अंततः संजीव गर्ग से हटाकर नवीन शुक्ला को सौंपी गई कैटरिंग
बिना फाइल पर हस्ताक्षर किए नीतियों में बदलाव चाहते हैं रेलमंत्री
भविष्य में सीबीआई जांच के लिए तैयार रहें भाटगीरी में लगे रेल अधिकारी
रेलवे कैटरिंग को अधिकारियों से मुक्त करके बाजार दरों के हवाले किया जाए
सुरेश त्रिपाठी
ट्रैफिक/कमर्शियल निदेशालय, रेलवे बोर्ड में ‘चॉइस पोस्टिंग’ का खेल बदस्तूर जारी है. फिर वह चाहे मेंबर ट्रैफिक की पसंद से हो, या फिर मंत्री की पसंद से. इस बार मंत्री की पसंद से एक बड़ा फेरबदल किया गया है. इससे खानपान नीति को लेकर जिस तरह का दबाव अधिकारियों पर बनाया जा रहा है, उससे सभी अधिकारी डरे हुए हैं. यह फेरबदल ‘रेलवे समाचार’ द्वारा 15 जनवरी को ‘ट्रैफिक/ कमर्शियल में होने जा रहे हैं कुछ महत्वपूर्ण बदलाव’ शीर्षक से प्रकाशित खबर के अनुरूप ही सामने आए हैं. रेलवे बोर्ड ने मंत्री की ख्वाहिश का पूरा ध्यान रखते हुए एडीशनल मेंबर/टूरिज्म एंड कैटरिंग संजीव गर्ग से कैटरिंग हटाकर प्रिंसिपल ईडी/मोबिलिटी से प्रिंसिपल ईडी/कैटरिंग बनाए गए नवीन कुमार शुक्ला को सौंप दी गई है.
जानकारों का कहना है कि एएम/टीएंडसी संजीव गर्ग का कहना पूरी तरह से न सिर्फ सही था, बल्कि तर्कसंगत और कानूनन वाजिब भी था. रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों ने ‘रेलवे समाचार’ को बताया कि एडीशनल मेंबर/टूरिज्म एंड कैटरिंग (एएम/टीएंडसी) संजीव गर्ग से ‘कैटरिंग’ हटाकर अथवा छीनकर नवीन शुक्ला को इसलिए सौंपी गई है, क्योंकि रेलमंत्री ऐसा चाहते थे. सूत्रों का कहना है कि यह काम रेलमंत्री की पहल पर किया गया है, क्योंकि रेलमंत्री खानपान नीति में अपनी सुविधानुसार अथवा निहितस्वार्थवश कुछ बदलाव करवाना चाहते हैं, जिसके लिए एएम/टीएंडसी संजीव गर्ग ने विभागीय प्रक्रिया अपनाने की बात कही थी, जो कि रेलमंत्री को नागवार लगी, क्योंकि रेलमंत्री किसी फाइल पर खुद हस्ताक्षर करने के मूड में नहीं हैं. परिणामस्वरूप उन्होंने एएम/टीएंडसी संजीव गर्ग से कैटरिंग हटा दी. परंतु गुरूवार, 19 जनवरी को रेलवे बोर्ड द्वारा जारी इस फेरबदल आदेश में कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि श्री शुक्ला, एएम/टूरिज्म, एएम/ट्रैफिक, एएम/आईटी, एएम/सीएंडआईएस, मेंबर ट्रैफिक, सीआरबी अथवा रेलमंत्री में से सीधे किसको रिपोर्ट करेंगे? शायद रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारी, रेलमंत्री का हुक्म बजाने की हड़बड़ी में, यह बताना भूल गए या बाद में बंदरबांट करेंगे?
सूत्रों का कहना है कि फरवरी 2017 में बनाई गई कैटरिंग पालिसी पूर्व रेलमंत्री द्वारा रेल बजट के समय संसद में की गई घोषणा के बाद बनी थी. सूत्रों ने बताया कि उक्त नोट पर रेलवे बोर्ड के नीचे से ऊपर तक के सभी संबंधित अधिकारियों सहित मेंबर ट्रैफिक, चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और खुद तत्कालीन रेलमंत्री ने भी हस्ताक्षर किए थे. सूत्रों का कहना है कि अब जब वर्तमान रेलमंत्री उक्त कैटरिंग पालिसी में अपनी सुविधानुसार कोई फेरबदल करवाना चाहते थे, तब यही बात एडीशनल मेंबर/टीएंडसी संजीव गर्ग ने कही कि ‘पूर्व की भांति एक नोट बना दिया जाए, और रेलमंत्री सहित सभी संबंधित बोर्ड अधिकारी उस पर अपना अप्रूवल दे दें. मगर रेलमंत्री इस मामले में अपने हस्ताक्षर से कोई अप्रूवल देना नहीं चाहते थे. इसलिए उन्होंने अपनी मर्जी से कैटरिंग में फेरबदल करवाने का उपरोक्त रास्ता निकाला.’
