जारी है रेलवे में मौत का तांडव: प्रयागराज मंडल के कर्मचारी की कहानी उसी की जुबानी

Almost all Zones cancelled maximum trains' movement due to non available sufficient occupancy.

प्रयागराज रेलवे अस्पताल में हुआ अधिकारी का अनुभव

प्रयागराज रेलवे अस्पताल में भर्ती कोरोना संक्रमित रेलकर्मियों और उनके परिजनों को मौत के साक्षात दर्शन हो रहे हैं। एक तो यहां कोई देखने-सुनने और जवाब देने वाला कोई नहीं है, दूसरे इस अस्पताल को राज्य सरकार को अब सौंप दिया गया है, जिससे रेलकर्मियों की बची-खुची जीवन की आस भी खत्म हो गई है।

प्रयागराज मंडल के एक रेलकर्मी संत बिलास पंडित ने यहां अपनी पत्नी के कोरोना संक्रमण और इस अस्पताल में उसे भर्ती कराने के बाद आए अनुभव को लिखकर शेअर किया है। जबकि एक सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एसएजी) स्तर के अधिकारी ने बताया कि कोरोना संक्रमण के चलते वह इस अस्पताल में भर्ती हुए थे। पहले ही दिन उन्हें वहां जो कुछ देखने को मिला, उससे उन्हें फौरन यह आभास हो गया कि यदि तुरंत यहां से अन्यत्र शिफ्ट नहीं हुआ तो अपना हश्र भी अन्य लोगों की तरह ही होगा।

उन्होंने बताया कि वहां उनके वार्ड में तीन अन्य लोग पिछले आठ दिन से भर्ती थे। उनके द्वारा पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें पिछले आठ दिनों से केवल कोई दवा दे दी जाती है, उसका नाम भी नहीं बताया जाता। न उन्हें गरम पानी दिया जाता है, न ही काढ़ा अथवा अन्य जरूरी खानपान का ध्यान रखा जाता है। यहां ज्यादातर लोग अपना खाना घर से मंगाकर खाते हैं। किसी को मिलने की या अंदर आने की अनुमति नहीं है। यह सब देखकर उन्होंने उसी दिन शाम को अपनी शिफ्टिंग अन्य अस्पताल में करा ली थी, जिससे आज वह स्वस्थ होकर घर वापस आ सके हैं।

जबकि कुछ जानकार रेलकर्मियों और मेडिकल स्टाफ का कहना है कि उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय में डिप्टी सीएमडी पांच वर्षों से खूंटा गाड़़कर बैठे हैं। इनके द्वारा झांसी, आगरा कानपुर और प्रयागराज के रेल चिकित्सालयों में विगत कई वर्षों से रेफरल, डिकैटराइजेशन, लोकल पर्चेजिंग, ट्रांसफर आदि में जमकर लूट-खसोट की जा रही है।

उनका कहना है कि इसी तरह केंद्रीय चिकित्सालय में एमडी 30 वर्षों से बैठकर भ्रष्टाचार का रैकेट संचालित कर रहे हैं। 20-20 वर्षों से डॉक्टर, जबकि फार्मासिस्ट/लैब अधीक्षक कानपुर, झांसी आगरा में 25-30 वर्षों से जमे हुए हैं। इनके स्थानांतरण होने के बावजूद कानपुर, झांसी में जोड़-तोड़ करके पुनः पुरानी जगहों पर आ गए हैं।

उन्होंने मांग की है कि स्थानांतरण किए गए डॉक्टरों की जांच करवाई जाए। इनके लंबे समय से एक ही जगह टिके रहने से एनसीआर जोनल एवं मंडल चिकित्सालयों में लापरवाही, कदाचार, हठधर्मिता, निडर एवं भयमुक्त होकर कर्मचारियों एवं उनके परिजनों की मौत का खुला तांडव किया जा रहा है। उन्होंने कहा, हजारों रेलकर्मियों में से कोई एक-दो कर्मचारी ही हिम्मत करके डॉक्टरों एवं चिकित्सालयों के कारनामों की कारगुजारी को उजागर कर पाते हैं।

रेलकर्मी संत बिलास पंडित की कहानी उसी की जुबानी

मेरा नाम संत बिलास पंडित है, मैं उत्तर मध्य रेलवे में S.T.E की पोस्ट पर प्रयागराज में कार्यरत हूं। दिनांक 25 अप्रैल को मैंने अपनी धर्मपत्नी का ऑक्सीमीटर पर ऑक्सीजन लेवल घर पर चेक किया तो 86 आया। उनको और कोई समस्या नहीं थी बस ऑक्सीजन लेवल 86 हो गया। हमें लगा कि हमें उनको रेलवे में ले जाना चाहिए तो मैं उनको रेलवे अस्पताल ले आया जहां पर उनका कोरोना टेस्ट नेगेटिव आ गया और उनको बड़ी रिक्वेस्ट के बाद एडमिट किया गया मेल मेडिकल वार्ड में।

