मध्य रेलवे: फेंसिंग टेंडर्स में मुख्यालय को दरकिनार कर डिवीजनों की मनमानी और नियमों का उल्लंघन
यह कहना शायद अतिश्योक्ति होगी कि रेलवे का विभागीय कामकाज हमेशा भ्रष्टाचार और अनैतिक गतिविधियों से मुक्त रहा है। हालाँकि, सभी को सह-अस्तित्व में रहने और अच्छे या बुरे कर्म करने की एक लक्ष्मण रेखा खींची गई है। लेकिन जब से डीआरएम्स अथवा डिवीजनों को #गतिशक्ति प्रकोष्ठ के तहत असीमित प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकार प्रदान किए गए, तब से डिवीजनों ने बहुत ही निरंकुश और मनमानीपूर्ण तरीके से काम करना शुरू कर दिया है, जिसके फलस्वरूप कई अच्छे और निष्पक्ष ठेकेदारों का शोषण, उत्पीड़न, भ्रष्टाचार और असंतोष पैदा हुआ है। डिवीजनल अधिकारी स्वयं को या अपने पार्टनर/फेवरिट ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए मुख्यालय (#HQ) को दरकिनार कर मनमानी करने और नियमों को तोड़ने-मरोड़ने के लिए सदैव तत्पर हैं।
ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ मुख्यालय को दरकिनार किया गया है। अंततः ऐसे सभी मामले सार्वजनिक रूप से क्रमशः सामने आएँगे ही, लेकिन इस विषय पर पाठकों का ध्यान बनाए रखने के लिए #RailSamachar द्वारा मध्य रेलवे के सोलापुर, पुणे और नागपुर डिवीजनों में रेल लाइन के दोनों तरफ लगाई जाने वाली फेंसिंग के टेंडरों में हुई/हो रही बंदरबाँट और भ्रष्टाचार को उजागर करने का सिलसिला यहाँ से शुरू किया जा रहा है।
मनमानी और नियमों का उल्लंघन
ज्ञातव्य है कि मध्य रेलवे में सोलापुर मंडल में लगभग ₹475 करोड़, पुणे मंडल में ₹210 करोड़ और नागपुर मंडल में ₹1300 करोड़ की फेंसिंग के काम को रेलवे बोर्ड ने मंजूरी दी है। नियमतः स्वीकृत राशि के आधार पर मध्य रेलवे मुख्यालय से इसके लिए एजीएम की मंजूरी ली जानी चाहिए थी, लेकिन उक्त डिवीजनों ने मुख्यालय को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए इस नियम का मजाक बना दिया है। (देखें #Annexure ‘A’)
उदाहरण के लिए; सोलापुर डिवीजन ने पूरे काम को 17 भागों में विभाजित किया है। (#Annexure ‘B’ में इसकी सूची संलग्न है) सोलापुर डिवीजन ने इसमें भारी हेराफेरी की है और इसे कुछ इस तरह से विभाजित किया है, जिसके लिए केवल डिवीजन (डीआरएम) की मंजूरी ही पर्याप्त है। इसीलिए मुख्यालय की मंजूरी को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। स्पष्ट रूप से मुख्यालय की मंजूरी और वेटिंग के बिना ही डिवीजनल वेटिंग (divisional vetting) दे दी गई है।
इसी तरह की मनमानीपूर्ण परिपाटी पुणे डिवीजन द्वारा भी अपनाई गई है। पुणे डिवीजन ने भी सक्षम प्राधिकार की मंजूरी लिए बिना, और मुख्यालय को दरकिनार करते हुए पूरे काम को 7 भागों में विभाजित कर दिया है। (देखें Annexure ‘D’)
इसी प्रकार नागपुर डिवीजन भी इसी ट्रैक का अनुसरण कर रहा है। नागपुर डिवीजन ने भी सक्षम प्राधिकार यानि मुख्यालय/एजीएम की मंजूरी लिए बिना, और मुख्यालय को पूरी तरह साइड लाइन करके पूरे काम को 7 भागों में विभाजित किया है। (देखें Annexure ‘C’)
