट तथाकथित अल्पसंख्यक समूह खड़ा करता है और उसको पालता-पोषता है।

महोदय, #DRM की पोस्टिंग में असली खेल रेलवे बोर्ड के शीर्षस्थ अधिकारी और खान मार्केट गैंग (#KMG) एवं ऑल इंडिया डेलही सर्विस (#AIDS) के सदस्य कर रहे हैं। अब यह तो पता नहीं चल पाया है कि रेलमंत्री की सहमति से यह कर रहे हैं या रेलमंत्री के दूसरी प्राथमिकताओं पर अधिक व्यस्त रहने का फायदा उठाकर ले खुद यह खेल कर रहे हैं।

बहरहाल, इंजीनियरिंग विभाग के ही लोग दबी जबान में कह रहे हैं कि अपने चहेते लोगों को महत्वपूर्ण डिवीजन में बैठाने की प्लानिंग चल रही है, क्योंकि कुछ अति खास लोग उस लिस्ट में नहीं हैं, जिसके आधार पर मार्च 2023 तक पोस्टिंग की गई है। चूँकि कुछ अति चहेते जो 93 और 94 #IRSE के बैच में हैं – जिनका मार्च 2023 में पोस्टिंग ऑर्डर जिस लिस्ट के हिसाब से हुआ, उसके प्रभावी रहने पर डेढ़ साल बाद ही नंबर आना था – को एडजस्ट करने की अन्यायपूर्ण प्रक्रिया की जा रही है। इसीलिए न्याय और विवेक को किनारे कर फिर से जुलाई 1970 के बाद के लोगों को ही एलिजिबल मानकर #DRM पोस्टिंग की कवायद शुरू की गई है।

प्रधानमंत्री महोदय, #DRM की पोस्टिंग में खान मार्केट गैंग (#KMG) और ऑल इंडिया डेलही सर्विस (#AIDS) की मनमानी और नग्न फेवर का सबसे ज्वलंत उदाहरण है अभी बालासोर दुर्घटना में खड़गपुर के #DRM को हटाकर सीधे 94 बैच के एक ऐसे अधिकारी को #DRM बना देना जिसके पास न तो दक्षिण पूर्व रेलवे में कार्य का विशेष अनुभव है और न ही 52 साल के क्राइटेरिया के अलावा कोई अन्य योग्यता, जो उल्लेखनीय हो। अभी #IRSE 92 बैच के ही लोग #DRM की पोस्टिंग के लिए बचे हुए हैं तो इस तरह के अधिकारी की #DRM खड़गपुर के पद पर पोस्टिंग न सिर्फ #DRM पोस्टिंग में हो रहे अन्यायपूर्ण तथा मनमाने अविवेकपूर्ण निरंकुश रवैये को दर्शाता है, बल्कि बालासोर दुर्घटना के बाद रेलवे का शीर्षतम नेतृत्व किस हद तक असंवेदनशील हो सकता है और व्यक्तिगत स्वार्थ तथा कबायली मानसिकता रेल व्यवस्था पर कितनी हावी है, इसका परिचय भी देती है।

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रेलवे के इन्हीं के विभाग के कई अधिकारी इन्हें छुपा और चुप्पा बड़ा शिकारी बताते हैं। लेकिन आश्चर्य यह है कि #DRM की पोस्टिंग में अवैधानिक और अमानवीय एज-क्राइटेरिया को लेकर बदनामी का सारा दाग रेलमंत्री एवं सरकार पर लग रहा है जिससे इतनी उम्मीद जगी थी, लेकिन असली खेल कोई और ही खेल रहा है।

ऐसा तभी होता है जब राजा विभिन्न संवाद संचार माध्यमों से बताई जा रही बातों को अपने दंभ में दरकिनार करता चला जाता है और फील्ड में काम करने वाले अपने नीचे के लोगों से सीधे संवाद में नहीं होता है।

ऐसी स्थिति में ही विसंगतियों से भरपूर विशेष कबीले के लोगों के स्वार्थ सिद्ध करने वाले नियम बनते हैं और बहुसंख्यक तबका उस मूलभूत न्याय से भी वंचित रह जाता है जो आम तौर पर उसे न्यायपूर्ण व्यवस्था में सहज ही मिल जाना चाहिए।

