डीजी/आरपीएफ ने हेड कांस्टेबल को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका

हेड कांस्टेबल संतोष त्रिपाठी बर्खास्त, दीन-धरम दोनों गए, माया मिली न राम

संगठन के साथ धोखाधड़ी करने से पहले त्रिपाठी के हस्र से सबक लें बल सदस्य

कानूनी लड़ाई का नतीजा जो भी हो, एसोसिएशन के साथ संवाद कायम होना चाहिए

सुरेश त्रिपाठी

महानिदेशक/रेलवे सुरक्षा बल (डीजी/आरपीएफ) धर्मेंद्र कुमार (आईपीएस) ने हेड कांस्टेबल संतोष कुमार त्रिपाठी को अपना मतलब हल हो जाने अथवा लंगड़े बैल की तरह किसी काम का न रह जाने के बाद आरपीएफ से बाहर निकाल फेंका है, यानि बर्खास्त कर दिया है. यह कार्रवाई 18 अप्रैल की बताई जा रही है. ज्ञातव्य है कि डीजी/आरपीएफ का हस्तक बनकर हेड कांस्टेबल त्रिपाठी ने ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन और इसके प्रमुख पदाधिकारियों के खिलाफ जबलपुर हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. इस याचिका को हाई कोर्ट ने 19 फरवरी 2018 को यह कहकर खारिज कर दिया कि उक्त याचिका में जिस राहत की मांग की गई है, उस पर कोर्ट का कोई दिशा-निर्देश देना नहीं बनता है. कोर्ट के इस निर्णय के बाद ही डीजी/आरपीएफ ने हेड कांस्टेबल को बर्खास्त किया है.

हलाकि ‘रेलवे समाचार’ के तमाम प्रयासों के बाद भी प.म.रे. आरपीएफ प्रशासन और हेड कांस्टेबल संतोष कुमार त्रिपाठी से उपरोक्त के संदर्भ में उनका पक्ष प्राप्त नहीं हो सका. तथापि, उल्लेखनीय है कि शराब और शबाब के शौकीन उक्त हेड कांस्टेबल को चार चार्जशीटों के बाद गत वर्ष जबलपुर मंडल, पश्चिम मध्य रेलवे से अहमदाबाद मंडल, पश्चिम रेलवे के लिए ट्रांसफर किया गया था, जहां आरपीएफ थाने में ही शराबखोरी करने और पकड़े जाने पर सीनियर कमांडेंट के साथ बदतमीजी करने के पश्चात् अन्यत्र भेजे जाने और वहां ज्वाइन नहीं करने पर दी गई दो-तीन चार्जशीटों और जांच के बाद उसे बर्खास्त कर दिया गया था.

बताते हैं कि तब बर्खास्तगी का पत्र रिसीव करने से पहले ही बिना कोई उचित विभागीय अनुमति लिए यह हेड कांस्टेबल अहमदाबाद से जबलपुर के लिए रवाना हो गया था. प्राप्त जानकारी के अनुसार इसी दरम्यान उसका संपर्क डीजी/आरपीएफ के साथ हो गया, जिन्होंने तब नियम-विरुद्ध न सिर्फ उसकी बर्खास्तगी को मुल्तवी कर दिया, बल्कि उसे रिजर्व कंपनी, जबलपुर में अटैच भी कर दिया था. इसी मेहरबानी की बदौलत बाद में उससे एसोसिएशन के विरुद्ध हाई कोर्ट में उपरोक्त याचिका दाखिल कराई गई थी, क्योंकि उसने डीजी को पूरा आश्वासन दिया था कि हाई कोर्ट से उनके प्रमुख विरोधी यू. एस. झा को एसोसिएशन के महामंत्री पद से हटाए जाने का आदेश आसानी से प्राप्त हो जाएगा.

‘रेलवे समाचार’ के पास उपलब्ध हाई कोर्ट के निर्णय में कहा गया है कि सेवानिवृत्त प्रतिवादियों – एसोसिएशन के महामंत्री यू. एस. झा, कार्याध्यक्ष धरमवीर सिंह और अध्यक्ष एस. आर. रेड्डी – में से धरमवीर सिंह और एस. आर. रेड्डी को रेल प्रशासन की तरफ से अब तक कोई सुविधा मुहैया नहीं कराई जा रही है. जहां तक आरपीएफ के इंस्पेक्टर पद से सेवानिवृत्त एसोसिएशन के महामंत्री यू. एस. झा की बात है, तो उन्हें बल सदस्यों द्वारा उचित प्रक्रिया के तहत चुने जाने आर अंतर-मंत्रालयीन प्रक्रिया के बाद मेंबर स्टाफ, चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री की संस्तुति से अनुमति प्रदान की गई है. यह बात खुद रेल प्रशासन (रेलवे बोर्ड) द्वारा अदालत के समक्ष दाखिल हलफनामे में कही गई है.

हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि जब रेल प्रशासन द्वारा खुद एक सेवानिवृत्त बल सदस्य के एसोसिएशन का पदाधिकारी होने पर विचार किया जा रहा है, और बाकी दो सेवानिवृत्त बल सदस्यों को एसोसिएशन का पदाधिकारी होने की अब तक न तो कोई अधिकृत अनुमति प्रदान की गई है, और न ही उन्हें रेलवे द्वारा कोई सुविधा मुहैया कराई जा रही है. इस स्थिति में अदालत के हस्तक्षेप का कोई औचित्य सिद्ध नहीं होता है. अदालत का मानना है कि रेल प्रशासन उचित समय में अपना निर्णय लेगा, यह कहकर अदालत ने याचिका खारिज कर दी.

इससे पहले इस शातिर हेड कांस्टेबल ने इसी विषय पर रिजर्व कंपनी, जबलपुर की अपनी एक ‘मुंहलगी’ महिला कांस्टेबल निर्मला दुबे के माध्यम से एक और याचिका हाई कोर्ट में तब दाखिल करवा दी थी, जब उसे अपनी याचिका खारिज होने का अंदेशा सताने लगा था. प्राप्त जानकारी के अनुसार उपरोक्त प्रतिवादियों ने अपने जवाब में हाई कोर्ट को कहा था कि उक्त हेड कांस्टेबल (वादी) की पोस्टिंग और कार्य-स्थल जबलपुर नहीं, बल्कि अहमदाबाद है, जहां खुद हाई कोर्ट मौजूद है, इसलिए जबलपुर हाई कोर्ट का दायरा उसके जूरिस्डिक्शन में नहीं आता है, अतः याचिका तुरंत खारिज किए जाने योग्य है. हाई कोर्ट ने दोनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की और दोनों को एकसाथ खारिज भी कर दिया.

उल्लेखनीय है कि हेड कांस्टेबल संतोष कुमार त्रिपाठी लंबे समय तक ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन, पश्चिम मध्य रेलवे का जोनल महामंत्री रहा है. बताते हैं कि इससे संबंधित ‘बोर्ड’ आज भी उसके सतना स्थित आवास पर लगा हुआ है, जबकि उसे एसोसिएशन विरोधी गतिविधियों के कारण चित्रकूट में हुए एसोसिएशन के वार्षिक अधिवेशन एवं केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से लिए गए एक निर्णय के अंतर्गत एसोसिएशन से छः वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया गया था. इसके बाद ही उसे डीजी/आरपीएफ ने न सिर्फ अपनी गोद में बैठा लिया था, बल्कि अपना हस्तक बनाकर उससे एसोसिएशन के विरुद्ध अदालत में याचिका भी दाखिल करवाई थी.

बताते हैं कि एसोसिएशन के विरुद्ध हाई कोर्ट में मुकदमा लड़ने के लिए उक्त हेड कांस्टेबल को डीजी/आरपीएफ के निर्देश पर प.म.रे. आरपीएफ प्रशासन द्वारा समस्त सुविधाएं मुहैया कराई गईं. इसके लिए पूरे जोन के लगभग सभी आरपीएफ इंस्पेक्टर्स से लाखों रुपये की उगाही की गई. इसके अलावा भी बताते हैं कि उक्त हेड कांस्टेबल ने डीजी की नजदीकी के नाम पर तमाम भ्रष्ट आरपीएफ इंस्पेक्टर्स को ब्लैकमेल करके काफी पैसा बनाया. जबलपुर के कई बल सदस्यों का कहना है कि मामूली से मामूली बात पर उक्त हेड कांस्टेबल द्वारा सूचना दिए जाने के तुरंत बाद डीजी के निर्देश पर स्थानीय प्रशासन द्वारा किसी भी बल सदस्य के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई किए जाने से प.म.रे. के बल सदस्यों में उसकी भारी दहशत बन गई थी. अतः उससे बचने के लिए लोग उसे मुंह मांगी कीमत अदा कर रहे थे.

बहरहाल, जानकारों का कहना है कि हेड कांस्टेबल संतोष कुमार त्रिपाठी के उपरोक्त हस्र को देखकर समस्त बल सदस्यों को यह सबक ले लेना चाहिए कि प्रशासन अपने हित या स्वार्थ में कुछ समय के लिए तो उनमें से किसी को भी अपनी छत्रछाया में ले सकता है, और एसोसिएशन के विरुद्ध उन्हें अपना हस्तक बना सकता है, मगर स्वार्थ सिद्ध होते ही त्रिपाठी की तरह उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर बाहर फेंक देता है. उनका यह भी कहना है कि इस मामले से यह भी सिद्ध होता है कि विभागीय आरपीएफ अधिकारी न सिर्फ बगुला-भगत हैं, बल्कि वह प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी नाकाबिल हैं. यही वजह रही है कि इस दरम्यान सीएससी/पू.रे. और सीएससी/द.रे. जैसे कई जोनल सीएससी ने डीजी को खुश करने अथवा उनकी गुडबुक में बने रहने के लिए एसोसिएशन के तमाम जोनल पदाधिकारियों का भयानक उत्पीड़न किया.

