भारतीय रेल में खूब धड़ल्ले से चल रहा ‘कंसल्टेंसी’ का खेल
28 करोड़ रुपए में ‘मैकेंजी’ को दी गई रेलवे यूनिवर्सिटी की कंसल्टेंसी?
वी.के.गुप्ता द्वारा बनाए गए नेशनल रेल डेवलपमेंट प्लान को पुनरीक्षा हेतु राइट्स को सौंपा
सुरेश त्रिपाठी
भारतीय रेल में पिछले तीन साल से ‘कंसल्टेंसी’ का खेल खूब जोरों से चल रहा है और इस बहाने रेल राजस्व से करोड़ों रुपए लुटाए जा रहे हैं. इससे पहले यह खेल तमाम तरह की कमेटियां बनाकर खूब खेला गया था. तब भी रेलवे राजस्व की बहुत बंदरबांट हुई थी. जहां उक्त कमेटियों द्वारा दी गई तमाम रिपोर्टें रेलवे बोर्ड की अलमारियों में पड़ी धूल फांक रही हैं, वहीं ठीक उसी प्रकार इन कथित फर्जी कंसल्टेंसियों की रिपोर्टों का भी वही हाल हो रहा है. मगर इस जरिए एमआर सेल में बैठे कुछ सलाहकारों और रेलवे बोर्ड के कुछ अधिकारियों की चांदी हो रही है. जबकि रेल मंत्रालय का वर्तमान ‘निजाम’ सब कुछ जानते हुए भी अंजान बन रहा है.
रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों से ‘रेलवे समाचार’ को मिली भरोसेमंद जानकारी के अनुसार रेलमंत्री के तथाकथित ड्रीम प्रोजेक्ट ‘रेलवे यूनिवर्सिटी’ के लिए ‘कंसल्टेंसी’ का कार्य रेलवे पीएसयू राइट्स लि. को सौंपा गया है. ‘रेलवे समाचार’ के इन विश्वसनीय सूत्रों का यह भी कहना है कि इसके साथ ही राइट्स को रेलवे बोर्ड की तरफ से यह ‘आदेश’ भी दिया गया है कि उक्त कंसल्टेंसी का काम एक निजी कंसल्टेंसी फर्म ‘मैकेंजी’ को दे दिया जाए. सूत्रों का कहना है कि इस आदेश के पीछे दबाव एमआर सेल से डाला जा रहा है. सूत्रों का कहना है कि इस तथाकथित कंसल्टेंसी की लागत 28 करोड़ रुपए है.
यह तो सर्वज्ञात है कि एमआर सेल में बतौर ओएसडी/एमआर बैठे हनीश यादव उक्त निजी कंसल्टेंसी फर्म ‘मैकेंजी’ से ही आए हैं. और यह भी सर्वज्ञात है कि हनीश यादव की एमआर सेल में घुसपैठ कराने वाला जोरू का गुलाम एक पूर्व सीआरबी ही था, जो कि कथित तौर पर उनके जरिए आज भी रेलवे बोर्ड सहित कई अन्य जोनल रेलों में अपना ‘धंधा’ चला रहा है. उल्लेखनीय है कि बहु-प्रचारित ‘रेल विकास शिविर’ भी हनीश यादव के ही दिमाग की उपज थी. यह भी सर्वज्ञात है कि इस विकास शिविर का परिणाम शून्य रहा था और रेलवे को इसका कोई लाभ नहीं मिला, जबकि इसके लिए रेलवे ने करोड़ों रुपए फूंक डाले. अब यह भी सर्वज्ञात है कि इस विकास शिविर के आयोजन की सारी जिम्मेदारी ‘मैकेंजी’ को ही सौंपी गई थी, जिसने तमाम वरिष्ठ रेल अधिकारियों से अपने द्वारा लिखे गए सुझाव मंच से रेलमंत्री के सामने पढ़वाए थे.
बहरहाल, रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि उपरोक्त कंसल्टेंसी के लिए 28 करोड़ रुपए पास किए जाने की फाइल रेलवे बोर्ड में एक टेबल से दूसरी टेबल पर दौड़ाई जा रही है, परंतु किसी अधिकारी की यह हिम्मत नहीं पड़ रही है कि उक्त फाइल को रेलमंत्री की टेबल तक पहुंचा सके. इसका कारण सूत्रों ने यह बताया है कि यह सबको पता है कि रेलमंत्री ऐसी किसी फाइल को हाथ नहीं लगाएंगे. सूत्रों का कहना है कि 15 करोड़ रुपए से ऊपर की किसी फाइल को साइन करने का अधिकार दोनों रेल राज्यमंत्रियों के पास नहीं है. जबकि रेलमंत्री ने स्वयं को ऐसे तमाम कार्यों से विलग कर रखा है. तथापि उनके मातहत करोड़ों रुपए के रेल राजस्व की यह जो बंदरबांट हो रही है, वह भी उनसे छिपी हुई नहीं है.
