July 17, 2021

समाजवाद और समानता

अगर जल्दी ही जनसंख्या में समानुपातिक नियंत्रण नहीं किया गया और शिक्षा एवं रोजगार में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए जगह नहीं बनाई गई, योग्यता को उचित स्थान और सम्मान नहीं दिया गया, तो वर्तमान व्यवस्था बहुत जल्दी ढ़ह सकती है!

एक कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर ने अपने एक बयान में कहा – “उसने पहले कभी किसी छात्र को फेल नहीं किया, परंतु हाल ही में उसने एक पूरी की पूरी क्लास को फेल कर दिया, चूंकि उस क्लास के सभी छात्रों ने एकसाथ दृढ़तापूर्वक कहा था कि समाजवाद सफल होगा, तब न कोई गरीब होगा, न कोई धनी होगा, उन सबका दृढ़ विश्वास है कि यह सबको समान करने वाला एक महान सिद्धांत है!”

तब प्रोफेसर ने क्लास के छात्रों से कहा – “अच्छा ठीक है ! आओ हम क्लास में समाजवाद के अनुरूप एक प्रयोग करते हैं। सफलता पाने वाले सभी छात्रों के विभिन्न ग्रेड (अंकों) का औसत निकाला जाएगा और सबको वही एक काॅमन ग्रेड दिया जाएगा।”

पहली परीक्षा के बाद सभी ग्रेडों का औसत निकाला गया और प्रत्येक छात्र को ‘बी’ ग्रेड प्राप्त हुआ।

जिन छात्रों ने कठिन परिश्रम किया था, वे परेशान हो गए और जिन्होंने कम पढ़ाई की थी, वे बहुत खुश हुए।

दूसरी परीक्षा के लिए कम पढ़ने वाले छात्रों ने पहले से भी और कम पढ़ाई की और जिहोंने पढ़ाई करने का कठिन परिश्रम किया था, उन्होंने यह तय किया कि वे भी मुफ्त का ग्रेड प्राप्त करेंगे, इसलिए उन्होंने भी कम पढ़ाई की।

परिणाम स्वरूप दूसरी परीक्षा में सभी छात्रों का काॅमन ग्रेड ‘डी’ आया। इससे कोई छात्र खुश नहीं हुआ और अब सभी छात्र एक-दूसरे को कोसने लगे।

जब तीसरी परीक्षा हुई, तो काॅमन ग्रेड ‘एफ’ हो गया।

जैसे-जैसे परीक्षाएं आगे बढ़ने लगीं, स्कोर कभी ऊपर नहीं उठा, बल्कि नीचे और भी नीचे गिरता रहा। आपसी कलह, आरोप, प्रत्यारोप, गाली-गलौज और एक-दूसरे से मनमुटाव, नाराजगी के परिणामस्वरूप कोई भी छात्र पढ़ाई नहीं करता था, क्योंकि अब कोई भी छात्र अपने परिश्रम से दूसरे को लाभ नहीं पहुंचाना चाहता था।

अंत में सभी आश्चर्यजनक रूप से फेल हो गए और प्रोफेसर ने उन्हें बताया – “इसी तरह ‘समाजवाद’ की नियति भी अंततोगत्वा फेल होने की ही है, क्योंकि पुरस्कार जब बहुत बड़ा होता है, तो सफल होने के लिए किया जाने वाला उद्यम भी बहुत बड़ा करना होता है।”

“परंतु जब सरकारें मेहनत के सारे लाभ मेहनत करने वालों से छीनकर वंचितों और निकम्मों में बाँट देंगी, तो कोई भी न तो मेहनत करना चाहेगा और न ही कभी सफल होने की कोशिश करेगा।”

प्रोफेसर ने यह भी समझाया कि इससे निम्नलिखित पांच सिद्धांत भी प्रतिफलित और प्रतिपादित होते हैं –

1. अगर राष्ट्र को समृद्ध और समाज को सक्षम बनाना चाहते हैं, तो किसी भी व्यक्ति को उसकी समृद्धि से बेदखल करके गरीब को समृद्ध बनाने का कानून नहीं बना सकते।

3. सरकार तब तक किसी को कोई वस्तु नहीं दे सकती, जब तक वह उस वस्तु को किसी अन्य से छीन न ले।

2. अगर कोई व्यक्ति बिना कार्य किए कुछ प्राप्त करता है, तो वह अवश्य ही अधिक परिश्रम करने वाले किसी अन्य व्यक्ति का अधिकार छीनकर ही उसे दिया जाता है।

4. जिस प्रकार किसी संस्थान या उपक्रम को टुकड़ों में बांटकर उसकी प्रगति नहीं हो सकती, उसी प्रकार सम्पदा को बांटकर उसकी वृद्धि नहीं की जा सकती।

5. जब किसी राष्ट्र की आधी आबादी यह समझ लेती है कि उसे कोई काम नहीं करना है, क्योंकि बाकी आधी आबादी उसकी देखभाल कर रही है और बाकी आधी आबादी यह सोच कर ज्यादा अच्छा कार्य नहीं कर रही कि उसके परिश्रम का फल किसी दूसरे को मिलना है, तो वहीं से उस राष्ट्र के पतन और अंततोगत्वा उसके अंत की शुरुआत हो जाती है।

एक तरफ देश का बहुसंख्यक कड़ी मेहनत कर रहा है और उसकी जनसंख्या सिमट रही है, तो दूसरी तरफ तथाकथित अल्पसंख्यक सरकारों के तुष्टिकरण का भरपूर लाभ उठा रहा है, बल्कि मुखर होकर अपनी आबादी बढ़ाते हुए हिंसाचार में लगा हुआ है। वैश्विक स्तर पर यह एक बड़ी गंभीर विसंगति पैदा हो रही है।

इसी समाजवादी तुष्टिकरण के चलते सरकारी क्षेत्र में नीचे से ऊपर तक अयोग्य, अकर्मण्य और निकम्मे कार्मिकों की भरमार हो गई है। इसके चलते ही एक तरफ पूरी प्रशासनिक व्यवस्था चौपट हो रही है और योग्यता को नकारा या दरकिनार किया जा रहा है, तो दूसरी तरफ सामान्य वर्ग का उत्पीड़न हो रहा है और जातिगत प्रताड़ना भी उसे ही सहनी पड़ रही है।

अतः अगर जल्दी ही जनसंख्या में समानुपातिक नियंत्रण नहीं किया गया और शिक्षा एवं रोजगार में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए जगह नहीं बनाई गई, योग्यता को उचित स्थान और सम्मान नहीं दिया गया, तो वर्तमान व्यवस्था बहुत जल्दी ढ़ह सकती है। इससे देश का सामाजिक सांस्कृतिक ताना-बाना नष्ट हो सकता है और चहुंओर आपसी कलह, मार-काट की स्थिति पैदा हो सकती है।

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प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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