माननीय प्रधानमंत्री जी तथा रेलमंत्री जी, कृपया #DRM की पोस्टिंग में हो रहे इस अन्यायपूर्ण निर्णय को स्वयं देखें और अपने विवेक से निर्णय लें, क्योंकि अगर आप 2022 के जनवरी/फरवरी में #EQI की लिस्ट देखेंगे, जो #DRM की पोस्टिंग के लिए जारी की गई थी, जिसमें 76 अधिकारियों का नाम था, उसकी पोस्टिंग को पूरी तरह खत्म किए बिना अगर कोई नई लिस्ट फिर से बनाकर अमल की जाती है तो इससे सिर्फ कोर्ट केस, शिकायतें, ज्ञापन और व्यवस्था के प्रति असंतोष तथा अविश्वास का दौर शुरू होगा। आपके लोग और उसमें भी बहुसंख्यक आपसे न्याय की अपेक्षा रखते हैं।

अगर आप मार्च 2023 तक जिस लिस्ट के आधार पर #DRM पोस्टिंग किए हैं उसी को पूरी तरह खत्म होने के बाद से उसी निरन्तरता में दूसरी लिस्ट #DRM की बनाते हैं तो इसमें किसी का नुकसान नहीं है, 52 साल वाले को भी नहीं, और न ही आपको और आपकी सरकार को। उल्टे आपको पहली बार बहुत बेहतरीन #DRM मिल जाएंगे जो शायद एज-क्राइटेरिया के कारण सपने में भी #DRM बनना नहीं सोचे होगें लेकिन आपकी 2022 की लिस्ट ने हजारों अधिकारियों में आशा का संचार किया था।

आपके सलाहकार ये अवश्य बोलेंगे कि उसमें भी एज-क्राइटेरिया था, जिसमें जुलाई 1969 के लोगों को रखा गया था। लेकिन लोगों ने उसमें नीतियों में बदलाव की झलक इसलिए महसूस की कि आपने और पूर्व #CRB ने यह जानते हुए भी रिलैक्स क्राइटेरिया जुलाई 1969 का रखा था कि जब तक यह पोस्टिंग होंगी इसके बहुत से लोग 53+ की ब्रैकेट में होंगे और कायदे से वे वर्तमान #KMG एवं #AIDS की तरह के कबायली स्वार्थ से भरे होते तो 2022 में हुई किसी भी #DRM की पोस्टिंग के लिए परंपरागत जुलाई 1970 के बाद वाले लोगों को ही एलिजिबल मानते हुए लिस्ट निकालते, फिर आप इस बार जुलाई 1971 के बाद वालों को अगस्त की पोस्टिंग के लिए फिट मानते। लेकिन पूर्व #CRB और रेलमंत्री के लोगों ने सम्वेदनशीलता दिखाई और पैनल बनाते समय क्राइटेरिया रिलैक्स रखा।

यहां यह दलील नहीं दी जा सकती कि इस बार भी जुलाई 1970 ही की जा रही है, क्योंकि एक तो आपके निर्णय में देरी के कारण #DRMs की पोस्टिंग में एक साल से ज्यादा की देरी हुई जिससे जितने लोग सहज तरीके से सही समय पर पैनल बनने से सभी #DRM बन गए होते लेकिन ऐसा न होने से पैनल के बहुत से लोग बाहर हो जाएंगे। दूसरा हर सर्विस में हर साल पैनल बनने के कारण उतनी ही संख्या या उससे ज्यादा लोग पैनल में आने के बावजूद भी हर साल पैनल बनाने की बीमारी के कारण अब हमेशा अयोग्य हो जाया करेंगे। खासकर वैसे लोग जो 23 साल की उम्र के बाद सर्विसेस में आए हैं, वे हमेशा अनिश्चितता की स्थिति में रहेंगे, जबकि अगर व्यवस्था सही समय पर काम करे तो 25 साल की उम्र में सर्विस जॉइन किए हुए लोग भी इसी क्राइटेरिया के आधार पर #DRM बन सकते हैं। लेकिन यह रेल का ही खेल है कि समान सर्विस में 1992 बैच वाले की लिस्ट में होने के बावजूद भी 92 और 93 बैच को छोड़कर रेलवे बोर्ड सीधे 94 बैच से अपने जैसा नूर खोजकर उसे सीधे #DRM खड़गपुर बना देता है। यह है रेल का नियम और न्याय व्यवस्था!

