चारबाग आरक्षण केंद्र की मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक की तानाशाही

सहकर्मी आरक्षण पर्यवेक्षक को पड़े जान के लाले, आईसीयू में भर्ती

बिना रोस्टर नियम विरुद्ध लगाई जा रही आरक्षण कर्मियों की ड्यूटी

कार्यरत सहकर्मी आरक्षण कर्मियों के साथ पक्षपात और मानसिक उत्पीड़न

लखनऊ : उत्तर रेलवे के चारबाग, लखनऊ स्थित मुख्य आरक्षण केंद्र की मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक की मनमानी और उत्पीड़न के चलते आरक्षण पर्यवेक्षक राजेश गुप्ता की जान पर तब बन आया, जब उनकी इंचार्ज मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक (सीआरएस) ने उनसे 17 दिन तक लगातार शाम 4 बजे से रात 12 बजे की ड्यूटी करवाने के बाद उनको सोमवार, 30 जुलाई से रात 12 बजे से सुबह 8 बजे की शिफ्ट में काम करने का आदेश दिया. राजेश गुप्ता शुक्रवार, 27 जुलाई की शाम को करंट काउंटर पर सायंकालीन ड्यूटी करते हुए बेहोश हो गए, उन्हें तुरंत इंडोर अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करवाया गया, जहां उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई है. यह जानकारी आरक्षण केंद्र के कर्मचारियों ने ‘रेल समाचार’ को ईमेल के जरिए भेजी है.

ईमेल में आरक्षण कर्मचारियों ने मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक के कई कारनामों की जानकारी देते हुए कहा है कि-

* बिना रोस्टर नियमों का पालन किए जिसको जहां मर्जी ड्यूटी पर लगा देना.

* तानाशाही स्टाइल में सहकर्मियों के साथ व्यवहार करना उनकी आदत में शुमार है.

* अपने खास लोगों को छोटे-छोटे कार्यों में लगाना और काउंटर ड्यूटी से बचाना.

* महिला होकर भी महिलाओं का उत्पीड़न करते हुए कभी-भी उनकी ड्यूटी बदल देना.

* आरक्षण केंद्र में ऐसी रोस्टर व्यवस्था बना रखी है कि प्रत्येक कर्मचारी अगले दिन की ड्यूटी इनसे पूछता है, अर्थात वह अपने किसी अन्य कार्य के लिए कोई योजना नहीं बना सकता.

* छुट्टी लेने हेतु कोई भी रजिस्टर नहीं है, जिसमें आवेदन प्राप्त करने की तिथि डाली जाती हो, अर्थात आवेदन किसी का कभी आए, छुट्टी देने में सीआरएस की मनमर्जी होती है.

* सीआरएस के मनमानी रवैये के कारण ही आरक्षण केंद्र का प्रत्येक कर्मचारी अवसाद और मानसिक प्रताड़ना में काम कर रहा है. किसी भी कर्मचारी की राजेश गुप्ता जैसे स्थिति हो सकती है.

कर्मचारियों का कहना है कि एक तरफ जहां चेयरमैन, रेलवे बोर्ड सभी रेलकर्मियों को अच्छा और शांतिपूर्ण माहौल एवं सुविधा देने की बात करते हैं और स्वयं शालीनतापूर्ण व्यवहार करते हैं, वहीँ दूसरी तरफ चारबाग आरक्षण केंद्र की महिला सीआरएस की तानाशाहीपूर्ण कार्यशैली रेल प्रशासन की कोशिशों पर प्रश्नचिन्ह पैदा करती है.

संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

उपरोक्त प्रकरण में उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के अधिकारियों की भूमिका ने अपनी संवेदनहीनता को चरम पर रखने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी. कर्मचारियों का कहना है कि ऑन-ड्यूटी कर्मचारी को आपातकालीन स्थिति आईसीयू में भर्ती कराए जाने पर भी सीनियर डीसीएम सहित किसी भी मंडल अधिकारी ने उसका हाल जानने की जहमत नहीं उठाई. उन्होंने बताया कि जब रेलमंत्री को ट्वीट किया गया, तब भी किसी ने इस कर्मचारी का हाल जानने की कोई कोशिश नहीं की. महज जांच के आदेश जारी करके खानापूरी कर अपना पल्ला झाड़ लिया.

उनका कहना है कि यह जांच भी ऐसे अधिकारी को दी गई है, जो स्वयं सीआरएस (आरोपित पर्यवेक्षक) का सहकर्मी रह चुका है. यही नहीं, यह कथित जांच अधिकारी अपने साथ जांच में सहयोग के नाम पर एक आरक्षण लिपिक, जो स्वयं सीआरएस का मातहत है, को लेकर जांच कर रहा है. इससे साफ जाहिर है कि सीआरएस पर मंडल प्रशासन पूरी तरह से मेहरबान है.

उधर आईसीयू में भर्ती आरक्षण पर्यवेक्षक राजेश गुप्ता की जान पर बनी हुई है. इधर प्रशासन की कोई कार्यवाही नहीं हो रही है और न ही अब तक अन्य कर्मचारियों से कोई पूछताछ की गई है. रेलमंत्री और सीआरबी को किए गए ट्वीट पर भी इस तरह की लचर कार्यवाही बताती है कि लखनऊ मंडल में कर्मचारियों की कोई सुनवाई नहीं है. कर्मचारियों का कहना है कि यदि ऐसी कोई जन-शिकायत किसी कर्मचारी के खिलाफ होती, तो अब तक उसके खिलाफ प्रशासन द्वारा कई कड़े कदम उठा लिए गए होते.

यह कैसी व्यवस्था है, जहां न पब्लिक की और न कर्मचारियों की कोई सुनवाई हो रही है? ऐसे मामलों में मीडिया द्वारा पूछे जाने पर सर्वप्रथम तो प्रशासन कोई जवाब नहीं देता है. यदि उसका कोई जवाब होता भी है, तो यही कि कार्यवाही चल रही है. जांच का आदेश दिया गया है, जांच रिपोर्ट आने पर उचित कार्रवाई की जाएगी. जबकि सबको पता है कि सक्षम अधिकारियों के इन खोखले आश्वासनों पर कोई कार्रवाई नहीं होती और मामला ठंडा होने पर सब भूल जाते हैं. उपरोक्त प्रकार के तमाम मामले अक्सर देखने-सुनने में आते हैं, पर प्रताड़ना करने वालों पर कभी कोई कार्रवाई हुई है, ऐसी कोई खबर नहीं मिलती है.