‘इरवो’ में कार्यरत हैं 75 साल से ज्यादा उम्र के अधिकारी

सरकारी क्षेत्र में 65 साल से ज्यादा के अधिकारियों को कार्य की अनुमति नहीं

सरकार और केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी नहीं मिलती है 75 साल के लोगों को जगह

नई दिल्ली : सरकारी क्षेत्र और यहां तक कि जूडीसियरी में भी जहां 65 साल से ज्यादा उम्र के अधिकारियों और न्यायाधीशों को ‘सर्विस’ का अधिकार नहीं है, वहीं भारतीय रेल के एक उपक्रम ‘भारतीय रेल कल्याण संगठन’ (इंडियन रेलवे वेलफेयर आर्गेनाईजेशन – इरवो) में 75 साल से ज्यादा की उम्र के अधिकारी रेलवे से सेवानिवृत्ति के बाद ‘सर्विस’ में हैं. जबकि इरवो प्रशासन के पास इसका कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं है और न ही इस तरफ रेलवे बोर्ड, जो कि इसके प्रबंध निदेशक और अन्य निदेशकों की नियुक्ति करने वाली अधिकृत संस्था है, का कोई ध्यान है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार नवंबर 2016 में इरवो के लेखा विभाग के लिए रेलवे से सेवानिवृत्त हुए कुछ लेखा अधिकारियों का साक्षात्कार लिया गया था. परंतु आज लगभग छह महीने बाद भी उक्त साक्षात्कार द्वारा चयनित अधिकारियों को सेवा में नहीं लिया गया है. इन अधिकारियों ने इसका कारण यह बताया है कि लेखा विभाग में प्रबंधक स्तर पर 75-76 साल के कुछ अधिकारी, यानि रेलवे से सेवानिवृत्ति के बाद 20-21 से इरवो के लेखा विभाग में कार्यरत हैं और उन्हें अब तक हटाया नहीं गया है. इसलिए उन्हें सेवा में लेने के लिए उचित जगह नहीं बन पा रही है. उनका कहना है कि जब तक इन 75-76 साल के अधिकारियों को हटाया नहीं जाएगा, तब तक उन्हें नहीं लिया जा सकता. उनका यह भी कहना था कि जब कहीं भी 75-76 साल के अधिकारियों को सेवा में रखने का नियम नहीं है, तब इरवो में यह नियम अवैध है.

इस संबंध में जब ‘रेलवे समाचार’ ने इरवो के प्रबंध निदेशक और दक्षिण रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक दीपक कृष्ण से मोबाइल पर बात की और उन्हें बताया कि जब किसी भी सरकारी क्षेत्र में काम करने की आयु-सीमा अधिकतम 65 साल निश्चित है. यहां तक कि केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में भी 75 साल के लोगों के लिए कोई जगह नहीं है, और जुडिशियल सर्विस में भी 65 साल से ज्यादा के लोगों को रखने की अनुमति नहीं है. ऐसे में इरवो में 75-76 साल के लोग कैसे सेवा में हैं? इस पर प्रबंध निदेशक दीपक कृष्ण का कहना था कि इरवो में प्रबंध निदेशक और निदेशकों के स्तर पर तो आयु-सीमा 65 साल निश्चित है, मगर प्रबंधक एवं उसके नीचे स्तर पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है.

इरवो के प्रबंध निदेशक दीपक कृष्ण का यह भी कहना था कि ऐसा इसलिए है कि जब तक आदमी सही-सलामत काम कर रहा है और उचित आउटपुट दे रहा है, तब तक उससे काम लिया जा रहा है. इस पर जब ‘रेलवे समाचार’ ने उनसे यह कहा कि एक तो इरवो का यह नियम ही आधारहीन है, दूसरे यदि ऐसा किया गया, तो अन्य सक्षम एवं योग्य लोगों को कभी अवसर ही नहीं मिल पाएगा? क्या उन्हें लगता है कि इरवो की यह नीति संवैधानिक और उचित है? इस पर दीपक कृष्ण का कहना था कि वह ऐसा तो कुछ नहीं कह सकते हैं, मगर ‘रेलवे समाचार’ की बात तर्कसंगत और विचार करने योग्य है.