रेलवे में ईमानदार अधिकारियों-कर्मचारियों की कोई कदर नहीं !
डीटीआई/मुंबई सेंट्रल को जानबूझकर किया जा रहा है प्रताड़ित
मुंबई : रेलवे में ईमानदार, परिश्रमी और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कोई कदर नहीं है, बल्कि इसके उलट भ्रष्टाचारियों, जोड़तोड़बाजों, दलालों और कमीशनखोरों सहित चोरों, चापलूसों तथा चरित्रहीनों का चौतरफा बोलबाला है. भले ही रेलवे बोर्ड का निजाम बदल गया है, और यह निजाम अपनी पूरी ईमानदारी एवं समर्पित भाव से रेलवे के सुधार की दिशा में काम कर रहा है, परंतु उपरोक्त टाइप के जंतुओं (पैरासाइट्स) का विनाश कर पाना शायद वर्तमान निजाम के भी वश की बात नहीं लग रही है. इसके लिए रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड के बीच समन्वय के आभाव को जिम्मेदार माना जा रहा है.
यह बात दक्षिण पूर्व रेलवे लंबे समय से टिके एक अमूमन निचले स्तर के अधिकारी के हाल ही में हुए तबादले के तुरंत बाद उसकी उसी जगह, उसी रेलवे में हुई पुनर्नियुक्ति से प्रमाणित हो चुकी है. रेलवे बोर्ड जहां बीसों साल से एक ही रेलवे, एक ही शहर में जमे रहकर भ्रष्टाचार की गर्त में गले तक डूब चुके अपने ऐसे मातहतों को दरबदर करने में सक्षम नहीं हो पा रहा है, वहीं उसकी इस बेचारगी का न सिर्फ एक बहुत गहरा संदेश नीचे तक गया है, बल्कि इससे सभी ईमानदार अधिकारियों और कर्मचारियों को भारी मायूसी भी हुई है. इससे रेलवे के सुधार की उम्मीद भी धुंधली पड़ती नजर आ रही है, निचले स्तर पर कर्मचारियों का उत्साह ठंडा पड़ रहा है और अपने शीर्ष प्रबंधन से उनका मोह भंग होने के कगार तक पहुंच गया है, क्योंकि न तो उनका उत्पीड़न खत्म हो रहा है, और न ही अहंकार में डूबे अधिकारियों की मनमानी कम हो रही है.
इसका ताजा उदाहरण डीआरएम कार्यालय, मुंबई सेंट्रल मंडल, पश्चिम रेलवे के ऑपरेटिंग विभाग में कार्यरत मंडल यातायात निरीक्षक (डीटीआई) के पद पर लगभग दो साल से नियुक्त महेंद्र कुमार दयाराम का है. प्राप्त जानकारी के अनुसार इस डीटीआई को पूर्व में विजिलेंस और सीबीआई में रहते हुए पूरी ईमानदारी से किए गए इसके कार्यों के लिए पिछले दो सालों से कुछ गैर-अनुभवी अधिकारियों द्वारा लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है. बताते हैं कि विजिलेंस और सीबीआई में रहते उसकी कर्तव्यपरायणता से जिन भ्रष्ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों के विरुद्ध मामले बने थे, वह अब उसे परेशान करके अपना बदला चुका रहे हैं. ऐसी स्थिति में कोई भी कमर्चारी अब विजिलेंस या सीबीआई में जाने से पहले सौ बार सोचेगा.
कुछ वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि रेलवे अथवा किसी भी सरकारी महकमे में ईमानदारी से काम करना गुनाह माना जाता है. यही वजह है कि कुछेक को छोड़कर जो जहां बैठा है, वहीं से रेलवे को लूट रहा है. और यही वजह है कि रेलवे सहित लगभग सभी सरकारी महकमों में चोरों, चापलूसों का बोलबाला है, जबकि ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ लोग अलग-थलग पड़े हुए हैं. उनका कहना है कि जिस कर्मचारी को परेशान करना होता है, उसके लिए कतिपय भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा सभी निर्धारित और पूर्व स्थापित नियम-कानून ताक पर रख दिए जाते हैं. यही प्रक्रिया यदि डीटीआई/मुंबई सेंट्रल के मामले में भी अपनाई जा रही हो, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है. उनका कहना था कि बिरादरीवाद के चलते भी कुछ अधिकारी उसे अनावश्यक रूप से प्रताड़ित करके अपनी पूर्व खुन्नस निकाल रहे होंगे.
