September 14, 2020

कहीं “यमलोक का द्वार” तो साबित नहीं हो रहा पश्चिम रेलवे का जगजीवन राम हॉस्पिटल!

जेआरएच में पैसे खर्च करने की नहीं, केवल सिस्टम सुधारने की आवश्यकता है। इसके साथ ही अस्पताल प्रशासन का दैनंदिन हस्तक्षेप अत्यंत आवश्यक है

पश्चिम रेलवे के जिम्मेदार रेल अधिकारियों और जागरूक जनप्रतिनिधियों को पढ़ने-सुनने में यह हेडलाइन काफी बुरी लग सकती है, परंतु उनके द्वारा इसे नजरअंदाज करना उतना ही घातक होगा जितना कि घास के ढ़ेर पर बैठे व्यक्ति का दावानल को नजरअंदाज करना। उन्हें ज्ञात होगा कि मुंबई सेंट्रल स्थित पश्चिम रेलवे का जगजीवन राम (जेआरएच) रेलवे अस्पताल वर्तमान में पूरी तरह से कोविड अस्पताल के रूप में कार्य कर रहा है। यहां करीब 200 बिस्तर कोविड मरीजों के लिए हर समय तैयार हैं। मुंबई में रहने वाले मध्य एवं पश्चिम रेलवे के हजारों रेलकर्मियों तथा उनके परिजनों का कोविड इलाज यहीं किया जा रहा है।

यह सही है कि यहां एक बड़ा तंत्र रात-दिन कार्य कर रहा है! नित्य प्रति अनेकों नए लोग इलाज हेतु यहां आ रहे हैं और उससे कुछ कम लोग रोज ठीक होकर घर जा रहे हैं। अब ठीक कौन हो रहे हैं, और कुछ कम लोग घर क्यों जा रहे हैं, पूरे क्यों नहीं, तो यह बात जान लें कि देश भर में जितने लोग भारत सरकार के रिकॉर्ड में कोविड संक्रमित हैं, उससे आधे लोग शर्तिया रूप से जाने-अनजाने कोविड संक्रमित होकर आराम से अनजाने में ही ठीक भी हो जा रहे हैं।

जब इस बीमारी का कोई इलाज ही नहीं है, तो अस्पताल में क्या होता है? जब व्यक्ति गर्म पानी पीने, गरारे करने, भाप लेने, नींबू, हल्दी का दूध, आयुष काढ़ा पीने से ठीक हो जाते हैं – यह बात लगभग प्रमाणित भी हो चुकी है – तो अस्पताल की क्या भूमिका है? यदि अस्पताल से केवल वे लोग ठीक होकर घर जा रहे हैं, जो कोरोना से संक्रमित तो हैं, पर उनके अन्य शारीरिक मापदंड जैसे ईसीजी, एक्स-रे, खून की बायोकेमिस्ट्री रिपोर्ट अभी तक सामान्य है, तो ऐसे मरीजों को ठीक कर घर भेजना अस्पतालों का “अचीवमेंट” कैसे समझा जाए?

ऐसे हजारों-लाखों लोग अपने घर में ही जाने या अनजाने में ठीक हो रहे हैं। फिर जेआरएच, भायखला या कल्याण रेलवे अस्पताल पर कोविड के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने की क्या आवश्यकता है? सरकार द्वारा अस्पतालों को करोड़ों रुपए का सहयोग केवल इसीलिए दिया जा रहा है कि वे गंभीर मरीजों को भी ठीक कर अकाल काल कवलित होने से बचाएं और यही उनका अचीवमेंट भी माना जाएगा। परंतु इस दिशा में जगजीवन राम अस्पताल पूरी तरह से असफल साबित हो रहा है। जब करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हों, एक पूरी मशीनरी रात-दिन इस पर कार्य कर रही हो, तो फिर प्रतिदिन कई-कई मौतें यहां क्यों हो रही हैं? यह विचारणीय है।

इस संबंध में जेआरएच में उपचार हेतु भर्ती रह चुके मरीजों के अनुभव के आधार पर जो निष्कर्ष एवं सुझाव सामने आए हैं, वह उन्हीं की कलम से इस प्रकार हैं –

1. जेआरएच को हमने कभी भी सेनेटाइज्ड होते नहीं देखा। अतः पूरे अस्पताल को प्रतिदिन तीन से चार बार सैनिटाइज किया जाना चाहिए!

