आरपीएफ अधिकारियों द्वारा अधिकार का दुरुपयोग – जवानों की गलत तैनाती और उत्पीड़न
बाबुओं के आवधिक स्थानांतरण और रेलवे बोर्ड में नियम-विरुद्ध पचासों अटैचमेंट्स पर डीजी/आरपीएफ की निष्क्रियता क्यों है? इसका संज्ञान मंत्री और सीआरबी स्तर पर अविलंब लिया जाना चाहिए!
लगभग सभी महाप्रबंधक अपने निरीक्षणों के दौरान “गार्ड ऑफ ऑनर” लेते हैं। आरपीएफ अधिकारियों द्वारा उनकी चापलूसी में करवाया जाने वाला यह तमाशा बंद होना चाहिए। महाप्रबंधकों को भी चाहिए कि इस तरह की तमाशेबाजी को अवांछित घोषित करके पद की गरिमा पुनर्स्थापित करें!
एक आरपीएफ कांस्टेबल संदीप चौधरी कहते हैं कि “इस समय उन्हें रेल की नौकरी में कोई समस्या नहीं है, बल्कि वह यह कह सकते हैं कि 15 साल की नौकरी में अब तक की सबसे अच्छी जगह उनकी पोस्टिंग है, लेकिन सवाल यह है कि अगर आपकी आखों के सामने बहुत कुछ गलत हो रहा हो, तो आखिर आप कब तक चुप रहेंगे?”
वह आगे कहते हैं कि “मीडिया के सामने वह तब भी नहीं आए थे, जब उन्हें दो वर्ष पहले सिर्फ इसलिए बर्खास्त कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने महाप्रबंधक महोदय को दिए जा रहे “गार्ड ऑफ ऑनर” पर सवाल खड़ा किया था और फेसबुक पर भी लिखा था, क्योंकि उसी दिन, रात के समय में मुरादाबाद-चंदौसी रेलवे ट्रैक को काट दिया गया था।”
चौधरी कहते हैं कि “यह कोई छोटी-मोटी घटना नहीं थी, बल्कि इससे दो दिन पहले जब कानपुर में आतंकी घटना हुई थी, तब घटनास्थल पर उत्तर प्रदेश पुलिस के बड़े अधिकारी तुरंत पहुंचे थे। डीआईजी दलबीर सिंह खुद मौजूद थे। जबकि ट्रैक काट दिए जाने जैसी बड़ी घटना होने के बावजूद यहां मुरादाबाद में मंडल प्रशासन अपनी मौज-मस्ती और महाप्रबंधक की अगवानी और गार्ड ऑफ ऑनर देने में लगा हुआ था।”
मुरादाबाद मंडल प्रशासन चाटुकारिता की सारी हदें पार करके बेशर्मों की तरह तत्कालीन महाप्रबंधक/उत्तर रेलवे को “गार्ड ऑफ ऑनर” दे रहा था जबकि वे इसके पात्र भी नहीं थे। उसी दिन से आरपीएफ कांस्टेबल संदीप चौधरी ने भ्रष्टाचार और गलत लोगों के खिकाफ आवाज उठाना शुरु कर दिया था, जो आज भी जारी है, और यह सिलसिला शायद आगे भी जारी रहेगा।
हालांकि “ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन” अपने स्तर से इन मुद्दों को जब-तब उठाती ही रही है, लेकिन फिर धुन के पक्के आरपीएफ कांस्टेबल संदीप चौधरी ने निजी स्तर पर इसके साक्ष्य जुटाने शुरु कर दिए, देखें-
#SandeepChaudhary, President AIRPFA, Moradab Division, NRly on misuse of power & corruption by RPF officers
1. ओएचई और पिट लाइन की ड्यूटी, जो आरपीएफ से कराई जा रही है, पूरी तरह से अवैध है, क्योंकि इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी तब तक संबंधित कंपनी अथवा ठेकेदार की होती है, जब तक कि कंपनी अपना कार्य पूरा करके रेल के सुपुर्द नहीं कर देती। लेकिन यह काम आरपीएफ जवानों से कराए जाने का ये कदाचार अथवा भ्रष्टाचार किसके कहने पर अब तक चला आ रहा है, इसके लिए कौन-कौन आरपीएफ अधिकारी जिम्मेदार है, यह जांच का विषय है। जांच भी किसी भी बाहरी एजेंसी से होनी चाहिए, क्योंकि रेल के उच्चाधिकारियों पर तो स्वयं ही प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है।