सूत्रों का कहना है कि जब एएम/टीएंडसी संजीव गर्ग ने संबंधित फाइल पर अप्रूवल देने की बात कही थी, तब रेलमंत्री उन पर सख्त नाराज हुए थे और उसी समय उन्होंने रेलवे बोर्ड को अपना यह आदेश दनदना दिया था कि या तो एएम/टीएंडसी को तुरंत हटाया जाए अथवा उनकी जगह किसी ‘फर्माबरदार’ को लाया जाए. अब चूंकि एडीशनल मेंबर की नियुक्ति सीधे पीएमओ से होती है, इसलिए एएम/टीएंडसी के पद से संजीव गर्ग को हटाना या उन्हें अन्यत्र शिफ्ट कर पाना रेलमंत्री अथवा रेलवे बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में नहीं था. इसलिए जैसा कि हमेशा से होता आया है, कि कुछ चारण-भाट टाइप के अधिकारी हर वक्त मंत्री की ख्वाहिश पूरी करने के लिए तत्पर रहे हैं, उसी तरह इस बार भी मंत्री को समझाया गया कि एएम/टीएंडसी को हटाना तो संभव नहीं है और न ही यह उनके अधिकार में है, ऐसे में संजीव गर्ग से ‘कैटरिंग’ लेकर दूसरे को सौंप दी जाए.
ठीक यही किया गया. सूत्रों का कहना है कि कैटरिंग अलग करने का प्रस्ताव बनाकर मंत्री के पास भेजा गया, जिसकी संस्तुति मंत्री ने फौरन दे दी. इस तरह एक प्रकार से संजीव गर्ग को अपमानित करते हुए उनसे कैटरिंग हटाकर नवीन कुमार शुक्ला को सौंप दी गई. कई वरिष्ठ रेल अधिकारियों का कहना है कि वैसे भी रेलवे को बेचने पर अमादा वर्तमान रेलमंत्री महोदय रेल अधिकारियों से किन्हीं अज्ञात कारणों से खासी खुन्नस रखते हैं, इसीलिए हर मौके-बेमौके पर वह ईमानदार रेल अधिकारियों को बेइज्जत करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. तथापि, जानकारों का कहना है कि एएम/टीएंडसी से कैटरिंग हटाने का भी अप्रूवल पीएमओ से लिया जाना जरूरी है. यदि यह नहीं लिया गया है, तो यह काम गैर-कानूनी है, और भविष्य में इसका खामियाजा उन अधिकारियों को भुगतना पड़ सकता है, जो आज मंत्री की जी-हुजूरी करते हुए उनकी पसंद से हर मामले में नियम-विरुद्ध फेरबदल करने को तत्पर हैं.
इसके साथ ही जैसा कि ‘रेलवे समाचार’ ने 15 जनवरी को लिखा था, उसी के अनुरूप अब ईडी/टीएंडसी की पोस्ट का बतौर ईडी/एनएफआर एंड टूरिज्म नया नामकरण किया गया है. अब तक बतौर ईडी/टीएंडसी कार्यरत रही श्रीमती स्मिता रावत को बतौर ईडी/एनएफआर एंड टूरिज्म पदस्थ किया गया है. इसी प्रकार ईडी/एनएफआर की पोस्ट को अब बतौर ईडी/मोबिलिटी ऑपरेट किया जाएगा. अब तक ईडी/एनएफआर रहे अतीश सिंह को ईडी/मोबिलिटी बनाया गया है. यह सारी कवायद सिर्फ मंत्री की ख्वाहिश पूरी करने के लिए ही की गई है. इससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि रेलयात्रियों और रेलवे को लूटने के इच्छुक कुछ उठाईगीर टाइप के कुछ और खानपान ठेकेदारों का रेलवे में जल्दी ही प्रवेश होने जा रहा है.
