काम करें, न करें, पर काम करने का बहाना जरूर करें – टिकट चेकिंग में रहकर मक्कारी के तौर-तरीके!
टिकट चेकिंग दस्ते – “हरामखोरी और मक्कारी का कानूनी लाइसेंस!”
राजेंद्र कुमार भारतीय
सभी पाठकगण इस विषय को देखकर चौंक सकते हैं कि जहां टिकट चेकिंग का नाम आ गया, वहां बार-बार सर्वविदित बात को क्या लिखना! तथापि चेकिंग में भी कुछ ऐसे अनाड़ी हैं, जो इसका भरपूर फायदा नहीं उठाते और दिन भर भागते फिरते हैं, वहीं चेकिंग में नए-नए ज्वाइन करने वाले भाईयों के लाभार्थ – पूर्व में लिखा और प्रकाशित किया जा चुका – यह लेख पुनः हाजिर है.. फिर पढ़ें और भरपूर लाभ लें!
पुराने समय में चेकिंग दस्तों का गठन चाहे जिस उद्देश्य से किया गया हो, तथापि अब इनमें जाने का मतलब ‘हरामखोरी और मक्कारी का कानूनी लाइसेंस’ माना जाता है, पर जानकारी के अभाव में कुछ भाई लोग इन दस्तों में रहकर भी नहीं ले पा रहे हैं, तो इन दस्तों में रहते हुए मक्कारी कैसे करें, यह मैं उन्हें सिलसिलेवार बताऊंगा –
1. सबसे पहली बात चेकिंग स्क्वाड में जाते ही एक बार तो अपने इंचार्ज की जमकर मां-भैण कर दें और उसको यह जता दें कि ‘आपको छेड़ना बहुत भारी पड़ेगा उसको!’ और हो सके तो उसको दो-चार जमा भी दो, और खुद ही जीआरपी में जाकर उल्टा शिकायत दर्ज करा दो कि ‘मुझे मारा इस आदमी ने ऑन ड्यूटी..’ वहां आपके 5000 लगेंगे पर, आपका पांच साल का सुख-चैन मुकम्मल हो जाएगा।’
2. स्टेशन पर ही चौड़े होकर एचटी (हायर क्लास टिकट) बनाएं, आपकी बाॅडी लैंग्वेज से ‘निडरता’ दिखनी चाहिए – अंदर की बात बता रहा हूँ – ‘सारा विजिलेंस अमला जानता है, सारे अधिकारी जानते हैं इस बात को, पर हार गए हैं वो सब इस मुद्दे पर..’ और उन्होंने इसको उसी तरह स्वीकार कर लिया है जैसे ‘दादाजी को कैंसर हो जाने पर डाॅक्टर कह दे कि अब इनका कुछ नहीं हो सकता – ले जाओ और इनकी सेवा करो!’ तो निश्चिंत हो जाओ, और खुलकर मैदान में कबड्डी खेलो।
3. किसी अधिकारी से मत डरो, इसके लिए जरूरी है कि ऊपर से ठोकू दिलवाया जाए.. पर आपके पास नहीं है कोई अप्रोच.. बिलकुल चिंता न करें, उसका नुस्खा लिख लें कागज और पेन निकालकर.. ‘एक नई सिम खरीदो और उस नंबर को दस दोस्तों को “PA TO RAILWAY MISNISTER” के नाम से सेव करवा लो.. अब 7 दिन बाद उसको कोई भी फोन करेगा तो वो ट्रू-काॅलर पर “PA TO RAILWAY MISNISTER” ही शो करेगा.. तो उस फोन से किसी भी मैच्योर्ड आदमी से रेलवे के संबंधित उच्चाधिकारी को फोन लगवाएं और उसको आदेश दें – आपका नाम लेते हुए – कि ‘इसको चैकिंग में छोड़ना है, साब के आदेश हैं, आप चाहो तो साब (रेलमंत्री) से बात कर लो’.. आप यकीन करें उसकी नौबत ही नहीं आएगी, उधर आपका दोस्त फोन काटेगा, इधर CMI (C) का काॅल आपके सीटीआई के पास आएगा कि ‘इनको’ स्पेयर करो अभी का अभी.. और आपके स्क्वाड के सीटीआई को आपका विशेष ध्यान रखने का आदेश अलग से कर दिया जाएगा। यहां तक कि अफसर जब बदली होगा तो नए अफसर को आपका ‘वजन’ बताकर जाने के साथ आपसे ‘बचकर रहने’ की नेक सलाह भी देकर जाएगा। इसी तरह ‘वो’ – ‘अगले को देगा।’ इस तरह कड़ी दर कड़ी आपके रिटायरमेंट तक, ये क्रम चलते रहेगा।
4. मस्सड़ बन कर रहें, काम न करने की कसम खा लें, हमेशा ड्यूटी पर ऐसा चेहरा बनाकर रखें कि कोई सुबह-सुबह आपका मुंह देख ले, तो साले को दिन भर खाना तो क्या, चाय तक नसीब न हो – यकीन करें, अफसर आपको कभी तलब नहीं करेगा। कभी किसी ‘चेकिंग प्रोग्राम’ को अटेंड न करें, बल्कि हर प्रोग्राम पर सिक कर दें और अन्य लोगों को भी सिक करने के लिए प्रेरित करें – सार यह कि चेकिंग के प्रोग्राम फेल होने चाहिए और हालत यहां तक पहुंचा दो कि ये प्रोग्राम होना ही बंद हो जाएं।