महोदय, यह ठीक वैसी ही तुगलकी सोच है कि किसी स्टेशन पर राजधानी के 200 पैसेंजर हैं और आपको एक मिनट का स्टापेज दिया जाए यह कहकर कि राजधानी को अपनी पंक्चुअलिटी मेनटेन करनी है, इसलिए इतनी देर में जो चढ़ सकता है, चढ़े, वर्ना भाड़ में जाए या वहीं पटरियों पर कट-मर जाए। जहां मुख्य उद्देश्य की ही समझ इतनी दूषित और असंवेदनशील हो कि लोग पैसेंजर की जगह ट्रेन की पंक्चुअलिटी को लेकर ज्यादा चिंता हो, तो फिर वहां भगवान ही रक्षा करें!

पैनल बनने में दो साल के गैप की भरपाई ऐसे नहीं होती है कि आप एक साल बाद फिर पैनल बनाने लगें, क्योंकि अगस्त में #DRM की पोस्टिंग के बाद से फिर तकरीबन एक साल दो माह बाद ही यानि अक्टूबर/नवंबर 2024 में #DRM की पहली वैकेंसी होगी और तब तक हर साल आपके पैनल बनाने के पुराने अत्यंत अतार्किक और अनावश्यक ढ़र्रे के कारण हर सर्विस के बहुसंख्यक लोग आपके बनाए गए एज-क्राइटेरिया के कारण वंचित हो जाएंगे और वे भी वंचित हो जाएंगे जो भले ही लिस्ट में थे, लेकिन आपकी लेट-लतीफी के कारण बाहर हो जाएंगे।

महोदय, जो सबसे न्यायपूर्ण निर्णय होगा वह यही होगा कि कोरोना के कारण जो पैनल और पोस्टिंग में देरी हुई वह बने पैनल में सबकी पोस्टिंग को सुनिश्चित करने के बाद फिर उसी की निरंतरता में दूसरा पैनल बने और उसमें जब सबको #DRM में काम करने का मौका मिल जाए तो फिर उसकी निरंतरता में अगला पैनल बनाएं। #GM की पोस्टिंग में तो आपने आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है, जिसमें अब एज-क्राइटेरिया का भी कोई बंधन नहीं रह गया! फिर डीआरएम के सेलेक्शन और पोस्टिंग में ऐसा ही क्यों नहीं किया जा रहा है जिससे व्यवस्था और नियमों में एकरूपता दिखे!

प्रधानमंत्री जी और रेलमंत्री जी, आपको अंदर की एक बात और बता दूं कि अपने चहेते नीचे के बैच के लोगों को एडजस्ट करने के लिए माहौल और दबाव बनाया जा रहा है, इसीलिए 52 साल की एज-क्राइटेरिया के फेवर में कम्प्लेंट/रिप्रजेंटेशन आदि भेजने का निर्देश ‘ऊपर’ से दिया गया है! अत: निवेदन है कि आप लोग इन शातिरों के दांव में न आएं, बल्कि इसको समझें! जो अपने लिए एक माह और छह माह वाला नियम भी सही मानकर पद को तुरंत लपक लेते हैं लेकिन दूसरों के लिए, जिससे 90% लोगों की उम्मीद व्यवस्था में जग सकती है, उसमें शकुनि की चालें चलते हैं! महोदय, अत: यही सही समय है कि इनकी सभी कुटिल चालों को दरकिनार करके रेल की भलाई के लिए व्यवस्था में उचित सुधार करने का सही निर्णय लिया जाए!

एक पैनल की वैधता न्यायोचित तरीके से कम से कम उतनी ही रखनी चाहिए जितनी कि उस पद पर काम करने वाले व्यक्ति का कार्यकाल है। जैसे कि #DRM का कार्यकाल 2 साल का है तो जो भी पैनल बने उसमें कुल #DRM पदों की संख्या के बराबर ही पैनल बने और उसकी वैलिडिटी 2 साल की हो जिससे पैनल में शामिल सभी अधिकारियों को #DRM बनने का मौका मिल जाए। #EQI लिस्ट जो बनी थी उसको लेकर रेलवे में यही अवधारणा बनी थी और जब मार्च 2023 में 53 साल 8 महीना के लोग भी #DRM बनाए गए तो इससे यह धारणा और मजबूत हुई और इसका बड़ा सकारात्मक असर पड़ा 90% बहुसंख्यक अधिकारियों पर, क्योंकि उनके अंदर भी आशा का संचार हुआ कि अब उनमें से भी बहुतों को #DRM बनने का मौका मिल सकता है!

