June 22, 2021

सतीश अग्निहोत्री जैसी ‘पहुंच’ सबको मिले!

“जो अफसर अपने कार्यकाल के दौरान खुद कमाई करता है और बड़े नेताओं की कमाई करवाता है तथा जितना ज्यादा भ्रष्ट होता है, उसे रिटायरमेंट के बाद दोबारा कुछ साल के लिए नौकरी मिलने की पूरी संभावना रहती है।”

इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ इंजीनियरिंग (आईआरएसई) 1982 बैच के रिटायर्ड सीएमडी/आरवीएनएल सतीश अग्निहोत्री को नेशनल हाई स्पीड रेल कारपोरेशन लि. (एनएचएसआरसीएल) का प्रबंध निदेशक (एमडी) बनाया गया है। इस संबंध में एसीसी ने 8 जून 2021 को आदेश जारी किया है।

श्री अग्निहोत्री का सौभाग्य यह है कि उन्हें न केवल उम्र में छूट दी गई है, बल्कि उनकी योग्यता, क्षमता, आवश्यकता इत्यादि जो भी योग्यताएं उक्त पद से संबंधित विज्ञापित की गई थीं, उन सबको दरकिनार करके उन्हें तीन साल या अगले आदेश तक उपरोक्त पद पर पदस्थापित किया गया है।

लोग तो रेलवे में यह भी कर रहे हैं कि “भले अग्निहोत्री जी ने यह पद भारी-भरकम कीमत देकर और अन्य वायदे करके खरीदा है, मगर भाग्य हो तो अग्निहोत्री जी जैसा हो, वरना न हो!”

इस संदर्भ में सर्वप्रथम अग्निहोत्री जी को बधाई देने के लिए उनके मोबाइल पर कॉल किया, पर कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला। दूसरी बार भी किया, फिर भी उनसे बात नहीं हो पाई, शायद अग्निहोत्री जी उस दिन उसी तरह अति-व्यस्त रहे होंगे, जैसे पहली बार बाप बनने पर कोई आदमी प्रसन्न होता है।

बहरहाल, दो दिन बीत जाने के बाद फिर ध्यान में आया और हमने उन्हें फिर से कॉल किया, दो बार किया, फिर भी बात नहीं हो पाई, क्योंकि अग्निहोत्री जी अब शायद और ज्यादा व्यस्त हो गए थे।

तथापि एक और प्रयास करने में कोई हर्ज नहीं था, इसलिए यह सोचकर उन्हें एक संदेश (एसएमएस) छोड़ दिया कि जब उनको थोड़ी फुर्सत मिलेगी, तब शायद वह हमारी बधाई को स्वीकार करके कोई रिप्लाई करके हमें धन्य कर दें।

परंतु 15 जून को भेजे गए उक्त संदेश का जवाब उन्होंने अब तक देना जरूरी नहीं समझा। उक्त संदेश में हमने उन्हें लिखा था कि, “अग्निहोत्री जी, आपको री-अपॉइंटमेंट की हार्दिक शुभकामनाएं! आपको चार बार कॉल किया पर आपने रेस्पॉन्ड नहीं किया। खैर, यह तो बताएं कि इतना बड़ा करिश्मा हुआ कैसे?”

फिर भी अग्निहोत्री जी ने कोई रेस्पॉन्स देना आवश्यक नहीं समझा। खैर, रेलवे में जो चर्चा है, वह यह कि “री-एंगेजमेंट के नाम पर हर सरकार में ऐसे पदों की नीलामी होती है। जो सबसे बड़े भ्रष्ट होते हैं, और जिन्होंने पहले ही भ्रष्टाचार के जरिए अकूत कमाई की होती है, वही लोग ऐसे पदों की ‘बोली’ लगाने के लिए आगे आते हैं, क्योंकि ऐसे ही लोग इसके जरिए कमाने और कमाकर देने की योग्यता रखते हैं।”

सतीश अग्निहोत्री के री-अपॉइंटमेंट के संदर्भ को इस व्यंग्य के माध्यम से बहुत अच्छी तरह समझा जा सकता है। यह व्यंग्य किसने लिखा है, यह तो पता नहीं, पर आज सतीश अग्निहोत्री के संदर्भ में यह बहुत सटीक बैठता है –

ईश्वर, एक रुपए महीने की नौकरी सबको दे!