2. सुबह का चाय-नाश्ता 8:00 से 9:00 बजे के बीच अनिश्चित समय पर दिया जाता है। इसमें भी केतली से एक जगह खड़े होकर पहले चाय सभी कपों में भर ली जाती है, फिर धीरे-धीरे बांटते हैं। उसके बाद नाश्ता दिया जाता है। तब तक चाय पानी जैसी हो जाती है। जबकि गरम-गरम चाय पीना भी इलाज की श्रेणी में आता है। अतः जब चाय-नाश्ता एक ही ट्राली पर साथ-साथ आता है, तो पहले नाश्ता दिया जाए। उसके बाद थर्मस से हर एक मरीज को सीधे उसके बिस्तर पर जाकर चाय दी जानी चाहिए?

3. साफ-सफाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। फर्श की सफाई का अजीब तरीका इस्तेमाल होता है। गीले फर्श को जिस रबर के पेड से साफ किया जाता है, उस पैड से सूखे फर्श की सफाई की जाती है। या यूं कहें झाड़ू लगाई जाती है। अतः हर शिफ्ट में 24 घंटे में तीन बार फिनाइल से फर्श की सफाई होनी चाहिए।

4. ओढ़ने के लिए चादर या कंबल नहीं दिया जाता है। अतः मरीजों को चादर उपलब्ध कराई जाए।

5. मरीज के भर्ती होने पर जो चादर एक बार बिछाई जाती है, वह चादर मरीज के डिस्चार्ज होने तक नहीं बदली जाती है, ऐसा नहीं होना चाहिए। चादर कम से कम हर दूसरे दिन बदली जाए।

6. हालांकि अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर काफी रहते हैं। परंतु बेड साइड पाइपलाइन जो लगी है, उनसे ही मरीज को ऑक्सीजन दी जानी चाहिए। पर अधिकांश बिस्तरों के पास लगे ऑक्सीजन पॉइंट काम नहीं करते हैं। इसके चलते अस्पताल स्टाफ तथा मरीज दोनों को परेशानी होती है। बिस्तर के पास उपलब्ध पॉइंट से ही ऑक्सीजन दी जाए। उनको तत्काल प्रभाव से दुरुस्त कराया जाए। गैस सिलेंडर का जमीन में घसीटते हुए ले जाना तत्काल बंद कराया जाए। इससे फर्श भी खराब हो रहा है और कर्कश आवाज होने से मरीजों को बहुत परेशानी होती है।

7. यदि रेल संगठन ठंडे/गरम पानी की मशीनें उपलब्ध न कराते, तो कोविड अस्पताल में मरीजों को गर्म पानी पीने या गार्गल करने को न मिलता। जबकि सभी जानते हैं कोविड मरीजों को गर्म पानी कितना जरूरी है। संगठन द्वारा उपलब्ध कराई गई मशीनें यदि किसी कारणवश खराब हो गईं, तो मरीजों को गर्म पानी हर समय उपलब्ध रहे, अस्पताल द्वारा इसकी समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए।

8. देखने में आया है कि अनेकों मरीज ऐसे भी रहे जिन्हें गलत निर्णय लेकर जेआरएच भेजा गया, उनको कोविड मरीजों के बीच रख लिया गया। बाद में पता चला कि वह कोविड पॉजिटिव है ही नहीं। ऐसी त्रुटिपूर्ण व्यवस्था पर तत्काल रूप से प्रतिबंध लगाया जाए, क्योंकि अच्छा भला व्यक्ति यहां आकर कोविड का शिकार बन जाता है।

9. मरीज के अस्पताल पहुंचने के बाद उसके वार्ड में अपने बिस्तर तक पहुंचने में 2 से 3 घंटे लगते हैं। जबकि एडमिशन की सारी औपचारिकताएं बहुत आसानी से 20-25 मिनट में पूरी की जा सकती हैं। इस समय वैसे ही व्यक्ति काफी तनाव में रहता है और वह कल्याण/भायखला अस्पताल द्वारा की गई अनेकों कार्यवाही के बाद थका-हारा हुआ आता है। अतः जेआरएच में एडमिशन की प्रक्रिया आधे घंटे के अंदर पूरा करने की कोशिश की जानी चाहिए।

