January 17, 2022

जब प्रशासन मौन होता है, तब मनमानी होती है मातहतों की!

जोनल हॉस्पिटल भायखला में सीएमपी/डेंटल की पक्षपातपूर्ण नियुक्तियों का संज्ञान ले रेल प्रशासन

तीन साल से ज्यादा एक जगह नियुक्त एमडी/भायखला सहित सभी डॉक्टर्स को अविलंब दर-बदर किया जाए!

सेंट्रल रेलवे जोनल हॉस्पिटल, भायखला में 11 जनवरी को हुई पक्षपातपूर्ण सीएमपी/डेंटल की नियुक्तियों पर जोनल प्रशासन के मौन रहने अथवा संज्ञान नहीं लिए जाने से एमडी/भायखला और मेडिकल विभाग की मनमानी पर कोई लगाम नहीं लग पा रही है। यह पक्षपात इससे पहले भी हो चुका है। पूर्व की भांति इस बार भी एमडी/भायखला ने मुख्यालय की बात पर कोई कान नहीं दिया, और उन्हें जो करना था, वही किया।

मध्य रेलवे जोनल हॉस्पिटल, भायखला में 11 जनवरी 2022 को दो महिला डेंटिस्ट का कांट्रैक्ट मेडिकल प्रैक्टिसनर (सीएमपी) के तौर पर चयन किया गया। वॉक इन इंटरव्यू के जरिए हुए इस चयन में कुल लगभग 15 उम्मीदवारों (डेंटिस्ट) ने भाग लिया था। इसके लिए एक चयन कमेटी बनाई गई थी। समिति को इंटरव्यू के लिए आए उक्त 15 डेंटिस्ट में सबसे ज्यादा योग्य, जोनल हॉस्पिटल भायखला में ही कार्यरत एक एनेस्थीसियन की पत्नी और मध्य रेलवे में ही कार्यरत एक अन्य अधिकारी की पत्नी ही मिलीं।

चयनित एक डेंटिस्ट का पति अधिकारी है, तो दूसरी चयनित डेंटिस्ट का पति डॉ यतीश इसी भायखला हॉस्पिटल में ही एनेस्थीसियन हैं, और चयन कमेटी में भी एक एनेस्थीसियन डॉ रेणुका शामिल थीं। ऐसे में उम्मीदवारों के इस आरोप में पूरा दम है कि यह चयन पक्षपातपूर्ण है। उनका यह भी कहना है कि अगर अफसरों की वाइफ का ही चयन करना था, तो चयन की यह नौटंकी क्यों की गई?

इस विषय पर जब एमडी/मध्य रेलवे जोनल हॉस्पिटल भायखला, डॉ मीरा अरोरा से उनके मोबाइल पर संपर्क करके वस्तुस्थिति जानने की कोशिश की गई और जैसे ही उन्हें विषय बताया गया, वैसे ही उन्होंने कहा कि “कुछ भी मत लिख दीजिएगा।” इस पर जब उनसे यह कहा गया कि क्या लिखना है, क्या नहीं, कैसे लिखना है, यह छोड़कर वह ये बताएं कि अगर यह आरोप लगाया जा रहा है कि आज किया गया दो सीएमपी का चयन पक्षपातपूर्ण है, तो क्या गलत है? क्योंकि जब दोनों सीएमपी अफसरों की वाइफ को ही लेना था, तब चयन की यह नाटकबाजी क्यों की गई?

इस पर उन्होंने कहा कि “सब कुछ सही तरीके से और मेरिट पर हुआ है।” इस पर जब उनसे यह पूछा गया कि अगर सब कुछ सही हुआ है, तो क्या बाकी उम्मीदवार आपकी विज्ञापित योग्यता और अनुभव के समकक्ष नहीं थे? क्या केवल यह दो महिलाएं ही उसके उपयुक्त थीं? इस पर उन्होंने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि “जो किया, चयन कमेटी ने किया है, और कमेटी के निर्णय में उनका कोई दखल नहीं था।”

उल्लेखनीय है कि यह इंटरव्यू समाप्त होने के तुरंत बाद चयनित दोनों डेंटिस्ट के चयन का आदेश भी मुख्यालय से जारी कर दिया गया। चयन कमेटी के निष्कर्ष की निष्पक्ष भाव से समीक्षा करने की आवश्यकता भी नहीं समझी गई। जानकारों का कहना है कि “अगर यह चयन पक्षपातपूर्ण नहीं था, तो चयन कमेटी के निर्णय की समीक्षा किए बिना यह नियुक्ति आदेश निकालने की जल्दबाजी क्यों थी? बाकी मामलों में तो यह तत्परता कहीं दिखाई नहीं देती!”

