आरपीएफ एसोसिएशन के खिलाफ बल सदस्यों को भड़काने की साजिश

हाई कोर्ट में किसी बल सदस्य को पक्षकार बनाकर की जा रही मामले को उलझाने कोशिश

डीजी की नियुक्ति पर हाई कोर्ट में निरुत्तर रहा रेल प्रशासन कर रहा है अदालत को गुमराह

सुरेश त्रिपाठी

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर राजस्थान हाई कोर्ट के तथाकथित निर्णय और रेलवे बोर्ड के अनाम पत्र का हवाला देते हुए एक अत्यंत दिग्भ्रमित करने वाली पोस्ट एक बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत आरपीएफ कर्मियों को अस्सोकिअतिओन्के खिलाफ भड़काने के उद्देश्य से प्रसारित की जा रही है. इस पूरी पोस्ट को एक नजर देखने मात्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह किसी साजिश के तहत आरपीएफ कर्मियों को दिग्भ्रमित करने और भड़काने के उद्देश्य से सोशल मीडिया पर प्रसारित की गई है. तथापि, कुछ मूढ़ प्रवृत्ति के आरपीएफ कर्मी ही इसे सोशल मीडिया पर विभिन्न आरपीएफ समूहों में प्रसारित करके खुद ही आरपीएफ कर्मियों को दिग्भ्रमित करने के साजिशकर्ताओं के कुत्सित उद्देश्य का हिस्सा बन रहे हैं.

राजस्थान हाई कोर्ट के तथाकथित बेंचमार्क जजमेंट और रेलवे बोर्ड के अनाम पत्र के हवाले से सोशल मीडिया में प्रसारित इस पोस्ट में जो कहा गया है, उसका कुल मजमून यह है कि ‘आरपीएफ कर्मियों द्वारा किसी नियम को भंग करने की स्थिति में रेलवे विजिलेंस को उनके विरुद्ध किसी भी प्रकार की प्रोसीडिंग और इन्क्वारी करने का अधिकार नहीं है. आरपीएफ कर्मियों के विरुद्ध प्रोसीडिंग्स एवं इन्क्वारी का यह अधिकार सिर्फ आरपीएफ अधिकारियों को ही है. यही नहीं, यदि आरपीएफ ऐक्ट, 1957 की धारा 10 के अनुसार आरपीएफ कर्मी, रेल कर्मचारी हैं, तथापि आरपीएफ मूल रूप से भारतीय संघ की एक आर्म्ड फोर्स है और एक्स-सर्विस मैन (रि-एम्प्लॉयमेंट इन सेंट्रल सर्विसेस एंड पोस्ट्स) रूल, 1979 के अनुसार आरपीएफ भारत की अन्य पैरामिलिटरी फोर्सेज में से एक है. बल सदस्यों को अन्य रेलकर्मियों की तरह रेलकर्मी नहीं माना जा सकता, क्योंकि आरपीएफ कर्मियों एवं रेलकर्मियों में बहुत अंतर है.’

‘रेलवे समाचार’ द्वारा राजस्थान हाई कोर्ट के हवाले से इस तथाकथित बेंचमार्क जजमेंट का यहां पूरा अनुवाद देने का मतलब यह होगा कि आरपीएफ कर्मी इसे पढ़कर और ज्यादा दिग्भ्रमित होंगे. इसलिए यहां सिर्फ इतना ही कहना काफी होगा कि यह पोस्ट पूरी तरह से झूठी और निराधार है तथा इसके जरिए आरपीएफ कर्मियों को जानबूझकर दिग्भ्रमित करने की भयानक और कुत्सित कोशिश की गई है. राजस्थान हाई कोर्ट के नाम पर और रेलवे बोर्ड के अनाम पत्र के हवाले से इसमें तमाम तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया, जिससे कि आरपीएफ कर्मियों को अधिक से अधिक दिग्भ्रमित किया जा सके.

हालांकि अब तक यह पोस्ट बहुत ज्यादा आरपीएफ कर्मियों तक नहीं पहुंच पाई है, तथापि जिन कुछ आरपीएफ कर्मियों तक यह पोस्ट पहुंची है, उनमें कांस्टेबल से लेकर इंस्पेक्टर तक शामिल हैं और इन कुछ मूर्ख आरपीएफ कर्मियों ने इसे ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. रेड्डी अथवा आरपीएफ कानून सहित भारतीय संविधान के मूर्धन्य ज्ञाता राष्ट्रीय महामंत्री यू. एस. झा के संज्ञान में लाने के बजाय इसे बोध-निर्णय मानते हुए अपने स्तर पर काफी लोगों तक पहुंचाने की कोशिश भी की है.