2. पूरी भारतीय रेल में 68 डीआरएम, 27 जीएम और एक सीआरबी/सीईओ/ रेलवे बोर्ड, इन सभी के बंगलों पर जो आरपीएफ सिपाहियों की गार्डिंग (सुरक्षा) लगी हुई है, वह सब अवैध है, क्योंकि रेल के इन सभी बड़े अधिकारियों में से कोई भी अधिकारी किसी भी स्तर पर अपने बंगलों के बाहर अपनी निजी सुरक्षा हेतु आरपीएफ जवानों की तैनाती करने के लिए पात्र नहीं है।
3. रेलवे की जमीन पर हर जगह अतिक्रमण है। यह भी जगजाहिर है कि यह अतिक्रमण इंजीनियरिंग स्टाफ और आरपीएफ की मिलीभगत का नतीजा है, तथापि रेल प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। पूरी भारतीय रेल में इन अवैध कब्जों की गहन जांच कराकर संबंधितों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करके रेल भूमि को भू-माफियाओं से अविलंब मुक्त कराया जाए।
4. जितने महाप्रबंधक भारतीय रेल में हैं, लगभग सभी अपने निरीक्षणों के दौरान “गार्ड ऑफ ऑनर” लेते हैं, अथवा संबंधित आरपीएफ अधिकारियों द्वारा उनकी चापलूसी में यह तमाशा आरपीएफ जवानों से हर हाल में करवाया जाता है। इसकी आंतरिक जांच की जा सकती है। महाप्रबंधकों को भी चाहिए कि उनकी अनावश्यक चमचागीरी के लिए आरपीएफ अधिकारियों द्वारा की जाने वाली इस तरह की तमाशेबाजी को समझें और ऐसी गतिविधियों को अवांछित घोषित करके, नकार कर महाप्रबंधक पद की गरिमा को पुनर्स्थापित करें!
5. आरपीएफ थानों पर रात में ड्यूटी करने के लिए विभागीय स्तर पर कोई अधिकृत वाहन उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। अचानक घटित होने वाली किसी घटना के लिए अविलंब घटनास्थल पर पहुंचने हेतु आपातकालीन कोई व्यवस्था भी उपलब्ध नहीं हैं। यही नहीं, बहुत सी चौकियों पर तैनात आरपीएफ सिपाहियों के पास अपनी निजी मोटरसाइकिल तक नहीं होती है। जबकि मंडल, जोन और रेलवे बोर्ड स्तर पर हजारों प्राइवेट गाड़ियां लगभग हर अधिकारी के लिए उपलब्ध कराई गई हैं।
6. रेल मंत्रालय से विकास के नाम पर जो भी पैसा आ रहा है, उसे कहां खर्च किया जाए, इस संबंध में लूट मची हुई है। एक तरह से संगठित लूट हो रही है, ऐसा कहा जाए, तो शायद ज्यादा सही होगा। हरिद्वार में कुंभ के नाम पर रेल मंत्रालय से करोड़ों रुपये जारी हुए हैं, मगर उनका उपयोग हरिद्वार रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्मों पर जो पत्थर ठीक थे उन्हें ही तोड़ करके उनकी जगह उसी तरह के दूसरे पत्थर लगाने में किया गया है। ऊपर का टीन शेड बिना ठीक किए करोड़ों की वाटर सीलिंग लगा दी गई। ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं, यदि पब्लिक फंड की वास्तविक अफरा-तफरी देखनी है, तो सीबीआई और सीवीसी अधिकारियों को हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर सशरीर उपस्थित होना होगा।
