झांसी: लोको बॉक्स में सैंड भरने के नाम पर हो रहा भ्रष्टाचार
टेंडर प्रक्रिया के अनुसार मानक गुणवत्ता की नहीं हो रही जांच
टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने हेतु जांच कमेटी बनाने की मांग
उमेश शर्मा, ब्यूरो प्रमुख
प्रयागराज : उत्तर मध्य रेलवे के झांसी मंडल में सीनियर डीईई/ऑपरेशन द्वारा लोको सैंड फिलिंग के लिए टेंडर क्रमांक झांसी/ओपी/डब्ल्यूसी/टी-1/सैंड/2015-16 जारी किया गया था, जिसकी अनुमानित लागत 1.04 करोड़ रुपये थी. बताते हैं कि यह टेंडर आपसी मिलीभगत से 11% कम पर 96 लाख रुपये में दो वर्ष की अवधि के लिए दिया गया था. इसकी निर्धारित अवधि मई 2018 में समाप्त हो गई थी. तब से यह टेंडर/कार्य एक्सटेंशन पर चल रहा है. इस कार्य में मानक गुणवत्ता एवं पारदर्शिता को दरकिनार कर रेलवे नियमों के अनुसार प्रत्येक लोको में दस किलो सैंड नहीं भरी जा रही है. इससे ट्रैक पर लोको स्लिप हो रहे हैं, जिससे लोको पायलट्स को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रत्येक लोको में चार आगे और चार पीछे की तरफ कुल आठ सैंड बॉक्स होते हैं. लेकिन इनमें निर्धारित मात्रा में सैंड नहीं भारी जा रही है. इसके अलावा सैंड की मानक गुणवत्ता को ताक पर रखकर सिर्फ कागजी कोरम पूरा किया जा रहा है. बताते हैं कि यह कागजी कोरम पूरा करने हेतु ठेकेदार द्वारा झांसी रेलवे स्टेशन पर सादा रजिस्टर अंकित किया जाता है. इस रजिस्ट्रर में इससे संबंधित विभिन्न कार्यों को अंकित करना होता है, जैसे- 1. दिनांक, 2. लोको नंबर, 3. गाड़ी संख्या, 4. गाड़ी आने का समय, 5. गाड़ी जाने का समय, 6. सैंड बॉक्स में डाली गयी मात्रा, 7. लोको कैब में रखी गई बोरियां, 8. कुल मात्रा, 9. लोको पायलट का नाम, 10. लोको पायलट के हस्ताक्षर इत्यादि.
रेलवे के निर्धारित नियमों के अनुसार गुड्स ट्रेनों में जो सैंड भरी जाती है, वह ‘सिल्का सैंड’ कहलाती है. यह सैंड बजरी आरडीएसओ के पत्र सं. आर्म-916-51(स्पेसिफिकेशन) के अनुसार शंकरगढ़ में पाई जाती है. अन्यत्र इस किस्म की सैंड उपलब्ध नहीं है. बताते हैं कि पत्थर को पहले मशीन से फोड़कर पीसा जाता है. इसके बाद इसकी धुलाई और छनाई की जाती है. इसके बाद पैक किया जाता है. इसे सिल्का सैंड कहा जाता है और इसे ही रेलवे द्वारा सैंड के रूप में लोको को ट्रैक पर फिसलने से रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन झांसी सहित भारतीय रेल के तमाम लोको शेड्स में इस सिल्का सैंड के स्थान पर नदी की बालू लोको बॉक्सेस में डाली जा रही है. इसीलिए ट्रैक पर ज्यादातर लोको फिसल रहे हैं.
झांसी लोको शेड के कई वरिष्ठ कर्मचारियों ने इसकी जांच रेलवे लैब से कराने की मांग की है. उनका कहना है कि झांसी डीजल लोको शेड में लैब मौजूद होने के बावजूद बाहर से यह जांच कराकर खानापूर्ति की जा रही है. उनका कहना है कि मानक गुणवत्ता के अनुरूप लोको में सैंड नहीं भरे जाने से गुड्स ट्रेनें डिरेल हो रही हैं. उन्होंने मांग की है कि इसकी जांच के लिए एक कमेटी गठित की जाए, क्योंकि इस कार्य में प्रतिमाह रेलवे को लाखों-करोड़ों की आर्थिक क्षति हो रही है. इसीलिए जानबूझकर टेंडर में कमी निकालकर उसे दो बार रद्द किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि यह जांच का विषय है कि मई 2018 से यह टेंडर एक्सटेंशन पर क्यों चल रहा है? उन्होंने बताया कि फिलहाल इसे अगले महीने तक के लिए बढ़ा दिया गया है और अब आगे भी टेंडर प्रक्रिया में कोई बदलाव एवं पारदर्शिता नजर नहीं आ रही है.