August 2, 2021

रेलवे में इफरात अधिकारी होने के बावजूद अतिरिक्त प्रभार देने का औचित्य क्या है?

पचीसों एचएजी और सीनियर एनएफ-एचएजी अधिकारी उपलब्ध होने पर भी सीएचओडी में की गई जूनियर एनएफ-एचएजी अधिकारी की पोस्टिंग

सुरेश त्रिपाठी

एक तरफ इफरात अधिकारी उपलब्ध होने के बावजूद अतिरिक्त प्रभार दिया जा रहा है – पीसीओएम/उ.रे. के रिटायर होने से पहले या तत्काल नई पोस्टिंग करने के बजाय पीसीसीएम/उ.रे. को अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया।

दूसरी तरफ बंटी-बबली की जोड़ी वाली बबली उर्फ अर्चना श्रीवास्तव, सीसीएस/उ.रे. (एनएफ-एचएजी) को उनके पति बंटी उर्फ विवेक श्रीवास्तव, ईडीपीजी/रे.बो. की रेलवे बोर्ड में कथित ‘सेटिंग’ के चलते उनसे न सिर्फ काफी वरिष्ठ कन्फर्म एचएजी, बल्कि उनसे सीनियर कई एनएफ-एचएजी को भी बाईपास करके उत्तर पश्चिम रेलवे का पीसीसीएम/सीएचओडी बना दिया और किसी सीनियर को पूछने की भी जरूरत नहीं समझी गई!

इस संदर्भ में एक कन्फर्म्ड एचएजी अधिकारी ने नाम उजागर न करने और गोपनीयता की शर्त पर “रेलसमाचार” द्वारा पूछे जाने पर कहा कि “श्रीमती अर्चना श्रीवास्तव से ऊपर और उनसे पहले से एनएफ-एचएजी प्राप्त भी कई वरिष्ठ अधिकारी हैं। कुल लगभग 25-30 कन्फर्म्ड एचएजी और एनएफ-एचएजी अधिकारी उपलब्ध हैं, अगर हम सब से नहीं तो कम से कम कुछेक से ही पूछा गया होता, तो हममें से कई ने जरूर वहां जाने की स्वीकृति दी होती। मगर यहां तो किसी को पूछा ही नहीं गया। इस पोस्टिंग का पता तो हम सबको तब चला जब पोस्टिंग आर्डर जारी हो गया।”

उनकी इस बात की पुष्टि कुछ अन्य वरिष्ठ आईआरटीएस अधिकारियों ने भी की है। उन्होंने कहा कि “एचएजी और एनएफ-एचएजी में होते हुए यहां साइड लाइन में पड़े रहने से बेहतर तो यही था कि हम कम से कम वहां इंडिपेंडेंट चार्ज में चले जाते।”

इसके अलावा उनका यह भी कहना था कि “कुछेक लोगों को अगर छोड़ भी दिया जाए – जो कि पारिवारिक कारणों से नहीं जाना चाहते – मगर बाकी लोग तो थोड़ी सी सख्ती दिखाते ही चले जाते। पर यह क्या बात हुई कि कई-कई वरिष्ठ एचएजी और एनएफ-एचएजी अधिकारी उपलब्ध होने के बाद भी उनकी नई तैनाती इस आधार पर और स्वत: यह मानकर नहीं करेंगे कि कोई जाने को तैयार नहीं था? इस तरह क्या किसी भी एनएफ-एचएजी को अपनी मनमर्जी से थोप देंगें? फिर प्रशासन का मतलब क्या हुआ?”

उधर उत्तर पश्चिम रेलवे में इस पोस्टिंग का आदेश जारी होने के बाद से ही सुगबुगाहट होने लगी थी। वहां अधिकारी आपस में खुसुर-पुसुर करने लगे थे कि अब कैसे निभेगी?

उत्तर पश्चिम रेलवे के कई वाणिज्य अधिकारियों का कहना है कि “रेलमंत्री का गृहक्षेत्र इसी जोन में आता है, इसलिए यहां किसी तेजतर्रार, निष्ठावान और साफ-सुथरी छवि वाले किसी एचएजी अधिकारी को ही भेजा जाना चाहिए था, क्योंकि वैसे भी एनएफ-एचएजी की पीएचओडी में पोस्टिंग से उस जोन में किसी भी कैडर की गंभीरता और महत्व कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में कमर्शियल डिपार्टमेंट जैसे अति संवेदनशील और महत्वपूर्ण विभाग के साथ कोई भी इस तरह का लूज निर्णय पूरे विभाग की साख पर बट्टा लगा देता है।”

आखिर यह हो क्या रहा है रेलवे में? पूछते हैं अधिकारी!

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