सेफ्टी फेंसिंग टेंडर्स में जारी है मनमानी और भ्रष्टाचार का खुला खेल!
आदर्श दुनिया में, जब कोई #wistleblower सिस्टम में किसी गड़बड़ी या विसंगति को उजागर करता है, तो सिस्टम के अधिकारी इसकी जांच करते हैं, इसमें सुधार करते हैं, या समस्या को जड़ से खत्म करते हैं, और अंततः सिस्टम खुद को ठीक कर लेता है। इस तरह wistleblower का उद्देश्य पूरा हो जाता है!
लेकिन दुर्भाग्य से हम एक व्यावहारिक और निहायत स्वार्थी दुनिया में रहते हैं। यहाँ अगर कोई भ्रष्ट काम उजागर होता है, तो सिस्टम के अधिकारी न केवल उस अनैतिक काम करने वाले और उससे जुड़े व्यक्तियों को बचाते हैं, बल्कि उसे पुरस्कृत भी करते हैं, और इस तरह व्हिसलब्लोअर सहित पूरे सिस्टम को मुंह चिढ़ाते हैं।
कुछ ऐसा ही मामला “#SafetyFencingTenders” के मामले में भी भारतीय रेल में देखा जा रहा है, जो रेल में चर्चा का विषय बन गया है। यह डिवीजन स्तर पर भ्रष्ट अधिकारियों के लिए इतना आकर्षक है कि वे इसका भरपूर फायदा उठाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। हाल ही में मध्य रेलवे के भुसावल डिवीजन में प्रकाशित “Safety Fencing Tenders” इस तथ्य का प्रमाण हैं।
इसका उल्लेख पिछले आर्टिकल, “मध्य रेलवे: फेंसिंग टेंडर्स में मुख्यालय को दरकिनार कर डिवीजनों की मनमानी और नियमों का उल्लंघन” में किया जा चुका है और यह ठोस सबूतों पर आधारित है कि पूरी सेफ्टी फेंसिंग टेंडर योजना अवैध और अनैतिक गतिविधियों का शिकार हो रही है, जहाँ डिवीजन के प्रभावशाली वरिष्ठ मंडल अभियंता (#SrDEN) अपने साथी अथवा समर्थित-फेवरिट ठेकेदारों के साथ मिलकर न केवल अप्रूवल अथॉरिटी को, बल्कि पूरे सिस्टम को दरकिनार कर रहे हैं, और अपने वित्तीय अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं।
यह पहले आर्टिकल में ही स्पष्ट किया जा चुका है कि न तो मुख्यालय से विभाजन की मंजूरी मिली थी, और न ही SrDEN के पास स्वीकृत राशि में हेरफेर करने या उसे विभाजित करने का अधिकार था, फिर भी यह सब स्वयं को और अपने साथी ठेकेदारों को अधिकतम लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से किया गया। इसका एक और उद्देश्य #टेंडर्स को उन पार्टियों के लिए सबसे उपयुक्त बनाना था, जिनके साथ उनकी भागीदारी है। इतने सारे वास्तविक सवालों और तथ्यों के साथ, कोई भी पूरी गहराई से जांच और दोषी अधिकारियों के विरुद्ध उचित कार्रवाई की उम्मीद कर सकता है।
लेकिन आइए एक उदाहरण के तौर पर भुसावल मंडल में क्या हुआ, इसे देखें। इस भ्रष्टाचार और इसी तरह के कई अन्य मामलों में शामिल और सबसे लंबे समय तक रहने वाले SrDEN को विभाग द्वारा सम्मानित किया गया है। बेशक यह किसी पक्षपाती सुपीरियर ऑफिसर की सहमति के बिना संभव नहीं हो सकता है, जो इस गंदगी को जानते हुए भी अपने कुछ छोटे-मोटे लाभ और उपहारों के बदले में इसका समर्थन करते हैं। अगर “रेलसमाचार” सिस्टम से बाहर रहकर सबूत जुटा सकता है, तो विभाग के लिए निष्पक्ष जांच करना और दोषियों को पकड़ना कतई मुश्किल नहीं होना चाहिए। लेकिन इससे मुख्य दोषी के साथ-साथ अन्य हितधारकों की भी पोल खुल जाएगी, इसलिए इसे दबा देना ही बेहतर समझा जाता है।
