April 7, 2019

सेंट्रल केबिन की खस्ता हालत, म.रे.मुंबई मंडल का इंजी.विभाग जिम्मेदार

मुंबई मंडल के इंजीनियरिंग विभाग को है कर्मचारियों के मरने का इंतजार !

सुरेश त्रिपाठी

इसमें कोई शक नहीं है कि मुंबई उपनगरीय रेल नेटवर्क में काम का भारी बोझ है, परंतु इसमें भी कोई शक नहीं है कि मुंबई मंडल, मध्य रेलवे का इंजीनियरिंग विभाग कर्मचारियों के कार्यालयों और आवासों के रख-रखाव के प्रति हद से ज्यादा गैरजिम्मेदार और लापरवाह है. यह भी सर्वविदित है कि मुंबई मंडल, मध्य रेलवे के इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रिकल/मैकेनिकल विभाग में भ्रष्टाचार और कदाचार चरम पर है. राजनीतिज्ञों की लोकलुभावन नीतियों के अनुरूप ‘कमाऊ काम’ करने वाला मुंबई मंडल का इंजीनियरिंग विभाग डोम्बिवली सेंट्रल केबिनकी छत और दीवारों से टपक रहे प्लास्टर और कभी भी कार्यरत कर्मचारियों पर टूट पड़ने वाली केबिन की जर्जर इमारत के मेंटीनेंस के प्रति इतना लापरवाह हो गया कि पिछले एक साल से एसएसई/ट्रेन लाइटिंग, एसएसई/इलेक्ट्रिकल और उप स्टेशन अधीक्षक, डोम्बिवली द्वारा बार-बार लिखे जाने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया.

यहां ‘रेल समाचार’ को प्राप्त डोम्बिवली सेंट्रल केबिन के प्रस्तुत फोटो देखकर केबिन की इमारत की जर्जर अवस्था का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है. माना जाता है कि सरकारी लवाजमा तब काम करता है, जब कहीं दो-चार-दस मौतें होती हैं और सैकड़ों घायल हो जाते हैं. शायद मुंबई मंडल के इंजीनियरिंग विभाग को भी इसी मान्यता का इंतजार है कि कब केबिन की इमारत भरभराकर ढ़हे और उसमें कार्यरत कुछ कर्मचारी मरें, कुछ घायल हों, तब वह इमरजेंसी वर्क के नाम पर आनन-फानन में करोड़ों का बजट पास करवाकर लाखों का कमीशन कमाते हुए नया काम करवाए ! अन्यथा कोई कारण नहीं है कि पिछले एक साल से उपरोक्त सभी जिम्मेदार कर्मचारियों द्वारा बकायदे लिखित में सूचित करने के बावजूद मुंबई मंडल के संबंधित गैरजिम्मेदार इंजीनियरिंग अधिकारियों ने केबिन इमारत के संरक्षण और वहां कार्यरत रेलकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला कोई कदम क्यों नहीं उठाया?

सेंट्रल केबिन इमारत की भयानक दुर्दशा देखने के बाद निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि वहां कार्यरत रेलकर्मियों की जान हमेशा खतरे में बनी हुई है और वे अपनी जान का जोखिम उठाकर रेल कार्य को अंजाम देते हुए अपने कर्तव्य का पालन करने में कोई कोताही नहीं कर रहे हैं. उल्लेखनीय है कि इस सेंट्रल केबिन द्वारा रोजाना मेन लाइन की हजारों लोकल एवं मेल/एक्सप्रेस गाड़ियों को हैंडल किया जाता है. एनआरएमयू के अतिरिक्त महामंत्री विवेक नायर का कहना है कि एक मिनट के लिए भी कोई कर्मचारी केबिन और सिग्नलिंग ऑपरेशन पैनल छोड़कर नहीं जा सकता है, भले ही उनके ऊपर छत का प्लास्टर टूटकर गिर रहा हो अथवा सीलन से पैदा हुए लाखों काक्रोच और अन्य कीड़े-मकोड़े उन्हें परेशान कर रहे हों. उनका कहना है कि कोई दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित होने से पहले रेल प्रशासन को अविलंब इस पर ध्यान देना चाहिए और मंडल के संबंधित गैरजिम्मेदार इंजीनियरिंग अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए.

