June 26, 2021

आश्रितों की नियुक्ति: अफसरशाही की विडंबना, सबसे निचले पायदान के आदमी को कैसे मिलेगा न्याय?

प्रस्तुत मामले में जो भी त्रुटि या लापरवाही हुई है, वह सीनियर डीपीओ भुसावल अर्थात रेल प्रशासन के स्तर पर ही हुई है। अतः रेल प्रशासन चाहे तो 12 आश्रितों का भविष्य खराब करने के लिए सीनियर डीपीओ भुसावल की जिम्मेदारी तय करे, दंडित करे, बर्खास्त करे, या जो भी उचित कार्रवाई हो, वह करे, मगर इन 12 रेलकर्मियों के साथ न्याय करके इनके परिवारों को बरबाद होने से बचाया जाना चाहिए!

सुरेश त्रिपाठी

भुसावल मंडल, मध्य रेलवे में कार्यरत 12 रेलकर्मियों के आश्रित तीन साल पहले अर्थात सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय आने से पहले ही सारी प्रक्रिया और सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बावजूद “लार्जेस स्कीम” के तहत आज भी नियुक्ति पाने की प्रतीक्षा में हैं। परंतु उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

अफसरशाही की यह कितनी बड़ी विडंबना है कि दो-दो जीएम, डीआरएम, इंजीनियरिंग कैडर के होने के बाद भी उन्हीं के विभागीय कर्मचारी न्याय पाने के लिए लगभग साढ़े तीन साल से न केवल दर-दर भटक रहे हैं, बल्कि हर दर पर शोषण का शिकार हो रहे हैं। फिर भी अब तक न्याय पाने से वंचित हैं।

मामले का घटनाक्रम इस प्रकार है –

1. लार्जेस स्कीम (#LARSGESS_Scheme) के तहत जनवरी 2017 में भुसावल मंडल में सारे डॉक्यूमेंट्स के साथ लगभग ढ़ाई सौ रेलकर्मियों द्वारा फॉर्म भरे गए। इनमें से 12 आश्रितों को छोड़कर बाकी सभी को नियुक्ति दे दी गई।

2. पत्र संख्या STF/LARSGESS/BAU/DRM(P) BSL-Ltr.No.BSL(P)Rect.LARSGESS/01/2017 दिनांक 14.07.2017 को सीनियर एडीईएन/खंडवा द्वारा इन 12 रेलकर्मियों को पत्र दिया गया।

3. दिनांक 27.07.2017 को इन सभी आश्रितों का मेडिकल टेस्ट सीनियर डीएमओ/भुसावल द्वारा किया गया, जिसमें यह सभी आश्रित फिट पाए गए।

4. दिनांक 28.06.2017 को विजिलेंस क्लीयरेंस हेतु मुंबई भेजा गया, (Ltr.No.BSL(P)458/EB/SR) परंतु ऐसा बताया गया है कि वास्तव में यह पत्र विजिलेंस को भेजा ही नहीं गया था।

5. दि.23.08.2017 को एक प्रॉविजनल अप्वाइंटमेंट लेटर इन्हें सीनियर एडीईएन/खंडवा की तरफ से प्राप्त हुआ। तत्पश्चात इनके सभी ओरिजनल डॉक्यूमेंट्स एडीईएन ऑफिस खंडवा के पास भेज दिए गए। इनमें से दो रेलकर्मियों को रिटायर होने दिया गया और दो रेलकर्मियों की मौत हो गई, तथापि लार्जेस के तहत सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी इनके आश्रितों को जॉइनिंग नहीं दी गई।

6. भुसावल मंडल में एडीईएन/खंडवा को छोड़कर बाकी सभी डिपो के रेलकर्मियों के आश्रितों को जॉइनिंग दे दी गई, जो जनवरी 2017 की ही सीक्वेंस में अन्य आश्रितों के साथ थे, वे सभी समय पर जॉइन हो चुके हैं।

7. दिनांक 28.09.2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय से लार्जेस स्कीम पर प्रतिबंध लगा दिया।

8. इस संबंध में यह बचे हुए 12 रेलकर्मी एडीईएन/खंडवा, सीनियर डीपीओ/भुसावल, एडीआरएम/भुसावल, डीआरएम/भुसावल को व्यक्तिगत रूप से मिलकर अनुनय-विनय कर चुके हैं। यह लोग दि. 27.12.17, 04.05.18, 28.09.18 को सक्षम अधिकारी के समक्ष अपनी अपील भी प्रस्तुत किए थे। इसके पश्चात 16.10.2018 को जीएम/मध्य रेल के समक्ष भी इन्होंने अपनी अपील प्रस्तुत की थी।

9. तब डीआरएम/भुसावल ने मौखिक रूप से इन लोगों को अवगत कराया था कि उनके नियुक्ति पत्र तैयार हैं। मगर बाद में बताया गया कि प्रशासनिक गलती के कारण उन्हें नियुक्ति नहीं दी जा सकती है।