प्रधानमंत्री जी, न्याय क्या कहता है? अगर 53 साल 8 माह में कोई #DRM बनाया जाता है तो यही न कि जितने भी लोग कम से कम 53 साल 8 माह के हैं उनको यह मौका मिलना चाहिए। न कि फिर कोई ऐसा पैनल बना दिया जाए या क्राइटेरिया डाल दिया जाए कि आगे 53 साल 8 माह तक वाले लोग आ ही न पाएं और जिस एज तक आप चाहते हो वहीं तक के लोग आएं! पैनल का ये सिस्टम भी सटोरियों के जैसा ही बना दिया गया है!

इस बार 34 डिवीजन खाली हो रहें हैं जिसमें — #IRSE की 9, #IRSME की 9, #IRTS की 6, #IRAS की 1, #IRSS की 2, #IRSSE की 4 और #IRSEE की 3 वैकेंसी हैं और लगभग सभी अच्छे डिवीजन हैं जिसमें उत्तर रेलवे के दिल्ली डिवीजन को लेकर चारों महत्वपूर्ण डिवीजन हैं और अधिकांश स्टेट कैपिटल वाले डिवीजन भी खाली हो रहे हैं और इसके डेढ़ साल बाद ही फिर कोई #DRM की वैकेंसी बनेगी, इसलिए रेलवे बोर्ड में काबिज #KMG #AIDS के सदस्य नई लिस्ट बनाकर अपने लोगों को एडजस्ट करा देना चाहते हैं।

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महोदय, यहां यह स्मरण रखना आवश्यक है कि डीआरएम पोस्टिंग में जो अवैधानिक और अमानवीय खेल रेलवे बोर्ड में वर्षों से काबिज लोग करते आ रहे हैं उसके चलते विगत में और आपकी सरकार में भी कई अधिकारी कोर्ट में लड़कर डीआरएम बने हैं! वैसी नौबत न आए, इसलिए डीआरएम मुंबई मध्य रेलवे, डीआरएम सोलापुर मध्य रेलवे, डीआरएम कोटा पश्चिम मध्य रेलवे और डीआरएम धनबाद पूर्व मध्य रेलवे जैसे दम्भी, अक्षम, अयोग्य और सरकार विरोधी अधिकारियों को इन पदों पर बैठाने तथा रेल का बंटाधार होते देखते रहने के बजाय सक्षम योग्य एवं सरकार समर्थक अधिकारियों को ही ऐसे जिम्मेदार पदों पर बैठाया जाए, जो रेल की बेहतरी के साथ ही सरकार की छवि को भी उज्ज्वल करें!

निश्चित रूप से कुछ नकचढ़े/नकचढ़ी तुनकमिजाज क्षणिकबुद्धि लोगों को डीआरएम/जीएम बनाने से बचा जाए, जिनकी एकमात्र योग्यता यही है कि उनके पति या पत्नी इनकम टैक्स, ईडी, सीबीआई अथवा आईएएस या आईपीएस अधिकारी हैं जिनकी बदौलत रेल प्रशासन को ब्लैकमेल करके उन्होंने 25-28 साल एक ही जगह, एक ही शहर में अब तक की अपनी नौकरी की है। कूप मंडूक या कुएं के मेंढ़क ऐसे अधिकारियों को डीआरएम/जीएम जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठाने का अर्थ केवल अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है! इन पदों पर पोस्टिंग उन्हीं अधिकारियों की होनी चाहिए जिन्होंने कम से कम तीन-चार जोनल रेलों और कम से कम आधा दर्जन अलग-अलग रेलवे के अलग-अलग डिवीजनों में काम करने का फील्ड अनुभव हासिल किया हो! महोदय, अगर रेल की हालत सुधारनी है तो बाहरी चमक-दमक के बजाय भीतरी साफ-सफाई और कड़ा रोटेशन करना आवश्यक है!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी