हिंदी डूबने की दास्तां: लोकतंत्र और अपनी भाषा
केंद्र सरकार और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को भी इस विषय पर यथोचित ध्यान देना चाहिए!
प्रेमपाल शर्मा
(अटेंशन: दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार)
कर्नाटक में कन्नड़ भाषा का प्रयोग बढ़ाने के लिए कन्नड़ डेवलपमेंट अथॉरिटी (केडीए) भी है। आप कन्नड़ भाषा मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि सार्वजनिक जगहों में भी सीख सकते हैं। (केरल, तमिलनाडु की तर्ज पर)।
केडीए ने अंग्रेजी के टोफिल (Toefl) की तरह सरकार को ऐसी परीक्षा करने का प्रस्ताव दिया है।
निजी क्षेत्र में कन्नड़ जानने वालों को (जाति/धर्म पर नहीं) आरक्षण देने के लिए कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक उद्योग एंड इंडस्ट्रियल एंप्लॉयमेंट रूल, 1961 में हाल ही में संशोधन किया है।
कर्नाटक में 12वीं तक सभी के लिए कम से कम 2 भाषाएं अनिवार्य हैं। अधिकांश छात्र कन्नड़ को हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी के साथ लेते हैं।
ऐसा ही दक्षिण के अन्य राज्यों में है। इसीलिए दक्षिण भारतीय अंग्रेजी भी अच्छी जानते हैं और अपनी भाषाएं भी, और इसीलिए दक्षिण भारत में शिक्षा का स्तर उत्तर भारत की तुलना में 100 गुना अच्छा है।
उत्तर भारत विशेषकर दिल्ली में 12वीं में सिर्फ अंग्रेजी ही अनिवार्य है। ज्यादातर बच्चे 9वीं में हिंदी छोड़कर अंग्रेजी के साथ फ्रेंच, जर्मन आदि भाषाएं दिल्ली में पढ़ रहे हैं।
जब हिंदी शिक्षा से बाहर है, तो समाज विज्ञान से लेकर दूसरी किताबें कौन लिखेगा? और कौन पढ़ेगा?
दिल्ली सरकार तुरंत कदम उठाए ! शिक्षा की बेहतरी के लिए दिल्ली सरकार ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी तक के सुधार टीम-टाम से ज्यादा नहीं हैं।
केंद्र सरकार और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को भी इस विषय पर यथोचित ध्यान देना चाहिए।
दोस्तों, “जन-ज्वार” पर चंद मिनट मेरी बात भी सुनें! 12 जुलाई 2021
#प्रेमपाल_शर्मा, मोबाइल नं. 99713 99046
18 जुलाई, 2021