10. मरीजों को यह भी अनुभव आया है कि शाम को 7:00 बजे के बाद जो मरीज एडमिट होने होते हैं, उनको खाना नहीं मिलता। इतनी थकान, मानसिक तनाव, पारिवारिक या स्वजनों की अनुपस्थिति के साथ-साथ यदि उस मरीज को खाना न मिले, तो ऐसी अवस्था में वह क्या करे? यह अमानवीय है। अतः हर हाल में मरीज को खाना देना सुनिश्चित किया जाए। इसे कैसे सुनिश्चित किया जाए, यह अस्पताल प्रशासन तय करे।

11. जेआरएच में अनेकों बिस्तरों के ऊपर लगे पंखे महीनों से काम नहीं कर रहे हैं। कई वार्ड ऐसे हैं जिनमें बिस्तर काफी करीब हैं। अतः विद्युत उपकरणों की नियमित दुरुस्ती की जाए। बिस्तरों के बीच उचित दूरी स्थापित की जाए।

12. सुबह से शाम तक नाश्ता-खाना आदि का समय सुनिश्चित नहीं है। हर वार्ड का समय सुनिश्चित किया जाए तथा मरीजों को चाय-नाश्ता-खाना गरम-गरम उपलब्ध हो सके, इसका प्रयास किया जाए।

13. डॉक्टरों के वार्ड राउंड का बिल्कुल भी कोई नियम या समय तय नहीं है। यह काफी अनियमित और अनिश्चित है। डॉक्टर सुबह 11:00 से 13/14 बजे के बीच कभी भी आते हैं। यह विचारणीय है। समय की पाबंदी हर कार्य में होना नितांत आवश्यक है।

14. बायोकेमिस्ट्री रिपोर्ट डॉक्टर के कंप्यूटर पर तथा उनके मोबाइल पर तो समय पर पहुंचा दी जाती है, परंतु उसमें मरीज का पूरा नाम नहीं लिखा होता है। डॉक्टर के कंप्यूटर से प्रिंट निकालकर मरीज की फाइल में लगने में 24 से 30 घंटे लग जाते हैं। यह एक बड़ी लापरवाही है, इससे इलाज में देरी होती है। हर जांच रिपोर्ट पर मरीज का पूरा नाम लिखा जाए। रिपोर्ट आने पर तत्काल प्रभाव से उसका प्रिंट निकालकर मरीज की फाइल में सावधानीपूर्वक पुष्टिकर, कि रिपोर्ट उसी मरीज की है, लगाई जानी चाहिए।

15. जेआरएच में डाक्टरों तथा पैरामेडिकल स्टाफ की घोर लापरवाही के चलते मरीजों की बायोकेमिस्ट्री रिपोर्ट दूसरे मरीजों की फाइल में बदलकर लगा दी जाती है। इसका मुख्य कारण, रिपोर्ट पर मरीज का केवल नाम होता है पूरा नाम यानि सरनेम सहित नहीं होता। पर नाम के अलावा रिपोर्ट पर वार्ड नंबर, पेशंट आईडी नंबर, ब्लड सैंपल कलेक्शन डेट और टाइम, उम्र तथा रैफरल डॉक्टर, इतनी चीजें किन्ही दो पेशेंट की एकसाथ मिल ही नहीं सकतीं।

क. परंतु जेआरएच में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की अक्षम्य लापरवाही के चलते मात्र नाम देखकर किसी की भी रिपोर्ट किसी अन्य हमनाम की फाइल में लगाकर मरीज का गैरजरूरी इलाज कर उसको यमपुरी पहुंचा दिया जाता है। ऐसे में दोनों मरीज मर सकते हैं या मर ही जाते हैं। एक जो स्वस्थ है, उसका गलत इलाज कर मार दिया जाता है। और दूसरा जो अस्वस्थ है, उसको नॉर्मल पेशेंट समझकर जरूरी इलाज किया ही नहीं जाता। वह पेशेंट उचित इलाज न मिलने से मर जाता है। कितना पैशाचिक कार्य है यह?