10. रेलवे बोर्ड के पत्र सं.E(P&A) I-2015/RT-43, दि. 27.09.2018  के तहत लार्जेस स्कीम को होल्ड पर रख दिया गया।

11. दि. 26.09.2018 को रेलवे बोर्ड द्वारा पत्र सं. E(P&A) I-2015/RT-43 के तहत निर्देश जारी किए गए कि “ऐसे कर्मचारी जो 27.10.2017 के पहले रिटायर हो चुके हैं, किंतु मेडिकल होने के बावजूद उनके आश्रितों की नियुक्ति नहीं हो पाई है, उन्हें नियुक्ति प्रदान की जाए।”

12. दि. 29.05.2019  को रेलवे बोर्ड द्वारा पत्र सं. E(P&A) I-2015/RT-43 के तहत उत्तर रेलवे, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे तथा दक्षिण मध्य रेलवे के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए।

13. इसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा WP(C)219/2019 एवं  WP(C)448/2019 का उल्लेख कर निर्देश दिया गया कि “ऐसे मामले जिनमें 27.10.2017 से पहले आश्रितों का मेडिकल परीक्षण हो चुका है, किंतु कर्मचारी अभी रिटायर्ड नहीं हुआ है, वे लोग सक्षम अधिकारी के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। सक्षम अधिकारी द्वारा उनके आवेदनों की जांच कर निर्णय लिया जाए कि बोर्ड के संदर्भित पत्र के अधार पर उक्त तीनों जोनों में ऐसे मामलों की जीएम के अप्रूवल के पश्चात् नियुक्तियां प्रदान की जाएं।”

14. इसके बाद 12.07.2019 को बोर्ड का यही उपरोक्त पत्र सभी जोनों के महाप्रबंधकों को प्रेषित किया गया, जिसके तहत सभी जोनों/मंडलों में नियुक्तियां दी गई हैं।

15. रेलवे बोर्ड के उक्त पत्र (सं.E(P&A)I-2015/RT-43, दि. 12.07.2019) के आधार पर 17.07.2019 को पुनः इन 12 रेलकर्मियों ने अपने आवेदन महाप्रबंधक/मध्य रेल के समक्ष प्रस्तुत किए, जिसकी एक प्रति डीआरएम और सीनियर डीपीओ, भुसावल को भी दी गई।

16. इसके जवाब में एक पत्र (BSL(P)Rect/Larsgess) इन रेलकर्मियों को डाक से प्राप्त हुआ जिसमें कहा गया था कि रेलवे बोर्ड के दि. 26.09.2018 के आदेश को आधार मानते हुए उनके आवेदनों का निपटारा (निरस्त) कर दिया गया है। यह एक अनुचित और नियम विरुद्ध कार्यवाही थी, क्योंकि इस निर्देश के जारी होने के समय ऐसे मामले सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन थे, जिसका उल्लेख रे. बो. के पत्र (सं. E(P&A)I-2015 दि.05.03.2019) के पैरा-2 में स्पष्ट रूप से किया गया है।

17. इस संदर्भ में मध्य रेलवे मुख्यालय, मुंबई द्वारा भी पत्र सं. CR/4Q/Ruling-Largess के अंतर्गत निर्देश जारी किए गए थे। परंतु अभी तक इस पर कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं की गई है। बल्कि बताते हैं कि डीआरएम और सीनियर डीपीओ, भुसावल द्वारा मौखिक तौर पर यह कहकर इस अन्याय का मजाक बनाया गया कि, “जीएम ने पत्र में यह कहीं नहीं लिखा कि नियुक्ति देनी ही है।”

भुसावल मंडल के यह 12 कर्मचारी आदि से अंत तक की सारी औपचारिकताएं, सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद प्रशासनिक त्रुटि के कारण लार्जेस स्कीम का लाभ पाने से वंचित हैं। इस पूरे प्रकरण में रेलवे बोर्ड और जोनल मुख्यालय द्वारा उनके स्तर पर यथोचित निर्णय लिया गया है। तथापि इसमें जो भी त्रुटि या लापरवाही हुई है, वह सीनियर डीपीओ भुसावल अर्थात रेल प्रशासन के स्तर पर ही हुई है।

अतः रेल प्रशासन को चाहिए कि उक्त 12 रेलकर्मियों के आश्रितों का भविष्य खराब करने के लिए सीनियर डीपीओ भुसावल की जिम्मेदारी तय करते हुए उन्हें दंडित करे, बर्खास्त करे, या जो भी उचित कार्रवाई हो, वह करे, मगर इन 12 रेलकर्मियों के साथ न्याय करके इनके परिवारों को बरबाद होने से बचाए, क्योंकि इस पूरे मामले में उनके स्तर पर कोई गलती, कोई त्रुटि अथवा कोई कमी नहीं हुई है। अतः प्रशासनिक लापरवाही के लिए वे किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं हैं।

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