महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिलाओं का उत्पीड़न

महिला चेकिंग स्टाफ से जबरन कराई जा रही है शताब्दी एक्स. में ड्यूटी

सीनियर डीसीएम की अहंमन्यता के चलते महिला चेकिंग स्टाफ को परेशानी

मुंबई : पश्चिम रेलवे, मुंबई सेंट्रल मंडल द्वारा गत महिला दिवस के मौके पर सीनियर डीसीएम की अहंमन्यता के चलते महिला सशक्तिकरण के नाम पर महिला चेकिंग स्टाफ की ड्यूटी मुंबई-अहमदाबाद शताब्दी एक्स. में यह कहकर लगा दी गई थी कि महिलाएं, पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा ईमानदारी और समर्पित भाव से काम करती हैं. इसके साथ ही सीनियर डीसीएम द्वारा इसी बहाने एक मौके पर पुरुष चेकिंग स्टाफ को भ्रष्ट कहा गया था, जिसके लिए सोशल मीडिया पर मंडल के समस्त चेकिंग स्टाफ ने सीनियर डीसीएम की बहुत लानत-मलामत की थी. इसके सबूत ‘रेलवे समाचार’ के पास मौजूद हैं. यह मामला महिला सशक्तिकरण के नाम पर एक महिला अधिकारी द्वारा ही अपने मातहत महिला स्टाफ का भारी उत्पीड़न किए जाने का लगता है.

बताते हैं कि अब स्थिति यह है कि शताब्दी एक्स. में 15 से 18 घंटे रोज की ऑन बोर्ड ड्यूटी करने पर महिला चेकिंग स्टाफ को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें कई प्रकार की शारीरिक समस्याएं हो रही हैं. सुबह जल्दी 4 बजे ड्यूटी के लिए रिपोर्ट करना और टूटता शरीर लेकर देर शाम को घर पहुंचना उन्हें बहुत भारी पड़ने लगा है. इसके अलावा ड्यूटी के दौरान उन्हें कई प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार एक महिला टीटीई स्नेहल पालेकर ड्यूटी के दौरान चलती ट्रेन के अंदर चक्कर खाकर गिर पड़ी थी, जिससे उन्हें नाक में चोट लगी. इसी प्रकार अनुकंपा आधार पर भर्ती हुई मृदुल पंडित (57 वर्ष) का ट्रेन में रक्तचाप गिर गया, जिससे उन्हें भारी कमजोरी महसूस होने पर वह एक बर्थ पर गर्दन नीची करके चुपचाप बैठ गई. जब अन्य स्टाफ उन्हें गाड़ी में खोज रहा था, तभी एक यात्री ने उनके बारे में बताया कि तवियत खराब होने से फला बर्थ पर बैठी हुई हैं, लगता है उन्हें चक्कर आ रहे हैं. साथी स्टाफ ने उनकी देखभाल की और तब किसी तरह उनकी तवियत में सुधार हुआ. यही स्थिति एक अन्य अनुकंपा भर्ती जमीला सैय्यद (56 वर्ष) की भी हो रही है.

इसके अलावा संगीता बर्वे और मानसी दलवी को भी चलती ट्रेन में लगातार उल्टियां हो रही हैं और चक्कर आ रहे हैं. उनके साथ संध्या किणी को तो चलती ट्रेन में सारी दुनिया गोल-गोल घूमती नजर आती है, जिससे वह टिकट चेकिंग का काम करते समय स्वयं को बड़ी मुश्किल से संभाल पाती हैं. यानि शताब्दी में ड्यूटी के लिए लगाई गई इन सभी महिला टीटीई को उल्टी, सिर चकराने, अवसाद और लूज मोशन सहित अन्य कई प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

उपरोक्त तमाम प्रकार परेशानियों का हवाला देते हुए उन्होंने यूनियन पदाधिकारियों को बताया है कि कोचों और वेस्टिबुल के दरवाजे इतने ज्यादा कड़े हैं, कि उन्हें खोलने-बंद करने में ही उनकी सारी शारीरिक शक्ति नष्ट हो जाती है और इससे उनके कंधों-हाथों एवं पूरे शरीर में भारी दर्द होता है. ड्यूटी के बाद देर शाम को घर पहुंचकर भारी थकावट के बावजूद उन्हें कई घरकाम भी करने होते हैं, जिससे वह सभी महिला टीटीई भारी मानसिक अवसाद से गुजर रही हैं.

प्राप्त जानकारी के अनुसार इन सभी महिला टीटीई ने पश्चिम रेलवे के दोनों मान्यताप्राप्त संगठनों – वेस्टर्न रेलवे एम्प्लाइज यूनियन(डब्ल्यूआरईयू) एवं वेस्टर्न रेलवे मजदूर संघ (डब्ल्यूआरएमएस) – को अपनी उपरोक्त तमाम परेशानियों से अवगत कराया है. इस संबंध मेंडब्ल्यूआरईयू के महामंत्री जे. आर. भोसले ने 4 अप्रैल को प्रिंसिपल सीसीएम/प.रे. को एक पत्र लिखकर महिलाओं को उक्त परेशानियों से निजात दिलाने की मांग की है.