ज्ञातव्य है कि उक्त सेंट्रल केबिन में सिग्नल रिले रूम भी स्थापित है. इसके भरभराकर गिर पड़ने अथवा इसके और ज्यादा डैमेज हो जाने पर हजारों गाड़ियों का परिचालन और लाखों यात्रियों के प्रभावित होने की चिंता छोड़कर मुंबई मंडल के इंजीनियरिंग अधिकारी स्टेशनों का सुंदरीकरण करने, स्वच्छता पखवाड़ा मानने, फालतू जगहों पर एस्केलेटर्स और लिफ्ट लगाने, प्लेटफार्मों पर पुरानी टाइल्स उखाड़ने और नई टाइल्स लगाने, स्टेशनों की दीवारों को चमकाने, टॉयलेट्स बनाने इत्यादि अन्य इसी प्रकार के कथित यात्री सुख-सुविधा के कार्यों को सेफ्टी आइटम मानकर करने में करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं और लाखों का कमीशन कमा रहे हैं. परंतु उन्हें उक्त केबिन इमारत को सुरक्षित करने तथा वहां कार्यरत रेलकर्मियों की जान को जोखिम से बचाने में कोई रुचि नहीं है, क्योंकि इससे उन्हें कोई लाभ नहीं मिलने वाला है.

इस पर पुनः कॉम. विवेक नायर का कहना है कि वह उपरोक्त सभी कार्यों को भी जरूरी मानते हैं, मगर रेलकर्मियों की सुरक्षा और उनके कार्य-वातावरण को बनाए रखना उससे भी ज्यादा इसलिए जरूरी है, क्योंकि यदि कर्मचारी और उनका ऑपरेशन पैनल ही सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो गाड़ियों का सुचारु परिचालन सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है, और तब इसके चलते लाखों रेलयात्री भी प्रभावित होंगे. उनका यह भी कहना है कि ऐसी किसी अनहोनी पर रेल प्रशासन सबसे पहले निचले स्तर के निरीह-निर्दोष रेलकर्मियों को ही बलि का बकरा बनाता है, जबकि ऐसी सभी अनहोनियों के लिए हमेशा अधिकारी ही जिम्मेदार होते हैं. उनका कहना है कि कुछ समय के लिए उपरोक्त जैसे कार्यों को धीमा करके अथवा रोककर स्टाफ की सुविधा और लाखों यात्रियों को होने वाली परेशानी का ख्याल पहले किया जाना ज्यादा श्रेयस्कर होगा.

कॉम. नायर का कहना है कि यहां कार्यरत स्टाफ को अपनी जान जाने का डर हमेशा बना हुआ है, क्योंकि केबिन की बिल्डिंग की हालत अत्यंत खराब है. उन्होंने बताया कि इस संबंध में उन्होंने सबसे पहला मैसेज सीनियर डीओएम को भेजा था, परंतु उन्होंने न तो इस समस्या का कोई संज्ञान लिया और न ही उन्हें कोई प्रत्युत्तर ही दिया. उन्होंने कहा कि सेंट्रल केबिन इमारत की दुर्दशा के बारे में सीएएसएम, डोम्बिवली, एसएसई/ट्रेन लाइटिंग और एसएसई/इलेक्ट्रिकल सिग्नल द्वारा 24 नवंबर 2017 को एसएसई/वर्क्स, ठाकुर्ली को दिए गए पत्र, जिसे उसी दिन एसएसई/वर्क्स ने रिसीव भी किया था, पर रेल प्रशासन द्वारा अब तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया, जबकि उक्त पत्र की प्रतियां एरिया मैनेजर, ऑपरेटिंग, कल्याण और स्टेशन मैनेजर, डोम्बिवली को भी दी गई थीं. इससे जाहिर है कि प्रशासन को रेलकर्मियों की जान और उनकी सुरक्षा की कोई परवाह नहीं है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस बारे में प्रशासन को अवगत कराया गया है, उम्मीद है कि प्रशासन जल्दी ही उचित कदम उठाएगा. यदि ऐसा नहीं होता है तो रेलकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यूनियन द्वारा कड़ा प्रतिरोध किया जाएगा. क्रमशः


माटुंगा स्टेशन के सुंदरीकरण पर जुटी स्टेशन मैनेजर मीना शांति

मध्य रेलवे के प्रथम महिला रेलवे स्टेशन माटुंगा की स्टेशन मैनेजर सुश्री मीना शांति अपने स्टेशन के सुंदरीकरण के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं. इसके लिए वह स्वयंसेवी संस्थाओं और स्कूल-कालेजों के आर्ट्स एक्सपर्ट छात्रों के साथ मिलकर स्टेशन की हर दरो-दीवार को विभिन्न प्रकार की कलाओं, भित्ति चित्रों से सजाने और गमलों के माध्यम से स्टेशन को हराभरा तथा नयनाभिराम बनाने में जुटी हुई हैं. उनका यह अभूतपूर्व कार्य देखकर माटुंगा स्टेशन पर उतरने-चढ़ने वाले लाखों उपनगरीय रेलयात्रियों को बहुत सुकून मिल रहा है.