5. एचटी जहां तक हो, खड़ी ट्रेन में ही बना दें। ट्रेन पर घूमकर अवैध सामान बेचने वाले लड़के को पकड़ें और सजा के तौर पर उसको जनरल कोच में आवाज मारने को कहें कि ‘जिसके पास टिकट नहीं है, वो बनवा लो भैया, आगे मजिस्ट्रेट चेकिंग है।’ आपका टारगेट 10 मिनट में पूरा हो जाएगा और आप देखेंगे कि अगली बार जब आप ट्रेन पर आएंगे, तो वही अवैध सामन बेचने वाला लड़का भागकर आपके पास आएगा कि, “साब ‘आपकी आवाज’ लगाकर आऊं या मैं अपना धंधा कर आऊं थोड़ा?” अपनी सुविधानुसार अब आप उस लड़के को उपयोग में ले सकते हो। याद रहे, अपने को ट्रेन में नहीं चढ़ना है, भूलकर भी नहीं। एक बार एक सीटीआई साब ट्रेन में चढ़ गए, भीड़ ने उनको घेर लिया.. हमारी बनाओ.. हमारी बनाओ.. ईएफटी तो फुल हो गई, पर साहब भरतपुर पहुँच गए भीड़ में फँसकर.. सारा दिन खराब हो गया.. ऐसी स्थिति से बचें.. अपना आराम पहले है, ये रसीदें बनाने का सारा ठेका अपना नहीं है।
6. खड़ी ट्रेन मे रसीदें बनाकर, न तो अपने को छुपना है, न भागना है, बल्कि ठाठ से सीटीआई ऑफिस में जाकर इंचार्ज की छाती पर बैठकर बाकायदा बातों के पकौड़े तलने हैं। साथ में उसकी छाती पर इस कदर मूँग दलना है कि आपसे परेशान होकर वह खुद बोल दे, “भाई आप निकलो, कैश मुझे दे जाओ, मैं जमा करवा दूंगा।”
7. अच्छा होगा कि ट्रेन आने के पहले बुकिंग काउंटर पर जाकर बैठ जाओ, और वहां बुकिंग क्लर्क को चाय पिलाकर, टिकट लेने आने वाले को यह कहलाओ कि ‘जनरल टिकट बंद हो गए, इन साब से बनवा लो, अगर करंट में बनवाना है!’ तो यकीन मानें, वह यात्री न केवल आपसे बिना टिकट गुवाहाटी तक की – डब्ल्यूटी – बनवाएगा, बल्कि आपका अहसान कभी नहीं भूलेगा।
8. हमेशा काला पैंट, सफेद शर्ट पहनकर रहें, आई कार्ड गले में डालकर रहें – कार्ड को जेब में रखें – और फालतू के चार्ट हाथ में रखने हैं, और अकड़कर एक जगह खड़ा रहना है, तो जो लोग बिना टिकट वाले होंगे वह चार्ट देखकर उसी तरह खिंचे चले आएंगे जैसे लाइट देखकर पतंगे चले आते हैं। तुरंत रशीद फाड़ें, और सीट मांगे तो बोलें, ‘आप अंदर बैठो, गाड़ी चलने पर बताना’ – गाड़ी चलने पर ‘कोच का टीटीई जाने और वो यात्री जाने’ – अपना मैटर नहीं है अब!
9. जब ड्यूटी पर फल्लू – जेल मैनुअल का यह एक वैध शब्द है – में हों तो मोबाइल स्विच ऑफ करें, और घर जाकर चादर ओढ़कर सो जाएं.. कोई माई का लाल कुछ प्रूव नहीं कर पाएगा।
10. रेलवे ड्राइवर्स को सेट करके रखें और बहुत जरूरी होने पर अगर गाड़ी में चढ़ना भी पड़े तो – पहले से बताए गए ‘प्वाइंट’ पर गाडी स्लो करवाकर ‘सटक’ लें। याद रखें, ऐसे समय में पैंट के नीचे ब्लोअर (स्पोर्टस पायजामा) और शर्ट के नीचे टी-शर्ट हमेशा पहनें और ‘कूदने’ से पहले टाॅयलेट में जाकर रिवर्स मॉड पर आ जाएं, अर्थात पैंट को ब्लोअर के नीचे और शर्ट को टी-शर्ट के नीचे पहन लें.. यात्रियों द्वारा शिकायत करने का खतरा टल जाएगा। मास्क भी दो रखें, हरा मास्क पहनकर टिकट बनाए हैं, तो टॉयलेट में जाकर लाल मास्क पहन लें – अब आप खतरे से बाहर हैं।
11. रशीद बनाते समय ‘पंगे वाले मैटर’ में भूलकर भी हाथ न डालें.. वो ऑन ड्यूटी टीटीई के माथे पटकें और ‘आप बैठो आराम से’ बोलकर सटक लें, बाद में ट्रेन का टीटीई जाने और वो!