सूत्रों का कहना है कि चूंकि रेलमंत्री फाइल को हाथ नहीं लगाएंगे, इसलिए अब इसका तोड़ यह निकाला जा रहा है कि उक्त 28 करोड़ रुपए की राशि को दो-तीन भागों में कुछ इस तरह बांट दिया जाए, कि जिससे वह संबंधित अधिकारियों के ही अधिकार क्षेत्र में आ जाए. इससे एक तरफ मंत्री का भी झंझट नहीं रह जाएगा, तो दूसरी तरफ काम भी आसान हो जाएगा. सूत्रों का यह भी कहना है कि इस मामले में अब तक यह निर्णय नहीं हो पा रहा है कि उक्त राशि को किस तरह से विभाजित किया जाए कि काम आसान हो जाए. बहरहाल एमआर सेल के दबाव में इस मामले पर संबंधित अधिकारी कड़ी माथापच्ची करने में लगे हुए हैं.
इस मामले में जानकारों का कहना है कि यूनिवर्सिटी स्थापित करने के लिए वैसे तो किसी कंसल्टेंसी की कोई जरूरत ही नहीं है, यदि यह जरूरत है तो इसे किसी मान्यताप्राप्त यूनिवर्सिटी को सौंपा जा सकता है. उनका यह भी कहना है कि यह काम शिक्षा जगत से जुड़ा हुआ है और यह उसे ही दिया जाना चाहिए जो कि इस क्षेत्र का विशेषज्ञ हो. ऐसी किसी निजी कंसल्टेंसी फर्म या किसी रेलवे पीएसयू, जिसका शिक्षा जगत से कोई संबंध नहीं रहा, को यह काम सौंपा जाना निहायत बेअक्लमंदी होगी. उनका यह कहना है कि यह काम रेलवे के ही लोग करने में पर्याप्त रूप से सक्षम हैं. उनका इशारा वास्तव में रेलवे स्कूलों के प्रधानाचार्यो की तरफ था. उन्होंने यह भी कहा कि यह अत्यंत आश्चर्य की बात है कि एक तरफ रेलवे अपने स्कूलों को एक-एक करके बंद करता जा रहा है, तो दूसरी तरफ ‘रेलवे यूनिवर्सिटी’ खोलने जा रहा है.
उधर नेशनल रेल डेवलपमेंट का प्लान तैयार करके पूर्व मेंबर इंजीनियरिंग वी. के. गुप्ता ने रेलवे बोर्ड को सौंप दिया है. इस बहाने श्री गुप्ता न सिर्फ एक साल तक एस. पी. मार्ग, नई दिल्ली स्थित रेलवे के आलीशान आवास का लुत्फ उठाते रहे, बल्कि इस बहाने मिलने वाले मोबदले की बदौलत मुफ्त की भी खाते रहे. जानकारों को इस बात का भी आश्चर्य है कि जिस आदमी ने रेल सेवा में रहते हुए कभी तिनका भर भी काम नहीं किया, वह सेवानिवृत्ति के बाद खुद काम कैसे करने लगा? प्राप्त जानकारी के अनुसार प्लान सौंपते ही श्री गुप्ता को अब रेलवे आवास खाली करने का नोटिस भी रेलवे बोर्ड की तरफ से थमा दिया गया है. बहरहाल, खबर यह नहीं है, बल्कि खबर यह है कि श्री गुप्ता ने नेशनल रेल डेवलपमेंट का जो प्लान सौंपा है, उसे रेलवे बोर्ड ने पुनरीक्षण के लिए अब राइट्स लि. को सौंप दिया है.
जानकारों का कहना है कि यदि यही किया जाना था और राइट्स को ही उक्त प्लान देखना था, तो उसे ही इसकी कंसल्टेंसी भी सौंपी जानी चाहिए थी. इसके लिए श्री गुप्ता को एक साल तक रेलवे का अतिथि बनाकर रखने और उसके लिए उन्हें अलग से भुगतान करने की क्या जरूरत थी? उनका कहना है कि रेलवे में इस तरह की फर्जी कंसल्टेंसी का खेल खूब चल रहा है. इसके जरिए सत्ता के दलालों और मंत्रियों के चापलूसों का भरण-पोषण किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जहां तक हनीश यादव की बात है, तो वह (हनीश यादव) यह जानते हैं कि लंबे समय तक अपने पद पर बने नहीं रहेंगे. इसलिए वह मैकेंजी जैसी अलग-अलग फर्मों को ऐसी फालतू कंसल्टेंसी मुहैया करा रहे हैं कि जिससे रेल भवन से निकलने के बाद वही फर्में उन्हें काम मुहैया कराएंगी.