7. महानिदेशक/आरपीएफ) ने सिर्फ अपनी पुलिसिया हेकड़ी दर्शाने के लिए पूरे आरपीएफ स्टाफ को यहां-वहां दरबदर कर दिया। इससे भी किसी आरपीएफ सिपाही को शायद कोई दिक्कत नहीं हुई, उन्होंने कोई उफ नहीं की, क्योंकि डीजी द्वारा उनकी प्रतिनिधि संस्था “ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन” को मृतप्राय करके उन्हें लावारिस बना दिया गया, उनका पक्ष सुनने को वह तैयार नहीं होते, लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ में जो बाबू बैठे हैं, उनका कोई ट्रांसफर क्यों नहीं है? बाबुओं के आवधिक स्थानांतरण और रेलवे बोर्ड में नियम-विरुद्ध पचासों अटैचमेंट्स पर डीजी/आरपीएफ की निष्क्रियता क्यों है? इसका संज्ञान मंत्री और सीआरबी स्तर पर अविलंब लिया जाना चाहिए।
8. हाल ही में एडीजी अनूप श्रीवास्तव ने अधिकार और कर्तव्य के विभाजन में असंतुलन से असंतुष्ट होकर जो वीआरएस का आवेदन कर दिया था, वह ऐसे ही नहीं किया था। इसका कारण डीजी/आरपीएफ के साथ गहरे आपसी मतभेद थे। सही बात है कि डीजी/आरपीएफ को अनूप श्रीवास्तव फूटी आंख नहीं सुहाते, क्योंकि अनूप श्रीवास्तव ही वह एकमात्र आरपीएफ अधिकारी थे, जिन्होंने मंत्री और डीजी की उपस्थिति में सबके सामने आरपीएफ एसोसिएशन की उपयोगिता को बखूबी रेखांकित करते हुए उसे बनाए रखने की वकालत की थी। यही नहीं, अनूप श्रीवास्तव जब आईजी/सीएससी थे, तब भी यदि उन्होंने किसी पत्र की संस्तुति की थी, तब भी डीजी/आरपीएफ उस पर कोई उचित संज्ञान लेना जरूरी नहीं समझते थे।
बहुत स्पष्ट है कि जब तक ओएचई अथवा अन्य किसी भी कंस्ट्रक्शन साइट का कार्य समाप्त करके समस्त व्यवस्था रेल के अधीन सुपुर्द नहीं हो जाती, तब तक वहां किसी भी उपकरण या मटीरियल की चोरी हो जाने की स्थिति में उसकी जिम्मेदारी संबंधित ठेकेदार अथवा कंपनी की होनी चाहिए। जबकि रेल प्रशासन यानि संबंधित आरपीएफ अधिकारी ऐसी सभी साइट्स की सुरक्षा आरपीएफ से करा रहे हैं। सरकारी मानव संसाधन का दुरुपयोग रोकने के लिए ऐसी सभी गतिविधियाें को तुरंत बंद कराया जाना चाहिए। मुरादाबाद डिवीजन में वर्तमान में भी यह नियम-विरुद्ध कार्य बदस्तूर जारी है।
#SandeepChaudhary, Office Bearer, AIRPFA on different #corruption issues
“अभी-भी शायद कुछ लोगों की आत्मा जीवित बची है, लड़ने वाले अभी-भी लड़ेंगे, सामने चाहे कितने भी सामर्थ्यवान क्यों न हों, क्योंकि जिन्हें बोलना चाहिए था, उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। सभी फेडरेशन और एसोसिएशन, जो कहते थे कि वे धरती पलट देंगे, रेल रोक देंगे, उनकी बोलती बंद है, उन सब की घिग्घी बंधी हुई है, उनकी सांस भी नहीं निकल पा रही है! ऐसे में रेल का तो अब ईश्वर ही मालिक है!!”
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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