साहब के रिटायर होने के बाद से उनके बंगले पर मरघट जैसा सन्नाटा छाया रहने लगा था। अचानक सरकार ने उन्हें एक रुपये मासिक वेतन पर सलाहकार नियुक्त कर दिया तो बंगले में जैसे बसंत आ गया। उनकी पुरानी नौकरानी कमला अपनी सहेली विमला को बता रही थी, “साहब के यहां बच्चा होने के बाद ‘जच्चा’ के ‘नहावन’ जैसा माहौल है। इतनी हंसी- खुशी तो साहब की शादी के तेरह साल बाद टेस्ट ट्यूब की मदद से पैदा हुए उनके पुत्र के समय भी नहीं दिखी थी।”

कमला को आश्चर्य था कि सिर्फ एक रुपये महीने के वेतन में इतना खुश होने वाली क्या बात है? जब बधाई देने वालों का तांता हटा तो मुंह लगी लगी कमला ने अपनी मालकिन से पूछ ही लिया, “मैडम जी, सुना है कि साहब को सिर्फ एक रुपये महीना वेतन पर सरकार ने रखा है, फिर आप सब लोग इतना खुश काहे हो रहे हैं?”

मालकिन ने कहा, “अरे कमली तू नहीं समझेगी, तू गंवार की गंवार ही रही। सरकार की अफसरी ऐसी है कि सरकार पगार न दे, उल्टा हमसे लाख पचास हजार रुपये महीना ले ले, तो भी हम खुशी से दे देंगे। अब साहब को दोबारा से ड्राइवर वाली गाड़ी मिलेगी। साहब का दफ्तर होगा। बाहर चपरासी बैठा रहेगा। सेक्रेटरी होगा, जो ऑफिस के काम कम और साहब के पर्सनल काम ज्यादा करेगा।”

रिटायरमेंट के बाद कुछ दिन तो साहब का पुराना निजी सहायक बिजली पानी के बिल जमा करा देता था, लेकिन धीरे-धीरे वह भी नजरें फेरने लगा था। अब फिर से ऑफिस में साहब का तीन-चार आदमियों का स्टाफ होगा, कोई बिल जमा कराएगा, कोई सब्जी लाएगा, कोई रोजाना बंगले के लॉन में पानी देगा, ऑफिस के कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले ड्राइवर की पत्नी अपने पति के ‘पक्का’ होने लालच में साहब के पोते-पोती की ‘लैट्रिन’ साफ कर देगी, किसी अफसर की पत्नी ‘मैडम’ के लिए उपहार में साड़ी लेकर आएगी और ठेकेदार फिर से मिठाई के डिब्बे और रंग-बिरंगे चमकीले कागजों में पैक उपहार लेकर आएंगे। साहब फिर से खाएंगे और खिलाएंगे। इस बार अपने तजुर्बे से ज्यादा खाएंगे और सुरक्षित रह कर खाएंगे।

साहब ने नौकरी में आने के बाद कभी एक रुपया भी किसी टैक्सी या टेम्पो वाले को नहीं दिया। सब जगह सरकारी गाड़ियां मिल जाती थीं। कभी किसी होटल में रुकने की नौबत नहीं आई। किसी चाय वाले को दस-बीस रुपये का पेमेंट नहीं किया। सब जगह सर्किट हाउस में रहना, बढ़िया से बढ़िया खाना और ऊपर से दिन भर स्टाफ की सलामी मुफ्त में मिलती थी।

