रेलवे स्कूल कल्याण में इनडोर कोर्ट का निर्माण और फिर उसके मलबे का उद्घाटन
संस्थाओं को बनाने के लिए बहुत साहस, रचनात्मकता और प्रबंधकीय कौशल की आवश्यकता होती है, मगर उन्हें ध्वस्त करने के लिए आपको मूर्खों के झुंड को इशारा करने के अलावा और कुछ नहीं करना पड़ता!
कल्याण: #RailSamachar ने रेलवे में बहुत धूमधाम से अनगिनत उद्घाटन देखे हैं। नई इमारतें, नई ट्रेनें, नई परियोजनाएँ, नए स्टेशन, नई सेवाएँ वगैरह-वगैरह। आप सब ने भी यह देखा होगा, लेकिन आप में से किसी ने भी महाप्रबंधक को किसी नवनिर्मित भवन के मलबे का उद्घाटन करते कभी नहीं देखा-सुना होगा!
हाँ, हैरान मत होईए। 3 जुलाई 2024 को रेलवे स्कूल कल्याण में ठीक यही हुआ। महाप्रबंधक/मध्य रेलवे ने उस तारीख को स्कूल के अपने औचक निरीक्षण में ठीक यही किया।
28 जनवरी 2024 को निर्धारित जीएम निरीक्षण के अनुसार, महाप्रबंधक को नवनिर्मित इनडोर कोर्ट का उद्घाटन करने के लिए स्कूल का दौरा करना था। हालाँकि ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि मंडल रेल प्रबंधक ने महाप्रबंधक के दौरे की तैयारियों को देखने के लिए एक सप्ताह पहले 21 जनवरी 2024 को स्कूल का निरीक्षण किया। अपने दौरे पर मंडल रेल प्रबंधक ने पाया कि निर्मित भवन इनडोर कोर्ट के अलावा जानवरों के बाड़े जैसा कुछ था। उन्होंने तत्कालीन प्रिंसिपल सतीश कुलकर्णी को डाँट लगाई, जो हमेशा अपने स्वभाव के अनुसार यस सर-सॉरी सर-सर करते हुए माफी माँगते रहे।
स्कूल की वर्तमान प्रधानाध्यापिका – जो उप-प्राचार्य के रूप में उछलकूद कर रही थीं – ने फटकार के खतरे को भांपते हुए कछुए की तरह अपनी मुंडी अंदर खींच ली और छिपने की जगह तलाशने लगीं। डीआरएम की राय में कोर्ट कंचे या कैरम खेलने के लिए अच्छा था, बैडमिंटन खेलने के लिए नहीं। और जो स्कूल में ऐतिहासिक रूप से होना तय था, वही हुआ, उद्घाटन रद्द कर दिया गया और जीएम स्कूल नहीं आए।
इसके कुछ दिन बाद ही बाड़े जैसे इस इनडोर कोर्ट को तोड़कर मलबे के रूप में वहीं ढ़ेर कर दिया गया। यहाँ इस इनडोर कोर्ट की कहानी जानना भी आवश्यक है। मध्य रेलवे प्रशासन पिछले एक दशक में रेलवे स्कूल के मूलभूत विकास के लिए हमेशा सक्रिय रहा है। इसमें सीआरडब्ल्यूडब्ल्यूओ ने भी बालिका और महिला सशक्तिकरण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे कई छात्र सुविधाओं में भी सहायक रहे हैं। दूसरी ओर प्रशासन ने आईजीबीसी प्रमाणन से जुड़ी विकास गतिविधियों और स्कूल के लिए एक विशाल वातानुकूलित सभागार बनाने पर बहुत पैसा खर्च किया। यह सब बेहतर स्कूली शिक्षा और छात्रों के मानसिक-शारीरिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक था।
स्कूल में खेलकूद गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए इनडोर कोर्ट भी एक ऐसी ही योजना थी। स्कूल के छात्रों ने सात साल की अवधि तक लगातार खेल के क्षेत्र में ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाए और एथलेटिक्स में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतकर कई बड़े रिकॉर्ड भी तोड़े। इनकी कोचिंग विशेष रूप से मध्य रेलवे के योग्य खिलाड़ियों द्वारा की गई थी, जिन्हें इसी उद्देश्य के लिए स्कूल में प्रतिनियुक्त किया गया था। स्कूल के छात्र-छात्राओं की खेलों में रुचि और प्रगति को देखते हुए रेलवे द्वारा खेलों को बढ़ावा देने हेतु कई आधुनिक सुविधाएँ और उपकरण भी प्रदान किए गए।
छात्रों की प्रगति को देखते हुए मध्य रेलवे खेल संघ के महासचिव ने 2022 में स्कूल का दौरा किया था और छात्रों के साथ बातचीत करने में विशेष रुचि दिखाई। एक इनडोर कोर्ट की परिकल्पना उनके आगमन का ही परिणाम थी। यह अच्छी तरह से योजनाबद्ध था और मध्य रेलवे द्वारा स्कूल को उपहार के रूप में दिया गया था। लेकिन स्कूल प्रबंधन में अगुआ रहे मूर्खों के पास शैक्षणिक प्रशासनिक या खेल गतिविधियों की बुनियादी बातों पर ध्यान देने का समय नहीं था। इस गैरजिम्मेदारी के कारण स्कूल का बहुत बड़ा नुकसान हुआ और इनडोर कोर्ट के लिए किया गया निर्माण अनुपयुक्त हो गया।