बताते हैं कि नियमानुसार जब किन्हीं अपरिहार्य कारणों से जब किसी कर्मचारी को किसी विशेष जगह पर भेजा जाना आवश्यक होता है, तो इसके लिए सबसे पहले उक्त डिपो के सबसे जूनियर कर्मचारी को नामांकित किया जाता है. परंतु यहां मीरा रोड जैसे फ्लैग स्टेशन पर सबसे सीनियर कर्मचारी को भेजा जा रहा है. जबकि उससे जूनियर कई कर्मचारियों को दादर जैसे प्रमुख एवं बड़े स्टेशनों पर स्टेशन मास्टर (सुपरवाइजर) बनाकर रखा गया है. कई कर्मचारियों का कहना है कि जो अधिकारी उक्त डीटीआई के सामने रेलवे के अनुभव में अभी कच्चे हैं, वह कतिपय अधिकारियों के बहकावे में आकर नियम-कानून के हर मामले में गहरा अनुभव रखने वाले उक्त डीटीआई जैसे वरिष्ठ कर्मचारी का उत्पीड़न कर रहे हैं, यह कतई उचित नहीं है.
यही नहीं, बताते हैं कि सीबीआई की सीक्रेट ब्रांच सहित उसकी विभिन्न शाखाओं में काम करने और एक बाहरी होने के बावजूद ‘उत्कृष्ट जांच अधिकारी’ का अवार्ड प्राप्त करने के बाद रेलवे में वापस आने पर डीटीआई में नियुक्ति करने से पहले महेंद्र कुमार का कम्पलीट मेडिकल कराया गया था, जबकि टीआई अथवा डीटीआई में नियुक्ति से पहले न तो मेडिकल कराया जाना अनिवार्य है और न ही इसकी पूर्व परंपरा है. इसके अलावा जब उक्त डीटीआई ने एकमात्र अभिभावक होने के नाते अपने छोटे भाई की शादी करने के लिए गांव जाने हेतु छुट्टी का आवेदन किया, तो अब उसे रिफ्रेशर कोर्ष के लिए उदयपुर जाने को कहा जा रहा है, जबकि उससे सीनियर और जूनियर ऐसे सैकड़ों कर्मचारी हैं, जिन्हें अब तक एक बार भी रिफ्रेशर कोर्ष के लिए नहीं भेजा गया है.
कर्मचारियों का कहना है कि इस डीटीआई के काम में पिछले दो सालों के दौरान कोई कोताही नहीं पाई गई है. इसके बावजूद वर्तमान पद पर कार्यकाल पूरा हुए बिना और रेलवे बोर्ड की पालिसी के खिलाफ उक्त डीटीआई को किसी रोड साइड स्टेशन पर भेजे जाने का कोई औचित्य नहीं है.
उपरोक्त मामले में ‘रेलवे समाचार’ ने सर्वप्रथम डीटीआई महेंद्र कुमार दयाराम से संपर्क करके उनका पक्ष जानने की कोशिश की और उनसे पूछा कि क्या उनका तबादला समय से पहले मीरा रोड किया गया है? इस पर पहले तो उन्होंने कोई भी बात करने से साफ मना कर दिया. परंतु थोड़ा जोर देने पर उनका कहना था कि उन्हें इस बारे में कुछ ज्ञात नहीं है, क्योंकि उनको ऐसा कोई आदेश अब तक नहीं मिला है. हालांकि उत्पीड़न की बात पूछने पर उन्होंने मौन साध लिया.
इसके बाद इस विषय में जब डीआरएम/मुंबई सेंट्रल मुकुल जैन से उनके मोबाइल पर संपर्क करके प्रशासन का पक्ष जानने की कोशिश की गई, जब उनकी तरफ से रिस्पांस नहीं मिला, तो उन्हें एसएमएस भेजकर मामले से अवगत कराते हुए उनका पक्ष बताने का अनुरोध किया गया. डीआरएम श्री जैन ने ‘रेलवे समाचार’ द्वारा भेजे गए एसएमएस का जवाब देते हुए बताया कि वह मामले का पूरा संज्ञान लेकर इसका गंभीर अवलोकन करेंगे और उचित कदम उठाएंगे.