ख. सारी दुनिया और परिजन असहाय से होते हैं। और यह सोचकर कि पेशेंट कोविड से चला गया, चुप रह जाते हैं। कोविड की आड़ में चल रही यह घोर लापरवाही अक्षम्य है। इस अस्पताल में कभी भी सीनियर्स को या सीएमएस, एमडी, सीएमडी या नोडल ऑफिसर को वार्ड में जाकर पेशेंट का हाल पूछते नहीं देखा गया। अस्पताल प्रशासन की इसी मक्कारी का भरपूर फायदा डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ उठा रहा है।

ग. इनकी लापरवाही को इस बात से भी बल मिलता है कि पेशेंट्स के रिलेटिव या अन्य कोई समझदार व्यक्ति कोविड अस्पताल में आ-जा नहीं सकते। उनकी मनमर्जी के लिए इतना ही काफी है। यह एक संगीन अपराध है। परंतु इसको देखने वाला कोई नहीं है।

16. जेआरएच में कोविड आईसीयू तो है, परंतु यहां उसके न तो ट्रेंड डॉक्टर हैं और न ही ट्रेंड पैरामेडिकल स्टाफ। यहां आवश्यक होने पर मरीज का सीटी स्कैन तक नहीं किया जाता है।

क. भुक्तभोगी मरीज का सुझाव है कि या तो आईसीयू किसी अन्य अस्पताल का हॉयर किया जाए, या फिर जेआरएच अपने आईसीयू के लिए ट्रेंड डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ हायर करे। दोनों में से कुछ भी किया जाए पर किया अवश्य जाए, क्योंकि रेलकर्मियों अथवा इंसानों की जान को इतना सस्ता न समझा जाए। कितने नौजवान कोविड के नाम पर भगवान को प्यारे हो गए, और हो रहे हैं। किसी के कानों पर जूं भी नहीं रेंग रही। मानो यह इंसानों का अस्पताल न होकर मच्छी बाजार हो। आज वक्त की जरूरत है कि तत्काल प्रभाव से किसी अच्छे अस्पताल के आईसीयू का कॉन्ट्रैक्ट किया जाए।

ख. सेंट्रल और वेस्टर्न रेलवे संयुक्त रूप से एक सीटी स्कैन मशीन लें, क्योंकि आज अधिकांश कोविड मरीजों को इसकी आवश्यकता है। सेंट्रल और वेस्टर्न रेलवे के मुंबई स्थित दोनों मंडलों के हजारों रेलकर्मियों और उनके परिजनों की जान से इस मशीन की कीमत लाखों गुना कम होगी।

17. मरीजों को जेआरएच से दोपहर को 11:00 से 1:00 के बीच डिस्चार्ज किया जाता है और वह अस्पताल से बाहर हो पाता है शाम 6:00 बजे के बाद। फिर 3-4 घंटे ट्रैफिक में फंसकर रात 11-11.30 बजे तक दूरदराज अपने घर पहुंच पाता है। इस कुप्रथा को तत्काल बंद कर मरीजों को 2:00 बजे तक घर रवाना किया जाए।

18. अस्पताल के टॉयलेट, बाथरूम का हर 2 घंटे में सैनिटाइजेशन किया जाना चाहिए। दोनों जगहें बहुत गंदी हैं और ऐसा लगता है कि वहां प्रतिदिन सफाई नहीं होती है।

19. वॉश बेसिन हर वार्ड में केवल एक ही है, जबकि कफ के चलते तथा गार्गल के लिए मरीजों को इसका काफी उपयोग करना पड़ता है। अतः बेसिन और लगाए जाएं।

उपरोक्त तमाम तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि जेआरएच में पैसे खर्च करने की नहीं, केवल सिस्टम सुधारने की नितांत आवश्यकता है। इसके साथ ही अस्पताल प्रबंधन का दैनंदिन हस्तक्षेप अत्यंत आवश्यक है, जो कि होना ही चाहिए।