मध्य रेलवे प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य या खेलकूद में एक नकचढ़ी, तुनकमिजाज और बात-बात पर झूठ बोलने वाली प्रधानाध्यापिका से क्या उम्मीद कर सकता है? जो महिला चोरी-छिपे शिक्षकों के मोबाइल फोन की तलाशी लेने और उनकी व्यक्तिगत गोपनीयता में दखल देने में व्यस्त रहती है, वह इन सबके लिए उच्च गुणवत्ता वाले उपकरणों की उपलब्धता के बावजूद छात्रों को स्वच्छ पेयजल और बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने में भी बुरी तरह विफल रही है।
प्रधानाध्यापिका विद्यालय एवं छात्र-छात्राओं की आवश्यकताओं पर ध्यान देने के बजाय कार्यालय स्टाफ और सहायक कर्मियों को परेशान-प्रताड़ित करने में व्यस्त हैं। छात्रों को आवश्यक चीजों से वंचित करने के लिए वह हमेशा सतर्कता जांच का हवाला देती हैं। अब सवाल यह है कि यदि छात्रों को उनकी आवश्यकता की चीजें नहीं दी जाती हैं तो यह रेलवे स्कूल बच्चों से करोड़ों रुपये फीस के रूप में क्यों वसूलता है? अभी दो-तीन दिन पहले ही प्रधानाध्यापिका ने इसी विषय पर मध्य रेलवे के लेखा विभाग में कार्यरत एक पैरेंट/लेखाकर्मी के साथ अभद्र व्यवहार किया है।
मध्य रेलवे प्रशासन को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और स्कूल के बदतर प्रबंधन और अक्षम प्रधानाध्यापिका के कारण स्कूल की इस मानव निर्मित दयनीय स्थिति को समाप्त करने का समाधान निकालना चाहिए। छात्रों का कहना है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में भी कमी आई है। इसके अलावा विद्यालय में हर तरह की बकवास और नौटंकी होती है। नए शिक्षकों की नियुक्ति बेहद हास्यास्पद तरीके से की जाती है। अंग्रेजी के शिक्षक को अंग्रेजी के अलावा बाकी सब कुछ पढ़ाना आता है। यह बदहाल स्थिति हो गई है स्कूल की। नियुक्त शिक्षकों को इस तरह पिंजरे में बंद करके रखा जाता है कि मूढ़ प्रधानाध्यापिका को सहकर्मी शिक्षकों से बातचीत करने में भी डर लगता है। वर्षों से यहां पढ़ा रहे कई अनुभवी शिक्षक प्रधानाध्यापिका के असहनीय उत्पीड़न के कारण स्कूल छोड़कर चले गए। यह कैसी दुर्दशा बना दी गई है स्कूल की!
यदि इनडोर कोर्ट के निर्माण के समय उचित ध्यान दिया गया होता, तो इसे तोड़ना नहीं पड़ता और लाखों रुपये बर्बाद नहीं होते। कई शिक्षकों ने पूछा कि क्या बनाया गया है, लेकिन प्रधानाध्यापिका के पास जवाब देने का समय नहीं था, क्योंकि वह अपनी घटिया दर्जे की राजनीति में व्यस्त थीं और इस तरह उन्होंने इनडोर कोर्ट को मलबे का ढ़ेर बना दिया, जिसे महाप्रबंधक ने मंडल रेल प्रबंधक के साथ अपने औचक निरीक्षण में देखा।
संस्थाओं को बनाने के लिए बहुत साहस, रचनात्मकता और प्रबंधकीय कौशल की आवश्यकता होती है, मगर उन्हें ध्वस्त करने के लिए आपको मूर्खों के झुंड को इशारा करने के अलावा और कुछ नहीं करना पड़ता। तिलंगा और उसके गुरु एसडीजीएम मलबे के इस ढ़ेर को देखकर खुश हो रहे होंगे, मगर लगभग पचास लाख की इस बर्बादी में तिलंगे के प्रोटोकॉल-पसंद गुरु – एसडीजीएम/मध्य रेल – को अब तक कोई विजिलेंस ऐंगल दिखाई नहीं दिया है!
रेलवे बोर्ड को इसका संज्ञान लेकर नवनिर्मित इनडोर कोर्ट के इस विध्वंस की गंभीरता से जांच करानी चाहिए और कल्याण रेलवे स्कूल के छात्रों की अपेक्षाओं/आकांक्षाओं पर तुषारापात करने के लिए दोषियों को कतई बख्शा नहीं जाना चाहिए।
“As per students report classes were getting cleaned during GM visit, devices were not functioning, servants spoke infront of GM that they were asked to broom classes during GM inspection while classes were going on. What a pity!”