रिटायरमेंट के बाद जब साहब को अपनी कार में पेट्रोल भरा कर दो ढ़ाई-हजार रुपये देने पड़ते थे और हर महीने अपने ड्राइवर को 6000 रुपये वेतन देना पड़ता था तो उनका दिल रो पड़ता था। एक बार तो वे किसी निजी काम से दूसरे जिले में गए तो सर्किट हाउस में उन्हें कमरा तक नहीं दिया गया। मजबूरी में किसी ऐसे रिश्तेदार के घर शरण लेनी पड़ी, जिसके घर साहब नौकरी में रहते हुए वे कभी नहीं गए थे।

अब फिर से सरकारी काम निकालकर अलग-अलग जिलों में पत्नी सहित जाएंगे। कलेक्टर गुलदस्ता लेकर उनका स्वागत करेगा। सर्किट हाउस का मैनेजर फिर से सलाम करेगा। साहब को सर्किट हाउस के बरामदे में बैठकर मुफ्त का खाना खाते हुए झील को निहारना अत्यंत रोमांचक लगता है। एक बार तो साहब ने यहां बैठकर कविता तक लिख डाली थी, जिनकी कई जमे हुए सरकारी पुरस्कार प्राप्त कवियों ने सराहना भी की थी।

साहब उन दिनों नौकरी में थे इसलिए फेसबुक पर उनकी कविता को करीब ढ़ाई हजार लाइक मिले थे। रिटायरमेंट के बाद तो जन्मदिन पर भी कुल तेरह लोगों ने फेसबुक पर बधाई दी थी, जबकि सो डेढ़ सौ लोगों की बधाई तो कलेक्ट्रेट के बाबू को भी मिल जाती है।

साहब को 70 साल की उम्र में एक रुपये मासिक की नौकरी पर ही सही, दोबारा ऑफिस में आ जाने से ड्राइवर वर्ग में आश्चर्य था। एक सयाने ड्राइवर ने समझाया कि “जो अफसर अपने कार्यकाल के दौरान खुद कमाई करता है और बड़े नेताओं की कमाई करवाता है तथा जितना ज्यादा भ्रष्ट होता है, उसे रिटायरमेंट के बाद दोबारा कुछ साल के लिए नौकरी मिलने की पूरी संभावना रहती है।”

ड्राइवर अपनी भाषा में यह भी बता रहे थे कि “कुछ पेट्रोल पंप ऐसे भी होते हैं जो सेल्समैन या पेट्रोल भरने वाले को कोई वेतन नहीं देते। उल्टा पेट्रोल भरने वाला कम पेट्रोल मापकर जो चोरी करता है, उसमें से अपना खर्चा निकालने के अलावा मालिक को भी कमा कर देता है। ऐसा ही कुछ साहब के मामले में भी हुआ है।”

साहब के यहां बुढ़ापे में बच्चा पैदा हुआ था और उसने पैदा होने के तीन साल बाद तक माँ का स्तनपान किया और बड़ी मुश्किल से इसे छोड़ा।

आज साहब की रिटायरमेंट के बाद सत्तर साल की उम्र में दोबारा से सरकार में सलाहकार के रूप में नौकरी लगने पर मैडम ने उन्हें प्यार से उलाहना दिया,”क्यों जी, आप तो मेरे बेटे को तीन साल की उम्र में स्तनपान नहीं छोड़ने पर ताना मारते थे, लेकिन आपने तो सत्तर साल की उम्र में भी सरकार के स्तन से ‘दूध’ पीना नहीं छोड़ा!”

साहब फिर से सरकार का ‘स्तनपान’ शुरू होने से अच्छे मूड में थे, सो मैडम की बात सुनकर खिलखिलाकर हंस पड़े और पुलक और उल्लास से किसी जवान लड़के की तरह उन्होंने मैडम को अपनी बाहों में भींच लिया।

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