भारतीय रेल का पूरा बंटाधार करने की हो रही है साजिश
सीवीसी की एडवाइस पर फेवरेबल निर्णय लेने हेतु अनुशासनिक अधिकारी पर दबाव
घनश्याम सिंह के बारे में सीवीसी की फाइल अनुशासनिक अधिकारी को पुटअप नहीं की गई
अतिरिक्त चार्ज देकर अब एमएस पर घनश्याम सिंह के फेवर में बन रहा सीआरबी का दबाव
8-10 दिन पहले आई फाइल अनुशासनिक अधिकारी मेंबर ट्रैक्शन के पास नहीं जाने दी गई
सुरेश त्रिपाठी
मेंबर ट्रैक्शन, रेलवे बोर्ड बनने की दौड़ में साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर और पूरी जी-जान लगाकर अब तक आगे चल रहे घनश्याम सिंह के बारे में सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) की एडवाइस करीब 8-10 दिन पहले रेलवे बोर्ड में आ गई थी. तथापि उक्त फाइल मेंबर ट्रैक्शन और इस मामले में अनुशासनिक अधिकारी (डीए) रहे ए. के. कपूर के सामने पुटअप नहीं होने दी गई और उनके रिटायर होने का इंतजार किया जाता रहा. उल्लेखनीय है कि श्री कपूर मंगलवार, 28 फरवरी को मेंबर ट्रैक्शन के पद से सेवानिवृत्त हो गए.
यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि आखिर उपरोक्त 8-10 दिनों के दरम्यान सीवीसी की फाइल अनुशासनिक अधिकारी को पुटअप क्यों नहीं की गई? यह सवाल इसलिए भी उठाना लाजिमी है क्योंकि इसी सवाल में सीआरबी द्वारा की जा रही जोड़तोड़ का जवाब छिपा हुआ है. घनश्याम सिंह के मामले में सीवीसी की यह दूसरी एडवाइस बहुत महत्वपूर्ण है. इस पर उनके अनुशासनिक अधिकारी ‘मेंबर ट्रैक्शन’ को ही निर्णय लेने का अधिकार है. मेंबर ट्रैक्शन के निर्णय के बाद उक्त फाइल सीधे रेलमंत्री को पुटअप होनी है. इस प्रक्रिया में सीआरबी की कोई भूमिका नहीं है और न ही यह फाइल सीआरबी को भेजी जाती है.
सीवीसी के हमारे विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सीवीसी ने अपनी सेकेंड एडवाइस करीब 8-10 दिन पहले ही रेलवे बोर्ड को भेज दी थी. सूत्रों का कहना है कि जिस तरह इससे पहले मेंबर ट्रैक्शन के फेवरेबल रिमार्क के साथ खुद बिना कोई निर्णय लिए सीआरबी द्वारा घनश्याम सिंह की 80-90 पेज की समरी रिपोर्ट सीवीसी को भेज दी गई थी, उसी प्रकार तमाम उठापटक के बाद सीवीसी ने भी अंतिम निर्णय के लिए उक्त फाइल रेलवे बोर्ड (अनुशासनिक अधिकारी) को अपनी एडवाइस के साथ लौटा दी है.
रेलवे बोर्ड के हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि उक्त 80-90 पेज की समरी रिपोर्ट बनाकर रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा घनश्याम सिंह को उनके तमाम भ्रष्ट कार्य-कलापों से मुक्त कर दिया गया था और इस पर तत्कालीन मेंबर ट्रैक्शन के फेवरेबल रिमार्क सहित यह भी लिखकर सीवीसी को भेजा गया था कि इस मामले में सीवीसी खुद निर्णय ले. यही बात सीआरबी ने भी अपनी टिप्पणी में कही थी. सूत्रों का कहना है कि अब उक्त 80-90 पेज की रिपोर्ट का परीक्षण करने के बाद सीवीसी ने पाया कि उसमें बहुत लीपापोती की गई है और घनश्याम सिंह को पूरी साजिश के साथ बरी किया गया है. अतः सीवीसी ने भी अंतिम निर्णय रेलवे बोर्ड यानि मेंबर ट्रैक्शन (अनुशासनिक अधिकारी) पर ही ढ़केल दिया है.