इसके साथ ही डब्ल्यूआरएमएस के महामंत्री दादा जे. जी. माहुरकर ने भी 4 अप्रैल को ही इस मुद्दे पर सीधे प्रिंसिपल सीसीएम से मुलाकात करके शताब्दी एक्स. में ऑन बोर्ड ड्यूटी पर महिला स्टाफ को भेजे जाने के आदेश को तुरंत रद्द करने की मांग की. इस पर प्रिंसिपल सीसीएम ने इस विषय पर तत्काल डीआरएम, मुंबई सेंट्रल से बात की और उन्हें पूर्व स्थिति कायम करने के लिए कहा. इसके अलावा इस मुद्दे पर पश्चिम रेलवे स्थानीय लोकाधिकार समिति के महामंत्री अरुण दुबे ने भी जीएम, सीसीएम और डीआरएम को पत्र लिखकर महिला स्टाफ को परेशानी से बचाने की अपील की है. उक्त तीनों पत्र ‘रेलवे समाचार’ के पास सुरक्षित हैं.

तथापि उपरोक्त तीनों संगठनों के इन बड़े नेताओं के हस्तक्षेप और सीसीएम के तत्काल सुझाव के बावजूद डीआरएम/वाणिज्य, मुंबई सेंट्रल के कान में अब तक कोई जूं नहीं रेंगी है, बल्कि कहा तो यह जा रहा है कि उन्होंने उपरोक्त सभी महिला टीटीई को बुलाकर उनके खिलाफ यूनियनों को शिकायत करने के लिए उन्हें काफी डांट लगाई है और काफी भला-बुरा भी कहा है. कर्मचारियों का कहना है कि लगता है यूनियन नेता भी छूत से डरे हुए हैं, क्योंकि ये सभी यूनियन नेता उद्दंड और बदमिजाज महिला अधिकारियों से सामने जाकर बात करने से कतरा रहे हैं. जबकि यूनियन पदाधिकारियों का कहना है कि बेवजह कोई मुसीबत लेने से अच्छा है कि उच्च अधिकारियों से बात करके मामले का कोई उचित हल निकालकर परेशानी से गुजर रहे महिला स्टाफ को राहत दिलाई जाए.

कई कर्मचारियों का कहना है कि इसी प्रकार मध्य रेलवे की देखादेखी सीनियर डीसीएम, मुंबई सेंट्रल को भी भारी शौक चर्राया और उन्होंने भी मध्य रेलवे के माटुंगा स्टेशन (पूरी तरह से महिला रेलकर्मियों द्वारा संचालित देश का पहला रेलवे स्टेशन) के सामानांतर पश्चिम रेलवे के माटुंगा रोड स्टेशन को महिला सशक्तिकरण के नाम पर बिना किसी तैयारी के महिलाओं द्वारा संचालित करा दिया. उल्लेखनीय है कि महिला सुरक्षा के दृष्टिकोण से पश्चिम रेलवे का माटुंगा रोड स्टेशन अत्यंत असुरक्षित है, क्योंकि यह चारों तरफ से खुला हुआ है.

जबकि मध्य रेलवे का माटुंगा स्टेशन, पश्चिम में वर्कशॉप और पूर्व में संभ्रांत कालोनियों एवं नेशनल रेलवे मजदूर यूनियन का मुख्यालय होने से पूरी तरह बंद और महिलाओं के लिए अत्यंत सुरक्षित है. इसके परिणामस्वरूप माटुंगा रोड स्टेशन पर एक महिला टिकट बुकिंग क्लर्क के साथ चौबीसों घंटे एक डंडाधारी आरपीएफ कर्मी की ड्यूटी लगाई जा रही है, जो कि कार्मिकों की भारी कमी को देखते हुए एक अहंमन्य अधिकारी के अहंकार के चलते मैनपावर का अपव्यय ही कहा जाएगा. कर्मचारियों का कहना है कि यहां भी पूर्व स्थिति कायम होनी चाहिए.

उनका यह भी कहना है कि टिकट चेकिंग स्टाफ के पास/पीटीओ बनाने वाले क्लर्क का तीन-चार महीनों से कोई अता-पता नहीं था, मगर सीनियर डीसीएम को उसकी कोई चिंता नहीं थी. अभी कुछ दिन पहले ही इस क्लर्क की बहाली होने से चेकिंग स्टाफ को राहत मिली है. यूनियन पदाधिकारियों ने पश्चिम रेलवे प्रशासन से अपील की है कि वह अविलंब स्टाफ के अनावश्यक उत्पीड़न को रोककर सीनियर डीसीएम और सीनियर डीओएम की मनमानी पर लगाम लगाए.