लोकोमोटिव का ऐसा ‘घोस्ट एक्जामिनेशन’ कैसे होता है? रेलवे इसकी जांच करे! -सीआरएस
सीआरएस ने भले ही अपनी रिपोर्ट में संबंधित रेल अधिकारियों और कर्मचारियों की भीषण लापरवाही और अक्षम्य कृत्य को उजागर किया है, तथापि यह भी तय है कि वास्तविक धरातल पर कुछ नहीं होने वाला है! कुछ नहीं बदलना है! किसी पर कोई आंच नहीं आने वाली है!
सुरेश त्रिपाठी
CRS/NF Circle Ltr. No. T/12016/2021-22/NMX-NQH/NFC/1708, dtd. 10.02.2022.
रेल संरक्षा आयुक्त/पूर्वोत्तर सीमांत क्षेत्र ने 13 जनवरी 2022 को अलीपुरद्वार डिवीजन, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के दायरे में हुई ट्रेन नं. 15633 अप, बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस की गंभीर दुर्घटना की जांच रिपोर्ट 10 फरवरी 2022 को रेल प्रशासन को सौंप दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “लोको नं.22375, डब्ल्यूएपी-4 का अंतिम ट्रिप इंस्पेक्शन 06.12.2021 को हुआ था। तब से यह लोको लगातार रन कर रहा था और इस तरह उक्त दुर्घटना होने से पहले तक लगातार 18000 किमी रन कर चुका था।” विस्तृत छानबीन और तमाम रिकॉर्ड्स की जांच करने के बाद सीआरएस ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा है कि “नियमों का पालन नहीं किया गया, जो कि संरक्षा के प्रति घोर लापरवाही को दर्शाता है।”
निर्धारित नियमों के अनुसार डब्ल्यूएपी-4 इंजनों को 4500 किमी चलने के बाद ऐसे प्रत्येक इंजन को ट्रिप इंस्पेक्शन के लिए भेजना चाहिए। परंतु यह सुनिश्चित नहीं किया गया। इस इंजन की ट्रैक्शन मोटर गिरने के कारण यह गंभीर और अपवादात्मक दुर्घटना हुई, इसे लगातार 18000 किमी रन करने के बाद भी चलाया जा रहा था, तथापि इसे ट्रिप इंस्पेक्शन के लिए भेजना जरूरी नहीं समझा गया।
रिपोर्ट के अनुसार उक्त डब्ल्यूएपी-4 लोको आगरा मंडल, उत्तर मध्य रेलवे में कार्यरत था। चूंकि यह एक मिस-लिंक लोको था, इसलिए उस स्टेशन पर टच नहीं हुआ, जो ट्रिप इंस्पेक्शन के लिए निर्धारित है। पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा सौंपी गई मिस-लिंक लोको की लिस्ट के अनुसार उक्त लोको को फ्वाइस द्वारा फॉरेन रेलवे को भेजा गया था, परंतु आगरा मंडल ने कहा कि उसे यह लोको प्राप्त ही नहीं हुआ। अर्थात आगरा मंडल के सभी संबंधित अधिकारी इसके प्रति पूरी तरह हवाल दिल रहे।
ट्रिप इंस्पेक्शन एक अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक सेफ्टी इंस्पेक्शन है। इसे सुनिश्चित करने के लिए सभी लोको के सभी पार्ट्स का परीक्षण पूर्णतः प्रक्षिशित रेलकर्मियों द्वारा किया जाता है। रिपोर्ट में सीआरएस ने कहा है कि “ऐसा समझा जाता है कि रेलवे ने निर्धारित समय पर संरक्षा की मॉनिटरिंग सुनिश्चित करने के लिए आंतरिक संस्थागत व्यवस्था स्थापित की हुई है।” तथापि ऐसी लापरवाही हुई।