सोशल मीडिया पर प्रसारित इस पोस्ट के बारे में जब ‘रेलवे समाचार’ ने ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. रेड्डी से पूछताछ की, तो उनका कहना था कि ऐसा कोई निर्णय राजस्थान हाई कोर्ट ने नहीं दिया है और न ही रेलवे बोर्ड द्वारा ऐसा कोई पत्र जारी किया गया है. यह पोस्ट पूरी तरह से मनगढ़ंत, झूठी और बकवास है. उन्होंने कहा कि उक्त पोस्ट में आईसीएफ के जिस एल. विंसेंट का हवाला दिया गया है, वह वहां एक कांस्टेबल हुआ करता था. राजस्थान में कोई इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) नहीं है. आईसीएफ, चेन्नई में है, जबकि आरसीएफ, कपुरथला में और एमसीएफ, रायबरेली में स्थित है, राजस्थान में कोई भी रेलवे फैक्ट्री नहीं है. इसलिए राजस्थान हाई कोर्ट में ऐसा कोई मामला होने और उस पर कोई निर्णय आने का सवाल ही नहीं है. उन्होंने बताया कि इंटरनेट पर बहुत खोजने के बाजवूद भी राजस्थान हाई कोर्ट का ऐसा कोई निर्णय नहीं मिला है. अतः यह पोस्ट पूरी तरह से निराधार और झूठी है.

राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रेड्डी का कहना था कि उन्होंने इंटरनेट पर जब इस पोस्ट के बारे में ज्यादा गहराई से खोजबीन की, तो पता चला कि यह कांस्टेबल एल. विंसेंट और रेल मंत्रालय के बीच सीआईसी में प्रोफेशनल टैक्स को लेकर आरटीआई का मामला था, जिसमें कांस्टेबल विंसेंट ने रेल मंत्रालय के विरुद्ध प्रॉपर जानकारी नहीं दिए जाने पर सीआईसी में मामला दायर किया था. उन्होंने बताया कि ज्यादा सर्च करने पर पता चला कि केस नंबर सीआईसी/ओपी/ए/2009/000051 के तहत 8 जून 2010 को सीआईसी ने एल. विंसेंट की आरटीआई पर प्रोफेशनल टैक्स के मामले में एक निर्णय दिया है. उक्त निर्णय में जब एल. विंसेंट के नाम से सिर्फ प्रोफेशनल टैक्स का मुद्दा था, तब इसमें राजस्थान हाई कोर्ट का हवाला कहां से आ गया? इसके अलावा उक्त पोस्ट में विजिलेंस इन्क्वारी और प्रोसीडिंग्स का मुद्दा कैसे जुड़ गया, जबकि ऐसा कोई मुद्दा सीआईसी के सामने उक्त मामले में था ही नहीं. इससे साफ जाहिर है कि एक बहुत सोची-समझी साजिश के तहत इस फर्जी पोस्ट को प्रसारित किया गया है.

उन्होंने बताया कि आर्म्ड फोर्सेज को प्रोफेशनल टैक्स नहीं लगता है, यह सही है. जबकि आरपीएफ कर्मियों से प्रोफेशनल टैक्स लिया जाता है, क्योंकि उन्हें रेलवे ऐक्ट में रेलकर्मी माना गया है. इसके अलावा सैकड़ों बार सरकार और अन्य तमाम मंचों पर मान्यताप्राप्त ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन ने वैधानिक और संवैधानिक दोनों तरह से इस बात को प्रमाणित किया है कि चूंकि आरपीएफ का देश की कानून-व्यवस्था से कोई संबंध नहीं है, यह सिर्फ रेल संपत्ति और रेलयात्रियों तथा उनके साजो-सामान की सुरक्षा करती है. इसलिए आरपीएफ को किसी भी प्रकार से आर्म्ड फोर्स नहीं माना जा सकता है.

श्री रेड्डी का कहना था कि तमाम व्यवस्था और सरकार को दिग्भ्रमित करके प्रशासनिक लॉबी की एक साजिश के तहत आरपीएफ को आर्म्ड फोर्स बना दिया गया था. यही कारण है कि उक्त प्रशासनिक लॉबी आज भी इसके आर्म्ड फोर्स होने की माला जप रही है. जबकि वह कानूनन इसके औचित्य को साबित नहीं कर पा रही है. इसीलिए वह ऐसी फर्जी एवं निराधार पोस्ट सोशल मीडिया में डालकर बल सदस्यों को दिग्भ्रमित करने की घटिया कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि यह लॉबी आज बीसों साल बाद भी सरकार और अदालत को दिग्भ्रमित करने में लगी हुई है. उक्त पोस्ट भी इसी साजिश का हिस्सा है.