फिर इसके बाद उनको ऑक्सीजन चढ़ाया गया। ऑक्सीजन चढ़ाते ही उनका लेवल 96-97 हो गया। हमने वहां पर नर्स से पूछा कि क्या कोई गंभीर समस्या है, उन्होंने कहा नहीं। हमें लगा सब ठीक है।

शाम को डॉक्टर अनुराग यादव (फोन 9794837543) वहां पर आए। उन्होंने कहा कि ऑक्सीजन को थोड़ा-थोड़ा इस्तेमाल करो, मैं दवाई से ठीक कर दूंगा। हमने बोला ठीक है।

26 अप्रैल की सुबह उनका ऑक्सीजन लेवल ऑक्सीजन के साथ 85-86 आ गया। हमने डॉक्टर से पूछा, क्या हो गया? उन्होंने कहा कुछ नहीं ठीक हो जाएगा। हमारे सामने ही वहां पर अन्य मरीज भी इसी गंभीर हालत में थे और डॉक्टर सब इंतजार कर रहे थे कि कब उनकी मृत्यु हो जाए। वह उनको बस बेसिक दवाई दे रहे थे और कुछ नहीं दे रहे थे। उनकी कोरोना की जांच हुई जिसका रिजल्ट कहा गया कि 3 दिन बाद आएगा।

डॉक्टर ने साइड में बुलाकर हमको यह भी कहा था कि मैं उनको रेफर कर देता हूं, तुम इन्हें जीवन ज्योति अस्पताल ले जाओ। जबकि जीवन ज्योति अस्पताल कोविड नहीं है। वहां पर जाते ही कोरोना की जांच होती और यदि रिपोर्ट पॉजिटिव आती तो उनको वहां पर भी एडमिशन नहीं मिलता। डॉ अनुराग यादव हमसे बार-बार कह रहे थे कि जीवन ज्योति ले जाओ, जीवन ज्योति ले जाओ, जैसे मानो वह वहां का कोई दलाल हो। यहां इलाज करने के अलावा वह बाकी सब ज्ञान दे रहा था।

कुछ जानकारों ने कहा कि रेलवे अस्पताल अच्छा है। वहां ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा है। वहीं पर रखो। हमने सोचा ठीक है। हम रेलवे में ही रखेंगे, पर वह हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी।

पूरा दिन 26 अप्रैल को हमने इंतजार किया। उनको कोई भी दवाई नहीं मिली। बस ऑक्सीजन लगाते गए और बार-बार आकर ऑक्सीजन को कम भी कर दे रहे थे। बहुत रिक्वेस्ट करने पर हाथ जोड़ने पर थोड़ा सा ऑक्सीजन और बढ़ाते थे। 

27 तारीख को उनका ऑक्सीजन लेवल करीब 70 हो चुका था। हमने उनसे हाथ जोड़कर विनती की कि डॉक्टर इलाज के लिए दवा दीजिए, कुछ भी तो नहीं चल रहा है, हमें समझ नहीं आ रहा है कि हमें क्या करना चाहिए और डॉक्टर कहता रहा कि यह तो कोविड नेगेटिव है।

असल में डॉक्टर्स नर्सेज काम नहीं कर रहे थे। बस इंतजार करो, जब मरीज मर जाए और वह डेथ सर्टिफिकेट इश्यू करें। हमारे सामने ही मरीज के मरने से पहले डॉक्टर नर्सों को कह देता कि दो डेथ सर्टिफिकेट ले आना, यह आज रात को ये मर जाएंगे। हमारी तरह कई लोग वहां पर आए और अपने-अपने मरीजों के अच्छे होने की उम्मीद करने के बावजूद उनकी लाशें लेकर उन्हें घर जाना पड़ा और इन सब की हत्या हो गई डॉक्टर के द्वारा।

क्योंकि मैं पहले इंडियन आर्मी में था, तो मैंने रेलवे अस्पताल आने से पहले इनका जांच मिलिट्री हॉस्पिटल में भी करवाया था। फिर मुझे याद आया कि क्यों न मैं वहां जाकर देखूं कि वहां करोना की क्या रिपोर्ट आई है। जब मैं वहां गया तो पता चला कि इनका कोरोना पॉजिटिव है।

तब मैंने डॉ अनुराग यादव को वह रिपोर्ट दिखाई। तब तक इनका ऑक्सीजन लेवल 65 हो चुका था। 27 की शाम हो रही थी और वो कह रही थी कि मुझे हवा नहीं आ रही है, ऑक्सीजन नहीं आ रहा। जब डॉ अनुराग को बताया, दिखाया, मगर डॉ अनुराग ने करीब चार घंटे तक बस पेपर वर्क में समय बिता दिया और फिर मध्य रात को 12:00 बजे के बाद ही हम उनको कोविड वार्ड शिफ्ट कर पाए। 

हमें लगा कि कोविड वार्ड में अच्छा इलाज होगा पर हम अभी भी गलत थे। कोविड वार्ड में आते ही पता चला कि वहां पर तो मरीजों का ध्यान ही नहीं रखा जा रहा है, दवाईयां तो चल ही नहीं रही हैं, बस वही ऑक्सीजन चढ़ाया जा रहा है जो कम कर दिया जा रहा है और तड़पा-तड़पाकर मरीजों को मारा जा रहा है।