12. जब कोई रशीद नहीं बन रही हो तो जहां भीड़-भाड़ हो, वहां एक फर्जी बंदे को खड़ा करके – वो ही सामान बेचने वाला लड़का अब इस काम भी आएगा – उसकी झूठमूठ की रशीद – उसने हाथ में पैसे पकड़े होने चाहिए – बनाना शुरू कर दो, आप देखोगे कि दो-चार और आ जाएंगे कि साब हमारी भी बना दो। अब आपको अपने बंदे को बोलना है, ‘सर आप थोड़ा रुकें, मैं इनकी बना दूं पहले!’ और सबकी खींच देनी है।
13. हमेशा ऊपर तक ये मैसेज पहुंचाना चाहिए आपके सीटीआई को कि ‘स्क्वाड नहीं होगी तो अर्निंग कुछ नहीं होगी डिवीजन में!’ आप यकीन करें, अधिकारियों को इतना होश नहीं रहता कि वे यह सोच सकें कि एचटी तो कोच का टीटीई ही बना देगा, उसमें आपने बनाकर क्या उखाड़ लिया?
14. काम करें या न करें, काम करने का बहाना जरूर करें, जब भी अधिकारी के सामने जाएं, हमेशा पसीना पसीना होकर जाएं – इस हेतु एक पाउडर का ‘डिब्बा’ आता है, उसका पाउडर लगाने से पसीना बन जाता है। किसी भी मेडिकल स्टोर पर मिल जाएगा। अगर अपने को हार्ट का मरीज बताकर रखो, तो सोने पे सुहागा.. ‘हार्ट का मरीज और पसीने से लथपथ??’.. यकीन करें, आपको पसीने में भीगा देखकर खुद अधिकारी पसीना-पसीना हो जाएगा और सब कुछ भूलकर कहेगा, ‘कोई भी परेशानी हो तो नि:संकोच बताना – बस यही कहने बुलाया था मैने!’ बाहर आकर पाउडर को रूमाल से साफ कर लें – अपना काम बन चुका है, अब फालतू में लोगों को क्या बताना, जिसको बताना था बता दिया! और अब निकल लें, मौज करें।
15. हमेशा अपने को किसी ‘दुर्लभ बीमारी’ का शिकार बताकर रखें – जैसे बीपी, शुगर, हाईपरटेंशन का तो बताकर रखना ही है – झूठी-सच्ची गोलियों के पत्ते हर वक्त ईएफटी बैग में रखें और सबके सामने पानी मंगवाकर – गोलियां बदलकर उनकी जगह हिगोंली चूरण की – गोलियां लेनी हैं। कभी-कभी ‘वो’ पाउडर लगाकर ऑफिस में पसीने-पसीने होकर ‘गश खाकर’ गिर जाएं – कालांतर तक लाभ मिलता रहेगा।
16. हमेशा खुद को दुखी आत्मा फील करवाकर रखें – हमेशा कहते रहें, ‘मैं बहुत दुखी हूँ.. मरूँगा.., रिश्तेदारों ने दुखी कर रखा है.. घरवाली कहा नहीं मानती.. औलाद अलग से छाती कूटा करती है — मैं मरूँगा अब!’ — यकीन करें, अब आपको छेड़ने की हिम्मत किसी में नहीं होगी, यहां तक कि आला अधिकारी भी सोचेगा – ‘साला मरेगा ये.. पर अर्थी मेरी उठवाकर जाएगा!’ बस.. अब ऐश ही ऐश है आपकी.. जमकर ऐश करें, ड्रिंक करें, क्लब जाकर डांस करें और खुलकर जियें.. पर खुदा न खास्ता किसी साथी ने या किसी अधिकारी ने देख लिया तो??.. तो क्या???.. आपको कुछ नहीं करना है.. सिर्फ यही कहना है — ‘सर डाॅक्टर ने कैंसर बताया है.. लास्ट स्टेज का.. पर मैं नहीं डरता मौत से.. मैं अपनी बची हुई कुछ माह की जिंदगी जी भर कर जीना चाहता हूँ सर..!’ यकीन मानें, आपका उस दिन का ‘दारू का बिल’ आपका वो साथी या कि वो रेल का अधिकारी भर कर जाएगा।
लेखक – राजेंद्र कुमार भारतीय, सीटीआई/जयपुर डिवीजन, उत्तर पश्चिम रेलवे, जयपुर में कार्यरत हैं! इन्होंने बाकायदा एसएमएस के जवाब में यह कंफर्म किया है कि उपरोक्त लेख उन्होंने ही लिखा है। कुछ टिकट चेकिंग स्टाफ की कार्यप्रणाली को वास्तविक धरातल पर प्रतिबिंबित करता है उनका यह लेख!
भाषा सुधार के बाद, “जैसा प्राप्त हुआ, वैसा प्रकाशित किया गया!”
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