“एनआरसीएच की सीईओ” से मर रहे रेलकर्मियों को बचाएं रेलमंत्री, सीईओ

Think from the perspective of the people and take decision on time for the benefit of them.

जीएम्स का सभी विभाग प्रमुखों के साथ सभी कोरोना पॉजिटिव रेल कर्मचारियों और अधिकारियों का व्हाट्सएप ग्रुप बनने पर ही चीजें सही तरीके से आगे बढ़ पाएंगी!

सुरेश त्रिपाठी

व्यवस्था ढ़ही नहीं है, उजागर हुई है बुरी तरह!” शीर्षक खबर प्रकाशित होने के बाद निकले इस आदेश की वृहद स्तर पर पब्लिसिटी किए जाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही यह सभी रेल में लागू होना चाहिए।

होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों को सलाह देने, उनसे संपर्क करने के लिए भी तीन रिटायर्ड डॉक्टरों का जो आर्डर निकाला गया है, उसके बारे में भी अभी अधिकांश लोग को पता नहीं है।

जैसा कि हजारों कर्मचारियों का आक्रोश और सुझाव है कि डीआरएम, जीएम, सीईओ और रेलमंत्री प्रतिदिन जब तक कम से कम 10 कोरोना पीड़ितों से सीधे बात नहीं करेंगे, तब तक व्यवस्था पर सतही और लीपापोती का काम ही होता रहेगा, जिससे लोगों को व्यवस्था द्वारा लावारिस की तरह ट्रीट करने का जख्म जीवनपर्यंत बना रहेगा। लोग जिंदा रहकर भी मृतकों की भांति अपनी नौकरी कर समय गुजार देंगे।

“लेकिन जब तक डॉ रुष्मा टंडन को एनआरसीएच के प्रशासनिक पद से हटाया नहीं जाएगा तब तक रेल प्रशासन सही दिशा में कोई ऐक्शन ले रहा है, ऐसा मैसेज कर्मचारियों और अधिकारियों में कतई नहीं जाएगा। जिसको डॉक्टर कहना भी डॉक्टर की बेइज्जती करने जैसा लगता है, वह डॉ रुष्मा टंडन जब तक एनआरसीएच में रहेंगी, और यहां का प्रशासन देखेंगी, तब तक एनआरसीएच मरघट ही बना रहेगा।” यह कहना है यहां के कई डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ का।

सीईओ/रेलवे बोर्ड को इस बात का शायद तनिक भी अंदाजा नहीं है कि जिस तरह से कोरोना से अकाल काल कवलित हुए कई कर्मचारियों के परिजन ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग लेकर पीएमओ सहित सीवीसी, सीबीआई और मानवाधिकार आयोग आदि को शिकायत करने की तैयारी कर रहे हैं तथा कोर्ट में जाने की सोच रहे हैं, उसमें डॉ रुष्मा टंडन और इनकी माफिया टोली के लोग सीईओ को उनके रिटायरमेंट से पहले किसी बड़ी मुसीबत में डाल सकते हैं। जीएम और बाकी अन्य जिम्मेदार लोग भी अपनी अकर्मण्यता के चलते काफी मुश्किल में पड़ सकते हैं।

कई कर्मचारियों के परिवार के लोगों ने फोन कर कहा कि जब अगरतला के बददिमाग डीएम शैलेश यादव को अगली सुबह ससपेंड(?) किया जा सकता है, तो फिर जान से खेलने वाली इस डाकिनी शाकिनी विद्या की अधिष्ठात्री देवी रुष्मा टंडन को क्यों नहीं अविलंब बर्खास्त किया या हटाया जा सकता?

उनका कहना है कि “इस महाबला से किसे इतना लगाव है, जो इस पर कार्यवाही नहीं हो रही? कोरोना से हुई मौतों की जिम्मेदारी इसके ऊपर क्यों तय नहीं हो रही है? सिर्फ कोरोना ही क्यों, दूसरे डॉक्टर्स की ओपीनियन के विरुद्ध जाकर ये डाकिनी अपनी मनमानी से उनके पेशेंट्स को हॉस्पिटल में कब देखना है, कब दाखिल करना है, और कब निकाल बाहर फेंकना है, यह दैत्य देवी ही तय करती है। ट्रीटमेंट करने वाला डॉक्टर जानकर और चाहकर भी अपने मरीज पर स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले पा रहा है और चुपचाप मन-मसोसकर वही करता है, जो इस मरघट की देवी का आदेश होता है।”

एनआरसीएच के अधिकांश समर्पित और काबिल नर्सिंग स्टॉफ तथा डॉक्टर्स रुष्मा टंडन के कारण हतोत्साहित, अपमानित होकर खिन्न मन से ही काम कर रहें है। सबकी जुबान पर इनकी कोई न कोई व्यथा है। वे इन्हें व्यंग्य से “एनआरसीएच का सीईओ” ही बोलते हैं।

इस “महाबला” से मर रहे रेलकर्मियों को बचाएं रेलमंत्री!