जानकारों का कहना है कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आईपीएस लॉबी के बहकावे में आकर रेलमंत्री पीयूष गोयल ने भी मान्यताप्राप्त ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन के विरुद्ध सार्वजनिक तौर पर गलतबयानी की, जबकि इस एसोसिएशन की मान्यता उनकी ही पार्टी की अटलबिहारी बाजपेई सरकार और तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण अडवानी एवं रेलमंत्री नितीश कुमार ने तमाम कानूनी प्रक्रियाओं के बाद संसद से बिल पास करवाकर प्रदान की थी. उनका कहना है कि वर्तमान गृहमंत्री ने भी आईपीएस लॉबी के दबाव में आकर एसोसिएशन के मंच से आरपीएफ को अधिकारी संपन्न बनाए जाने के अपने वादे और अपनी गैरत के विरुद्ध वादाखिलाफी की है. उनका कहना है कि नौकरशाही के दबाव में आकर बेगैरत और ऊलजलूल बयान देना तथा कमजोर इच्छाशक्ति वाले राजनेताओं का मंत्री होना इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.

जानकारों का मानना है कि चूंकि ज्यादाता विभागीय आरपीएफ अधिकारी प्रशासनिक दृष्टिकोण से नालायक, निकम्मे और नाकाबिल हैं और इसके साथ ही कुछ अपवादों को छोड़कर भ्रष्ट भी हैं. अतः उन्हें सक्षम और जिम्मेदार बनाए जाने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने आवश्यक हैं. इसके अलावा उनका यह भी कहना है कि संसद ने वर्ष 1985 में जो आरपीएफ (संशोधित) ऐक्ट पास किया था, जिसके अनुसार आरपीएफ में आईपीएस की कोई जगह नहीं है, सरकार द्वारा उसे तुरंत लागू करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए. हालांकि इस संदर्भ में दिल्ली हाई कोर्ट में एसोसिएशन की तरफ से दाखिल एक याचिका पर सुनवाई चल रही है, मगर जब कानूनी प्रावधान एकदम स्पष्ट है, तब अदालत को नहीं, बल्कि सरकार को अपनी भूमिका निभानी चाहिए.

इस दरम्यान डीजी/आरपीएफ अपनी कुटिल नीति पर अमल करते हुए मान्यताप्राप्त ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन की हर साल जनवरी में होने वाली वार्षिक बैठक सहित केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठकों को भी आवश्यक अनुमति देने से किसी न किसी बहाने टालते रहे हैं. इसके चलते लगभग सभी जोनल सीएससी भी जोनल अधिवेशनों को अनुमति प्रदान नहीं कर रहे हैं. इससे एसोसिएशन की सभी गतिविधियां लगभग ठप पड़ गई हैं. इसके चलते हजारों बल सदस्य अवसादग्रस्त हो रहे हैं, उनकी तमाम तरह की शिकायतों का निपटारा नहीं हो पा रहा है, उनका बड़े पैमाने पर उत्पीड़न हो रहा है. इसी उत्पीड़न के चलते एक बल सदस्य ने हाल ही में एक कमांडेंट को गोली मार दी थी. यदि लंबे समय तक ऐसा ही चलता रहा, तो ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होने से नहीं रोका जा सकेगा.

अतः जानकारों का कहना है कि कानूनी और अधिकार की लड़ाई अपनी जगह है, मगर कानूनन मान्यताप्राप्त संगठन के साथ आरपीएफ प्रशासन (डीजी/आरपीएफ) का लगातार संवाद होते रहना अत्यंत आवश्यक है. इस संदर्भ में आरपीएफ प्रशासन को ही विवेकपूर्ण पहल करनी चाहिए और संगठन को प्राप्त कानूनी अधिकार बहाल करते हुए उसके साथ संवाद स्थापित करके भारतीय रेल में रोजाना यात्रा करने वाले लगभग तीन करोड़ रेलयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, क्योंकि इस मामले में आईपीएस की स्थाई दहशत के चलते रेलवे बोर्ड, रेलमंत्री, और यहां तक कि पूरी केंद्र सरकार भी, उत्तरदायित्व और कर्तव्यहीनता की हद तक निष्क्रिय हैं.