बालासोर का भयावह हादसा शुरुआत है रेलवे के आने वाले भयंकर दिनों की प्रधानमंत्री जी!

जनता के बीच से चुनकर आया व्यक्ति ही जनता की आवश्यकता के प्रति संवेदनशील हो सकता है प्रधानमंत्री जी!

माननीय प्रधानमंत्री जी, आपके रेलमंत्री और उनकी #KMG टीम जिस तरह से रेल को चला रहे हैं उस पर हम लगातार लिखते आ रहे हैं और लगातार आगाह भी करते रहे हैं, लेकिन न आपके द्वारा कोई संज्ञान लिया गया, न ही आपकी सरकार को – कम से कम रेल के मामले में- बदनाम करने पर तुले वर्तमान रेलमंत्री और उनकी खान मार्केट टीम ने अपनी आंखें खोलीं! पीयूष गोयल से दुःखी रेल मंत्रालय को अब रेल के वर्तमान निजाम की कार्य प्रणाली से पूरे देश के रेल कर्मचारियों/अधिकारियों को ही नहीं, पार्टी कार्यकर्ताओं, विधायकों और सांसदों को भी पीयूष गोयल अब देव-स्वरूप लगने लगे हैं और उनकी कमी उन्हें खलने लगी है।

पीयूष गोयल को बदनाम उनकी बदतमीज, बदमिजाज, बेलगाम टीम ने किया था। लेकिन अश्विनी वैष्णव की टीम, जिसे वह स्वयं लीड कर रहे हैं, ने पीयूष गोयल की बदतमीज, बेलगाम और भ्रष्टों की टीम को बहुत पीछे छोड़ दिया है। वर्तमान रेलमंत्री और उनकी #केएमजी टीम अपने को न केवल सबसे ज्ञानी समझती है, बल्कि वे अपने को रेल का विधाता भी समझने लगे हैं। इनको अपनी समझ के अलावा बाकी सभी की बात मूर्ख और क्षुद्र जीव की कही बात लगती है, और पूरी रेल में इन्होंने यह धारणा बनाकर रखी है कि “ये जो कर रहे हैं वह सब प्रधानमंत्री जी की सहमति और निर्देश पर ही कर रहे हैं!”

मुंबई के एक अत्यंत ही मंजे हुए राष्ट्रीय पार्टी के मंत्री रह चुके लोकप्रिय नेता ने अश्विनी वैष्णव पर टिप्पणी कहते हुए बहुत पहले ही कहा था कि, “ये न ही ब्यूरोक्रेट हैं और न ही नेता, क्योंकि इन्होंने न तो कभी नौकरी ही ठीक से की और न ही नेतागीरी। यह एक ही काम के माहिर हैं जिसको करके ये यहां तक पहुँच गए। वही काम इनकी विशेषज्ञता है।” वह कौन सा काम है, यह पूछने पर उन्होंने कहा था कि जानने वाले सब यह जानते हैं, हर बात को स्पष्ट बताना आवश्यक नहीं होता!

उन्होंने आगे यह भी कहा कि प्रधानमंत्री का ऐसे ही लोगों के प्रति रुझान और उन्हें महत्वपूर्ण निर्णायक पदों पर बैठाने की आदत प्रधानमंत्री को अर्श से पाताल में पहुँचा देगी। आश्चर्य की बात है कि जो चीजें रेलवे के बच्चे-बच्चे को नजर आ रही हैं, वह प्रधानमंत्री को क्यों नहीं दिखाई दे रही हैं? क्या प्रधानमंत्री को फीडबैक देने का सिस्टम भी किसी सिंडिकेट के हाथ में है, जो आम धारणा और वास्तविक स्थिति से अलग हटकर वही फीडबैक देता है जो प्रधानमंत्री जी के #PPPEP (Power Point Presentation Expert People) लोग दिलवाना चाहते हैं?

