PCMM/NER : पद पाहि काहि मद नाही!
यह अनाधिकार चेष्टा केवल स्टोर्स तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कमोबेश लगभग सभी विभाग प्रमुखों की होती है!
ऐसा क्या है कि पद पाते ही, कुर्सी पर बैठते ही, अपने अधिकार में अपने लिए ही हम सब समेट लेना चाहते हैं! ऐसा क्यों है कि दूसरों के लिए हम कुछ भी छोड़ना नहीं चाहते! यह अहंकार किसलिए! किसके लिए! आखिर यह सब यहीं छूट जाना है! और अंततः इस मानसिकता और इस तरह के कर्मों के चलते अपने ही लात मारकर एक दिन घर के किसी कोने में बैठा देते हैं!
खबर आदमी या अधिकारी विशेष की दो ही कारणों से बनती है। एक – अच्छे काम किए, और दो – बुरे बर्ताव के लिए! यहां जिन प्रिंसिपल चीफ मैटेरियल मैनेजर, पूर्वोत्तर रेलवे (#PCMMNER) का संदर्भ है, उन पर उपरोक्त दोनों कारण लागू होते हैं।
पश्चिम रेलवे से ट्रांसफर होकर डी. के. श्रीवास्तव ने अभी कुछ दिन पहले ही पीसीएमएम/पूर्वोत्तर रेलवे के पद पर जॉइन किया है। आते-आते ही उन्होंने स्टोर्स के अपने मातहत अफसरों का कार्यभार कम करने के नाम पर उनके अधिकार कम करने शुरू कर दिया।
यह काम उन्होंने कुछ इस तरह करना शुरू किया कि डिप्टी सीएमएम और सीएमएम के अधिकार क्षेत्र में होने वाले तमाम टेंडर्स की स्वीकृति (एक्सेप्टेंस) का अधिकार (पावर) उनके पास आ जाएगा। इससे उनका निहित उद्देश्य साफ उजागर होता है।
उल्लेखनीय है कि रेलवे बोर्ड द्वारा जारी एसओपी में सामान्य क्लर्क (ओएस) से लेकर विभाग प्रमुख और जीएम तक के अधिकारों का आवंटन सुनिश्चित (डिफाइन) किया गया है। तथापि डी. के. श्रीवास्तव जैसे कुछ अधिकारियों को इससे भी तसल्ली नहीं है। वह सारा अधिकार अपने लिए समेट लेना चाहते हैं। बताते हैं कि ऐसा करने के लिए उन्होंने पीएफए को भी कोई पट्टी पढ़ाकर उनको अपने पक्ष में कर लिया है।
अब जब अधिकार ही समेट लिया जाएगा, तो बाकी अधिकारी क्या काम करेंगे? और क्यों करेंगे? बताते हैं कि ऐसा ही कुछ पूर्व पीसीएमएम दयाल आर्या ने भी किया था। उन्होंने भी नीचे के सभी अधिकारियों के अधिकारों को क्लब करके अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था। तब भी यही सवाल उठा था और काफी बवाल भी हुआ था।
सबसे पहली बात यह है कि किसी अधिकारी के अधिकार में कटौती का अधिकार विभाग प्रमुख को नहीं है। यह अधिकार रेलवे बोर्ड ने जीएम को प्रदान किया है। बताते हैं कि श्री श्रीवास्तव ने अपने मातहत अधिकारियों के अधिकारों में कटौती का प्रपत्र भी तैयार कर लिया है, जिसे सेंक्शन के लिए वह जीएम को पुटअप करने वाले हैं। अब यह जीएम अनुपम शर्मा के विवेक पर निर्भर है कि वह इस पर क्या निर्णय लेते हैं।
कुछ नए-नए आए अधिकारी अपने मातहतों पर रौब गांठने के लिए कुछ ज्यादा ही फूं-फां करते हैं। ऐसा ही डी. के. श्रीवास्तव ने भी किया है। आते-आते ही उन्होंने यह फरमान जारी कर दिया कि कैम्पस में किसी कर्मचारी की गाड़ी खड़ी नहीं होगी। अगर फिर भी कोई नहीं माना, तो उसे चार्जशीट दी जाएगी। यह व्यवहार ऐसा है जैसे कि रेल मंत्रालय, भारत सरकार ने उक्त पूरा कैम्पस उनको दहेज में दे दिया है!
एक काम डी. के. श्रीवास्तव ने अवश्य अच्छा किया है, वह यह कि 11-12 बजे तक कार्यालय आने वाले लोगों पर उन्होंने लगाम कसी है। जो कि अब 9.30 बजे से 10 बजे तक कार्यालय आने लगे हैं। यही विभाग प्रमुख का काम है कि वह अपने मातहतों को अनुशासित करे, उन्हें निर्धारित समय पर काम पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करे, और उनकी अनावश्यक एवं नियम विरुद्ध गतिविधियों को नियंत्रित करे।
ऐसा भी नहीं है कि यह अनाधिकार चेष्टा केवल स्टोर्स तक सीमित है, बल्कि यह कमोबेश लगभग सभी विभाग प्रमुखों की होती है। क्योंकि संबंधित विभाग प्रमुखों द्वारा जीएम को कोई उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ाकर या दलाल आर्या की तरह अपने स्तर पर ही क्लब करके की जाती है। अब जीएम को न तो इतनी फुर्सत होती है, और न ही कोई कनिष्ठ अधिकारी की इतनी हिम्मत होती है कि वह यह मैटर जीएम को जाकर बता सके। ऐसे में जीएम को ही सतर्क रहकर सभी विभाग प्रमुखों को यह संदेश देना चाहिए कि वह सब अपने-अपने दायरे में रहकर काम करें!
इनपुट सहयोग: गोरखपुर ब्यूरो
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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