इसके अलावा सीआरएस ने अपनी जांच में तमाम डाक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन के बाद पाया कि समस्तीपुर डिवीजन, पूर्व मध्य रेलवे द्वारा जिन दो स्टेशनों – एनसीबी एवं एएफ – के लिए उक्त लोकोमोटिव को ट्रिप इंस्पेक्शन हेतु बुक किया गया, उक्त दोनों लोकेशन पर ट्रिप इंस्पेक्शन की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। सीआरएस ने यहीं पर सवाल उठाया है कि “ऐसा ‘घोस्ट एक्जामिनेशन’ अर्थात ‘भूतों द्वारा परीक्षण’ कैसे किया जाता है? यानि फर्जी ट्रिप इंस्पेक्शन सर्टिफिकेट जारी किया गया। रेलवे इसकी गहन जांच करे।”
सीआरएस ने अपनी रिपोर्ट में दो महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं –
1. रेलों द्वारा अपने-अपने दायरे में कार्यरत प्रत्येक लोको का ट्रिप इंस्पेक्शन समय पर सुनिश्चित किया जाए। जब भी लोको का निर्धारित इंस्पेक्शन होना है, तब ट्रिप इंस्पेक्शन सहित लोकोमोटिव्स के सभी शेड्यूल, अटेंशन/इंस्पेक्शन निर्धारित समय पर सुनिश्चित करना संबंधित जोनल रेलों की जिम्मेदारी है।
2. रेलों द्वारा उन सभी स्टेशनों/लोकेशनों की जांच की जाए, जो कि लोकोमोटिव्स के ट्रिप इंस्पेक्शन के लिए नामांकित किए गए हैं कि वहां लोको परीक्षण की सभी आवश्यक व्यवस्था और सुविधाएं उपलब्ध हैं। जो लोको लिंक जारी किया गया है, समय पर मेंटेनेंस एवं ट्रिप इंस्पेक्शन के लिए संबंधित रेलवे द्वारा सुनिश्चित किया जाए कि उक्त लोको फील्ड में काम कर रहा है। जोनल रेलों के संरक्षा संगठनों की भी यह जिम्मेदारी है कि वह लोको लिंक की जांच करें और समय-समय पर इसे सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
बहरहाल, सीआरएस ने भले ही अपनी रिपोर्ट में संबंधित रेल अधिकारियों और कर्मचारियों की भीषण लापरवाही और अक्षम्य कृत्य को उजागर किया है, तथापि यह भी तय है कि वास्तविक धरातल पर कुछ नहीं होने वाला है। कुछ नहीं बदलने वाला है। किसी पर भी कोई आंच नहीं आने वाली है।
जबकि इंजन की ढ़ाई से तीन टन वजनी ट्रैक्शन मोटर गिरने से ट्रेन के 12 कोच डिरेल होकर एक-दूसरे पर चढ़ गए, जिससे अधिकृत तौर पर 9 यात्रियों की मौत हुई, और 36 यात्री गंभीर रूप से घायल हुए जबकि अनधिकृत आंकड़े कुछ और कहते हैं! इसके लिए जिम्मेदार कौन है? यह अब तक सुनिश्चित नहीं हुआ है।
यह “रेयरेस्ट ऑफ द रेयर” घटना थी, जिसमें संबंधित रेल अधिकारियों की जानलेवा गंभीर लापरवाही वास्तव में उजागर हुई है, परंतु उनकी तुरंत योग्य कार्रवाई, बर्खास्तगी अथवा मुअत्तली के प्रति रेल प्रशासन में इच्छाशक्ति का घोर अभाव देखने में आ रहा है।
पिछले आठ सालों में चार रेलमंत्री हो गए, परंतु रेल की न सूरत बदली है, न ही सीरत, और तमाम गाल बजाने के बावजूद भ्रष्टाचार बढ़कर चौगुना हो गया। जो जहां बैठा है, वह वहां कुछ न कुछ लूट-खसोट रहा है।
निकम्मे, अकर्मण्य, और जोड़-तोड़ करने वाले भ्रष्ट लोग अधिकार संपन्न पदों पर विराजमान हैं, जबकि सक्षम एवं निष्ठावान लोग हासिए पर पड़े हुए हैं। अतः किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, जनता अर्थात सर्वसामान्य यात्रियों को मरना ही है, वह भी पैसा देकर अर्थात टिकट खरीदकर!
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