रेल हवा में हैं प्रधानमंत्री जी! वंदे भारत को झंडी दिखाकर ये मत समझें कि रेल को आपने बड़े योग्य हाथों में दे रखा है। रेल वर्तमान महादम्भी निजाम में वंदे भारत से हजार गुना तेजी से हर दिन निरंकुश भ्रष्टाचार और अराजकता की दिशा में तीव्र गति से बढ़ रही है और इसकी परिणति बालासोर जैसी दर्दनाक जानलेवा हादसों के रूप में सामने आती है।

हर बार इस तरह के हादसों को गलत मोड़ देकर ऐसे हादसों के बहाने मासूम लोगों की लाश पर रेलवे में इसे भाँति-भाँति के काम के नाम पर पैसा खर्च करने के धंधा में बदल दिया जाता है, जिससे रेल की स्थिति तो कभी सुधरती नहीं है, लेकिन हजारों भ्रष्ट अधिकारी/कर्मचारी/व्यापारी लोग करोड़पति हो जाते हैं गिद्ध की तरह रेल को नोच-नोचकर, इसीलिए रेल लगातार दरिद्र और बदहाल होती चली जा रही है।

जबकि समस्या की जड़ कहीं और है, जिसे #RailSamachar और #Railwhispers इसे बार-बार बड़ी मुखरता से उठाते रहे हैं, फिर चाहे वह बिना अपवाद के पूरी पारदर्शिता से सभी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों का रोटेशनल आवधिक ट्रांसफर/पोस्टिंग किया जाना हो, जिसमें स्थान और पद परिवर्तन दोनों हो, चाहे 52 साल का क्राइटेरिया हटाकर फील्ड में काम किए अच्छी छवि के ट्रैक रिकॉर्ड और अनुभव रखने वाले अधिकारियों की पोस्टिंग #DRM और #GM में करने का मामला हो। ऐसी कुछ और मुख्य समस्याओं को हम सूचीबद्ध कर बार-बार इन्हें रेलमंत्री और उनकी टीम तक पहुंचाते रहे हैं और लगभग हर बार #PMO को भी सोशल मीडिया पर टैग करते रहे हैं, लेकिन सत्ता के दंभ में रेलमंत्री और उनकी खान मार्केट टीम हर बार इसे नजरअंदाज करती रही और उल्टे कई बार विभिन्न तरीकों से दबाब बनाकर हमारी आवाज दबाने की कोशिश भी की गई।

कायदे से बालासोर दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेकर अश्विनी वैष्णव को तत्काल रेलमंत्री पद से इस्तीफा देकर प्रधानमंत्री को 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की संभावित भारी आलोचना के संकट से बचा लेना चाहिए। इस तरह वह प्रधानमंत्री के लिए दूसरे ब्रज भूषण शरण सिंह बनने से बच सकते हैं।

प्रधानमंत्री जी को भी रेल के हजारों-लाखों अधिकारियों/कर्मचारियों और उन्हीं की पार्टी और संगठन के सैकड़ों समर्पित कार्यकर्ताओं, नेताओं और मीडिया से जुड़े मंजे हुए पत्रकारों की मनोभावना को समझना चाहिए, जिनका कहना है कि अब रेलमंत्री जनता के बीच से आए किसी नेता को बनाया जाए, जो लोकसभा के लिए जनता के बीच से चुनाव जीतकर आया हो, क्योंकि आपका यही एक मंत्रालय है जो सारे देश की जनता से सीधे लाइफ लाइन की तरह हर क्षण जुड़ा है, और आप लगातार इस मंत्रालय को पीछे के रास्ते से सांसद बनकर राज्यसभा में आए लोगों से अपनी जिद्द पर चलाए जा रहे हैं, जिन्होंने इसका बंटाधार कर दिया है।

विपक्ष के एक बड़े ही सम्मानित महाराष्ट्र के सांसद कहते है कि जब आपको जनता 300 से अधिक सांसद चुनकर दे रही है तो आप किस अभाव में राज्यसभा से रेल मंत्रालय जैसे जनता से सीधे जुड़े मंत्रालय का मंत्री बनाकर उस पर थोप दे रहें हैं! यह न केवल जनादेश का अपमान है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता के प्रति असंवेदनशीलता का भी परिचायक है। जनता के बीच से चुनकर आया व्यक्ति ही जनता की समस्याओं और आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील हो सकता है!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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