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि चयन कमेटी की कन्वेनर स्वयं एमडी ही रही होंगी। तब चयन कमेटी का स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना संभव ही नहीं है। यह सारी प्रक्रिया एमडी के मार्गदर्शन और निर्देशन पर ही होने की पूरी संभावना के दृष्टिगत यह कहा जा सकता है कि इसीलिए चयन आदेश जारी करने की जल्दी थी।

एमडी/भायखला के बारे में जानकारों का कहना है कि उनकी मनमानी की पराकाष्ठा यह है कि उनकी नजर में पीसीएमडी और जीएम का कोई महत्व नहीं है। हालांकि मध्य रेलवे के वर्तमान पीसीएमडी का पद पर होना, न होना, दोनों का ही कोई महत्व नहीं है, क्योंकि उनकी तो एमडी/भायखला सहित कोई भी सीएमएस/एसीएमएस या तथाकथित स्पेशलिस्ट सुनता नहीं है। तथापि इस विषय पर उनका भी पक्ष लेने की बहुत कोशिश की गई, परंतु उन्होंने एक बार भी कॉल रेस्पॉन्ड नहीं की।

उल्लेखनीय है कि यह चयन 65 साल की आयु तक या 12 वर्ष, दोनों में से जो पहले हो, के लिए किया गया है। जानकारों का कहना है कि मेडिकल विभाग में भ्रष्टाचार का यह भी एक नया तरीका है। इसमें सबसे पहले चयन के लिए, फिर हर साल कांट्रैक्ट रिन्यूअल के लिए, “अंडर टेबल सेटलमेंट” होता है। उत्तर रेलवे सहित कई जोनल रेलों और कुछ उत्पादन इकाईयों में सीएमपी डॉक्टरों का चयन/उपयोग किस तरह होता है, यह अगली खबर का विषय है।

फिलहाल उपरोक्त विषय से संबंधित एक और अपडेट यह मिली है कि अभी दो दिन पहले एक और सीएमपी (मेडिकल) का सेलेक्शन किया गया है। इसमें भी बताते हैं कि भायखला हॉस्पिटल में ही कार्यरत एसीएचडी की बेटी का सेलेक्शन हुआ है। सवाल किसी की पत्नी या बेटी के सेलेक्शन का नहीं है, जो योग्य है, उसे उसकी योग्यता के आधार पर जगह मिलनी ही चाहिए, मगर इसके पीछे “अंधा बांटे रेवड़ी, पुनि-पुनि अपनों को दे” का जो “करप्ट ब्लाइंड गेम” चल रहा है, वह कहां तक उचित है?

बहरहाल, ज्यादातर उम्मीदवारों सहित कई अधिकारियों एवं यूनियन पदाधिकारियों की मांग है कि चूंकि जीएम/मध्य रेलवे अनिल कुमार लाहोटी एक न्यायप्रिय और पक्षपात रहित अधिकारी हैं, इसलिए जीएम को इस मामले में तुरंत दखल देना चाहिए और पैनल को निरस्त करते हुए पुनः निष्पक्ष रूप से चयन करवाना चाहिए, जिसमें एमडी/भायखला का कोई दखल न हो। इसके अलावा तीन साल से ज्यादा एक जगह नियुक्त एमडी/भायखला सहित सभी डॉक्टर्स को अविलंब दर-बदर किया जाना चाहिए।

मेडिकल डिपार्टमेंट भारतीय रेल में भ्रष्टाचार का एक और सबसे बड़ा गढ़ है। मीडिया द्वारा इस विषय पर लगातार प्रकाश डाला जाता रहा है, परंतु रेल प्रशासन ने अब तक इस मामले में गंभीरतापूर्वक संज्ञान नहीं लिया है। क्रमशः

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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