सूत्रों का कहना है कि सीआरबी को यह पूरी आशंका थी कि 28 फरवरी को रिटायर होने जा रहे मेंबर ट्रैक्शन ए. के. कपूर शायद इस बार उनका दबाव न मानकर घनश्याम सिंह के विरुद्ध फाइल पर नकारात्मक टिप्पणी दे सकते हैं. इसीलिए अनुशासनिक अधिकारी होने के बावजूद उनके रिटायर होने तक सीवीसी की एडवाइस उनके समक्ष पुटअप नहीं की गई. उनका कहना है कि सीआरबी ने अपनी साजिश और जोड़तोड़ के तहत ही मेंबर ट्रैक्शन का अतिरिक्त चार्ज मेंबर स्टाफ प्रदीप कुमार को दिलवाया है, जिससे की उन पर दबाव बनाकर घनश्याम सिंह के फेवर में टिप्पणी लिखवाई जा सके.
हालांकि सूत्रों का यह भी कहना है कि चूंकि सीआरबी ए. के. मितल ने पूरी चालाकी से मेंबर स्टाफ प्रदीप कुमार के सीआरबी बनने का रास्ता अवरुद्ध किया था, इसलिए शायद इस बार वह उनके दबाव में नहीं आएंगे. सूत्रों का यह भी कहना है कि सीआरबी जिस प्रकार किसी भी कीमत पर घनश्याम सिंह का फेवर करने और करवाने में लगे हुए हैं, उससे तो यही लगता है कि उनके बीच कोई बहुत मजबूत ‘डील’ हुई है और वह चाहते हैं कि उनके जैसे ही कुछ और अकर्मण्य और अकार्यक्षम लोग बोर्ड में आ जाएं, तो भारतीय रेल का मुकम्मल बंटाधार किया जा सकेगा.
इस बारे में एक दिन पहले सेवानिवृत मेंबर ट्रैक्शन ए. के. कपूर से संपर्क करने और उनका पक्ष जानने की तमाम कोशिशें बेकार साबित हुईं, क्योंकि उनका मोबाइल लगातार स्विच ऑफ था, जबकि इस विषय में एडीजी/पीआर ए. के. सक्सेना से संपर्क करने की जरुरत इसलिए नहीं महसूस की गई, क्योंकि एक तो उनका जवाब पहले से ही मालूम था, दूसरे इसलिए कि वह ‘रेलवे समाचार’ के सवालों का जवाब देने से हमेशा कतराते रहे हैं.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने सीआरबी ए. के. मितल सहित जिन 9 वरिष्ठ अधिकारियों को सेवा-विस्तार दिया है, वह सब अपने वास्तविक सेवाकाल में श्री मितल जैसे ही अकार्यक्षम, अकर्मण्य, अनुभवहीन और नाकारा रहे हैं. पीएम के विशेष सचिव नृपेन मिश्र द्वारा 31 जनवरी को सीआरबी को लिखा गया पत्र इस बात का प्रमाण है कि ए. के. मितल ने न सिर्फ भारतीय रेल का बंटाधार किया है, बल्कि वह पीएमओ की अपेक्षाओं पर भी खरे नहीं उतर सके हैं. अब यदि घनश्याम सिंह जैसे अत्यंत विवादास्पद और घोषित भ्रष्ट अधिकारी को भी रेलवे बोर्ड में बैठने के लिए अधिकृत कर दिया जाता है, तो भारतीय रेल का भट्ठा बैठाने में ए. के. मितल से जो कसर बाकी रही गई है, वह घनश्याम सिंह पूरी कर देंगे.