जानकारों का यह भी कहना है कि जहां कुछ बदनाम और घोषित कदाचारी अधिकारियों के मामले में कोई ठोस निर्णय लिए जाने तथा लंबे समय से एक ही रेलवे, एक ही शहर में जमे अधिकारियों को दरबदर करने की जरूरत है, वहीं ऐसा लगता है कि रेलवे बोर्ड भरपूर राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है. उनका कहना है कि यह जानते हुए भी कि लालू प्रसाद यादव के समय लिए गए कदाचारपूर्ण एवं विवादस्पद निर्णयों की सीबीआई जांच चल रही है और कई पूर्व अधिकारियों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है, रेलवे बोर्ड द्वारा कुछ ऐसे निर्णय लिए जा रहे हैं, जिनसे न सिर्फ सभी संबंधित अधिकारियों को भविष्य में तमाम समस्याओं और सीबीआई जांच का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि इसके लिए उन्हें गंभीर परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं.
ज्ञातव्य है कि लालू यादव के मामले में रेलवे बोर्ड के तत्कालीन सभी संबंधित अधिकारियों को सीबीआई का नोटिस मिला है और वह अब राजनीतिक शरण तलाश रहे हैं. हाल ही में ऐसा ही नोटिस मिलने पर एक पूर्व मेंबर ट्रैफिक भागे-भागे रेलवे बोर्ड पहुंचे थे, उन्हें सुकून की सांस तब आई, जब उन्होंने संबंधित फाइल मंगाकर यह देख लिया कि जिस दिन उन्होंने मेंबर ट्रैफिक का चार्ज लिया था, उसके पहले उनके पूर्ववर्ती ने संबंधित फाइल पर अपने हस्ताक्षर करके लालू यादव की ख्वाहिश पूरी की थी. इस तरह बाल-बाल बच जाने के बाद उन्होंने रेल भवन में ही इस बात का जश्न भी मनाया. उल्लेखनीय है कि भुवनेश्वर-कोलकाता के बीच मौजूद बीएनआर के तमाम हैरिटेज होटलों, जिनमें रांची रेलवे स्टेशन के सामने स्थित भव्य पांच सितारा ‘होटल चाणक्य’ भी है, को निजी हाथों में सौंपने सहित लालू यादव के समय लिए गए तमाम निर्णयों की जांच सीबीआई द्वारा की जा रही है.
जबकि जानकारों का स्पष्ट कहना है कि ऐसी तमाम कवायदों का तब तक कोई लाभ नहीं होने वाला है, जब तक कि कैटरिंग के मामले में राजनीतिक नफा-नुकसान छोड़कर और रेल अधिकारियों के निहितस्वार्थ को दरकिनार करके स्पष्ट नीति नहीं अपनाई जाएगी. उनका कहना है कि या तो न्यूनतम नियंत्रण रखते हुए कैटरिंग को बाजार दरों पर छोड़ दिया जाए, अथवा पुरानी न्यूनतम लाइसेंस फीस वाली नीति पर वापस आ जाया जाए. इसके अलावा इस मामले में बीच का कोई रास्ता नहीं हो सकता है. उनका यह भी कहना है कि खानपान की प्रत्येक गतिविधि और हर आइटम तथा उनकी दरों को न्यूनतम स्तर पर निर्धारित/नियंत्रित करके न तो कैटरिंग की शिकायतों को रेलवे से कभी खत्म किया जा सकता है, और न ही इसमें व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार को कभी समाप्त किया जा पाएगा.
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री के निर्देश और पूर्व रेलमंत्री की तमाम कोशिशों के बावजूद रेलवे स्टेशनों/परिसरों सहित किसी भी चलती ट्रेन में निर्धारित दरों पर यात्रियों को खानपान सुविधा नहीं मिल रही है. सात रुपये की चाय दस रुपये में बेची जा रही है और 35 रुपये का खाना 125 से 150 रुपये में परोसा जा रहा है. जबकि रेलवे परिसरों और चलती ट्रेनों में बेचे जा रहे प्रत्येक आइटम की अलग और विशेष पैकेजिंग संबंधित कंपनियों द्वारा कम वजन/गुणवत्ता पर की जाती है. इसके अलावा कई आइटम्स की दरें बाजार दरों से भी ज्यादा हैं. इसके बावजूद ओवर चार्जिंग और अवैध वेंडिंग का वर्षों पुराना रोग खत्म करने की न तो रेल प्रशासन को कोई चिंता है, और न ही यह शायद कभी समाप्त किया जा सकेगा, क्योंकि यह बिना लागत का सामानांतर उद्योग तमाम स्थानीय राजनीतिज्ञों सहित माफियाओं और उनके साथ कुछ जोनल/डिवीजनल रेल अधिकारियों की मिलीभगत के कारण कई गुना ज्यादा मुनाफे का धंधा बन गया है.