जबकि मुख्यालय की पूर्व अनुमति लेकर भुसावल डिवीजन द्वारा किए गए सभी 22 फेंसिंग टेंडर केवल इसलिए डिस्चार्ज करा दिए गए हैं, कि डिवीजन में टेंडर्स की संख्या बहुत अधिक हो गई है – (देखें Annexure ‘E’)। सक्षम एजेंसी से इस पूरे मामले की विस्तृत और निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए, क्योंकि पुणे और सोलापुर डिवीजन भी भुसावल डिवीजन की ही राह पर चल रहे हैं।
अधिक लाभ उठाने का उद्देश्य
फेंसिंग टेंडर वर्क को टुकड़ों में विभाजित करने का कारण काफी हद तक स्पष्ट है, वह यह कि टेंडर कमेटी (#TC) से अधिकतम लाभ प्राप्त करने का उद्देश्य इसमें निहित है। हालाँकि, मुख्य कारण, संबंधित अधिकारी के अपने फेवरिट ठेकेदारों और पार्टियों को इसमें पहले से ही शामिल करना था, ताकि वे ऐसे कार्टेल बना सकें, जो उनके लिए सर्वाधिक उपयुक्त हों।
जानकारों का कहना है कि संबंधित डिवीजनल अधिकारियों का यह कृत्य स्वस्थ/निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के उद्देश्य को पूरी तरह खत्म करता है, क्योंकि इस सोद्देश्य प्रक्रिया के तहत निर्णय लेने में इतने करीब से शामिल होने वाले फेवरिट ठेकेदारों को अन्य लाभ भी मिलना तय होता है। यह स्थिति उन्हें उच्च दरों पर टेंडर प्राप्त करने में सहायक होती है, जो स्वस्थ और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धात्मक परिस्थितियों में संभव नहीं हो सकता।
सभी की भागीदारी और हिस्सेदारी
इसके अलावा, उनका यह भी मानना है कि ऊपर के स्तर पर भ्रष्टाचार, मुख्यालय में बैठे किसी प्रभावशाली अधिकारी – जो अनौपचारिक निर्णय/संस्तुति देता है – की भागीदारी के बिना संभव नहीं हो सकता। जबकि डिवीजन में सभी की भागीदारी और हिस्सेदारी है; चाहे वह #SrDEN हों, #SrDFM हों; #DRM हों, आदि, यह पहले से ही तय है। यही कारण है कि सभी डिवीजनों में इस काम से जुड़े किसी भी विभाग में किसी ने भी इस पर सवाल नहीं उठाया, जबकि यह सब नियम विरुद्ध और अनैतिक रूप से किया जा रहा है।
रेलवे में #भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि फेंसिंग टेंडर से लाभान्वित होने वाले SrDEN/Co और SrDEN के तबादलों में भी देरी की जा रही है, जबकि उनका कार्यकाल काफी समय पहले ही खत्म हो चुका है। जहां कार्यकाल खत्म होने वाला है, वहां अनैतिक लाभ उठाने के लिए प्रक्रिया बेहद तेज कर दी गई है।
उम्मीद कायम है!
जैसा कि ऊपर बताया गया है, यह भ्रष्टाचार तो पहाड़ पर जमी बर्फ का बस एक छोटा सा हिस्सा मात्र है। इस मामले पर निष्पक्ष जांच से अन्य कई बड़े मामले भी सामने आएंगे, जहां उच्चस्तर पर इंजीनियरिंग विभाग के बड़े भ्रष्टाचार उजागर हो सकते हैं। उम्मीद की जाती है कि मध्य रेलवे के वर्तमान महाप्रबंधक, जो स्वयं निष्पक्ष और ईमानदार हैं, इस पूरे मामले की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच करवाएँगे तथा नियमानुसार प्रक्रिया को स्थापित करेंगे! क्रमशः