डॉ रुष्मा टंडन के दम्भ, अदूरदर्शिता, अक्षमता, अयोग्यता और तानाशाही का यह आलम है कि जिन क्रिटिकल बीमारियों के एक ही डॉक्टर हैं, उनकी भी कोरोना वार्ड में ड्यूटी लगा दी जा रही है। अब पहले से आसाध्य रोगों से पीड़ित मरीजों का कोई भी देखनहार नहीं रह गया है। कई गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीज इस व्यवस्था से दहशत में हैं। उनका परिवार चिंता में है कि अब वे कहां जाएं। डॉक्टरों का कहना है कि “आसाध्य बीमारियों से पीड़ित जो मरीज 4-5 साल लगातार ट्रीटमेंट से जीवित रह सकते हैं, यह ‘मरघट की देवी’ उन्हें कोरोना के साथ ही निपटाने का इंतजाम करती प्रतीत हो रही है।”

उन्होंने कहा कि “कोविड की पूरी व्यवस्था संभालने वाली इस दैत्य देवी से पूछा जाना चाहिए कि 24 घंटे में क्या कभी भी 24 सेकेंड के लिए भी वह कोविड वार्ड में मरीजों को देखने गई है? क्या अब तक कभी भी किसी भी दिन 24 सेकेंड के लिए भी वह कोविड वार्ड में खड़ी रही है?

उनका कहना है कि “किडनी, हार्ट, कैंसर, सर्जरी से जुड़े बेहतरीन डॉक्टर्स को उनके मरीज के लिए ही रिजर्व रखना चाहिए। हर अस्पताल में रखा जाता है। मेडिकल प्रोफेशन की यही परंपरा और नियम भी है, क्योंकि इनके मरीज कभी भी क्रिटिकल स्थिति में आ सकते हैं, उन्हें अपने रूटीन तरीके से ही काम करने देना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि “रिटायरमेंट के बाद से रेल में ही नियोजित डॉक्टर्स को फ्रंट पर रखना चाहिए, जिससे उनके अनुभव का लाभ कोरोना मरीजों के नियोजन, कंसल्टेशन और ट्रीटमेंट में मिल सके तथा असाध्य रोगों के मरीजों के डॉक्टर अपना नियमित कार्य कर सकें, अन्यथा अगर इलाज के अभाव में इन असाध्य बीमारियों के मरीज मरेंगे, तो इनकी संख्या बहुत बड़ी होगी। और तब क्या यह जानबूझकर किया जाने वाला संहार नहीं होगा?”

अभी भी समय है, चेत जाएं रेलमंत्री, सीईओ, सभी जीएम और डीआरएम

रेलमंत्री, चेयरमैन/सीईओ/रेलवे बोर्ड, सभी जीएम और सभी डीआरएम को अभी भी चेत जाना चाहिए और चीजों को अविलंब संभाल लेना चाहिए। अभी भी बहुत ज्यादा देर नहीं हुई है, अभी भी समय है, कोरोना को सर्वोच्च प्राथमिकता पर लेकर काम करना और उसकी मॉनिटरिंग तुरंत शुरू करें, जो वास्तव में होते हुए दिखना भी चाहिए।

वरना जो आक्रोश, क्षोभ और योजना, कोरोना से जूझ रहे और कोरोना से हरा दिए गए मृतकों के परिजनों में है, उसे देखकर यह शत-प्रतिशत तय माना जा रहा है कि प्रशासनिक लापरवाही और बदइंतजामी से हुई कोरोना मौतों का हिसाब तो उन्हें अवश्य देना पड़ेगा।

जब कोरोना की सुनामी उतरेगी, तब उस सुनामी से बड़े-बड़े लोगों, जो अपने को अभी शहंशाह समझ बैठे हैं, स्वयं को सर्वज्ञाता मान चुके हैं, किसी की भी सुनने को तैयार नहीं हैं, उन्हें हर तरह के कटघरे में खड़ा होना पड़ेगा, यह तय है। 

मंत्री ने अधिकांश रेल अधिकारियों की मौत सुनिश्चित की

भारत सरकार, स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 28 अप्रैल 2021 को जारी की गई गाइडलाइन ध्यान से पढ़ें। इसमें घरों में बंद किए गए (होम आइसोलेशन में) को “केअर गिवर” से ही कहानी शुरू होती है और उसी पर खत्म भी होती है।

टीएडीके या केअरगिवर को खत्म कर मंत्री ने अधिकांश रेल अधिकारियों की मौत सुनिश्चित कर दी है। हर घर में तकरीबन एक-एक करके लोग पॉजिटिव हो रहे हैं। अधिकारी को ड्यूटी भी करनी है और घर भी देखना है। बिना बंगला प्यून (टीएडीके) के उन्हें कोई देखने वाला तक नहीं बचा है।

यह समय परिवार के मुखिया को ज्यादा संवेदनशील होकर और अपना अहं, अपनी जिद्द छोड़कर टीएडीके को पूर्व की स्थिति में बहाल कर देना चाहिए, क्योंकि जिस फौज के भरोसे आप जो जंग जितना चाहते हैं, उसका पेट काटकर और उसकी सुविधाओं में कमी करके आप कोई भी जंग जीत नहीं सकते, यह तथ्यात्मक सत्य है।

28 फरवरी 2021 को रेल भवन सभागार में आयोजित रिटायरमेंट कार्यक्रम में मंत्री के कथन, कि “उन्होंने बंगला प्यून की व्यवस्था को खत्म नहीं किया है, बल्कि उसका तरीका बदला है”, के निहितार्थ को समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं है। इस तरह का अर्धसत्य बोलकर अथवा दिग्भ्रमित कर व्यवस्था का सुचारु संचालन नहीं किया जा सकता, यह बात मंत्री को समझनी चाहिए।

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