इसके साथ ही श्री रेड्डी ने सभी आरपीएफ कर्मियों से अपील की है कि वे ऐसी किसी पोस्ट के झांसे में न आएं, और न ही इस तरह की किसी पोस्ट को प्रसारित करके साजिशकर्ताओं की साजिश का हिस्सा बनें. उन्होंने यह भी अपील की है कि यदि किसी आरपीएफ कर्मी को ऐसी कोई संदिग्ध पोस्ट मिलती है, तो उसे सबसे पहले उनके और राष्ट्रीय महामंत्री यू. एस. झा के संज्ञान में लाया जाना चाहिए.

‘रेलवे समाचार’ को अपने विश्वसनीय सूत्रों से यह सनसनीखेज जानकारी प्राप्त हुई है कि ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर करके वर्तमान डीजी/आरपीएफ की नियुक्ति सहित आईपीएस की आरपीएफ में प्रतिनियुक्ति को चुनौती दी गई है, उस मामले में आईपीएस लॉबी द्वारा यह कोशिश की जा रही है कि किसी दगाबाज आरपीएफ कर्मी को ही कोर्ट के समक्ष बतौर एक पक्षकार खड़ा करके उससे यह कहलवाते हुए मामले को उलझा दिया जाए, कि वह, यानि आरपीएफ कर्मी, आरपीएफ में आईपीएस की प्रतिनियुक्ति के पक्ष में हैं. हालांकि सूत्रों का यह भी कहना है कि आईपीएस लॉबी को फिलहाल ऐसा कोई दगाबाज आरपीएफ कर्मी नहीं मिल पाया है, मगर उसकी यह तलाश काफी जोरों पर जारी है. तथापि, जानकारों का कहना है कि अदालत इतनी मूर्ख नहीं हो सकती है, कि वह प्रशासनिक लॉबी की ऐसी चालबाजियों को न समझ पाए.

उल्लेखनीय है कि दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन द्वारा दायर की गई वर्तमान डीजी/आरपीएफ की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर हाई कोर्ट द्वारा बार-बार पूछे जाने के बावजूद शुरू की 3-4 तारीखों तक रेल प्रशासन (रेलवे बोर्ड) उच्च अदालत को यह बताने/प्रमाणित करने में नाकाम रहा था कि डीजी/आरपीएफ को उनके पूर्व कार्यस्थल से कब स्पेयर/रिलीव किया गया था? सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि बाद में उनका यह रिलीविंग लेटर किसी तरह ‘मैनेज’ करके अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, जो कि प्रमाणिक नहीं है. परंतु रेल प्रशासन और मजबूत आईपीएस एवं प्रशासनिक लॉबी की नाक का सवाल है, इसलिए सरकार भी दम साधे चुपचाप बैठी हुई है. यदि सरकार में शामिल राजनीतिज्ञ इतने ही ईमानदार और सु-चरित्र हैं, तो वह क्यों नहीं संवैधानिक प्रावधान का पालन कर रहे हैं?


मंडल मंत्री के गैर-कानूनी निलंबन के विरोध में धरने पर बैठे कटिहार मंडल के पदाधिकारी

कटिहार : ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन, कटिहार मंडल, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के मंडल मंत्री धर्मेंद्र ठाकुर को वरिष्ठ मंडल सुरक्षा आयुक्त (सीनियर डीएससी) द्वारा पिछले 9 महीनों से लगातार गैर-कानूनी तरीके से निलंबित रखे जाने के विरोध में कटिहार मंडल के सभी पदाधिकारी 13 जून को दोपहर के खाने का बहिष्कार करके धरने पर बैठ गए. उनके साथ जोनल अध्यक्ष राना भट्टाचार्जी, जोनल महामंत्री विमल दास, संयुक्त मंत्री पी. सी. मिश्रा और उपाध्यक्ष एस. के. झा तथा मंडल मंत्री, अलीपुरद्वार जे. के. सिंह ने भी इस मौके पर उपवास किया.

मंडल मंत्री धर्मेंद्र ठाकुर ने मंडल रेल प्रबंधक, कटिहार को एक पत्र लिखकर सूचित किया है कि उपरोक्त सभी पदाधिकारी 14 जून से मंडल मुख्यालय के समक्ष उपवास रखते हुए धरना देंगे. इसके बाद भी यदि मंडल मंत्री का निलंबन वापस लेने सहित अन्य समस्याओं का समुचित समाधान नहीं किया गया, तो उक्त धरना आंदोलन अनिश्चितकाल के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है. उपरोक्त जोनल पदाधिकारियों सहित धरने में मंडल अध्यक्ष मदन मिश्रा सहित मंडल कार्यकारिणी के सभी सदस्यों ने भाग लिया. इससे पहले मदन मिश्रा की अध्यक्षता में कटिहार मंडल की मंडल कार्यकारिणी की बैठक संपन्न हुई.