हमने डॉ हंडू से बात करने की कोशिश की, हमने डॉ हंडू को बताया कि सर बहुत अर्जेंट है, बहुत इमरजेंसी है, तो डॉ हंडू तो अपनी व्यवस्था में अलग ही बिजी थे। उन्होंने हमारी बात पर न तो ध्यान दिया, न ही कोई एक्शन लिया।

फिर हमारे बेटे ने वहां जाकर डॉक्टर से बात की, बोला कि अगर रेमडेसीविर दवाई चाहिए तो मैं अरेंज कर दूंगा, मेरी मां को वह लगा दो। मगर उन्होंने कहा, हमारे पास उससे बेहतर दवाईयां हैं आपकी मां ठीक हो जाएंगी।

अब तक तो उनका ऑक्सीजन लेवल करीब 40-50 चुका था। उन्होंने हमको फोन भी किया था, न जाने कैसे हिम्मत कर उन्होंने उस 50 ऑक्सीजन लेवल में भी हमें फोन किया और इन्फॉर्म किया कि मेरा ऑक्सीजन लेवल बहुत कम हो गया है, मुझे हवा नहीं आ रही है, मुझे ऑक्सीजन नहीं आ रहा है। वह अंदर तड़प रही थी।

हमने डॉक्टरों को बहुत फोन किया पर किसी ने फोन नहीं उठाया। किसी ने भी हमें जवाब नहीं दिया। नाम के लिए इन्होंने व्हाट्सएप पर ग्रुप बना दिया था और कहा कि इससे अपडेट आता रहेगा, अगर आपको कुछ बात करनी हो तो आप इस पर कह सकते हैं। पर जब भी कुछ अपडेट मांगा, कोई रिप्लाई नहीं करता था।

हमारी तरह ही वहां न जाने कितने ऐसे घर वाले हैं, जो अपने-अपने रिप्लाई का वेट कर रहे हैं। वहां कोविड वार्ड के बाहर जाने के बाद पता चला कि वहां सब के सब रो रहे हैं, क्योंकि सब के परिजन मर चुके हैं या मरने वाले हैं और इसके लिए पूरा का पूरा जिम्मेवार रेलवे का कोविड अस्पताल है। यहां के डॉक्टर और इसके अंदर ये लोग इलाज नहीं कर रहे हैं। यह लोगों को मार रहे हैं अंदर।

बहुत जुगाड़ के बाद मेरा बेटा जैसे-तैसे करके अंदर जा पाया, तब पता चला कि अंदर उनको ऑक्सीजन ही नहीं लगाया है। खाना तो दूर की बात सुबह से किसी ने उनको एक घूंट पानी तक नहीं पिलाया है।

बहुत कोशिशों के बाद बहुत हाथ-पांव जोड़ने के बाद बहुत विनती करने के बाद भी कुछ न हो सका। 28 की रात को मेरी धर्मपत्नी श्रीमती प्रियंवदा देवी का देहांत हो गया। डेथ सर्टिफिकेट के अनुसार 11:45 पर वह हम सब को छोड़कर जा चुकी थी। जबकि 1:00 बजे तक मेरा बेटा कोविड वार्ड के बाहर डॉक्टर से पूछता रहा कि वह कैसी हैं। और वह कहते रहे कि हालत थोड़ी क्रिटिकल है बस।

उन्होंने यह नहीं बातया कि उनकी मृत्यु हो चुकी है। इसकी जानकारी भी हमें खुद से नहीं दी गई। हमारे बहुत मैसेज करने के बाद डॉ मृत्युंजय को उन्होंने बोला कि प्रियंवदा देवी की मृत्यु हो चुकी है कल रात को, जबकि डॉ मृत्युंजय से हम हर रोज मैसेज करके पूछते रहे कि उनकी हालत कैसी है, कृपया हमें अपडेट करें। परंतु डॉक्टर तो बस देहांत वाली खबर हमें बताए। सब अंदर ही मार रहे हैं मरीजों को और कुछ भी नहीं कर रहे हैं। 

अगर सही से इलाज होता तो मेरी धर्मपत्नी बच सकती थी। हम उनको बिल्कुल नॉर्मल लाए थे। तब खाना खा रही थी, पानी पी रही थी, बात कर रही थी, सब कुछ नॉर्मल था मगर डॉक्टरों ने उसे मार दिया। यह उनकी स्वाभाविक मृत्यु नहीं है, बल्कि यह उनकी हत्या है। आज जो हमारे डॉक्टर कर रहे हैं, वह भूल गए हैं कि कल उनको भी यही सब देखना है। उनके घर वालों के साथ भी भगवान अगर कुछ ऐसा हो तो उनको पता चलेगा कि ये उनके पापों की सजा है।

अंत में मैं आप सबसे यही कहना चाहता हूं कि आप अपने अपने परिजनों का बहुत ध्यान रखें और उच्च स्तर पर बैठे हुए अधिकारियों से विनती करता हूं कि इसकी जांच हो और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, ताकि मौत का यह तांडव किसी और के साथ न हो।

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