परिणामस्वरूप, इस प्रवृत्ति ने दिन के उजाले में सिस्टम के भीतर और अधिक भ्रष्टाचार को जन्म दिया है। भुसावल में 12 निविदाएँ प्रकाशित की गईं, जिनका विभाजन रैंडम लगता है, लेकिन यह सभी पक्षों के लिए बहुत अनुकूल है। सबसे कम ₹24 करोड़ और सबसे अधिक ₹81 करोड़ की निविदाएँ हैं, और यह दोनों एक ही सेक्शन में हैं। जानकारों का कहना है कि भ्रष्टाचार को पुरस्कृत करने की प्रथा की बदौलत, भुसावल मंडल एक कदम और आगे निकल गया।
आमंत्रित टेंडर्स में सेफ्टी फेंसिंग के पहले से चल रहे कार्यों को ध्यान में नहीं रखा गया, जिसे स्वीकृत कार्य के दायरे से घटाया जाना चाहिए था। संबंधित SrDEN ने यह जानबूझकर किया, ऐसा बताया गया है, क्योंकि अधिक काम से अधिक कमीशन मिलेगा। जानकारों का मानना है कि #Tender आमंत्रित करते समय कोई सामंजस्य नहीं है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि संबंधित अधिकारी द्वारा अपने स्वयं के और ठेकेदार के लाभ के लिए टेंडर कस्टमाइज किए गए हैं।
उनका कहना है कि ऐसा लगता है, अतिरिक्त कार्य या किसी भी चीज के लिए अप्रूवल लेना डिवीजन के लिए अब पुराने जमाने की बात हो गई है, क्योंकि असीमित वित्तीय अधिकार के चलते उन्हें सब कुछ अपने हाथों में लेने की आदत पड़ गई है। वास्तव में SrDENs का कार्यकाल केवल इन कार्यों के आधार पर मैनेज किया जा रहा है।
इसी तरह, नागपुर डिवीजन भी इससे अछूता नहीं है, जैसा कि हमारे पिछले आर्टिकल में बताया गया है। संदिग्ध कार्रवाईयों के बावजूद उन्होंने बिना कुछ बदले बहुत कमजोर आधार पर टेंडर कमेटियों (#TCs) के साथ काम करना जारी रखा है। दरअसल, यहाँ टेंडर #ADEN के हिसाब से बनाए गए, वह भी बिना किसी विभाजन (#splitting) स्वीकृति के!
पहले आर्टिकल के बाद नागपुर मंडल में जो कुछ बदला, उसे एक तरह से भ्रष्टाचार का इनाम भी कहा जा सकता है। हाल ही में डिवीजनल स्तर पर कुछ बदलाव और पोस्टिंग हुई हैं, जो प्रशासनिक दृष्टिकोण से तार्किक और न्यायसंगत हो सकती है, लेकिन इसका अंतिम परिणाम यह निकला कि जो सेक्शनल काम पहले SrDEN द्वारा संभाला जाता था, वह अब #DEN द्वारा किया जाएगा। इसका निहितार्थ समझा जा सकता है।
यहाँ कोई यह तर्क दे सकता है कि क्या इससे सेफ्टी फेंसिंग की टेंडर कमेटी (टीसी) का संतुलन बदल जाएगा और डिवीजनल अप्रूवल का संतुलन किसी प्रभावशाली अधिकारी के पक्ष में झुक जाएगा! यह सब कुछ निष्पक्ष जांच एजेंसियों के लिए छोड़ा जा रहा है, अगर रेलवे में कोई निष्पक्ष जांच एजेंसियां हैं तो!
पहले आर्टिकल के परिप्रेक्ष्य में सोलापुर और पुणे डिवीजन में भी कोई कार्रवाई या जांच नहीं की गई। सतह पर ये सभी डिवीजन एक दूसरे से स्वतंत्र दिखते हैं। फिर भी जब इस तरह के गहरे भ्रष्टाचार से निपटने की बात आती है, तो वे कार्यप्रणाली में बहुत समान हैं। यह सारी गड़बड़ी डिवीजन के कुछ स्थापित अधिकारियों से जुड़ी है, जिनकी ठेकेदारों के साथ साझेदारी है, जो बदले में अपने पैसे के प्रभाव का इस्तेमाल करके पूरे सौदे को आकर्षक और अपने लिए अधिक फायदेमंद बनाते हैं। लेकिन इस खुलेआम हो रहे भ्रष्टाचार की जांच क्यों नहीं की जा रही है? यह एक बड़ा प्रश्न है!
यहां तक कि सोलापुर और पुणे डिवीजन भी बिना किसी आपत्ति के बच निकले और ऐसा ही अन्य डिवीजनों में भी होता दिख रहा है। जिस तरह से इस मामले को संभाला गया है, उससे लगता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें हमारी अपेक्षा से कहीं अधिक गहरी हैं, लेकिन इतनी भी गहरी नहीं हैं कि उन्हें उखाड़ा न जा सके! क्रमशः जारी..